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अभी तक आपने पारो की कहानी पढ़ी, अब आपको कम्मो की कहानी सुनाने की कोशिश करता हूँ। कम्मो मेरे जीवन में मेरी यौन गुरु बन कर आई थी, उसी ने मुझको यौन ज्ञान के ढाई अक्षर सिखाये थे। उसका ढंग ख़ास था क्यूंकि वो सब काम स्वयं करके दिखाती थी ताकि मुझको शक की कोई गुंजायश न रहे, इलिए मैं यह मानता हूँ कि जो मैं आज कामक्रीड़ा में माहिर बना बैठा हूँ, वो सब कम्मो की वजह से ही है, न वो मेरे जीवन में आती, न मैं काम-कला का इतना ज्ञान अर्जित करता।
कम्मो जब मेरे जीवन में आई थी, उस समय मैं केवल गाँव का एक भोला भाला लड़का ही था, यह तो कम्मो ही है जिसने मुझ में छिपी हुई अपार यौन शक्ति को पहचाना और उस शक्ति को एक दिशा दी। अगली रात कम्मो की कहानी सुनने के लिए हम दोनों बड़े बेताब थे।
रात को हमने ढेर सारा बकरे का मांस पारो से बनवाया और नान इत्यादि बाजार से मंगवा लिए। कुछ खाने का सामान पारो मेरे कहने पर राम लाल चौकीदार को दे आई ताकि वो और उसका परिवार भी ढंग से खाना खा सके।
खाना खाकर हम तीनों मेरे कमरे में इकट्ठे हुए, तीनों ने धीरे धीरे अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिये। कपड़े उतारने का क्रम ऐसा रखा कि हर एक कपड़ा उतारने के बाद हम देखते थे कि कितने कपड़े बचे हैं शरीर पर!
एक एक कपड़ा उतारते हुए हम देखते जा रहे थे कि किसके कपड़े ज्यादा बचे हैं शरीर पर… हम तीनों के शरीर पर केवल 3-3 कपड़े थे जो हम रेडियो पर चल रहे एक फ़िल्मी गाने के मुताबिक़ उतार रहे थे।
सबसे पहले मैंने अपने तीन कपड़े उतार दिए और उसके बाद कम्मो ने उतारे और पारो सब से आखिर में उतार पाई। उन दोनों की चूतों पर उगी हुई काली झांटें ख़ास चमक रही थी और दोनों ने शरीर पर हल्का सा सेंट लगा रहा था जिसकी खुश्बू अलग अलग थी।
हम तीनों मेरे बड़े पलंग पर लेट गए। फिर कम्मो ने कहा- आज हम एक नए तरीके से चोदते हैं। छोटे मालिक पारो की चूत को चूसेंगे, पारो मेरी चूत को चूसेगी और मैं छोटे मालिक के लंड को चूसूंगी, यह एक गोल चक्र बना लेते हैं इस काम के लिए!
हमने एक गोल चक्र बना लिया, मैंने अपना मुंह पारो की बालों भरी चूत में डाल दिया और पारो ने अपना मुंह कम्मो की चूत में और कम्मो मेरे लंड को चूसने लगी। पारो की चूत एकदम फूली हुई थी और खूब पनिया रही थी क्यूंकि आज के नए खेल ने उसको काफी उत्तेजित कर दिया था।
मैं धीरे धीरे अपनी जीभ को उसकी सुगन्धित चूत के होटों पर फेरने लगा, मैं जानबूझ कर उसके क्लिट यानी भगनासा को नहीं छू रहा था। जीभ को गोल गोल घुमाता हुआ उसकी चूत के अंदर का रस पीने लगा। मेरी जीभ करीब 1 इंच तक उसकी चूत में चली जाती थी।
