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उस समय मेरा लंड इतना टाइट हो गया था कि लगा जैसे फट जाएगा.. मैं धीरे से उठ कर बैठ गया और अपनी पैन्ट उतार कर लंड को माँ के चूतड़ से सटाने की कोशिश करने लगा… पर कर नहीं पाया। तो मैं एक हाथ से माँ की बुर में ऊँगली डाल कर बाहर निकले चमड़े को सहलाता रहा और दूसरे हाथ से मुठ मारने लगा.. 2-3 मिनट में ही मैं झड़ गया। पर जब तक मैं अपना गाढ़ा जूस रोक पाता.. वो माँ के चूतड़ों पर पूरा गिर चुका था। यह देख कर मैं बहुत डर गया और चुपचाप पैन्ट पहन कर माँ को वैसा ही छोड़ कर सो गया।
सुबह जब मैं उठा तो देखा.. कि माँ रोज की तरह अपना काम कर रही थीं और दीदी हॉकी की प्रैक्टिस.. जो सुबह 6 बजे ही शुरू हो जाती थी.. के लिए जा चुकी थीं।
मैं डरते-डरते बाथरूम की तरफ जाने लगा तो माँ ने कहा- आज चाय नहीं माँगी तूने? तो मैंने बात पलटते हुए कहा- हाँ.. पी रहा हूँ.. पेशाब करके आता हूँ।
जब मैं बाथरूम से वापस आया तो माँ को देखा, माँ बरामदे में बैठी सब्जी काट रही थीं और वहीं पर मेरी चाय रखी हुई थी। मैं चुपचाप बैठ कर चाय पीने लगा तो माँ मेरी तरफ देख कर हँसते हुए बोलीं- आज बड़ी देर तक सोता रहा।
‘हाँ माँ नींद नहीं खुली..’ तो माँ बोलीं- एक काम किया कर.. आज से रात को और जल्दी सो जाया कर..’ यह कह कर वो हँसते हुए रसोई में चली गईं।
जब मैंने देखा कि माँ कल रात के बारे में कुछ भी नहीं बोलीं.. तो मैं खुश हो गया। उस दिन पूरे दिन मैंने कुछ भी नहीं किया.. मैंने सोच रखा था कि अब मैं रात को ही सब कुछ करूँगा.. जब तक या तो माँ मुझसे चुदाई के लिए तैयार ना हो या मुझे डांट नहीं देती।
रात को मैं खाना खाकर जल्दी से कमरे में आकर सोने का नाटक करने लगा। थोड़ी देर में माँ भी दीदी के साथ आ गईं, उस दिन माँ बहुत जल्दी काम ख़त्म करके आ गई थीं। खैर.. मैं माँ के सोने का इंतजार करने लगा।
थोड़ी ही देर में दीदी के जाने के बाद माँ धीरे से पलंग पर आकर लेट गईं। करीब एक घंटे तक लेटे रहने के बाद मैंने धीरे से आँखें खोलीं और माँ की तरफ सरक गया। थोड़ी देर में जब मैंने बरामदे की हल्की रोशनी में माँ को देखा तो चौंक पड़ा.. माँ ने आज साड़ी की जगह नाईटी पहन रखी थी और उन्होंने अपना एक पैर थोड़ा आगे की तरफ कर रखा था।
फिर मैंने सोचा कि अगर यह किस्मत से हुआ तो अच्छा है और अगर माँ जानबूझ कर यह कर रही हैं तो माँ जल्दी ही चुद जाएगी। उस रात मेरी हिम्मत थोड़ी बढ़ी हुई थी.. थोड़ी देर नाईटी के ऊपर से माँ का चूतड़ सहलाने के बाद मैंने धीरे से माँ की नाईटी का सामने का बटन खोल दिया और उसे कमर तक पूरा हटा दिया और धीरे से माँ के चूतड़ों को सहलाने लगा।
मैं जाँघों को भी सहला रहा था.. माँ के चूतड़ और जाँघें इतनी मुलायम थे कि मैं विश्वास नहीं कर पा रहा था। फिर मैंने अपना हाथ उनकी जाँघों के बीच डाला तो मैं हैरान रह गया।
आज माँ की बुर एकदम चिकनी थी.. उनके बुर पर बाल का नामोनिशान नहीं था.. उनकी बुर बहुत फूली हुई थी और बुर के दोनों होंठ फैले हुए थे। शायद एक जाँघ आगे करने के कारण, उनकी बुर से निकला हुआ चमड़ा लटक रहा था।
मेरे कई दोस्तों ने गपशप के दौरान इसके बारे में बताया था कि उनके घर की औरतों की बुर से भी ये निकलता है और उन्हें इस पर बड़ा नाज़ होता है। मैं तो उत्तेजना की वज़ह से पागल हो रहा था.. मैंने लेटे-लेटे ही अपना शॉर्ट्स निकाल दिया और माँ की तरफ थोड़ा और सरक गया.. जिससे मेरा लंड माँ के चूतड़ों से टच करने लगा।
थोड़ी देर तक चुप रहने के बाद जब मैंने देखा कि माँ कोई हरकत नहीं कर रही हैं.. तो मेरी हिम्मत और बढ़ी। अब मैं लेटे-लेटे ही माँ की बुर को सहलाने का पूरा मज़ा लेने लगा।
