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माँ मुझे खड़ा करते हुए खुद मूढ़े पर बैठ गईं और नीचे गिरी हुई नाईटी से मेरे सुपारे को पौंछ कर मेरा सुपारा अपने मुँह में भर लिया और मेरे चूतड़ों को अपने दोनों हाथों से दबाते हुए चूसने लग गईं और एक ऊँगली मेरी गाण्ड के छेद में डालने लगीं। मैं तो जैसे सपनों की दुनिया में पहुँच गया था।
माँ ज़ोर-ज़ोर से मेरा लंड चूस रही थीं और मैं भी लंड को उसके मुँह में अन्दर-बाहर कर रहा था। तभी मैंने अपना कंट्रोल खो दिया और तेज ‘आह..’ करते हुए माँ के मुँह में ही झड़ने लगा।
माँ मेरे सुपारे को तब तक अपने मुँह में लिए रहीं.. जब तक मेरा वीर्य निकलना बंद नहीं हो गया। हम दोनों कुछ देर तक वैसे ही बैठे रहे, फिर माँ मुझ से प्यार करते हुए बोलीं- तूने आख़िर अपनी मनमानी कर ही ली.. तो मैं बोला- तुम्हें अच्छा लगा ना.. तो माँ हँसने लगीं और चाय बनाने लगीं।
चाय पीकर मैं रसोई से बाहर आ गया और माँ नंगी ही खाना बनाने लगीं। फिर उसके बाद कुछ नहीं हुआ..
दोपहर में खाना खाते समय माँ मेरे लंड को देखते हुए बोलीं- अभी वीनू के आने का टाइम हो गया है.. अब तू लुँगी लपेट ले.. वरना वीनू को अटपटा लगेगा.. रात में सोते वक़्त पलंग पर फिर से लुँगी उतार कर नंगे सो जाना.. हम दोनों उस समय तक नंगे ही बैठे थे।
मैंने माँ से कहा- माँ कपड़े पहनने का मन नहीं कर रहा है.. अब तो घर में नंगा ही रहूँगा.. अब तो दीदी को भी नंगे ही रहने के लिए कहो.. ‘लेकिन कैसे?’ माँ बोलीं। तो मैं बोला- मुझे नहीं पता.. पर अब मैं नंगा ही रहूँगा और तुम भी नंगी रहो। माँ बोलीं- ठीक है.. पर अभी तो कुछ पहन लो। फिर मैं लुँगी लपेट कर टीवी देखने लगा और माँ भी नाईटी पहन कर काम करने लगीं।
जब दोपहर में वीनू आई तो मुझे लुँगी में बैठे देख कर माँ से धीमी आवाज़ में बातें करने लगी और मैं मन ही मन उन दोनों को एक ही बिस्तर पर चोदने का प्लान बना रहा था।
रात को मैं पूरा प्लान बना कर लुँगी उतार कर मा का इंतजार करने लगा। कुछ देर बाद माँ कमरे में आईं और दरवाजा बंद कर दिया। फिर काम खत्म करने के बाद बिना लाइट ऑफ किए ही नंगी हो कर पलंग पर लेट गईं और मेरी तरफ करवट करके मुझसे पूछा- अब कैसा है? ‘क्या?’ ‘वही…’
मैं तो पहले से ही तैयार था.. तुरंत बात को पकड़ते हुए पूछा- क्या वही? माँ बोलीं- हाँ.. मैंने कहा- वही.. क्या इसका कोई नाम नहीं है.. क्या? ‘अच्छा.. बड़ा चतुर हो गया है.. तुझे नहीं पता क्या?’ और हँसने लगीं। मैं बोला- मुझे तो दोस्तों ने बताया है.. पर तुम सही नाम बताओ ना? ‘अच्छा पहले सुनूं तो.. तेरे दोस्तों ने क्या बताया है?’ मैंने कहा- लंड.. यह सुनते ही माँ की जोर से हँसी छूट गई। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
मैं माँ की जाँघों को फैलाते हुए उनकी बुर की पुत्तियों को सहलाने लगा और पूछा- अच्छा ये बताओ.. यह जो तुम्हारी बुर से बाहर चमड़ा निकला है.. इसका क्या कहते हैं? तो माँ बोलीं- तेरे दोस्त क्या कहते हैं? मैंने कहा- छोड़ो ना दोस्तों को.. तुम बताओ इसे क्या कहते हैं। तो माँ ने कहा- कुछ भी कह ले.. पत्ती.. पंखुड़ी.. तुझे जो भी अच्छा लगता हो।
मैंने कहा- हाँ.. अच्छा ये बताओ जब मैं तुम्हारी गाण्ड मे लंड डाल रहा था.. तो दर्द होते ही तुमने मुझे मना क्यों नहीं किया? तो माँ ने कहा- मुझे भी गाण्ड मरवाने का मन कर रहा था। मैंने आश्चर्य से पूछा- क्या?