फिर मैंने हाथ की ऊँगली भी चूत में डाल दी और उसको अंदर बाहर करने लगा। अब पारो ने अपने चूतड़ हिलाने शुरू कर दिए और मैं ऊँगली को उसकी भगनासा पर फेरने लगा.।
उधर कम्मो मेरे खड़े लंड को लोलीपोप की तरह चूसने लगी जिससे मुझको बहुत आनन्द आ रहा था, कम्मो के चूतड़ भी ऊपर उठ बैठ रहे थे पारो की जीभ के कारण। मैंने पारो के भगनासा को अब चूसना शुरू कर दिया और अपनी बीच वाली ऊँगली उसकी चूत के काफी अंदर तक डाल दी। अब पारो के मुंह से ओह्ह्ह्ह ओह्ह्ह जैसी आवाज़ें आने लगी और कुछ ही क्षण में उसकी जांघों ने मेरे मुंह को कैद कर लिया और वो ज़ोर ज़ोर से कांपने लगी।
थोड़ी देर में कम्मो भी इसी तरह झड़ गई, सिर्फ मेरा लंड अभी भी वैसे ही मस्त खड़ा था। फिर ना जाने कम्मो ने जीभ से कोई खेल खेला और मेरा भी फव्वारा छूट गया।
हम तीनों वैसे ही लेटे रहे। फिर जब सांसें ठीक हुईं तो अपनी अपनी जगह पर लेट गए। मैं बोला- कम्मो डार्लिंग, हमको बंटा बोतल तो पिलाओ बर्फ डाल के! वो गई और जल्दी ही तीन ग्लासों में लेमन में बर्फ डाल कर ले आई। लेमन पी कर दिल खुश हो गया।
मैंने कम्मो को बोला- कम्मो डार्लिंग, तुम्हारा मम्मे का क्या साइज होगा? वो बोली- मुझ को क्या मालूम छोटे मालिक! ‘अरे तो पता करो न? तुम्हारे पास वह नाप लेने वाला फीता है क्या?’ ‘शायद है। लेकिन ढूंढना पड़ेगा?’ ‘तो ढूंढिए न, और पारो को भी साथ ले लो, वो भी शायद जानती होगी।’
दोनों नंग धड़ंग फीता ढूंढने में लग गई। मैं लेटे लेटे ही उन दोनों का सेक्सी नज़ारा देख रहा था, कम्मो के चूतड़ एकदम गोल और उभरे हुए थे जबकि पारो के थोड़े फैले हुए थे, उनमें गोलाई कम थी। इसी तरह पारो के मम्मे ज्यादा बड़े और सॉलिड लग रहे थे जबकि कम्मो के मम्मे छोटे और गोल थे।
थोड़ी देर में कम्मो फीता ले आई, मैंने दोनों को सीधा खड़ा कर दिया और जैसे दर्ज़ी औरतों का नाप लेता है वैसे ही दोनों का नाप लेने लगा। पहले पारो के मम्मों का नाप लिया, वो पूरे 38 इंच के निकले और उसकी कमर 30 इंच थी और हिप्स यानी चूतड़ 40 इंच थे।
अब कम्मो की बारी थी, उसके मम्मे 36 इंच कमर 28 इंच और चूतड़ 38 इंच के निकले। मेरा अंदाजा सही निकला। दोनों को मैंने बताया कि उनके नाप बड़े ही सेक्सी थे और अगर कोई जवान लड़का उनको नंगी देख ले तो वो फ़ौरन उनको चोद डालेगा जैसे मैं चोदता हूँ।
यह सुन कर दोनों खूब हंसी और बोली- छोटे मालिक, तुम कौन से बूढ़े हो गए हो? तुम भी अभी जवानी में कदम रख रहे हो और हम को देख कर रोज़ चोद देते हो। इस बात पर हम तीनों खूब हँसे।
मैंने कम्मो को देख कर कहा- अच्छा कम्मो, अब तुम सुनाओ अपनी कहानी, देखें तुम्हारे साथ क्या हुआ तब?
