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आगे का हाल रेखा के अपने शब्दों में: बतरा साहब कमरे में घुसते ही मेरे से लिपट गए, मुझे आगोश में लेकर बोले- मैं तुम्हें बहुत मिस करता था। कभी-कभी तो तुम्हारी याद में रात-रात भर जगता था। मैंने उनसे कहा- मुझे भी आपकी बहुत याद आती थी।
इस तरह बातें करते-करते हम एक दूसरे के कपड़े उतारने लगे। मुझे नंगी देख कर वे बोले- अभी भी पहले जैसी कमसिन हो। बतरा साहब मेरे मम्मो को देख कर उन्हें सहलाते रहे और मेरी दोनों चूचियों को मसलने लगे, तब तक मैंने उनका लंड पकड़ लिया जो अब तक तन कर गरम रॉड हो चुका था।
लंड पकड़ कर मैंने उनसे कहा- आपका लंड तो और मोटा लग रहा है, वहाँ किसी मेम को भी चोदते थे क्या? उन्होंने कहा- हाँ, 3-4 बार मौका मिला था। मैंने उनसे पूछा- क्या मेमों की चूत एकदम गोरी और टमाटर के रंग की होती है? उन्होंने कहा- हाँ और वे चुदाई में कोई शर्म नहीं महसूस करती। कहीं भी जैसे बाग में या फिर समुन्दर या नदी किनारे भी लोग चुदाई करते दिख जाते हैं।
अब बतरा साहब बहुत उत्तेजित हो रहे थे, उन्होंने मुझे पलंग पर लेटा दिया और मेरे ओंठों से चूमना चालू किया। हम दोनों के ओंठ आपस में लॉक हो गए।
थोड़ी देर बाद वे मेरे कान गले और फिर चूचियों को चूमने लगे, मुझे बहुत मजा आ रहा था। धीरे धीरे वे मेरे पेट और फिर जांघों तक पहुँच गए।अंत में जब वे मेरे दाने को चूमने लगे तब मेरी चूत से पानी निकलने लगा और कमरा मेरी सीत्कारों से भर गया। बीच बीच में मैं उनके लंड को पकड़ कर चूस लेती थी।
अब उन्होंने मुझे पलंग पर लिटा दिया और खुद जमीन पर बैठ गए, थोड़ी देर फिर मेरी चूत को खोल कर देखते, सूंघते और चाटते रहे। बतरा साहब अपने साथ श्रीखंड लेकर आये थे उन्होंने श्रीखंड मेरी चूत पर चुपड़ दिया और चूत चाटने लगे। उत्तेजनावश मैं झड़ गई।
वे बोले जा रहे थे- वाह रेखा, तेरे सेंट् की खुशबू और चूत के नमकीन पानी के साथ श्रीखंड चाटने में मजा आ रहा है।
अब बतरा साहब ने श्रीखंड अपने लंड पर लगाया और लंड मेरे मुँह में डाल दिया। मैं श्रीखंड चाटती रही, उसके साथ लंड का प्रिकम भी मेरे मुंह में जा रहा था, दोनों का मिला जुला स्वाद बहुत उत्तेजक था।
अब मुझसे नहीं रहा गया, मैंने उनसे कहा- अब चूत को ज्यादा मत तड़पाओ, अपना मोटू जल्दी अन्दर डालो। बतरा साहब ने अपने लंड को चूत के अन्दर डालना शुरू किया, मेरी चूत उनके लंड को कस कर पकड़ने लगी। लंड मोटा होने से जब भी वह अन्दर बाहर होता पट-पट आवाज होती।
जैसे-जैसे चुदाई तेज होती गई, चूत लंड को कस कर पकड़ती गई। बतरा साहब बोले जा रहे थे- वाह रेखा, लंड पर कुंवारी चूत जैसी पकड़ है। इस तरह काफ़ी बाद हम दोनों झड़ गए। इसके बाद हम दोनों ने अलग-अलग आसनों में तीन बार और चुदाई की।
सोने से पहले मैंने रेखा को कहा- कल इतवार है, बतरा से चुदाई के वक्त मैं घर पर ही रहूँगा, तुम्हें दो काम करने हैं। एक तो मुझे तुम दोनों को चुदाई करते देखना है। तुम्हें तो पता ही है कि ऊपर के बेडरूम की एक खिड़की का कांच मैंने उल्टा लगाया है जिससे बाहर से अन्दर तो दिखेगा मगर अंदर से बाहर नहीं दिखेगा। तुम्हें चुदाई के समय बिस्तर पर ऐसे लेटना है कि बतरा का लंड और तुम्हारी चूत खिड़की की तरफ हो।
रेखा बोली- मुझे पता है। मैं पहले बतरा को खिड़की की तरफ पैर करके लिटाऊँगी, उसका लंड खड़ा करके चूसूँगी, तब आपको पूरा लंड और मेरी चूत दिखेगी। फिर मैं बतरा पे चढ़ कर अपनी चूत में उसका लंड घुसा के अन्दर बाहर करूंगी। आपको खिड़की से सब दिखेगा। यह सुन कर मैं ख़ुशी से उछल पड़ा और रेखा को अपने आगोश में लेकर बोला- वाह मेरी रानी! तुम मेरे दिल की बात जान जाती हो। मैं कितना भाग्य शाली हूँ।
