मेरा गुप्त जीवन-31

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अब इतनी बड़ी कोठी में सिर्फ मैं, पारो और कम्मो ही रह गए थे। रोज़ रात को चुदाई का क्रम जारी रहा।

कुछ दिनों के बाद मम्मी का फ़ोन आया- कैसे हो बेटा? सब ठीक चल रहा है न? और तुम्हारी तबीयत कैसी है? और कम्मो और पारो तुम्हारा पूरा ध्यान रख रहीं हैं न? मैं बोला- मम्मी, मैं बिलकुल ठीक हूँ और रोज़ कालेज जा रहा हूँ और दोनों औरतें मेरा बहुत अच्छा ख्याल रख रहीं हैं।

मम्मी बोली- चलो अच्छा है, अपने खाने पीने का पूरा ध्यान रखना, और देखो ज्यादा देर बाहर मत घूमना। अच्छा ऐसा है वो जो दूर के तुम्हारे चाचा जी हैं, उनका फ़ोन आया था कि वो परिवार के साथ लखनऊ जा रहे हैं और कुछ दिनों के लिए वो हमारी कोठी में रुकना चाहते हैं। मैंने कह दिया है कि वो बिना झिझक के हमारी कोठी में रुक सकते हैं।

मैं बोला- ठीक है मम्मी, उनको आने दो मैं उनका पूरा ख्याल रखूँगा। कितने लोग होंगे उनके परिवार में? मम्मी बोली- चाचा-चाची और उनकी लड़की होगी शायद। उनका अच्छी तरह से ध्यान रखना और खातिर में किसी तरह की कमी नहीं रहने देना। वो शायद कल पहुँच रहे हैं अपनी कार से, ठीक है न?

मैं बोला- ठीक है मम्मी, आप बेफिक्र रहें, पारो काफी होशियार है, पूरा ध्यान रखेंगे हम! मम्मी बोली- अच्छा बेटा, मैं रखती हूँ, जब वो पहुँच जाएँ तो फ़ोन कर देना, ओ के? मैं बोला- ओके मम्मी, बाय।

मैंने पारो और कम्मो को बुलाया और चाचा के परिवार के आने की खबर उन दोनों को दी और कहा कि बैठ कर पूरी योजना बना लो कि कैसे उनकी खातिर करनी है। कम्मो बोली- रात को सारी योजना बना लेंगे, और किसी चीज़ की कमी नहीं होने देंगे।

खाने का सारा सामान कम्मो ने लाने की ड्यूटी ले ली और पारो ने खाना बनाने का काम सम्हाल लिया। चाचा चाची को मम्मी पापा वाला कमरा और उनकी लड़की के लिए मेरे साथ वाला कमरा देने की बात तय कर ली। दोनों उन कमरों को ठीक करने में लग गई।

अगले दिन मैं कालेज से जल्दी आ गया और चाचा चाची का इंतज़ार करने लगा। दोपहर के 12 बजे के लगभग वो अपनी कार से पहुँचे। मैंने उनका स्वागत किया और जल्दी ही उनको नहा धोकर फ्रेश हो जाने के लिए कहा।

सब फ्रेश होकर खाने के टेबल पर बैठ गए। अब मैंने इस परिवार को ध्यान से देखा। चाचा थोड़ी ज्यादा उम्र के लगे लेकिन चाची काफी जवान दिख रही थी। उनकी लड़की ऊषा कोई 20 साल की होगी और चाची की उम्र की ही लग रही थी।

बाद में मुझको पता चला कि चाचा की यह दूसरी शादी थी और ऊषा उनकी पहली बीवी से हुई लड़की थी। दोनों माँ बेटी दिखने में काफी सुंदर लग रही थी।

खाने के टेबल ही पर पता चला कि चाचा जी अपने किसी काम के कारण आये हैं और बच्चे सिर्फ सैर और लखनऊ देखने आये हैं। चाचा जी रात को बनारस के लिए निकल गए और दो दिन बाद आने का कह बिस्तर पर चले गये। रात को पारो और कम्मो अपनी कोठरियों में सोई।