कम्मो मुस्कराई और फिर बोली- छोटे मालिक, मैं बचपन से ही बड़ी नटखट और चुलबुली लड़की मानी जाती थी अपने गाँव में! खूब शरारत करना मेरा नियम था, मैं और मेरी एक सहेली चंचल सेक्स के मामले में काफी जानकारी रखते थे। मैं और मेरी सहेली चंचल बड़ी पक्की सहेलियाँ थी, हम कोशिश करते रहते थे कि गाँव में नए शादीशुदा जोड़ों को सुहागऱात वाली रात में किस प्रकार देखा जाए रात के अँधेरे में! शुरू शुरू में तो हम को ज़्यादा सफलता नहीं मिलती थी लेकिन धीरे धीरे मुझको समझ आने लगा कि नए जोड़ों को रात को कैसे देखा जाए, खासतौर पर गर्मियों के दिनों में! शादी होने से पहले हम दोनों उस घर की खूब अछी तरह जांच पड़ताल कर लेती थी, जैसे झोंपड़ी कैसे बनी और उसमें कौन कौन लोग रहते हैं, दूल्हा दुल्हन का कमरा कौन सा होगा यह भी जान लेते थे। फिर जब दूल्हा डोली लेकर आ जाता था तो सब दुल्हन के स्वागत में लग जाते थे और हम मौका पा कर दूल्हा दुल्हन के कमरे में छोटे छोटे 2 छेद कर लेती थीं जिससे कमरे में होने वाले कार्य कलाप को देख सकें। यह काम आसान होता था क्योंकि झोंपड़ी की दीवार तो मिटटी की बनी होती थी। इस तरह हम ने कई सुहागरातें देखी थी।
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मैं बोला- अच्छा? यह तो बड़ा ही मुश्कल काम था जो तुम दोनों ने किया। तुम लोग सुहागरात में क्या क्या देखा करती थी? कम्मो बोली- छोटे मालिक, बहुत कुछ देखा हमने! बहुत सारा नज़ारा तो खराब होता था लेकिन कुछ लड़के समझदार होते थे और अपनी दुल्हनिया को बड़े प्यार से चोदते थे।
‘अच्छा कुछ खोल कर बताओ न कि क्या देखा तुमने?’ मैं बोला। सारे दूल्हे अक्सर देसी पौवा शराब का चढ़ा कर आते थे और कमरे में आते ही दुल्हन की साड़ी ऊपर उठाते थे और ज़ोर से अपना लंड उस कुंवारी कन्या की चूत में डाल देते थे और फिर ज़ोर ज़ोर से धक्के मारते हुए कुछ ही मिनटों में ढेर हो जाते थे और दुल्हन बेचारी अपनी फटी हुई चूत को कपड़े से साफ़ करती और उसमें से बह रहे खून को भी साफ़ कर देती थी। दस में से आठ दूल्हे ऐसा ही करते थे और बाकी दो जो थोड़ी बहुत चुदाई का ज्ञान रखते थे बड़े प्यार से अपनी दुल्हन को चोदते थे और हर चुदाई के बाद उसको खूब प्यार भी करते थे।
मैं बोला- तुम सुनाओ न, तुम्हारे साथ क्या हुआ था? वो हँसते हुए बोली- मेरा दूल्हा तो निकला भोंदू… यानि उसको कुछ भी चुदाई के बारे में नहीं पता था, बिस्तर में लेटते ही गहरी नींद में सो गया। मैंने ही हिम्मत करके उसके लंड के साथ खेलना शुरू कर दिया। उसका लंड जब खड़ा हो गया तो मैं नंगी होकर उसके लंड के ऊपर चढ़ गई और धीरे धीरे धक्के मारने लगी। वह तब भी नहीं उठा क्यूंकि मैं पहले ही अपनी चूत को गाजर मूली से फड़वा चुकी थी तो मैंने पहली रात को घर वाले को 2 बार चोदा जिसका उसको बिल्कुल ही पता नहीं था।
हम तीनो बड़े ज़ोर से हंसने लगे- साला कैसा बुद्धू था तेरा घरवाला? फिर क्या किया तुमने? ‘करना क्या था, धीरे धीरे उसको सब कुछ सिखा दिया और वो रात में 2-3 बार चोदने लगा। मैंने उसको हर तरह से चुदाई का तरीका सिखा दिया और उसके साथ खूब मज़े लेने लगी।’ ‘फिर क्या हुआ?’
एक रात मैंने उसको थोड़ी सी देसी शराब पिला दी और अपनी सहेली चंचल को बुला लिया। उस रात मेरी सास किसी काम से पड़ोस वाले गाँव गई हुई थी, बस शराब के नशे में दोनों ने मेरे घरवाले को खूब चोदा और उसको पता भी नहीं चला, वो बेहद शरीफ और सीधा था। यह कहते हुए उसकी आँखों में आंसू भर आये और वो फूट फूट कर रोने लगी। फिर उसने बताया कि एक शाम उसकी साइकिल का ट्रक के साथ हादसा हो गया और वो वहीं समाप्त हो गया। मेरी और पारो की भी आँखें भर आई। कहानी जारी रहेगी। [email protected]
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