मैंने कहा- दूसरी बात यह कि अगर तुम्हें मंजूर हो तो बतरा से पूछना कि अगली बार जब वो आयें तो हम तीनों एक साथ चुदाई करें तो क्या उन्हें एतराज होगा? रेखा बोली- मैं जरूर पूछूँगी, मुझे तो कोई एतराज नहीं है। मैं ख़ुशी ख़ुशी से आप दोनों का साथ दूंगी।
आज रेखा की छह बार चुदाई हो गई थी इसलिए मैंने सोने से पहले रेखा के पैर दबाये और पीठ की तेल लगा कर मालिश की, फिर उसके सर में भी तेल लगाकर मालिश की। रेखा खुशी से आँ-ऊँ आवाजें निकलती रही, मुझे बोली- इसीलिए आप मुझे अच्छे लगते हो, मैं आपके लिए कुछ भी कर सकती हूँ। मैंने कहा- मेरी जान, मैं भी तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकता हूँ।
इसके बाद हम दोनों एक दूसरे की बांह में नंगे सो गए।
दूसरे दिन बतरा को शाम की ट्रेन से दिल्ली वापस जाना था और उसका लंच किसी दूसरे के यहाँ था इसलिए हमने उसे सुबह नौ बजे नाश्ते पर बुला लिया। रेखा ने सुबह उठकर नाश्ता बना दिया, उसके बाद हम दोनों नहाने चले गए। हमेशा की तरह मैंने रेखा की चूत की सफाई की, उसने भी मेरे लंड को धोकर साफ किया और हम दोनों शावर में एक साथ नहा धोकर तैयार हो गए। नौ बजे बतरा के आने के बाद हम तीनों ने नाश्ता किया। मैंने बतरा से कहा- आज इतवार है, घर में बहुत से काम करने हैं इसलिए आज मैं घर में रहूँगा। तुम दोनों ऊपर वाले कमरे में चले जाओ, वहाँ कोई डिस्टर्ब नहीं करेगा।
मैं टीवी में समाचार देखने लगा और वे दोनों ऊपर वाले कमरे में चले गए। हमारी योजना अनुसार रेखा बतरा को बिस्तर पर ले गई और उसे कहा- आज मैं शुरुआत करुँगी। उसने बतरा के कपड़े उतारना शुरू किये, इस बीच मैं खिड़की के पास पहुँच गया, मैंने देखा कि रेखा ने बतरा कि शर्ट उतार दी, फिर उसने बतरा की पेंट की ज़िप खोली और एक दो बार उसके लंड को फ़ूले हुए अंडरवियर के ऊपर से चूमा।
इस बीच बतरा रेखा की सलवार कुर्ती और ब्रा उतार चुका था, वह रेखा के चूचों को सहला रहा था। रेखा एक बार बतरा के ऊपर झुकी और दोनों के ओंठ आपस में जुड़ गए, वे बहुत देर तक चूमते रहे। यह सब देख कर मेरा लंड जागने लगा।
अब मैंने देखा कि जैसे ही रेखा ने बतरा की अंडरवियर नीचे खिसकाई, उसका तना हुआ लंड बाहर आकर स्प्रिंग जैसा उछलने लगा। रेखा थोड़ी बाजु हट गई जिससे मैं ठीक से देख सकूँ।
सचमुच बतरा का लंड बहुत मोटा था, लम्बा भी कम तो नहीं था मगर मोटाई की वजह से थोड़ा छोटा दिखता था। मुझे यही तो देखना था।
अब रेखा ने बतरा के खड़े लंड को अपनी तरफ खींच कर छोड़ना चालू किया। छोड़ने के बाद लंड उछलकर दूसरी तरफ चला जाता था। रेखा लंड को उछालती रही और बड़े कौतुहल से कभी लंड को तो कभी मेरी ओर देख कर मुस्कुराती। कुछ देर तक यह खेल चलता रहा।
फिर रेखा ने फ्रूट जेली की बोतल से जेली निकाल कर बतरा के लंड पर चुपड़ दी। अब मुझे समझ में आया वो ऊपर जाते समय किचन से फ्रूट जेली की बोतल साथ क्यों ले गई थी। रेखा ने बतरा के जेली चुपड़े हुए लंड को चूसना शुरू किया। उत्तेजनावश बतरा का प्रिकम निकल रहा था, उसे भी रेखा चाटती गई। वे दोनों कुछ कुछ बोल रहे थे जो मुझे बाहर सुनाई नहीं दे रहा था। मेरा लंड भी खड़ा हो गया था, उसमें से भी प्रिकम निकल रहा था जो मैं हाथ से चाटता जा रहा था।