तो माँ ने कहा- हाँ.. मेरे गाँव में मेरे पड़ोस की चाची और उनकी लड़की जो एक दूर की रिश्तेदारी में मेरी चाची और चचेरी बहन लगती थीं.. उसने बताया कि शादी के बाद उन्हें चुदाई के बारे में ज़्यादा नहीं मालूम था और उसका पति उसकी गाण्ड में ही अपना लंड पेलता था.. बाद में मेरी चाची यानि उसकी माँ जो खुद भी बहुत चुदक्कड़ थी… उसने अपनी बेटी और दामाद को चुदाई के बारे में बताया। अब अक्सर वो सब साथ में चूत चुदाई और गाण्ड मरवाने का मज़ा लेते हैं। उसी ने मुझे गाण्ड में लंड लेने का तरीका और मज़े के बारे में बताया था। उसकी दो लड़कियाँ हैं जब तू बड़ा होगा.. तो मैं तेरी शादी उसी की बड़ी वाली लड़की से कराऊँगी.. फिर हम सब भी साथ में मज़े लेंगे.. अच्छा अब ये बता कि वीनू को कैसे पटाया जाए? अब तो मैं भी एक भी दिन बिना तेरे लंड के नहीं रह सकती हूँ। अब तो जब तक मेरी गाण्ड में तेरा लंड ना जाए.. मज़ा नहीं आएगा.. एक बार वीनू भी पट जाए तो फिर तो मैं दिन भर गाण्ड मरवाती और चुदवाती रहूँगी.. उसके बाद तू चाहे तो वीनू को भी चोद ले.. फिर उसे भी अपनी बुर हाथ से नहीं रगड़नी पड़ेगी।
मैं बोला- मैं जैसा कहता हूँ.. वैसा ही करती रहना.. वो अपने आप खुल जाएगी.. वैसे भी वो तुमसे खुल कर बात करती ही है ना.. चुदने भी लग जाएगी..
तो माँ ने कहा- हाँ.. हम ओपन तो हैं.. पर कभी चुदाई की बातें नहीं की हैं। मैंने कहा- अच्छा कितना ओपन हो?
