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मैं जानबूझ कर लंड माँ के सामने करके सहला रहा था। मैंने देखा माँ का ध्यान भी मेरे सुपारे पर ही था और वो बार-बार अपनी जाँघों को फैला रही थीं.. चूँकि नाईटी का आगे का भाग खुला हुआ था.. जिससे मुझे कई बार उसकी बुर दिखाई दी.. मैं समझ गया कि माँ एकदम गरम हो गई है.. मैं उसे और उत्तेजित करने के लिए हिम्मत बढ़ाते हुए एकदम खुल कर बात करने लगा।
मैं बोला- माँ तुम कह रही हो कि मेरा लंड ठीक होने में 7-8 दिन लगेंगे और तब तक मुझे ऐसे ही लंड खुला रखना पड़ेगा.. तो माँ बोलीं- हाँ.. खुला रखेगा तो घाव जल्दी सूखेगा और आराम भी मिलेगा। ‘लेकिन माँ खुला होने की वजह से मेरा लंड पूरा तना जा रहा है.. जिससे चमड़ा खिंचने के कारण दर्द हो रहा है और खुजली भी बहुत हो रही है।’
मैं लंड माँ को दिखाते हुए बोला.. तो माँ ने कहा- बेटा लंड खड़ा रहेगा तो खुजली होगी ही.. तो मैं बोला- माँ क्या तुम्हारे उधर भी खुजली होती है? ‘हाँ.. होती है..’ माँ बोलीं। ‘क्यों.. क्या तुम्हारे भी टांका टूटता है?’ मैंने पूछा.. तो माँ हँसने लगीं और बोलीं- नहीं हमारे में टांका-वांका नहीं होता है.. बस छेद होता है।
माँ अब काफ़ी खुल कर बातें करने लगी थीं, तो मैंने जानबूझ कर अंजान बनते हुए माँ की जांघों के ऊपर से नाईटी का बटन खोल कर हटा दिया जिससे उनके कमर के नीचे का हिस्सा नंगा हो गया और उनकी बुर को हाथों से छूते हुए कहा- अरे हाँ.. तुम्हारे तो लंड है ही नहीं.. लेकिन छेद कहाँ है.. यहाँ तो बस फूला-फूला सा दिखाई दे रहा है और इसमें से कुछ बाहर निकल कर लटका भी है।
तो माँ ने तुरंत मेरा हाथ अपनी बुर से हटा कर उसे ढकते हुए बोलीं- छेद उसके अन्दर होता है। ‘तो तुम खुजलाती कैसे हो?’ मैंने कहा। तो वो बोलीं- उसे रगड़ कर और कैसे। मैं बोला- लेकिन मैंने तो तुम्हें कभी अपनी नंगी बुर खोल कर सहलाते हुए नहीं देखा है।
माँ खूब तेज हँसते हुए बोलीं- बुर.. बुर.. ये तूने कहाँ से सुना। ‘मेरे दोस्त कहते हैं उनमें से कई तो अपने घर में नंगे ही रहते हैं और सब औरतों की बुर देख चुके हैं।’ यह सुन कर माँ बोलीं- अच्छा तो ये बात है.. तभी मैं कहूँ कि तू आज कल क्यूँ ये हरकतें कर रहा है?
मैंने हँसते हुए कहा- कौन सी हरकत? तो माँ मेरे लंड को हाथों से पकड़ कर हल्के से हिलाते हुए बोलीं- रात वाली और कौन सी.. जिसके कारण यह हुआ है.. खुद तो जैसे-तैसे करके सो जाता है और मुझे हर तरफ से गीला कर देता है। तो मैं हँसने लगा और कहा- तुम भी तो मज़े ले रही थीं।
तब तक शायद माँ की बुर काफ़ी गीली हो चुकी थी और खुजलाने भी लगी थी.. क्योंकि वो अपने एक हाथ से नाईटी का थोड़ा सा हिस्सा जो केवल उसकी बुर ही ढके हुए था।
क्योंकि बाकी का हिस्सा तो मैं पहले ही नंगा कर चुका था। उन्होंने नाईटी को हल्का सा हटा कर बुर से निकले हुए चमड़े के पत्ते को मसलने लगीं। माँ धीमे-धीमे हँस रही थीं.. पर कुछ बोली नहीं।
‘माँ कितना अच्छा लगता है ना.. रात वाली हरकत दिन में भी करें.. देखो ना मेरा लंड कितना फूल गया है और तुम्हारी बुर भी खुज़ला रही है.. प्लीज़ मुझे दिन में अपनी बुर देखने दो ना और वैसे भी मैं अभी तो लंड तुम्हारे छेद में डाल नहीं पाऊँगा।’ मैंने एक हाथ से अपने लंड को सहलाते हुए कहा और दूसरे हाथ से उसकी नंगी जाँघ को सहलाते हुए उसकी बुर के होठों को ऊँगलियों से खोलने लगा।
माँ भी शायद बहुत गर्म हो गई थीं और चुदना चाहती थीं.. क्योंकि उसने मेरा हाथ इस बार नहीं हटाया, पर शायद शर्मा रही थीं और अचानक बात को पलटते हुए बोलीं- अरे कितनी देर हो गई.. खाना बनाना है। और वैसे ही नाईटी बिना बंद किए हुए उठ कर रसोई में चली गईं।
