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हैलो दोस्तो, मेरा नाम राज शर्मा है। दिल्ली में रहता हूँ। उम्र 27 साल लम्बाई 5 फिट 6 इंच है और मैं अन्तर्वासना का नियमित पाठक हूँ। अभी मैं एक फ्लैट लेकर अकेला रहता हूँ। जब मैं दिल्ली के जमरूदपुर इलाके में किराए के मकान में अपने दोस्त के साथ रहता था। उस मकान में रहते हुए मैंने बगल वाली भाभी के साथ अपने चुदाई वाले रिश्ते बना लिए थे। भाभी को मैंने लगातार छः माह तक खूब चोदा। ये सब आपने मेरी पिछली कहानी के दो भागों में पढ़ा है। चूत चुदाने को बेताब पड़ोसन भाभी -1 चूत चुदाने को बेताब पड़ोसन भाभी -2 अब आगे..
फिर उनका इस फ्लैट से किसी वजह से जाना तय हो गया तो मैंने उन्हें अपने लौड़े के लिए कोई इंतजाम के लिए कहा तो भाभी ने कमरा छोड़ते वक्त मुझे बताया कि मकान मालकिन तेज है और प्यार को तड़फ रही है। इसलिए अब मैंने अपना सारा ध्यान मकान मालकिन की तरफ लगाना शुरू कर दिया।
इस बार किराया देने मैं उसके घर गया। उसने अपने बालों में मेहंदी लगा रखी थी इसलिए बाहर बरामदे में बैठी थी। उनके पास जाने का रास्ता कमरे के अन्दर से जाता था। मैंने आवाज दी तो बोली- यहाँ बरामदे में आ जाओ।
उसने सलवार-सूट पहना हुआ था.. उम्र कोई 45 साल की होगी.. पर 35 से ऊपर की नहीं लग रही थी, उसका गठीला बदन था और भरी-पूरी जवानी थी, उसके पति की मृत्यु हो चुकी थी व उसके साथ उसके एक लड़का व एक लड़की थे। दोनों इस समय कॉलेज गए हुए थे।
मैं- भाभी अन्दर आ जाऊँ। मकान मालकिन- क्यों रे.. तुझे मैं भाभी नजर आ रही हूँ। मैं- भाभी को भाभी ना कहूँ तो क्या कहूँ। मालकिन- मेरी उम्र का तो ख्याल कर जरा। मैं- क्यों 30 की ही तो लग रही हो। मैंने झूठ बोला।
मालकिन- अच्छा.. झूठ मत बोल। मैं- नहीं भाभी.. झूठ नहीं बोल रहा हूँ। आप तो इस उमर में भी हर मामले में जवान लड़कियों को फेल कर दोगी। वो भी हंसने लगी।
‘बोल.. क्यों आया है..?’ मैं- भाभी किराया देना था। मालकिन- ठीक है.. वहाँ सामने टेबल पर रख दे। मैं बाद में उठा लूँगी। अभी मैं जरा अपने बाल सुखा लूँ। मैंने भी पैसे टेबल पर रख दिए और चलने लगा- अच्छा भाभी चलता हूँ। मैंने आपको भाभी कहा आपको बुरा तो नहीं लगा? मालकिन- नहीं.. बुरा क्यों मानूंगी.. चल अब जा।
फिर मैं किसी ना किसी बहाने से उसके घर जाने लगा। धीरे-धीरे हमारी बोलचाल बढ़ गई और हम आपस में मजाक भी करने लगे। जिसका वो बुरा नहीं मानती थी। मेरी बातचीत में अब ‘आप’ की जगह ‘तुम’ ने स्थान ले लिया था।
एक दिन मैंने कहा- तुम चाय तो पिलाती नहीं.. कभी मेरे कमरे में आओ, मैं तुम्हें चाय पिलाऊँगा। मालकिन- अच्छा ठीक है.. कब आऊँ बता। मैं- तुम्हारा अपना मकान है। जब चाहो आओ। सुबह.. दोपहर.. शाम.. रात.. आधी रात.. तुमको कौन रोकने वाला है। यह कह कर मैं हँसने लगा।
