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मैं बाथरूम में नहा रहा था और मुझे उनकी सब बातें सुन रही थी। जब मैं नहा कर आया तो स्मिता मुझे चाय देने आई। मैंने उसकी बाजू पकड़ ली- अगर दीदी का दर्द सहन नहीं होता तो थोड़ा दर्द तू बाँट ले उसका! मैंने उसे कहा। ‘छोड़ो मुझे!’ कह कर वो किचन में चली गई मगर उसके चेहरे की मुस्कान और आँखों की चमक बहुत कुछ कह गई।
शाम को जब काम से वापिस आया तो मैंने अपनी बीवी से कहा- यह स्मिता अपनी सब बात सुनती है, अगर इसे इतना ही शौक है तो क्यों न आज इसे अपने साथ ही सुला लें? ‘क्या बात करते हो, वो हमारे साथ कैसे सो सकती है?’ बीवी ने कहा। ‘अरे अगर दूसरे कमरे में लेट कर भी उसने अपनी बातें ही सुननी हैं तो क्यों न अपने साथ लेटे और आराम से जो भी बात वो सुनना चाहती है, आराम से सुने और देखे, उसकी भी जानकारी बढ़ जाएगी।’ कह कर मैंने अपनी बीवी को आँख मारी। वो मुस्कुरा कर चली गई। रात को मैंने स्मिता से झूठ ही कह दिया कि आज रात वो हमारे साथ सोएगी, सविता को पूछ लिया, वो मान गई है।
खाना वाना खाकर जब हम दोनों बेड पे लेटे तो स्मिता भी अपना तकिया उठा कर हमारे कमरे में आ गई। ‘अरे, आओ आओ!’ कह कर मैंने उसे अपने पास बुला लिया। चाहे मेरी बीवी को यह बात पसंद नहीं थी मगर वो चुप रही।
हम तीनों एक ही बेड पे लेट गए, थोड़ी देर इधर उधर की बातें करने के बाद सो गए। करीब आधी रात को मेरी आँख खुली, मैं उठ कर पेशाब करने गया, वापिस आकर जब मैं बेड के पास पहुँचा तो देखा, दोनों बहने गंगा जमुना की तरह बेड पे पड़ी थी।
मेरी बीवी को शायद गर्मी लगी हो, उसने अपनी चोली उतार दी थी, ये बड़े बड़े भरपूर और गुदाज स्तन, यौवन के रस से भरे और नीचे उसका घागरा भी उसके घुटनों तक ऊपर उठा हुआ था, जिस वजह से उसकी दोनों चिकनी संगमरमरी टाँगें नाइट लैम्प की धीमी रोशनी में भी चमक रही थी। उसके बिल्कुल साथ ही स्मिता लेटी थी। हिमालय की तरह ऊपर को उठे उसके दो स्तन, जो उसकी चोली में फंसे पड़े थे, नीचे सपाट पेट, और उसके भी नीचे, दो गदराई हुई जांघें… दोनों टाँगे खोल कर लेटी होने के कारण उसके घागरे में एक घाटी सी बन गई थी।
मैं चुपचाप उसके पाँव के पास जाकर खड़ा हो गया। पहले मैंने दोनों को टोहा, दोनों गहरी नींद में थी। मैंने बड़े धीरे से स्मिता के घागरे को ऊपर उठाना शुरू किया, ढीला खुला घागरा ऊपर उठता गया और मेरी प्यारी साली की मखमली टाँगों को मेरे सामने दृश्यमान करता चला गया।
मैंने धीरे धीरे करके उसका सारा घागरा ऊपर उठा दिया। इतना ऊपर कि उसकी बिना चड्डी की चूत भी मेरे सामने प्रकट हो गई, सिर्फ कमरे में धीमी रोशनी की वजह से मैं उसकी चूत को ठीक से नहीं देख पा रहा था। मैं अपना चेहरा उसकी चूत के पास ले गया, उसकी चूत की महक को सूंघा, बेशक यह काम किसी कुत्ते जैसा था, मगर सच कहूँ, इसमें भी मज़ा आता है।
मैं सोच रहा था कि मैं इसकी चूत के साथ क्या करूँ। मैंने अपने होंठ उसकी चूत पर रख दिये और एक चुंबन उसकी चूत के लबों पे ले लिया।
वो कसमसाई मगर उसने अपनी टाँगें और खोल दी, अब मेरे सामने दूसरा विकल्प था, मैंने अपनी जीभ से उसकी चूत के दोनों होंठ ऊपर से चाट लिए। मुझे पक्का यकीन था कि इस बार वो ज़रूर उठ जाएगी मगर वो नहीं उठी।
मेरी हिम्मत बढ़ी और मैंने फिर से उसकी चूत में जीभ डाल कर चाटा। वो शांत चित लेटी रही, मुझे यकीन हो गया कि यह जाग रही है और मज़े ले रही है।
