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बिंदू और फुलवा का आपस का प्रेमालाप देख कर मन बड़ा विचिलत हो गया था। उधर फुलवा को शायद बिंदू के साथ प्रेम बहुत अच्छा लगा क्यूंकि वो भी उसके पीछे पीछे लगी हुई थी। मेरे सारे काम भुला कर बिंदू के पीछे लगी हुई थी। उसको बार बार याद करवाना पड़ रहा था कि मेरे स्कूल के कपड़े निकाल दो, मेरा नाश्ता इत्यादि ला दो लेकिन वो तो बिंदू की दीवानी हो कर उसके पीछे पीछे घूम रही थी। मैं हैरान था कि यह फुलवा को क्या जनून चढ़ा हुआ था… सोचा कि स्कूल से आ कर पूछूंगा।
स्कूल से आया तो देखा की फुलवा की आँखें तो बिंदू के ऊपर ही टिकी और उसके चेहरे से लग रहा था कि वो बिंदू की आशिक हो गई थी। मैंने फुलवा को बुला कर पूछा- क्या हुआ है उसको? वो बोली- कुछ नहीं हुआ है। ‘तो फिर यह बिंदू की दीवानी हुई क्यों घूम रही हो?’ वो बोली- नहीं तो। मैं तो वैसे ही हूँ जैसे कल थी।
‘अच्छा तो फिर तुम बिंदू के पीछे पीछे क्यों घूम रहीं हो?’ ‘वो क्या है उसको काम बताना पड़ता है न, नई है न!’ कहीं रात की उसका मुंह चुसाई ज्यादा अच्छी लगी क्या? ‘नहीं नहीं ऐसा कुछ नहीं।’ ‘चलो ठीक है, खाना खाने के बाद आना दोनों मेरे कमरे में!’
खाना खाने के बाद वो दोनों आई और नीचे चटाई बिछा कर लेट गई। फुलवा जो मेरे संग ही लेटी रहती थी, आज वो बिंदिया के साथ लेट गई और लेटते ही उसके होटों को चूमने लगी। बिंदिया तो मुझको देख रही थी, मैंने उसको आँख का इशारा किया कि वो फुलवा के साथ लगी रहे।
फिर फुलवा ने उसका ब्लाउज खोल दिया और उसके मम्मों को चूसने लगी। बिंदिया ने भी उसकी धोती को उल्टा दी और उसको नंगी कर दिया और वो फुलवा के साथ वैसे ही खेलने लगी जैसे एक मर्द औरत के साथ खेलता है।
तभी फुलवा अपनी चूत उघाड़ कर बिंदू के मुंह की तरफ बार बार लाने लगी। अब बिंदू ने फुलवा की चूत को चाटना शुरू कर दिया और फुलवा के मुंह से हलकी सी सिसकारी निकलने लगी, यह नज़ारा देख कर मैं भी अपना आप खो रहा था और कपड़े उतार कर मैं भी खड़े लंड को लेकर दोनों के साथ लिपट गया।
जाने क्या सूझी कि मेरा मुंह बिंदू की खाली चूत की तरफ बढ़ गया और पहले उसको सूंघा और फिर जीभ उसकी चूत पर टिका दी और हाथों से बिंदू के मम्मों को मसलने लगा। जीभ का जैसे ही बिंदू की चूत पर लगना था कि वो अपनी कमर उठा कर मेरे मुंह को चूत में घुसाने के कोशिश करने लगी। मैं भी लपालप जीभ से उसकी चूत को चाटने लगा। उसके चूत में से बड़ी मादक ही सुगन्धि आ रही थी, मैं एकदम पागल हो गया और एक ऊँगली को बिंदू की चूत में डाल कर गोल गोल घुमाने लगा और जीभ से उसका भग्नासा चूसता रहा। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
थोड़ी देर में ही बिंदू ज़ोर ज़ोर से काम्पने लगी और उधर फुलवा भी झड़ चुकी थी और बिंदू के मुंह को चूत में घुसड़ने की कोशिश कर रही थी। मेरा तो छूटा नहीं था तो मैंने अपना खड़ा लंड बिंदू की टाइट चूत में डाल दिया और तेज़ी से धक्के मारने लगा। मैं इतना उत्तेजित हो चुका था कि कुछ धक्कों में ही मैंने फ़व्वारा बिंदू की चूत में छोड़ दिया। हम तीनों एक दूसरे से चिपके हुए लेटे थे, एक अजीब सी खुमारी हम तीनों पर छा गई थी।
कुछ देर ऐसे ही पड़े रहने के बाद हम उठ कर बैठ गए और दोनों लड़कियाँ बाहर चली गई, शायद नौकरों के गुसलखाने की ओर गई होंगी। उनके जाने के बाद मैं बड़ी गहरी नींद में सो गया।
रात को मैंने फुलवा से पूछा कि आज क्या बना है खाने में? तो वो बोली- आज तो सिर्फ दाल सब्ज़ी है। मैंने फुलवा को कहा कि वो रसोइये को बुलाये, मैंने उससे कुछ कहना है।
जब रसोइया आया तो मैंने उसको डांट कर कहा- यह क्या आप रोज़ दाल सब्ज़ी बना देते हो? कभी कुछ मुर्गा शुर्गा भी बनाया करो ना। हमारा रसोईया थोड़ा बुज़ुर्ग था, वो बोला- छोटे मालिक, हुक्म करो, जो कहो बन जाएगा। वैसे मालिक और मालिकन तो बाहर खाना खा रहे हैं।
‘अच्छा तो ऐसा करो कि एक पूरा तंदूरी मुर्गा बना दो और मुझ को रात को परोस देना मेरे कमरे में, साथ में कुछ नान भी बना लेना। ठीक है?’