मालकिन- चलो कल सुबह आऊँगी। अब वो धीरे-धीरे मेरे कमरे में आने लगी व चाय पीकर जाने लगी। इस बीच हम मजाक के बीच में आपस में छेड़खानी भी करने लगे.. जिसमें उसे बहुत मजा आता था। मुझे लगने लगा था.. अब इसकी चुदाई के दिन नजदीक आने वाले हैं और यह जल्दी ही मेरे लण्ड के नीचे होगी।
एक बार मेरा दोस्त एक हफ्ते के लिए गाँव गया था.. जिसके बारे में मैं उसे बातों-बातों में बता चुका था। एक दिन मैं शाम को अकेला था, सारे पड़ोसी पार्क में घूमने गए थे। वो आई और बोली- राज क्या कर रहे हो? मैं- कुछ नहीं भाभी, अकेला बैठा बोर हो रहा हूँ, आओ चाय पी कर जाओ। मालकिन- नहीं.. बच्चे टयूशन गए हैं अभी एक घण्टे में वापस आ जाएंगे। मैं भी चलती हूँ। मैं- चाय बनने में घण्टा थोड़े ही लगता है.. सिर्फ 5 मिनट की बात है.. आ जाओ ना।
वो मान गई और चारपाई पर बैठ गई। मैंने चाय बना कर दी और उनके बगल में बैठ कर चाय पीने लगा। उन्हें बगल में देख कर मेरा लण्ड खड़ा हो रहा था.. पर उन्हें चोदने का उपाय मेरे दिमाग में नहीं आ रहा था। फिर भी मैंने बात शुरू की.. शायद आज पट ही जाए।
मैं- भाभी एक बात पूछूँ.. बुरा तो नहीं मानोगी? मालकिन- पूछो क्यों बुरा मानूँगी भला? मैं- भाभी तुम दिन व दिन जवान और खूबसूरत होती जा रही हो.. इसका क्या राज है?
वो शरमाने लगी। मालकिन- नहीं तो.. ऐसी कोई बात नहीं। ऐसा तुम्हें लगता है। मैं- नहीं भाभी.. मैं सच बोल रहा हूँ। अब तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो। जी करता है कि.. मालकिन ने मेरी तरफ मस्ती से देखते हुए कहा- क्या जी करता है तेरा राज..? मैं- कि तुमको बाँहों में भरकर तेरे लबों को चूम लूँ। मालकिन- राज तुझे ऐसी बातें करते शरम नहीं आती? तू जरूर मार खाएगा आज!
मैं- अरे भाभी.. जो मन में था.. वो बोल दिया। अगर सच कहने में मार पड़ती है तो वो भी मंजूर है.. पर मारना तुम ही.. मालकिन- साले तू बड़ा बदमाश हो गया है.. बस अब मैं चलती हूँ।
मेरा तो दिमाग खराब हो गया। अपने से तो कुछ हुआ नहीं.. इसलिए मन ही मन ऊपर वाले से दुआ माँगी कि कुछ ऐसा कर दे कि ये खुद मेरे लण्ड के नीचे आ जाए।
कहते है ना कि सच्चे मन से किसी की लेनी हो तो वो मिलती ही है। वो जैसे ही उठने को हुई.. पता नहीं कहाँ से उनके सूट के अन्दर चींटी घुस गई। उन्होंने उसे निकालने के लिए अपना हाथ सूट के अन्दर डाला। वो पीछे को चला गया। मालकिन- राज कोई कीड़ा मेरे सूट के अन्दर चला गया है और मेरी पीठ पर रेंग रहा है.. उसे निकाल दो प्लीज।
मैं- भाभी उसके लिए मुझे अपना हाथ तुम्हारी पीठ पर लगाना होगा.. तुम कहीं नाराज ना हो जाओ। मालकिन- राज मजाक नहीं करो.. उसे जल्दी निकालो.. कहीं वो मुझे काट ना ले।
मैं उनके ठीक सामने खड़ा हो गया और हाथ को उनके सूट के अन्दर डालकर उनकी पीठ पर फिराने लगा। बड़ा अजीब सा मजा आ रहा था। कितने सालों के बाद उन्हें भी मर्द का हाथ मिल रहा था। उन्हें भी अच्छा लग रहा था। मालकिन- राज कुछ मिला। ‘नहीं भाभी.. ढूँढ रहा हूँ।’ तभी चींटी ने उनकी पीठ पर काट लिया। वो मुझसे चिपक गई।