थोड़ी ही देर मे मुझे लगा कि माँ की बुर से कुछ चिकना-चिकना पानी निकल रहा है। ओह्ह.. क्या खुश्बू थी उसकी… मेरा लंड फूल कर फटने की स्थिति में हो गया.. मैं अपना लंड माँ की गाण्ड के छेद.. उनकी जाँघों पर धीमे-धीमे रगड़ने लगा।
तभी मुझे एक आइडिया आया कि क्यों ना आज थोड़ा और बढ़ कर माँ की बुर से अपना लंड टच कराऊँ। जब मैंने अपनी कमर को आगे खिसका कर माँ की जाँघों से सटाया तो लगा जैसे करेंट फैल गया हो.. मुझे झड़ने का जबरदस्त मन कर रहा था, पर मैंने सोचा कि एक बार माँ की बुर में लंड डाल कर उनकी बुर के पानी से चिकना कर लूँगा और फिर बाहर निकाल मुठ मार लूँगा।
यह सोच कर मैंने अपनी कमर थोड़ा ऊपर उठाया और अपना लंड माँ की बुर से लटके चमड़े को ऊँगलियों से फैलाते हुए उनके छेद पर रखा.. तो माँ की बुर से निकलता हुआ चिकना पानी मेरे सुपारे पर लिपट गया और थोड़ा कोशिश करने पर मेरा सुपारा माँ की बुर के छेद में घुस गया।
जैसे ही सुपारा अन्दर गया.. उफ़फ्फ़ माँ की बुर की गर्मी मुझे महसूस हुई और जब तक मैं अपना लंड बाहर निकालता मेरे लंड से वीर्य का फुहारा माँ की बुर में पिचकारी की तरह निकलने लगा। मैं घबरा तो गया.. पर ज्यादा हिलने से डर भी रहा था कि कहीं माँ जाग ना जाएँ।
जब तक मैं धीरे से अपना लंड माँ की बुर से निकालता.. तब तक मेरे लंड का पानी माँ की बुर में पूरा खाली हो चुका था और लंड निकालते वक़्त वीर्य की गाढ़ी धार माँ के गाण्ड के छेद पर बहने लगी। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
मुझे लगा अब तो मैं माँ से पक्का पिटूंगा। मैं डर के मारे जल्दी से शॉर्ट्स पहन कर सो गया.. मुझे नींद नहीं आ रही थी.. पर मैं कब सो गया, पता ही नहीं चला।
अगले दिन उठा तो देखा कि हमेशा की तरह माँ सफाई कर रही थीं.. पर दीदी स्टेडियम नहीं गई थी। मुझे देखते ही माँ ने दीदी से कहा- वीना.. जा चाय गरम करके भाई को दे दे और मुझे प्यार से वहीं बैठने के लिए कहा। मैंने चोरी से माँ की ओर देखा तो माँ मुझे देख कर पूछने लगीं- आज नींद कैसी आई? मैंने कहा- अच्छी..
तो माँ हँसने लगीं और मेरी पैंट की ओर देख कर बोलीं- अब तू रात में सोते समय थोड़े ढीले कपड़े पहना कर। हाफ-पैन्ट पहन कर नहीं सोते हैं।
अब तू बड़ा हो रहा है.. देख मैं और वीनू भी ढीले कपड़े पहन कर सोते हैं। मैं यह सुन कर बड़ा खुश हुआ कि माँ ने मुझे डांटा नहीं।
उस दिन मुझे पूरा विश्वास हो गया था कि अब माँ मुझे रात में पूरे मज़े लेने से मना नहीं करेगीं.. भले ही दिन में चुदाई के बारे में खुल कर कोई बात ना करें। अब तो मैं बस रात का ही इंतजार करता था।
खैर.. उस रात फिर जब मैं सोने के लिए कमरे में गया तो मुझे माँ की ढीले कपड़े पहनने वाली बाद याद आई.. पर मेरे पास कोई बड़ी शॉर्ट्स नहीं थी।
मैंने अल्मारी में से एक पुरानी लुँगी निकाली और अंडरवियर उतार कर पहन लिया और सोने का नाटक करने लगा।
तभी मेरे मन में माँ की सुबह वाली बात चैक करने का विचार आया और मैंने अपनी लुँगी का सामने वाला हिस्सा थोड़ा खोल दिया.. जिससे मेरा लंड खड़ा होकर बाहर निकल गया और अपने हाथों को अपनी आँखों पर इस तरह रखा कि मुझे माँ दिखाई दे।
थोड़ी ही देर में माँ कमरे में आईं और नाईटी पहन कर पलंग पर आने लगीं और लाइट ऑफ करने के लिए जैसे ही मुड़ीं.. एकदम से वे मेरे लंड को देखते ही रुक गईं.. थोड़ी देर वैसे ही मेरे लंड को जो की पूरे 6′ लम्बा और 1.5′ व्यास बराबर मोटा था.. को देखती रहीं।
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