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दोस्तो, मेरा नाम निखिल राय है, गोमती नगर लखनऊ में रहता हूँ, मेरी उम्र 21 साल है, मेरी हाइट 5 फुट 10 इंच है और लंड की लम्बाई 7 इंच है। मैं बी.सी.ए. कर रहा हूँ। मैं अन्तर्वासना का नियमित पाठक हूँ। यह अन्तर्वासना पर मेरी पहली कहानी है। आशा है आप लोगों को पसंद आएगी।
बात लगभग 5 साल पहले की है। हमारे घर में एक भाभी रहती थीं, उनका नाम शीतल था, उनके पति फौज में थे, ववो ज्यादा बाहर रहते थे। उनका 5-6 साल का एक बच्चा था। उसका नाम अरुण था।
भाभी का रंग गोरा था, भाभी का फिगर कमाल का था, यही कोई 36-30-38 का रहा होगा। तो आप लोग समझ ही गए होंगे कि भाभी पूरा गदराया हुआ माल थीं। भाभी जब चलती थीं.. तो उनकी गांड कयामत ढाती थी। उनकी चूचियाँ मानो ब्लाउज फाड़ कर बाहर आना चाहती हों।
तब मैं नया-नया जवान हुआ था। भाभी आंगन में अपने बाल धोती थीं। बाल धोते समय वो अपना पेटीकोट अपनी चूचियों तक कर लेती थीं। वे समझती थीं कि मैं अभी छोटा हूँ.. इसलिए वो बेफिक्र रहती थीं। मैं ऐसे जब उन्हें देखता था.. तो बस देखता ही रह जाता था। भीगे हुए पेटीकोट में उनकी जांघें.. उठी हुई गाण्ड.. मस्त कमर.. भरी हुई चूचियाँ.. साफ दिखाई देती थीं।
तब मुझे लंड.. बुर (चूत) का कुछ पता नहीं था। बस इतना याद है कि मेरी पैंट में तम्बू बन जाता था। खैर.. ये हुस्न के नजारे देख कर मैं बड़ा हुआ। अब शीतल भाभी ने पड़ोस में घर बनवा लिया था। भाभी अब और मालदार हो गई थीं। उनके घर जाने का मौका तो नहीं मिलता था.. पर मैं उन्हें छत पर कपड़े फैलाते देखता था। जब भी उन्हें देखता था.. तो बस उन्हें पकड़ कर चोदने का मन करता था।
मेरी यह तमन्ना भी जल्दी पूरी हुई। वो कहते हैं ना.. ऊपर वाले के घर देर है अंधेर नहीं.. एक दिन शीतल भाभी मेरे घर आईं, दरअसल उन्हें कम्प्यूटर सीखना था, चूंकि मैं बी.सी.ए. कर रहा था इसलिए उन्होंने मेरी मम्मी से बात की। उन्होंने फीस भी देने की बात कही।
जब मम्मी ने मुझसे पूछा तो मैंने थोड़ा बहाना बनाने के बाद ‘हाँ’ कर दी। भाभी ने मुझे अगले दिन दस बजे आने को कहा। मैं अगले दिन दस बजे सभी तरफ से एकदम चिकना बनकर उनके घर पहुँचा।
मैंने घन्टी बजाई.. तो भाभी ने नीला गाउन पहने हुए दरवाजा खोला। गाउन से ही उनकी चूची का अग्रभाग और जांघें दिखाई पड़ रही थीं।
मेरा मुँह खुला का खुला ही रह गया। फिर भाभी ने मुझे अन्दर बुलाया। मैंने उनके लड़के अरुण के बारे में पूछा.. तो उन्होंने बताया- वो स्कूल गया है।
मैं कम्प्यूटर के पास बैठ गया। मुझे पानी देते समय उनकी चूचियों के दर्शन हुए। भाभी बोलीं- निखिल मैं अभी नहा कर आती हूँ। तब तक तुम कम्प्यूटर ऑन कर लो। मैंने कहा- ठीक है भाभी।
मैंने कम्प्यूटर ऑन किया। कुछ देर तक तो मैं कम्प्यूटर चैक करता रहा था। फिर मेरा ध्यान बाथरूम की तरफ गया। भाभी अन्दर नंगी होकर नहा रही होंगी, यह सोच कर मैं मुठ्ठ मारने लगा। कुछ देर बाद भाभी नहा कर बाहर आईं, मैंने जैसे-तैसे अपने कपड़े सही किए।
