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कहानी का पिछ्ला भाग : धोबी घाट पर माँ और मैं -11
मैं उठ कर बैठ गया और धीरे से माँ के पैरों के पास चला गया। माँ ने अपना एक पैर मोड़ रखा था और एक पैर सीधा करके रखा हुआ था, उसका पेटिकोट उसकी जांघों तक उठा हुआ था, पेटिकोट के ऊपर और नीचे के भागों के बीच में एक गैप सा बन गया था, उस गैप से उसकी जांघ, अन्दर तक नजर आ रही थी। उसकी गुदाज जांघों के ऊपर हाथ रख कर मैं हल्का सा झुक गया अन्दर तक देखने के लिये।
हाँलाकि अंदर रोशनी बहुत कम थी, परन्तु फिर भी मुझे उसकी काली काली झांटों के दर्शन हो गए। झांटों के कारण चूत तो नहीं दिखी, परन्तु चूत की खुशबू जरूर मिल गई।
तभी माँ ने अपनी आँखें खोल दी और मुझे अपनी जांघों के बीच झांकते हुए देख कर बोली- हाय दैया, उठ भी गया तू? मैं तो सोच रही थी, अभी कम से कम आधा घंटा शांत पड़ा रहेगा, और मेरी जांघों के बीच क्या कर रहा है? देखो इस लड़के को, बुर देखने के लिये दीवाना हुआ बैठा है। फिर मुझे अपनी बांहों में भर कर, मेरे गाल पर चुम्मी काट कर बोली- मेरे लाल को अपनी माँ की बुर देखनी है ना, अभी दिखाती हूँ मेरे छोरे। हाय मुझे नहीं पता था कि तेरे अंदर इतनी बेकरारी है बुर देखने की।
मेरी भी हिम्मत बढ़ गई थी- हाय माँ, जल्दी से खोलो और दिखा दो। ‘अभी दिखाती हूँ, कैसे देखेगा, बता ना?’ ‘कैसे क्या माँ, खोलो ना बस जल्दी से।’ ‘तो ले, ये है मेरे पेटिकोट का नाड़ा, खुद ही खोल के माँ को नंगी कर दे और देख ले।’ ‘हाय माँ, मेरे से नहीं होगा, तुम खोलो ना।’ ‘क्यों नहीं होगा? जब तू पेटिकोट ही नहीं खोल पायेगा, तो आगे का काम कैसे करेगा?’
‘हाय माँ, आगे का भी काम करने दोगी क्या?’ मेरे इस सवाल पर माँ ने मेरे गालों को मसलते हुए पूछा- क्यों, आगे का काम नहीं करेगा क्या? अपनी माँ को ऐसे ही प्यासा छोड़ देगा? तू तो कहता था कि तुझे ठण्डा कर दूँगा, पर तू तो मुझे गर्म करके छोड़ने की बात कर रहा है। ‘हाय माँ, मेरा ये मतलब नहीं था, मुझे तो अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा कि तुम मुझे और आगे बढ़ने दोगी।’
‘गधे के जैसा लण्ड होने के साथ-साथ तेरा तो दिमाग भी गधे के जैसा ही हो गया है। लगता है, सीधा खुल कर ही पूछना पड़ेगा- बोल चोदेगा मुझे, चोदेगा अपनी माँ को, माँ की बुर चाटेगा, और फिर उसमें अपना लौड़ा डालेगा? बोल ना?’ ‘हाय माँ, सब करूँगा, सब करूँगा, जो तू कहेगी वो सब करूँगा। हाय, मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा है कि मेरा सपना सच होने जा रहा है। ओह, मेरे सपनों में आने वाली परी के साथ सब कुछ करने जा रहा हूँ।’ ‘क्यों, सपनों में तुझे और कोई नहीं, मैं ही दिखती थी क्या?’ ‘हाँ माँ, तुम्ही तो हो मेरे सपनो की परी! पूरे गाँव में तुमसे सुन्दर कोई नहीं।’ ‘हाय, मेरे जवान छोकरे को उसकी माँ इतनी सुन्दर लगती है क्या?’ ‘हाँ माँ, सच में तुम बहुत सुन्दर हो और मैं तुम्हें बहुत दिनों से चो…ओ…!’ ‘हाँ हाँ, बोलना क्या करना चाहता था? अब तो खुल कर बात कर बेटे, शर्मा मत अपनी माँ से, अब तो हमने शर्म की हर वो दीवार गिरा दी है जो जमाने ने हमारे लिये बनाई है। ‘हाय माँ, मैं कब से तुम्हें चोदना चाहता था, पर कह नहीं पाता था।’