मैंने फिर बिना किसी डर के उसकी चूत चाटनी शुरू कर दी। जब ढंग से उसकी चूत चाटी तो कसमसा तो रही थी, मैं देख रहा था, मगर जाग नहीं रही थी। मेरा अपना लंड तन कर पत्थर सा हो गया था, मेरा दिल कर रहा था कि इसे अभी चोद दूँ, मगर यह भी डर था कि कहीं बीवी न उठ जाए।
मेरे चूत चाटने से स्मिता भी बहुत बेहाल थी और उसे न चोद पाने के कारण मैं भी बहुत बेहाल था। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
जब कुछ भी बस में नहीं रहा तो मैं जा कर अपने बेड पे सो गया। चाहे मुझे लग रहा था कि स्मिता भी मुझे गालियाँ निकाल रही होगी कि आग लगा कर चला गया मगर मैं और कर भी क्या सकता था।
सुबह आँख खुली तो देखा, मेरी बीवी बाथरूम में थी, मैं उठ कर बाथरूम के दरवाजे पे जाकर खटखटाया तो वो अंदर से बोली- अभी रुको 10 मिनट।
मैं वापिस बेड पे आ गया, बेड पर स्मिता सो रही थी। मेरे मन में फिर से शैतान जाग गया, मैं जाकर स्मिता के साथ लेट गया और उसे अपनी बाहों में भर लिया। वो उठ गई- यह क्या कर रहे हो जीजू? ‘पूछ मत जानेमन, तूने क्या जादू कर दिया, अब तेरे बिन नहीं रहा जाता!’ मैंने आवेग में कह दिया। ‘अच्छा और रात को क्या बदतमीजी कर रहे थे मेरे साथ? बताऊँ दीदी को?’ उसने धमकी दी।
‘अरे बता दे, मगर मेरे मन की मुझे कर लेने दे!’ कह कर मैंने उसे सीधा किया और उसके ऊपर ही लेट गया, अपने हाथों से उसके दोनों हाथ पकड़ अगल बगल फैला दिये, अपने पाँव से उसकी दोनों टाँगें खोली और अपना लंड उसकी चूत पर सेट करके रगड़ने लगा। उसके होंठों को चूमना चाहा, मगर उसने मुँह घुमा लिया, तो मैंने उसके दोनों गाल, गर्दन, कंधे पे चूमना शुरू कर दिया।
गुदगुदी से वो मचल उठी। मैंने उसकी चोली के ऊपर से ही उसके दोनों स्तनों चूमा, और उसकी चूची पे काटा भी। वो पूरी मस्ती में आ चुकी थी, मैंने उसके हाथ ढीले छोड़े तो वो मुझसे बेल की तरह लिपट गई- जीजू, आई लव यू, मैं अब तुम्हारे बिना नहीं रह सकती। मैंने उसके होंठ चूम लिए।
कुछ दिन वो और हमारे साथ रही मगर हमारे मन की न हो पाई जब भी मैं मस्ती में आता तो अपनी बीवी से कहता- यार, स्मिता का चुम्मा दिलवा दे, साली बड़ा नखरा करती है। और मेरी बीवी के कहने पर स्मिता मुझे चुम्मा दे देती।
हमारी मस्ती ऐसे ही चलती रही और हम दोनों एक दूसरे के और करीब और करीब आते गए, मगर इसकी भनक मेरी बीवी को नहीं लगी या फिर वो इसे सिर्फ जीजा साली का लगाव समझ कर चुप रही।
कुछ दिन बाद बीवी बोली- स्मिता को वापिस गाँव छोड़ आते हैं। मैंने कह दिया- मैं ही छोड़ आऊँगा।
रविवार को मैं उसे अपने साथ लेकर छोडने चल पड़ा, बीवी से कह दिया, शाम तक आ जाऊँगा क्योंकि अपनी दुकान का कुछ समान भी लाना था।
हम दोनों बस पकड़ कर पहले तो स्मिता के दादा दादी जहाँ रहते हैं, उस शहर में गए। बस में भी हम दोनों की चुहलबाजी चलती रही, एक दूसरे के साथ छेड़खानी, मस्ती करते हम स्मिता के शहर पहुँच गए मगर घर नहीं गए, पहले हम गए सिनेमा और दोनों ने पिक्चर देखी जैसे कोई नए नवेले शादीशुदा जोड़े हनीमून पे घूमने आए हों, उसके बाद हमने खाया खाना।
खाने के बाद मैंने स्मिता से कहा- स्मिता, अगर तुम्हें कोई ऐतराज न हो तो और हमारे मन को जो अरमान हम अपने घर पे पूरा नहीं कर सकते तो इतनी दूर आकर अब मैं खाली हाथ नहीं जाना चाहता, मैं आज तुम्हें अपना बनाना चाहता हूँ। वो बोली- देखिये जीजू, मैंने अपने मन से आपको ही अपना पति मान लिया है, अब आप जहाँ चाहो, मुझे ले जाओ, मुझे कोई आपत्ति नहीं।
