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पापा बोले- तुमने कहा था कि अब की बार जब भी करेंगे तो जो कहोगे वो करूँगी। मम्मी बोली- हाँ बाबा ! जो करना हो कर लो, अभी भी कह रही हूँ, बस गन्दी संदी चीजें न कहना! पापा बोले- सम्भोग में कुछ भी गन्दा नहीं होता! मम्मी बोली- अब करो भी! मम्मी पापा की बात सुनकर ऐसा लग रहा था जैसे मैं किसी दूसरी दुनिया में पहुँच गया हूँ।
पापा अब मुस्कुराये और बोले- आज बहुत बेसब्र हो रही हो करने के लिए, रोज़ मैं कहता था तो तुम ही नाटक करती थी। अब देखा! जब मूड बन जाये और फिर कुछ करने को न मिले तो कैसा लगता है। मम्मी बोली- मैं तो अंकित की वजह से मना करती थी कि लड़का बड़ा हो गया है, उसके बगल में रोज़ रोज़ करने में डर लगता है कि कही जाग न जाए। मम्मी बोली- मैंने तो कहा था कि अकेले में किया करो अब!
पापा बोले- आज कितने दिनों बाद अकेले करेंगे, जैसे अंकित के होने से पहले करते थे। पापा बोले आज तुम्हारे शरीर के हर अंग से वैसे ही खेलूंगा जैसे हमने अपनी सुहागरात में किया था। क्या तुम अपनी दूसरी सुहागरात मनाने के लिए तैयार हो? मम्मी बोली- मैं तो कब से तैयार हूँ, तुम ही नखरे कर रहे हो। इतना कह कर दोनों हँसने लगे।
पापा मम्मी दोनों अब उठकर बिस्तर पर बैठ गए। पहले मम्मी बाथरूम गई और उनके आने के बाद पापा भी बाथरूम चले गए। मम्मी बाथरूम से निकल कर श्रृंगारदान के शीशे के सामने अपने बालों को संवारने लगी तभी पापा ने पीछे से आकर बाल संवार रही मम्मी को बाँहो में कस लिया। मम्मी के बाल बहुत लंबे हैं पापा का सिर मम्मी के बालों से होता हुआ उनकी गर्दन के पीछे जाकर रुक गया और उन्होंने मम्मी को चूम लिया।
कई बार मेरे सामने भी पापा ने मम्मी को इस तरह पीछे से बाहों में भरा था। जिस पर मम्मी झट से तुनक कर कह देती थी ‘अंकित के पापा छोड़ो न ! हटो परे ! अंकित देख रहा है!’ जिस पर पापा कहते थे ‘अंकित अभी बहुत छोटा है, वो क्या जाने कि हम लोग क्या कर रहे हैं।’
आज मम्मी पापा को कुछ नहीं कह रही थी जैसा अक्सर वो किया करती थी। शायद ऐसा इसलिए था क्योंकि आज मैं उनके साथ रूम शेयर नहीं कर रहा था, आज वो पापा की नाराजगी को पूरी तरह दूर करना चाहती थी।
पापा मम्मी को चूमने लगे कभी गालों पर, कभी गर्दन पर, कभी होंठों पर उन्होंने मम्मी के ऊपर जैसे चुम्बनों की बारिश कर दी, पापा का एक हाथ (पेटीकोट के ऊपर से ही) मम्मी के नितम्बों पर और दूसरा उनकी मुनिया पर चल रहा था।
मेरे पापा जब मूड में होते है तो मम्मी को सुरभि कह कर पुकारते हैं, पर मम्मी पापा का नाम नहीं लेती। पापा बोले- सुरभि, तुम्हारे चूतड़ तो आज भी लाजवाब हैं, इनसे खेलने का बहुत मन कर करता है। मम्मी की आँखें मदहोशी के कारण बंद थी, वह ज्यादा कुछ नहीं बोल पाई, उनके मुंह से केवल इतना निकला- ए जी क्या सारा कुछ यहीं करोगे। पापा बोले- सुरभि! मम्मी- हुम्म? पापा- बिस्तर पर चलें? मम्मी- हुम्म!