वो सर हिलाते हुए चला गया। उसके जाने के बाद मैंने फुलवा को कहा- रात को तुम दोनों खाना मेरे कमरे में मेरे साथ खाओगी। वो भी मुस्कराते हुए चली गई और मैं भी रात को आने वाले आनन्द के बारे में सोचते हुए अपनी पढ़ाई में लग गया।
रात को दोनों आ गई। फुलवा ने तो वही सादी धोती पहन रखी थी लेकिन बिंदू काफी रंगदार साड़ी पहने हुए थी।
फिर फुलवा गर्म गर्म तंदूरी मुर्गा ले आई और साथ में नान। हम तीनों ने जी भर के खाया। फुलवा ने पहले कभी नहीं खाया था ऐसा मुर्गा लेकिन बिंदू ने खाया था क्यूंकि क्योंकि उसका पति शौक़ीन था। खाने के बाद हम तीनों ने सोडा लेमन भी पिया।
फिर हम बातें करने लगे और बातों में ही बिंदू ने बताया कि उसकी सहेली चंदा भी चुदवाने की बहुत शौक़ीन है। उसका पति अक्सर काम धंधे के सिलसिले में बाहर जाता रहता है और हफ्ते भर गायब रहता है और चंदा को तो रोज़ रात को लंड चाहिए ऐसा वो खुद कहती है। ‘अभी तक उसके कोई बच्चा नहीं हुआ। छोटे मालिक… अगर बुरा न माने तो उसको भी प्रेमरस पिला दो थोड़ा सा?’
मैं हैरान हो गया कि यह क्या कह रही है? मेरे घर वालों या गाँव वालों को पता चला तो वो मुझको मार देंगे, ऐसा विचार मेरे मन में आया ‘क्या मैं एक सरकारी सांड हूँ जो हर एक गाय पर चढ़ जाता है?’ मैंने साफ़ मना कर दिया, मैंने बिंदू को कहा- देख बिंदू, तेरे साथ मेरा सम्बन्ध बना फुलवा के कारण। उसने बताया था कि तुम भी लंड की बहुत प्यासी हो तो मैं मान गया। लेकिन चंदा का घर वाला यहीं है, उसने पकड़ लिया या उसको पता लग गया तो अनर्थ हो जायेगा।
बिंदू बोली- नहीं मालिक, आप उसको किसी ऐसी जगह बुला सकते हैं जो कम लोगों को मालूम हो? ‘वो तो मैं कर सकता हूँ। लेकिन इसके बारे में सोचना पड़ेगा। अच्छा मेरे इम्तेहान खत्म होने दो उसके बाद देखेंगे।’ ‘अच्छा बिंदू यह बताओ, तुम्हारा पति तो तुम को अच्छा चोदता था फिर भी तुमको बच्चा क्यों नहीं हुआ?’ बिंदू बोली- क्या मालूम छोटे मालिक, मैंने तो सरकारी अस्पताल में भी दिखाया था और उन्होंने तो कहा था कि सब ठीक है। लगता है मेरे मर्दवा ही में कुछ कमी है। ‘कब आ रहा है तेरा मर्द?’ ‘शायद अगले महीने आ जाएगा।’
‘अच्छा और फुलवा, तेरा मर्द कब आ रहा है?’ ‘वो तो किसी टैम आ सकता है, चंपा का पति बता रहा था कि वो भी छुट्टी ले रहा है और जल्दी आ जाएगा।’ ‘मेरा क्या होगा तेरे बिन फुलवा?’ ‘क्यों छोटे मालिक, मेरे बाद बिंदू है न… आपकी हर तरह की सेवा करेगी। क्यों बिंदू करेगी न? वैसे बिंदू छोटे मालिक हर तरह तेरी मदद करेंगे, पैसे और कपड़े लत्ते से, क्यों छोटे मालिक करोगे न? मैंने कहा- यह भी कोई कहने की बात है। फुलवा, ला वो मेरा बटुवा दे।
फुलवा ने बटुवा दे दिया और मैंने दोनों को 100-100 रूपए इनाम में दे दिए। दोनों बहुत खुश हो गई, वो अपनी चटाई पर सो गईं और मैं पलंग पर सो गया, लेटे हुए सोचने लगा अगर बिंदू के बाद यह चंदा भी मिल जाती है तो क्या फर्क पड़ता है। फिर ख्याल आया कि चंदा काफी खाई खेली है यौन के मामले में। कहीं कोई बवाल न खड़ा कर दे मेरे जीवन में क्यूंकि वो काफी चंट्ट लग रही है। मन ही मन फैसला किया कि देखेंगे वक्त आने पर। कहानी जारी रहेगी। [email protected]
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