आधी रात को मुझ को ऐसा लगा कि कोई मेरे बिस्तर पर मेरे साथ लेटा है। पहले सोचा शायद पारो या कम्मो आ गई है लेकिन जब आँखें खोली तो देखा कि चाची जी मेरे साथ लेटी हैं। उन्होंने सिल्क की लाल रंग का नाइट सूट पहना हुआ था और वो मेरे खड़े लंड से खेल रही थी। मेरा पायजामा नीचे खिसका था और मेरे लंड और अंडकोष पयज़ामे से बाहर निकले हुए थे। चाची की पोशाक भी ऊपर की तरफ खिसकी हुई थी और उसकी चूत मुझको दिख रही थी।

चाची की चूत एकदम सफाचट थी यानि एक भी बाल नहीं था उस पर। चाची ने मुंह नीचे करके मेरे लंड को अपने मुंह में लेकर चूसना शुरू कर दिया। लंड तो खड़ा था पूरी तरह और चाची जल्दी से उस के ऊपर बैठ और लंड एकदम चूत में घुस गया। उसकी गीली और टाइट चूत में लंड बड़े आनन्द से घुसा हुआ था और मैंने हल्के से नीचे से ऊपर एक धक्का मारा और तब चाची की कमर जल्दी जल्दी ऊपर नीचे होने लगी।

अब मेरे से नहीं रहा गया और मैंने चाची की कमर पकड़ कर नीचे से ज़ोर ज़ोर से धक्के मारने शुरू कर दिए और चाची भी आँखें बंद किये हुए इन धक्कों का आनन्द लेने लगी। मुझको लगा कि चाची की चूत बंद खुलना शुरू हो गई और थोड़ी देर में चाची का झड़ गया और वो मुझसे इस ज़ोर से लिपट गई जैसे वो मुझको कभी नहीं छोड़ेगी।

अब मैं अपने को काबू नहीं कर सका और आँखें खोल कर बिस्तर में बैठ गया और चाची को देख कर हैरानी का भाव चेहरे पर ले आया और हैरान हो कर बोला- चाची आप यहाँ क्या कर रहीं हैं? आप कब आई? चाची मुस्करा कर बोली- सोमू, तुम मुझको एक बार तो चोद चुके हो। और अभी मेरी भूख खत्म नहीं हुई चुदवाने की, तो लगे रहो। ‘अरे चाची, मैं तो छोटा हूँ आपसे। मैं क्या कर सकता हूँ, तुम्हारी भूख कैसे शांत कर सकता हूँ?’ ‘बस वैसे ही करते रहो, जैसा मैं कह रही हूँ। वरना तुम जानते हो मैं शोर मचा कर सब को बुला लूंगी।’

अब मैं थोड़ा घबराया लेकिन मैं जानता था कि घर के अंदर सिर्फ चाची की बेटी ऊषा ही है और बाकी सब तो बाहर हैं। फिर मैंने सोचा कि चलो चाची चूत दे ही रही है तो मज़ा लेते हैं।

चाची को मैंने गौर से देखा, उम्र शायद 30 के आस पास होगी लेकिन शरीर बहुत ही गठा हुआ था। मम्मे गोल और सॉलिड थे लेकिन साइज में वो पारो और कम्मो से छोटे थे, चूतड़ भी काफ़ी मोटे और गोल थे।

मैं चुपचाप लेटा रहा और चाची मेरे लंड के साथ खेलना और अपनी चूत को अपने ही हाथ से रगड़ना जारी रखे हुए थी। उसने कई इशारे फेंके कि मैं उसके ऊपर चढ़ जाऊँ लेकिन मैं लेटा रहा। तब चाची ने मुझको होटों पर चूमना शुरू किया, आखिर न चाहते हुए भी मैं धीरे धीरे चाची का साथ देने लगा। चाची की चूत को हाथ लगाया तो वो गर्मी के मारे उबल रही थी और उसका रस टप टप कर के बह रहा था।

अब मैं अपने को और नहीं रोक सका और खड़े लंड के साथ चाची की जाँघों के बीच बैठ कर ज़ोर ज़ोर से चोदने लगा। चाची के मुख से सिसकारियाँ निकल रही थी और वो नीचे से ज़ोर से चूतड़ उठा उठा कर लंड और चूत का मिलन करवा रही थी।