पापा ने मम्मी को गोद में उठा लिया और बिस्तर पर ले जा कर पटक दिया। मम्मी अब बिस्तर पर सीधे लेट गई और पापा, मम्मी के थोड़ा ऊपर आ गए, उन्होंने मम्मी का सिर अपने हाथों में पकड़ लिया और अपने होंठ उनके होंठों पर रख दिए।
मम्मी ने भी पापा को अपनी बाँहों में कस लिया, पापा मम्मी एक दूसरे को बेतहाशा चूमे जा रहे थे। इसी बीच पापा ने अपनी जीभ मम्मी के मुँह में डाल दिया।
मम्मी ने पापा की जुबान को अपने मुँह से उगल दिया और बोली- यह किस तरह से किस करने लगे हो आजकल? पूरी जीभ मेरे मुँह में ही डाल देते हो छीः ! पापा बोले- क्यों अच्छा नहीं लगता क्या? मम्मी बोली- नहीं अच्छा तो लगता है पर कभी इस तरह किया नहीं न पहले, तो गन्दा लगता है।
पापा बोले- तुम भी न, बिल्कुल नासमझ की तरह बात कर रही हो। प्रेम करने में कुछ भी गलत या गन्दा नहीं होता, केवल जो भी करो अपने साथी की ख़ुशी के लिए करो, उसे प्यार और सिर्फ प्यार करो और अपने साथी को पूरी तरह संतुष्ट कर के उसे खुश कर दो। पापा बोले- मैं तुम्हें चूम रहा हूँ और तुम्हें अच्छा लग रहा है तो इसमें गन्दा क्या है? पापा की बात मम्मी के समझ में आ गई और वो दोनों पुनः अपनी काम क्रीड़ा में लग गए।
अब कभी पापा अपनी जीभ मम्मी के मुँह में डाल देते तो कभी मम्मी अपनी जीभ पापा के मुँह में डाल देती, वो दोनों उसे कुल्फी की तरह चूस रहे थे। शायद पापा ने यह चुम्बन अभी जल्दी इज़ाद किया था इसलिए मम्मी इस तरह से किश करने में थोड़ा झिझक रही थी और शरमा भी रही थी पर थोड़ी देर बाद उनकी झिझक एकदम गायब हो गई।
पापा कभी मम्मी के गालो को चूमते, तो कभी गर्दन को। मम्मी भी अब पीछे नहीं होना चाहती थी, उनके हाथ पापा के पीठ पर लगातार चल रहे थे। मम्मी के होंठ आज लगातार खूब मेहनत कर रहे थे, कभी वे पापा के गालों को चूमते और चूसते, तो कभी कंधों और गर्दन के बीच उतर आते, कभी कानों के पीछे, तो कभी ठुड्डी के नीचे। मम्मी की कामोत्तेजना कितनी प्रखर होती जा रही थी।
पापा के होंठ, मम्मी के होंठों की तुलना में कुछ मोठे और कठोर थे इसलिए जब पापा के होंठ, मम्मी के कोमल गुलाबी होंठों को चूम रहे थे तो मुझे ऐसा लग रहता था मानो मम्मी के नाज़ुक नरम होंठ पापा के भारी कठोर होंठो के भार के नीचे दबे हुए हो और पापा के होंठो के नीचे पिस से रहे हों।
मम्मी के होंठ गुलाबी तो हैं ही पर आज पापा के बेतहाशा चूमने के कारण वो और भी लाल प्रतीत हो रहे थे जैसे गुलाब की कोमल लाल पंखुड़ियाँ हों और उन पर बिखरी मुँह की लार को देख कर ऐसा लग रहा था कि वो गुलाब के फूलों से बना शरबत हो जिसे पापा स्वाद ले ले कर पी रहे हों।
मुझे तो ऐसा लगा कि कहीं मम्मी के होंठ छिल न जाये। सारे कमरे में पुच पुच की आवाज़ गूंज रही थी और रात का सन्नाटा होने के कारण आवाजें और भी साफ़ सुनाई पड़ रही थी। जहाँ पापा मम्मी के गुलाबी अधरों का रस पान कर रहे थे, वहीं मम्मी पापा के मुँह का रस पी रही थी और रोमाँच के कारण उनके मुँह से केवल उम्म… उम्ह… उम्ह की सिसकारी रूपी आवाजें निकल रही थी।
अब पापा के हाथ मम्मी के ब्लाउज पर आ गए, पापा अपने हाथ मम्मी के उरोजों पर ब्लाउज के ऊपर से ही फिराने लगे।
सच्ची घटना पर आधारित कहानी जारी रहेगी… मेरी कहानी आपको कैसी लगी, मुझे जरूर बताएँ। [email protected]
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