उन्होंने गुलाबी साड़ी पहन रखी थी। नहाने की वजह से अभी भी उनके कपड़े हल्के भीगे थे। जिससे उनकी ब्रा दिखाई दे रही थी। फिर भाभी गाण्ड मटकाते हुए छत पर कपड़े फैलाने चली गईं.. वापस आकर भाभी मेरे पास बैठ गईं।
मैं उन्हें कम्प्यूटर के बारे में बताने लगा। उनके पास बैठे होने के एहसास और बदन की मदमस्त महक ने मेरा लंड अभी भी खड़ा कर रखा था। कुछ देर भाभी का ध्यान मेरे लंड पर गया। जब मैंने उन्हें घूरा तो उन्होंने नज़र वहाँ से हटा लीं।
उस दिन भाभी को मैं विंडोज और इंटरनेट के बारे में बता कर चला आया। घर जाकर मैंने भाभी के नाम की मुठ्ठ मारी, तब जाकर रात को नींद आई।
अगले दिन जब मैं गया.. तो भाभी ने फिर गाउन पहन कर दरवाजा खोला और फिर नहाने चली गईं। मैंने सोचा कि क्यों ना बाथरूम के दरवाजे में एक छेद कर दिया जाए.. क्योंकि मैं भाभी को नंगी नहाते हुए देखना चाहता था।
कुछ देर तक तो मैं लंड हिलाता रहा, फिर भाभी नहा कर बाहर आईं और कपड़ा फैलाने छत पर गईं। इतनी देर में मैंने दरवाजे में छेद कर दिया। भाभी वापस आकर मेरे पास बैठ गईं। कल की तरह आज भी उनका ध्यान मेरे पैंट के उभार पर ही था। कभी-कभी की-बोर्ड पर मेरा हाथ भाभी के हाथ से छू जाता था.. तो मेरे शरीर में तो जैसे करंट दौड़ जाता था।
अगले दिन जब भाभी नहाने गईं.. तो मैंने छेद से अन्दर झांकना शुरू किया। भाभी ने जैसे ही मेरी तरफ पीठ करके अपना गाउन खोला.. मेरा लंड सलामी देने लगा। गाउन हटते ही उनकी नंगी पीठ, गदराई कमर, मटकती गाण्ड और केले जैसी जांघें मेरे सामने थीं।
भाभी शावर चालू करके नहाने लगीं। इधर लंड पर मेरा हाथ अनायास ही चलने लगा। भाभी नहाते हुए चूची और गरदन मलने लगीं। फिर भाभी ने पलट कर मुँह मेरे तरफ किया, तब जाकर उनके चूचकों और चूत के दर्शन हुए। भाभी की चूत पर एक भी बाल नहीं था और भाभी की रसभरी मादक चूचियों को देखकर मेरा लंड हुंकार भरने लगा। अब भाभी ने अपनी एक चूची को मसलना शुरू किया। उनके मुँह से ‘आहें..’ निकल रही थीं।
धीरे-धीरे उनका हाथ चूत पर आया। पहले तो धीरे पर बाद में तेजी से उन्होंने अपनी चूत को रगड़ना शुरू किया। अब उनकी ‘आहें..’ सिसकारियों में बदल गईं।
कुछ देर बाद उनका बदन अकड़ने लगा, इधर मेरे लंड का भी हाल बुरा था। उस दिन मुझे पता चला कि मैं ही नहीं भाभी भी मुठ्ठ मारती थीं।
अगले पांच दिन तक मैं भाभी के ऐसे ही नजारे लेता रहा, भाभी के हुस्न के जलवों ने मेरे लंड की मां-बहन कर रखी थी।
फिर एक दिन जब भाभी नहा रही थीं, मैंने कम्प्यूटर पर इंटरनेट की हिस्ट्री चैक की। भाभी ने पॉर्न फिल्म भी देखना शुरू कर दिया था। उस दिन मैंने भाभी की अलमारी से उनकी ब्रा, पैंटी निकाल कर सूंघना शुरू किया। पैंटी से अजब सी खुशबू आ रही थी। मैं पैंटी लेकर बाथरूम के छेद के पास पहुँचा और भाभी के जलवे देखकर मुठ्ठ मारने लगा। कुछ देर बाद ना चाहते हुए भी मैं पैंटी में ही झड़ गया। मैंने जल्दी से ब्रा और पैंटी अलमारी में रख दी और कम्प्यूटर के पास बैठ गया।
इसके आगे की कहानी अगले भाग में! कहानी कैसी लगी बताइएगा जरूर.. मुझे आपके सुझावों का इंतजार रहेगा। [email protected]
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