‘कोई बात नहीं बेटा, अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है, वो भला हुआ कि आज मैंने खुद ही पहल कर दी। चल आ देख अपनी माँ को नंगी, और आज से बन जा उसका सैयाँ।’ कह कर माँ बिस्तर से नीचे उतर गई और मेरे सामने आकर खड़ी हो गई, फिर धीरे धीरे अपने ब्लाउज़ के एक एक बटन को खोलने लगी। ऐसा लग रहा था जैसे चाँद बादलों में से निकल रहा है।
धीरे धीरे उसकी गोरी गोरी चूचियाँ दिखने लगी। ओह, गजब की चूचियाँ थी, देखने से लग रहा था जैसे कि दो बड़े नारियल दोनों तरफ लटक रहे हों, एकदम गोल और आगे से नुकीले तीर के जैसे! चूचियों पर नसों की नीली रेखायें स्पष्ट दिख रही थी, निप्पल थोड़े मोटे और एकदम खड़े थे और उनके चारों तरफ हल्का गुलाबीपन लिये हुए गोल घेरा था, निप्पल भूरे रंगे के थे।
माँ अपने हाथों से अपनी चूचियों को नीचे से पकड़ कर मुझे दिखाती हुई बोली- पसन्द आई अपनी माँ की चूचियाँ? कैसी लगी बेटा बोल ना? फिर आगे का दिखाऊँगी। ‘हाय माँ, तुम सच में बहुत सुन्दर हो। ओह, कितनी सुन्दर चु उ उ चियाँ हैं, ओह!’
माँ ने अपनी चूचियों पर हाथ फेरते हुए और अच्छे से मुझे दिखाते हुये हल्का सा हिलाया और बोली- खूब सेवा करनी होगी इनकी तुझे। देख कैसे शान से सिर उठाये खड़ी हैं इस उमर में भी। तेरे बाप के बस का तो है नहीं, अब तू ही इन्हें सम्भालना। कह कर वह फिर अपने हाथों को अपने पेटिकोट के नाड़े पर ले गई और बोली- अब देख बेटा, तेरे को ज़न्नत का दरवाजा दिखाती हूँ। अपनी माँ का स्पेशल मालपुआ देख, जिसके लिये तू इतना तरस रहा था। कह कर माँ ने अपने पेटिकोट के नाड़े को खोल दिया, पेटिकोट उसकी कमर से सरसराते हुए सीधा नीचे गिर गया और माँ ने एक पैर से पेटिकोट को एक तरफ उछाल कर फेंक दिया और बिस्तर के और नजदिक आ गई, फिर बोली- हाय बेटा, तूने तो मुझे एकदम बेशर्म बना दिया। फिर मेरे लण्ड को अपनी मुठ्ठी में भर कर बोली- ओह, तेरे इस सांड जैसे लन्ड ने तो मुझे पागल बना दिया है, देख ले अपनी माँ को जी भर कर।
मेरी नजरें माँ की जाँघों के बीच में तिकी हुई थी। माँ की गोरी गोरी चिकनी रानों के बीच में काली काली झांटों का एक त्रिकोण बना हुआ था। झांटें बहुत ज्यादा बड़ी नहीं थी। झांटों के बीच में से उसकी गुलाबी चूत की हल्की झलक मिल रही थी। मैंने अपने हाथों को माँ की जांघों पर रखा और थोड़ा नीचे झुक कर ठीक चूत के पास अपने चेहरे को ले जाकर देखने लगा।
माँ ने अपने दोनों हाथों को मेरे सिर पर रख दिया और मेरे बालों से खेलने लगी, फिर बोली- रुक जा, ऐसे नहीं दिखेगा, आराम से बिस्तर पर लेट कर तुझे दिखाती हूँ। ‘ठीक है, आ जाओ बिस्तर पर।’ माँ एक बार जरा पीछे घूम जाओ ना!’ ‘ओह, मेरा राजा मेरा पिछवाड़ा भी देखना चाहता है क्या? चल, पिछवाड़ा तो मैं तुझे खड़े खड़े ही दिखा देती हूँ। ले देख अपनी माँ के चूतड़ और गाण्ड को।’ इतना कह कर माँ पीछे घूम गई। मित्रो कहानी पूरी तरहा काल्पनिक है, आप मुझे मेल जरूर करें, ख़ास कर महिलायें अपने विचार जरूर बतायें। कहानी जारी रहेगी। [email protected]
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