हम घर गए और घर जा कर मैंने अपनी पत्नी को फोन कर दिया के जिस काम से मैं आया था वो काम नहीं बना, दो दिन बाद बुलाया है, काम करके ही आऊँगा।
रात को खाना खा कर जब मैं अपने कमरे में बैठा था तो स्मिता आ गई। ‘दादा दादी सो गए?’ मैंने पूछा। ‘हाँ, सो गए!’ वो बोली। मैंने स्मिता को अपनी बाहों में भर लिया- ओ स्मिता, मेरी जान, मैं तुमसे बहुत बहुत प्यार करता हूँ। कह कर मैंने उसके होंठ चूम लिए और इस बार स्मिता ने भी मेरे होंठ चूमने पर पूरा साथ दिया- अब मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता। मैंने कहा।
‘अच्छा, मगर प्यार तो तुम दीदी से करते हो!’ वो थोड़ा नाराज़ सा होकर बोली। ‘अरे वो तो मेरी बीवी है, उसे तो प्यार करूंगा ही, मगर तुझे भी बहुत चाहता हूँ।’ मैंने कहा। ‘अगर चाहते हो तो मुझसे शादी कर लो!’ वो बोली। ‘कैसे?’ मैंने थोड़ा हैरान होते हुये पूछा।
उसने पास ही रखी एक डिब्बी उठाई और मेरी सामने करके बोली- लो भर दो मांग मेरी और बना लो मुझे अपनी पत्नी! मैंने एक मिनट नहीं लगाया, डिब्बी से एक चुटकी सिंदूर ले कर उसकी मांग में भर दिया और बोला- ले आज से तू मेरी पत्नी, अब जब हमारी शादी हो गई है, तो सुहाग रात मनाने का क्या प्रोग्राम है?’ मैंने उसे शरारत से देखते हुये पूछा।
वो बोली- अब मैं आपकी पत्नी हूँ, जो चाहे कर लो मेरे साथ। बस फिर क्या, मैंने झट से उसे पकड़ लिया और उसके होंठों पे अपने होंठ रख दिये। होंठ चूमते चूमते मैंने उसे बेड पे गिरा दिया, वो भी बेड पे आराम से लेट गई, जैसे उसने भी मन बना लिया था कि आज अपने जीजू से चुदना ही चुदना है। मैंने फालतू टाइम खराब करना ठीक नहीं समझा और सबसे पहले मैंने अपने कपड़े उतारे और सिर्फ चड्डी पहन कर मैं स्मिता के पास बेड पे आ बैठा। मैंने उसको अपनी बाहों में भर लिया और फिर से उसके होंठ चूमने लगा, उसका एक हाथ पकड़ा और उसमे अपना तना हुआ लंड पकड़ा दिया। स्मिता ने आराम से पकड़ लिया। मैंने सबसे पहले उसके आँचल को हटाया, स्तन को पकड़ा और ऊपर को उठाया, एक बड़ा सा क्लीवेज बना, मैंने उसकी स्तन रेखा को अपनी जीभ से चाट लिया। फिर चोली के एक एक हुक को अपने हाथों से खोला और उसकी चोली को उतार दिया, नीचे वो सफेद रंग का ब्रा पहने थी। मैंने उसकी साड़ी भी खोल दी। उसको बेड पे ही खड़ा किया और उसका पेटीकोट का नाड़ा खोला, पेटीकोट नीचे गिर गया। नीचे से वो चड्डी नहीं पहने थी।
आज मुझे उसकी चूत के भरपूर दर्शन हुये, गोरी चूत जिसपे रेशमी बाल, मैंने उसकी चूत की फाँके खोल कर देखी, अंदर से गुलाबी! मैंने उसकी चूत के अंदर के गुलाबी भाग पर अपने होंठों से चुंबन लिया। स्मिता ने मेरा सर पकड़ लिया, मैं चाटने लगा।
थोड़ा सा चाट कर मैंने उसको लिटा दिया और मैं उसकी टाँगों के बीच में आ गया, पहले अपनी चड्डी उतारी, काले नाग सा मेरा लंड फुंकारे मारता बाहर आया। फिर मैंने स्मिता का ब्रा उतारा और उसकी दोनों चूचियों को पकड़ कर खूब मसला और चूसा। मेरी काम लीला से स्मिता बेहाल हुई जा रही थी।
मैंने उसकी चूत पर हाथ लगा कर देखा, वो पानी से भीगी पड़ी थी। यही सही समय था उसको चोदने का, मैंने उसकी टाँगें अगल बगल खोली और अपना लंड उसकी कुँवारी चूत पर रख दिया। मैंने लंड उसकी चूत में डालना चाहा, मगर लंड फिसल गया, एक तो उसकी चूत बहुत गीली थी दूसरा उसने खुद सारा बदन अकड़ा रखा था। मैंने एक दो कोशिश और की मगर लंड अंदर नहीं जा पाया।