फिर रेखा खुद उछलकर चित लेटे हुए बतरा के ऊपर चढ़ गई और लंड को चूत की सीध में लाकर उसे चूत में घुसा दिया। एक बार उसने पीछे देखा और तस्सल्ली कर ली कि मैं देख रहा हूँ।
अब रेखा लंड पर ऊपर नीचे धक्के देने लगी। यह सब देखकर मेरा लंड बल्लियों उछलने लगा, मैं अपने आप को काबू में नहीं रख पा रहा था।
उधर रेखा ने अपनी स्पीड बढाई और मैं मुठ मारने लगा। करीब दस मिनट बाद वे दोनों झड़ गए, मैं भी बाहर उनके साथ झड़ गया।
रेखा का यह खेल देखकर मैं हैरान था। फिर रेखा और बतरा आजू बाजु लेट गए और एक दूसरे को चूमते रहे।
थोड़ी देर बाद रेखा ने फिर बतरा का लंड पकड़ कर उसकी चमड़ी को सुपारे के ऊपर नीचे करने लगी, बतरा का लंड फिर खड़ा हो गया। बतरा ने रेखा से कुछ कहा और उठ कर जेली की बोतल उठा ली, रेखा बिस्तर पर दोनों पैर फैला कर खिड़की की ओर चूत करके लेट गई। मुझे उसकी चूत की फांकें साफ दिख रहीं थी, उत्तेजना की वजह से फांकों का फैलाव और सिकुड़न साफ नजर आ रहा था। बतरा पलंग के बाजु में रेखा की चूत की ओर मुँह करके कालीन पर बैठ गया, उसने रेखा की चूत की फांकों को दोनों हाथ से अलग किया और चूत के अन्दर देखने लगा। उसने दाने पर उँगलियाँ फेरना चालू किया, रेखा चूतड़ उठा उठा कर कुछ आवाजें निकल रही थी।
फिर बतरा ने रेखा के दाने और चूत के अन्दर जेली चुपड़ दी। अब उसने रेखा की चूत के ऊपर लगी हुई जेली को चाटना शुरू किया तो करीब दस मिनट चाटने के बाद रेखा उछल कर झड़ गई, बतरा सारा पानी चाट गया।
बतरा ने अब अपना लंड रेखा की चूत में घुसा दिया और पिस्टन जैसा अंदर बाहर करने लगा। दोनों अपने चरम सुख की ओर थे और दस मिनट में झड़ गए।
इधर मेरा बुरा हाल था, लंड लोहे की रॉड जैसा गर्म और कड़ा हो गया। यह देख कर मैंने भी मुठ मार कर अपने लंड को शांत किया। इसके बाद मैं नीचे आकर थोड़ा सुस्ताने के बाद अपने काम में लग गया। इसके बाद वे दोनों आधे घंटे बाद नीचे आ गए।
लंच टाइम हो रहा था, इसलिए बतरा को जाने की जल्दी थी। उसने हम दोनों को इस आश्चर्यजनक मदद के लिए धन्यवाद दिया, रेखा को बहुत सी गिफ्ट दी। उसने हम दोनों से इजाजत ली और चला गया।
उसके जाने के बाद रेखा ने मुझे बताया कि बतरा हम तीनों की एक साथ चुदाई के लिए मान गया है। रशिया जाने के बाद वह मुझे मेल करके बताएगा।
रेखा मुझसे पूछ रही थी कि मैंने कुछ देखा या नहीं? मैंने जो देखा और मेरा क्या हाल हुआ सब उसे बता दिया। रेखा ने कहा- कोई बात नहीं, आपके लिए तो मैं हमेशा हाजिर हूँ।
इसके बाद हम दोनों ने फ्रेश होकर नंगे खाना खाया और बिस्तर में आकर लेट गए। मैंने सोने से पहले फिर रेखा की अच्छे से मालिश की। करीब चार बजे हम दोनों की नींद खुली मेरा लंड फिर खड़ा होकर फड़फड़ा रहा था, रेखा ने उसे अपने हाथ में लेकर चूमना शुरू किया हमने दो बार चुदाई करके चाय पी।
अगले दिन मैंने रेखा को बताया कि उसके लिए एक अच्छा घर मिल गया है। मैंने बताया कि हमारे प्लांट में काम करने आये एक रशियन विशेषज्ञ को घर के काम के लिए किसी की जरूरत है। रेखा को मैंने बताया कि उसे वहाँ तिगुने पैसे मिलेंगे। हमारी कंपनी की कालोनी में बहुत से रशियन रहते थे, उनके यहाँ बहुत सी नौकरानियाँ काम करती थी। रशियन लोग उनको बहुत पैसा देते थे। मैंने रेखा से कहा- अगर तुम्हें ठीक लगे तो सब घर छोड़ कर हमारे और उसके यहाँ काम कर सकती हो। रशियन के यहाँ रेखा की कहानी मैं अगली कड़ी में लिखूंगा। दूसरे दिन मेरी पत्नी आने वाली थी, इसलिए शाम को रेखा ने मुझसे विदाई ली और घर चली गई। [email protected]
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