फिर मेरे लौड़े ने इंजिन की तरह तेज़ी से अंदर बाहर होना शुरू कर दिया। पांच मिन्ट में ही चाची झड़ गई और मैं भी ज़ोरदार पिचकारी मारते हुए झड़ गया। मैं चाची के ऊपर निढाल पड़ा था।

इतने में किसी ने आवाज़ लगाई- मम्मी यह क्या हो रहा है सोमू के साथ? हम दोनों ने मुड़ कर देखा तो दरवाज़े पर ऊषा खड़ी थी और फटी आँखों से अंदर का नज़ारा देख रही थी। हम दोनों नंगे ही उठ बैठे, मेरा लौड़ा छूटने के बाद भी खड़ा था और ऊषा की नज़र खड़े लंड पर टिकी थी।

जल्दी से वो अंदर आ गई और आते ही मेरा लंड अपने हाथ में पकड़ लिया। उसने भी पिंक रेशमी चोगा पहना था जिसको उसने एक ही एक्शन में उतार के फ़ेंक दिया और कूद कर पलंग पर मेरी साइड वाली खाली जगह में आकर लेट गई।

अब मैं दोनों माँ बेटी के बीच में था, बेटी ने मेरा लंड पकड़ रखा था और माँ मेरे अंडकोष के साथ खेल रही थी।

तब चाची बोली- ऊषा, थोड़ी देर पहले मैं सर दर्द की दवाई लेने सोमू के कमरे में आई थी। देखा कि सोमू गहरी नींद में सोया है लेकिन इसका लंड एकदम खड़ा था और पायज़ामे के बाहर निकला हुआ था। बस मैंने झट से सोमू के खड़े लौड़े को अपनी चूत में डाल लिया और अब तक 3 बार छूटा चुकी हूँ मैं और अभी भी यह तेरे लिए खड़ा है साला, चढ़ जा तू भी! यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !

अब मेरे से नहीं रहा गया और मैं बोला- चाची कुछ तो ख्याल करो, मैं थक गया हूँ बहुत, थोड़ी देर बाद करना जो भी करना है। ऊषा बोली- मम्मी आप अभी सोमू को रेस्ट करने दो, तब तक हम अपना खेल करते हैं। क्यों? चाची बोली- ठीक है। तू आ जा मेरी साइड में!

ऊषा मेरी साइड को छोड़ कर चाची के साथ लेट गई, चाची ने तब ऊषा को होटों पर चूमा और अपने एक हाथ से छोटे छोटे मम्मों के संग खेलने लगी और दूसरे हाथ से उसकी सफाचट चूत को रगड़ने लगी।

दोनों की सफाचट चूत मैंने पहली बार देखी थी। माँ बेटी की चूत पर एक भी बाल नहीं था, जबकि गाँव वाली सब औरतें काली घनी बालों की घटा अपनी चूत के ऊपर रखती थी। चाची धीरे धीरे ऊषा के मम्मों को चूसते हुए नीचे की तरफ आ गई और उसका मुंह ऊषा की चूत पर था। ऊषा ने अपने चूतड़ चाची के मुंह के ऊपर टिका दिए थे और चाची अपनी जीभ उसकी भगनासा को चूसती हुई उसकी चूत के अंदर गोल गोल घुमा रही थी।

ऊषा का शरीर एकदम अकड़ा और उसने चाची का मुंह अपनी जाँघों में जकड़ लिया और वो ज़ोर ज़ोर से काम्पने लगी। तभी ऊषा ने अपना जिस्म ढीला छोड़ दिया।

कुछ देर आराम करने के बाद ऊषा उठी और मेरे लंड को खड़ा देख कर उसके ऊपर बैठने की कोशिश करने लगी। मैंने भी उसको घोड़ी बनाया और अपना खड़ा लंड उसकी चूत में पीछे से डाल दिया। उसकी चूत बहुत ही टाइट लगी मुझको और लंड बड़ी मुश्किल से अंदर जा रहा था।

लंड के घुसते ही चूत में बहुत गीलापन आना शुरू हो गया और फिर मैंने कभी तेज़ और कभी आहिस्ता धक्के मार कर ऊषा का पानी जल्दी ही छूटा दिया और वो कई क्षण मुझ से लिपटी रही। फिर हम तीनों बड़ी गहरी नींद में सो गए। कहानी जारी रहेगी। [email protected]

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