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अब तक आपने पढ़ा…
सेक्स की कहानी तो रसदार थी.. लेकिन औरत और मर्द के कामांगों का ज़िक्र एकदम गंदी और अश्लील भाषा के शब्दों से भरा पड़ा था.. लंड.. चूत इत्यादि। इस सबको पढ़ कर मुझ में घिनौनेपन के बजाए एक अजीब सी मस्ती छा गई।
ऐसे शब्दों को पढ़-पढ़ कर काफ़ी अच्छा लग रहा था। ऊपर से यह कहानी एक देवर और भाभी के अवैध सेक्स संबंध के शर्मनाक कारनामों के बारे में थी। कहानी के अंत में अपने पापपूर्ण जिस्मानी रिश्तों के बनने से दोनों काफ़ी खुश होते हैं। तीसरी कहानी ने तो मेरे दिमाग़ की बत्ती लगभग बुझा ही डाली थी।
एक भोले-भाले लड़के का देह शोषण उसी की सेक्सी और वासना भरी कुँवारी मौसी ने किया। इसका वर्णन पूरे डिटेल के साथ हुआ है। मौसी और दीदी के बेटे के बीच के सेक्स का किस्सा कितनी चाव से लिखा मस्तराम साब ने.. जैसे-जैसे कहानियाँ पढ़ती गई.. ऐसे ही अवैध और अप्राकृतिक शारीरिक संबंधों का खुला वर्णन होता गया।
अब आगे लिख रही हूँ..
यहाँ तक कि सौतेली माँ और बेटे के गंदे सेक्स की हरकतों का भी वर्णन था। सब कहानियाँ पढ़ने पर ऐसा लग रहा था कि मस्तराम जी अप्राकृतिक संबंधों को ज़ोर दे रहे थे और उनका समर्थन कर रहे थे। सेक्स कला का खुला वर्णन गंदे शब्दों के साथ काफ़ी दिलचस्पी से किया गया था। औरत की गुप्त बातें जैसे माहवारी.. योनि में लगाने वाली नैपकिन.. इत्यादि के बारे में उस मस्तराम ने खुलकर लिखा था।
औरत और मर्द के बीच का पहला संपर्क और उसके बाद उस परिचय का धीरे-धीरे सेक्स संबंध में बदलने की किस्से बड़े हुनर से लिखे गए थे। इस साहित्य को पढ़ने के बाद अब तो मैं पूरी तरह सेक्स की दासी हो गई थी। मन में अनेक ख़याल आ रहे थे। अवैध संबंध के बारे में कई किस्से एक साथ सामने आ रहे थे।
इस मस्ती में सब अच्छा लग रहा था। उन किताबों की एक कहानी में वर्णित एक महिला की हस्त-मैथुन की कहानी से मुझमें प्रेरणा जाग उठी.. कन्डोम में भरी हुई कैंडल को लण्ड बनाकर अपनी योनि में लगाई और हाथ हिला-हिला कर उसी तरह के सेक्स का अनुभव पाया.. जो सचमुच किसी मर्द के कामाँग से मिलता है।
कुछ दिन बीत गए.. भांजा हमारे घर में पूरी तरह से व्यवस्थित हो गया था। वो ज़्यादा बात नहीं करता था। मैंने भी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई.. बस पति के संबंधी होने के नाते उसके रहन-सहन.. खाने-पीने इत्यादि का प्रबंध करने लगी।
वो काफ़ी पढ़ाकू किस्म का था.. हर वक्त मोटी किताबों में खोया रहता। वक़्त का पाबंद था और वक़्त पर कॉलेज जाता। शाम को जल्दी वापस आता.. पढ़ाई करता.. थोड़ी टीवी देख लेता और सो जाता। हमारे बीच.. मात्र अवसरों पर ही बातें हुआ करती थीं। ज़रूरत पड़ती तो मुझे ‘मामी’ पुकारता और अपनी बात कर लेता।
मेरी जिन्दगी में उसके आने से तुरंत कोई बदलाव नहीं हुआ। एक रात पति देव जल्दी सो गए। मैं कुछ देर तक टीवी देखती रही.. वैसे भी बेडरूम में और क्या काम था।
फिर टीवी बन्द करके मैगजीन पढ़ने लगी.. टीवी बन्द करने पर छाए हुए अचानक के सन्नाटे में मुझे कुछ सुनाई देने लगा। ऐसा लग रहा था कि घर के किसी कोने में कोई भारी लकड़ी के बॉक्स के हिलने की आवाज़ आ रही हो। घर में एक-दो छछूंदर घूम रहे थे.. शायद रसोई की अलमारी में छछूंदर कोई हरकत कर रहे थे। मैंने जाकर रसोई की छानबीन की लेकिन आवाज़ वहाँ से नहीं आ रही थी। जैसे ही मैं मेहमान वाले बेडरूम के पास से गुज़री.. तो वो आवाज़ और स्पष्ट हुई।
लगता है बेडरूम की अलमारी से आ रही है। दरवाज़ा बन्द था.. भांजा सो चुका था इसलिए दरवाज़े पर दस्तक देकर उसे जगाना मुनासिब नहीं समझा। लेकिन ऐसा लगा कि दरवाज़ा पूरी तरह से बन्द नहीं था.. मैंने धीरे से खोलने लगी कि दरवाजा ढलक गया और अन्दर का दृश्य तुरंत सामने आ गया।