मैं भी तुरंत माँ के पीछे-पीछे रसोई में चला गया और मैंने देखा कि उन्होंने नाईटी के सिर्फ़ एक-दो बटन ही बंद किए थे.. बाकी सारा खुला हुआ था जिसके कारण उनकी चूचियाँ बाहर निकली हुई थीं और नाभि से नीचे का पूरा हिस्सा पैरों तक एकदम नंगा दिख रहा था।
मैं उनसे पीछे से पकड़ कर चिपक गया जिससे मेरा लंड माँ के चूतड़ों के बीच में घुस गया और बोला- माँ तुम बहुत अच्छी हो.. मेरे दोनों हाथ माँ के नंगे पेट पर थे। माँ बोलीं- अच्छा मुझे मस्का लगा रहा है।
तो मैं हँसने लगा और धीरे-धीरे अपना हाथ माँ के पेट सहलाते हुए निचले हिस्से की ओर ले जाने लगा।
माँ की साँसें तेज़ चल रही थीं पर वे कुछ बोली नहीं.. तो मेरी हिम्मत और बढ़ी और मैंने अपना हाथ माँ की बुर के ऊपर हल्के से रख दिया और ऊँगलियों से उनकी बुर हल्के-हल्के दबाने लगा। पर माँ फिर भी कुछ नहीं बोलीं।
मेरा लंड उत्तेजना की वज़ह से पूरा तना हुआ था और माँ की गाण्ड में घुसने की कोशिश कर रहा था। माँ की बुर की चिकनाई मुझे महसूस हो रही थी और चिकना पानी उसकी बुर से निकल कर जांघों पर बह रहा था।
मैं ऊँगलियों को और नीचे की तरफ करता जा रहा था.. तभी मेरी ऊँगलियां माँ की बुर की पुत्तियों को टच करने लगीं। माँ बोलीं- तू बहुत बदमाशी कर रहा है। पर मैं बिना कुछ बोले लगा रहा और फिर एक हाथ से धीरे-धीरे उसकी बुर के लटकते हुए चमड़े को सहलाने और फैलाने लगा।
जब मैंने देखा कि माँ मना नहीं कर रही हैं तो मैं धीरे से दूसरे हाथ से माँ की नाईटी को माँ की कमर के पीछे कर दिया दिया.. जिससे माँ पेट के नीचे से एकदम नंगी हो गईं।
मैं उत्तेजना के मारे पागल हो रहा था। मेरे लंड का सुपारा माँ की नंगे चूतड़ों की फांकों में धँस गया.. फिर मैं उनकी बुर से निकले लंबे चमड़े को फैला कर बुर के छेद में ऊँगली डालने की कोशिश करने लगा।
माँ ने काम करना बंद कर दिया.. उनकी बुर से चिकने पानी की बूंदें टपकने लगी थीं।
माँ भी अब मेरा साथ दे रही थीं और नाईटी के बाकी बटनों को खोल दिया.. जिससे नाईटी नीचे गिर गई। अब माँ और मैं पूरी तरह नंगे हो गए थे।
मैं पीछे से हट कर माँ के सामने आ गया और मूढ़े पर बैठ कर माँ की बुर को फैलाते हुए उनकी बुर से बाहर लटकते हुए चमड़े को मुँह में भर लिया और चूसने लगा। माँ ने मेरा सर पकड़ कर अपनी बुर से और सटा दिया.. उनके मुँह से ‘ओह्ह.. आह’ की आवाजें निकल रही थीं।
मैंने अपनी जीभ माँ की बुर में डाल दी और उन्हें तेज़ी से अन्दर-बाहर करने लगा। उनकी बुर का सारा नमकीन पानी मेरे मुँह में भर गया.. माँ ने भी मस्त हो कर अपनी जांघों को और फैला दिया और कमर हिला-हिला कर बुर चटवाने लगीं। कुछ ही देर में माँ मेरे मुँह को जाँघों से दबाते हुए झड़ गईं.. पर मेरा लंड और ज्यादा तन गया था।
तभी माँ मुझे खड़ा करते हुए खुद मूढ़े पर बैठ गईं और नीचे गिरी हुई नाईटी से मेरे सुपारे को पौंछ कर मेरा सुपारा अपने मुँह में भर लिया और मेरे चूतड़ों को अपने दोनों हाथों से दबाते हुए चूसने लग गईं और एक ऊँगली मेरी गाण्ड के छेद में डालने लगीं। मैं तो जैसे सपनों की दुनिया में पहुँच गया था।
माँ ज़ोर-ज़ोर से मेरा लंड चूस रही थीं और मैं भी लंड को उसके मुँह में अन्दर-बाहर कर रहा था। तभी मैंने अपना कंट्रोल खो दिया और तेज ‘आह..’ करते हुए माँ के मुँह में ही झड़ने लगा।
माँ मेरे सुपारे को तब तक अपने मुँह में लिए रहीं.. जब तक मेरा वीर्य निकलना बंद नहीं हो गया।
हम दोनों कुछ देर तक वैसे ही बैठे रहे, फिर माँ मुझ से प्यार करते हुए बोलीं- तूने आख़िर अपनी मनमानी कर ही ली.. तो मैं बोला- तुम्हें अच्छा लगा ना? तो माँ हँसने लगीं और चाय बनाने लगीं।
इस कहानी के बारे में अपने विचारों से अवगत कराने के लिए मुझे जरूर लिखें। कहानी जारी है। [email protected]
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