फिर स्मिता ने खुद कहा- ठहरो, मैं सेट करती हूँ। फिर उसने अपने हाथ में मेरा लंड पकड़ कर अपनी चूत पे सेट किया। मैंने ज़ोर लगाया तो मेरे लंड का सुपाड़ा उसकी चूत को भेदता हुआ अंदर घुस गया, स्मिता के मुँह से दबी सी एक चीख निकल गई, मैंने उसका मुँह दबा दिया, मगर थोड़ा सा रुक कर मैंने एक और जोरदार धक्का मारा, इस बार मेरा आधे के करीब लंड उसकी चूत में घुस गया।
इस बार का धक्का स्मिता बर्दाश्त नहीं कर सकी और वो रो पड़ी- हाये जीजू, मर जाऊँगी, बहुत दर्द हो रहा है, निकाल लो इसे’, मगर उसके दर्द ने तो मेरी मर्दांगी को पोषित किया था, मैं कैसे निकाल लेता। मैं उसे सहलाता रहा, उसे चूम कर प्यार करके समझता रहा, मगर मैंने अपना लंड बाहर नहीं निकाला क्योंकि अब मैं पूरा अंदर तक डाले बिना कैसे बाहर निकाल लेता। मैंने थोड़ा थोड़ा अपनी कमर को हिलाया और अपने लंड को थोड़ा थोड़ा अंदर बाहर किया। चूत के पानी से पिच पिच हो रही थी। जब मैंने देखा कि स्मिता थोड़ा संभाल गई है तो मैंने फिर से ज़ोर लगाया और अपना सारा लंड उसकी चूत की गहराई में उतार दिया। वो बेचारी कुँवारी कन्या, इस दर्द को बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी और रोये जा रही थी। मुझे उसके रोने का अफसोस तो हो रहा था मगर इस मुकाम तक आकर मैं उसे चोदे बिना भी नहीं छोड़ सकता था इसलिए मैंने उसके रोने की परवाह किए बिना उसे चोदना शुरू कर दिया। मगर उसका दर्द बढ़ गया और उसका रोना भी।
मुझे भी लगा, जब इसने अपना कोमार्य ही मुझे सौंप दिया, तो मुझे भी इसका मान रखना चाहिए, मैंने अपना लंड उसकी चूत से बाहर निकाल लिया। वो दूसरी तरफ करवट लेकर लेट गई, मैंने देखा उसकी जांघों पर खून लगा है। फिर मैंने देखा कि मेरे लंड पर भी खून लगा है और नीचे बिस्तर की चादर पर भी खून का बड़ा सा दाग लगा है।
खून देख कर डर सा तो लगा, मगर अपने आप पर फख्र सा भी महसूस हुआ कि सुनील बाबू ‘कच्ची की फाड़ दी।’
खैर थोड़ी देर बाद स्मिता संभली, मेरा लंड तो अब भी तना पड़ा था, वो बोली- मैं अभी नहीं कर सकती। तो मैंने कहा- फिर मेरा कैसे होगा? वो बोली- कैसे करूँ? मैंने कहा- हाथ से कर दे!
उसने मेरा लंड हाथ में पकड़ लिया और मेरे बताने मुताबिक उसने मेरा हस्तमैथुन करके वीर्यपात करवा दिया।मैं भी शांत हो कर लेट गया। अगले दिन अपने घर चला आया।
उसके बाद मैं अक्सर मैं किसी न किसी काम के बहाने स्मिता के पास जाने लगा। रात को वो दादा दादी को सुला कर मेरे पास आ जाती, और मैं उसे खूब चोदता। उसे लंड चूसना पसंद नहीं था, मगर मैंने ही उसे मर्द का लंड चूसने की आदत लगवाई। आज स्मिता की शादी हो चुकी, बाल बच्चे हो चुके हैं, मगर आज भी वो मुझे ही मन से अपना पति मानती है।
हमारे इस कार्य के कुछ दिन बाद पता नहीं कैसे मेरी पत्नी को इस बात का पता चल गया। उसने मुझसे पूछा, तो मैंने भी सब सच सच बता दिया। पहले तो वो थोड़ा गुस्सा हुई, मगर बाद में मान गई। आज वो सब जानती है, मैंने उसको सब कुछ बता दिया है और अब उसे मुझसे या अपनी बहन से भी कोई गिला शिकवा नहीं है। ऐसी बीवी किस को मिलती है, सिर्फ मुझे मिली है, सिर्फ मुझे! [email protected]
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