मैंने दरवाज़े को वहीं का वहीं पकड़ी खड़ी रही.. कमरे में ज़्यादातर अंधेरा था और सिर्फ़ एक रीडिंग लैंप की रोशनी थी।
भांजा बिस्तर के एक छोर पर पेट के बल लेटा हुआ था। ऊपर उसने कम्बल ओढ़ लिया था। बिस्तर के नीचे बगल में फर्श पर एक किताब थी और ऐसा लग रहा था कि वो जगा था और लेटे-लेटे नीचे उस किताब को पढ़ रहा था। बिस्तर के बगल में टेबल थी। जिस पर रखे रीडिंग लैंप की रोशनी सीधी उस किताब पर पढ़ रही थी।
मैंने सोचा ये पढ़ाकू अभी भी कुछ पढ़ रहा है.. लेकिन इस अजीब अवस्था में क्यूँ पढ़ रहा है..? आराम से बैठ कर पढ़ सकता है।
तभी मुझे इस अजीब आसन का उद्देश्य दिखाई दिया.. भांजा आगे-पीछे हिल रहा था और उसके चूतड़ कंबल के अन्दर ऊपर-नीचे हिल रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे वो आगे-पीछे ऊपर-नीचे बड़ी तेज़ी से हिल रहा था। शायद तेज़ी से बिस्तर से कुछ रगड़ रहा था।
शादी से पहले की सेक्स शिक्षा और सुहागरात के अनुभवों की बदौलत मुझे साफ़-साफ़ ये बात समझ में आई कि वो हस्तमैथुन का प्रयोग कर रहा है।
लेकिन बिना हाथ लगाए.. वो तो अपनी मर्दानगी को बिस्तर के गद्दे से ज़ोरों से रगड़ कर रति सुख पा रहा था।
इसी से बिस्तर हिल रहा था और आवाज़ आ रही थी। शायद वो औरत के साथ सेक्स करने पर होने वाले अनुभव को महसूस कर रहा था।
किताब में क्या लिखा है.. मुझे देखने की ज़रूरत नहीं थी.. दूर से थोड़ी रोशनी में साफ़ नज़र तो नहीं आ रहा था.. लेकिन देख सकती थी कि एक पन्ने पर कुछ औरतों के नंगी तस्वीरें थीं। शायद काम कला में लिप्त औरत मर्द के जुड़े नंगे जिस्म भी उन चित्रों में होंगे। दूसरे पन्ने पर कुछ लिखा हुआ था.. शायद उनके कारनामों का.. उनके नंगे जिस्मों और गुप्त अंगों का खुला वर्णन लिखा हो सकता था।
मुझे इस ’घिनौनी’ हरकत से उस पर काफ़ी गुस्सा आया और जी चाहा ही अन्दर जाकर रंगे हाथों पकड़ लूँ उसे और डांट फटकार दे दूँ। लेकिन ऐसी किताबें मैंने भी जवानी में पढ़ी थीं और हाथों से सेक्स का अनुभव पाया था।
जो वासना मुझे उन दिनों में हुई थी.. इस लड़के को भी हुई है। यह उम्र ही ऐसा है.. सेक्स के प्रति आकर्षण इस उम्र में हर एक को होता है, हस्तप्रयोग एक गुप्त चीज़ है.. लेकिन सभी करते हैं।
सेक्स ज्ञान पाने में इसका बढ़ा महत्व भी है। मैंने चुपचाप दरवाज़ा बंद कर दिया और लौट आई। उसे अपनी प्राइवेसी चाहिए थी और मैंने उसे दी।
कुछ गुस्सा तो था.. यह काम अपने घर में भी कर सकता था.. मेरे घर में क्यूँ..? फिर सोचा.. अपने घर तो छुट्टियों में ही जाएगा.. तब तक इस आग को कैसे जलने दे? कोई बात नहीं.. यहीं करो।
फिर मैंने सोचा.. मेरे गद्दे और चादर पर अपना रस छोड़ेगा… ईएश.. कितना गंदा काम.. ऐसा कितने बार उसने रस छोड़ा होगा? मुँह में लार और पेशाब की तरह वीर्य भी काफ़ी पर्सनल चीज़ है। दूसरों के लिए अछूत सी होती है। बेचारा और कर भी क्या सकता है.. मुझे सुबह चादर धोने के लिए डालनी ही होगी.. गद्दे को बाद में देखूँगी। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
इन्हीं ख़यालों में मग्न होकर अपने बेडरूम के बिस्तर पर लेट गई। मुझे नींद नहीं आ रही थी.. भान्जे की हरकत दिमाग़ में छाई रही।
मुझे अपने कुँवारे दिन याद आ गए.. मैं सोचने लगी कि कब से कर रहा था यह हरकत? इस पढ़ाकू बुद्धू में इतनी सेक्स की प्रेरणा कैसे आ गई? किताब कहाँ से लाया? क्या जानता है सेक्स के बारे में? वीर्य स्खलन के वक़्त सीत्कारी भरता है क्या? मर्दों को चरम सुख पर कैसा अनुभव होता होगा?
मेरे प्रिय साथियो, इस दास्तान की लेखिका नगमा तक आपके विचारों को भेजने के लिए आप डिसकस कमेंट्स पर लिख सकते हैं.. धन्यवाद।
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