माँ मेरे लंड को सहलाते हुए बोलीं- पहले तो सिर्फ़ एमसी के समय पैड लगाने तक.. पर अब तो हम दोनों एक-दूसरे के सामने नंगे ही कपड़े बदल लेते हैं.. कभी-कभी मैं उससे बाल साफ़ करने वाली मशीन भी माँग लेती हूँ.. झांटों को साफ़ करने के लिए मैं बाथरूम में बुर पर मशीन नहीं लगा पाती हूँ और कमरे में लगाती हूँ.. तो वो मुझे ऐसा करते हुए कई बार देख चुकी है.. हम दोनों का एक-दूसरे की बुर देखना नॉर्मल है.. कई बार जब वो खेल कर आती है और थकी होती है.. तो मैं उसकी मालिश कर देती हूँ.. वो भी उसे नंगी करके.. उसकी जाँघों और चूतड़ों पर भी उस समय मेरे हाथ उसकी बुर और गाण्ड के छेद को भी छूते और मसलते हैं और वो भी कभी-कभी मुझे नंगी करके मेरी मालिश करती है.. हाँ.. कभी-कभी जब मालिश के समय मेरी बुर खुजलाती है तो उसी के सामने मैं बुर में ऊँगली करती थी.. तो उस समय उसने मुझे देखा है और मुझे ये भी पता है कि वो भी अपनी बुर में ऊँगली डाल कर झड़ती है.. पर इतना होने पर भी ना तो उसने कभी मुझे झाड़ा है और ना ही मैंने उसको.. बस हम दोनों को ये जानते हैं कि हम दोनों बुर में ऊँगली करते हैं पर चाची और बहन की तरह बुर या गाण्ड चटवाना या चुदाई की बातें नहीं की हैं।
तो मैंने कहा- इतना काफ़ी है। और मैंने अपना सारा प्लान माँ को बता दिया।
अगले दिन सुबह प्लान के मुताबिक मैं लुँगी पहन कर बाहर गया तो देखा माँ और दीदी बातें कर रही थीं। मुझे देख कर माँ ने दीदी से कहा- जा भाई के लिए चाय ले आ।
तो दीदी रसोई में चली गईं.. मैं माँ के सामने अपनी लुँगी थोड़ा फैला कर ऐसे बैठा कि दीदी को पता चल जाए कि मैं माँ को अपना लंड दिखा रहा हूँ.. पर दीदी को मेरा लंड ना दिखाई दे।
जैसे ही दीदी आईं तो मैंने माँ को इशारा करते हुए अपनी जाँघों को बंद कर लिया।
दीदी कभी मुझे और कभी माँ को देखतीं.. पर वो समझ गई थी कि माँ मेरा लंड देख रही थीं।
चाय पीने के बाद मैंने जानबूझ कर अपना लंड हाथ से पकड़ कर.. जिससे दीदी की जिज्ञासा बढ़ जाए.. माँ से कहा- मैं फ्रेश होने जा रहा हूँ..। तो माँ दीदी की तरफ देख कर बोलीं- हाँ.. चल मुझे भी पेशाब लगी है और बाथरूम में आकर मैं देख भी लूँगी.. फिर उसके बाद कुछ नहीं हुआ.. इस तरह 2-3 दिन बीत गए और हम लोग इसी तरह दीदी को उत्तेजित करते रहे।
एक दिन दोपहर में खाना खाने के बाद प्लान के मुताबिक मैं कमरे में आकर लुँगी से अपना लंड बाहर निकाल कर सोने का नाटक करने लगा।
थोड़ी देर में माँ भी आ गईं और अलमारी खोल कर वहीं ज़मीन पर बैठ गईं और कपड़े सही करने लगीं। थोड़ी देर में दीदी कमरे में आईं और माँ के पास ही बैठ गईं और बातें करने लगीं।
तभी दीदी की नज़र मेरे खड़े लंड पर पड़ी तो वो चौंक कर माँ से बोली- माँ देखो.. भाई कैसे सो रहा है और उसके सूसू पे क्या हुआ है?
तो माँ ने मेरी तरफ देखते हुए कहा- हाँ.. उसकी सूसू में रगड़ लगने की वजह से छिल गया है.. मैंने ही क्रीम लगा कर खुला रखने को कहा है।
दीदी बोली- वहाँ पर कैसे रगड़ लग गई.. जो इतना छिल गया?
तो माँ हँसते हुए बोलीं- मुझे क्या पता?
दीदी भी हँसते हुए बोली- अच्छा तो.. इसने ज़रूर वो ही किया होगा। माँ बोलीं- अच्छा.. तुझे कैसे पता.. तू भी वही करती है क्या? तो दीदी हँसने लगीं..
इस कहानी के बारे में अपने विचारों से अवगत कराने के लिए मुझे जरूर लिखें। कहानी जारी है। [email protected]
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