मालकिन- उई.. राज.. उसने मुझे काट लिया.. प्लीज.. जल्दी बाहर निकालो उसे.. मैं- पर भाभी वो मिल नहीं रही है। मैंने हाथ फेरना चालू रखा। मेरी साँसें उनकी साँसों से टकरा रही थीं।
मालकिन- राज वो आगे की तरफ रेंग रही है.. जल्दी कुछ करो।
मैं- भाभी तब तो तुम सूट उतार कर उसे एक बार अच्छी तरह से झाड़ लो कहीं ज्यादा ना हों।
मालकिन- तुम्हारे सामने कैसे? मैं- तो क्या हुआ.. मैं दरवाजा बंद कर लेता हूँ और मुँह फेर लेता हूँ। मालकिन- ठीक है तुम मुँह उधर फेर लो।
मैंने दरवाजा बंद किया और मुँह फेर कर खड़ा हो गया। नीचे फर्श पर देखा तो चीनी का डब्बा खुला होने के कारण बहुत सारी चींटियाँ जमीन पर घूम रही थीं। मुझे अपने काम बनने की एक तरकीब सूझी, मैंने चार-पांच चीटियां उठाई और मुटठी में बंद कर लीं।
मालकिन- उसमें तो कुछ भी नहीं है। मैं- भाभी यहाँ देखो बहुत सारी चीटियाँ हैं शायद सलवार के सहारे चढ़ गई हों। आप मुँह फेर लो मैं देख लेता हूँ।
वो मुँह फेर कर खड़ी हो गई तो मैंने चैक करने के बहाने पीछे से उनके सलवार को थोड़ा सा खींचा और मुठ्ठी में दबाई हुई चीटियां उसके अन्दर डाल दीं.. जो जल्दी ही अन्दर घुस गईं।
मैं- भाभी तुम्हारी कमर पर व पीठ पर चींटी ने काटा है। पीठ लाल हो गई है। तुम कहो तो तेल लगा दूँ.. दर्द कम हो जाएगा। उनके ‘हाँ’ कहते ही मैंने तेल लगाने के बहाने उनकी पीठ और कमर को सहलाना शुरू कर दिया। उन्हें भी अच्छा लग रहा था।
मैं- भाभी तुम्हारी ब्रा को पीछे से खोलना पड़ेगा.. नहीं तो उसमें सारा तेल लग जाएगा। तुम आगे से उसे हाथ से पकड़ लो.. मैं पीछे से इसे खोल रहा हूँ।
‘ठीक है..’ वो बोली।
मैंने उनकी ब्रा खोल दी.. जिसे उन्होंने आगे से हाथ लगाकर संभाल लिया। मैं पूरी पीठ पर और कमर पर आराम से तेल लगा रहा था। जिससे उन्हें आराम मिल रहा था।
तभी नीचे सलवार में डाली चीटियों ने काम करना शुरू कर दिया। वो दोनों टाँगों से बाहर आने का रास्ता ढूँढने लगीं।
मालकिन- हाय राम.. लगता है चीटियां सलवार के अन्दर भी हैं.. वो पूरी टांगों पे रेंग रही हैं।
मेरा काम बनने लगा था। मैंने कहा- भाभी तब तो तुम जल्दी से सलवार भी उतार कर झाड़ लो.. कहीं गलत जगह काट लिया.. तो तुमको दर्द के कारण अभी डाक्टर के पास भी जाना पड़ सकता है।
मालकिन- मैं इस वक्त डाक्टर के पास नहीं जाना चाहती। वैसे भी कुछ देर में बच्चे आ जायेंगे। सलवार ही उतारनी पड़ेगी.. पर कैसे..? मैंने तो अपने हाथों से ब्रा पकड़ रखी है। मैं- भाभी तुम चिन्ता ना करो.. मैं तुम्हारी मदद करता हूँ।
मैंने उनकी सलवार का नाड़ा खोल दिया। सलवार फिसल कर नीचे गिर गई। उनकी लाल पैन्टी दिखाई देने लगी।
मैं पैन्टी को ही देखे जा रहा था और सोच रहा था कि अभी कितनी देर और लगेगी.. इसे उतरने में। कब इनकी चूत के दर्शन होंगे।
कहानी जारी रहेगी। आपको कहानी कैसी लगी। अपनी राय मेल कर जरूर बताइयेगा। [email protected]
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