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शायरा तो उसकी धक्का लगवाने की बात से शर्म पानी पानी ही हो गयी थी … मगर इन सब बातों में मैं पक्का बेशर्म हूँ इसलिए मैं मजा लेता रहा.
दोस्तो, मैं महेश … अपनी प्यारी शायरा की प्रेम और सेक्स कहानी में फिर से हाजिर हूँ. अब तक आपने पढ़ा था कि शायरा और मैं पैदल ही घर वापस चल पड़े थे.
अब आगे:
मैं- वैसे मेरा तो ठीक है, पर तुम बस से क्यों गईं, तुम्हारे पास तो स्कूटी भी है? वो- हां, पर मुझे चलानी नहीं आती.
मैं अब जोरों से हंसने लगा.
मैं- तो क्या उसे बस खड़ा करके दिखाने के लिए ही खरीदा है? मैंने हंसते हुए कहा, जिससे वो थोड़ी खीज सी गयी.
वो- इसमें हंसने की क्या बात है, बहुत से लोगों के पास कार होती है, पर सबको चलानी आती है क्या? मैं- हां, पर वो ड्राईवर रखते हैं. एक काम करो तुम ना स्कूटी चलाने के लिए मुझे ड्राईवर रख लो.
वो- हां ये सही रहेगा, वैसे सैलरी क्या लोगे? मैं- बस ज्यादा नहीं, अपने हाथों का बना रोज टेस्टी टेस्टी नाश्ता करवा देना.
मैंने एक हाथ को मुँह पर फिराते हुए कहा, जिससे वो भी हंसने लगी.
वो- वो तो तुम वैसे भी नहीं छोड़ने वाले, मेरे मना करने पर भी खाने आ ही जाओगे. मैं- फिर तो डील पक्की, आज से मैं तुम्हारा ड्राईवर हुआ.
मैं और शायरा चलते हुए आधी दूर ही आए थे कि तभी हल्की हल्की बारिश होनी शुरू हो गयी. अब इतनी दूर से हम वापस भी नहीं जा सकते थे और पास में कोई छुपने के लिए जगह भी नहीं थी.
वहां पर ना तो कोई दुकान थी और ना ही कोई घर था, बस एक दो बड़े बड़े पेड़ ही थे … जिनके नीचे अब कुछ दो पहिया वाहन वाले जा जाकर खड़े होने लग गए.
जैसे ही बारिश शुरू हुई, हम दोनों भी भागकर पास के ही एक पेड़ के नीचे जाकर खड़े गए … मगर बारिश पहले तो धीरे धीरे हुई, फिर तेज हवा के साथ जोरों से होने लगी.
तेज बारिश में वो पेड़ कब तक पानी रोक पाता. हवा के साथ साथ बारिश का पानी भी चारों तरफ से हमारे ऊपर गिरने लगा. जिससे हम दोनों … हम दोनों ही क्या, उस पेड़ के नीचे खड़े सभी लोग ही भीगने लगे.
शायरा भी लगभग सारी भीग गयी थी जिससे उसका सफेद रंग का पतला सा कुर्ता उसके बदन से चिपक गया था और उसकी गुलाबी ब्रा के साथ उसके शरीर के सारे कटाव एकदम उजागर हो गए.
आज मुझे पता चला कि वो देखने में तो सुन्दर थी ही, उसका बदन भी कम मादक नहीं था.
उसका 33-26-34 का एक मस्त कर देने वाला फिगर और गोरा बदन था. ऊपर से उसकी लम्बाई के कारण बिल्कुल कहर ही बरपा रहा था.
उस पेड़ के नीचे खड़े सब लोग बस उसका भीगा बदन ही देख रहे थे. जिनमें से कुछ लड़के तो मेरे होते हुए भी शायरा को लाइन मारने लगे. उनके भी आज तो मज़े हो गए थे.
शायरा को भी इस बात का अहसास था इसलिए उसने अब अपने दुपट्टे को सही से करके अपनी चूचियों को छुपा लिया.
शायरा ने ऊपर तो पतला सा कुर्ता पहना ही हुआ था, नीचे भी उसने सफेद रंग की पतली और एकदम स्कीन टाईट लैग्गीस पहनी हुई थी और वो भी अब भीगकर उसके नितम्बों से चिपक गयी थी.
आगे से तो उसने अपनी चूचियों को ढक लिया … मगर पीछे से उसकी गुलाबी पैंटी और नितम्बों का उभार भी साफ नजर आ रहा था.
मेरा कॉलेज पैदल आना जाना रोज का काम था, इसलिए धूप से बचने के लिए और पसीना पौंछने के लिए मैं हमेशा अपने साथ एक पतला सा टावल रखता था, जिसको मैंने अब अपने बैग से बाहर निकाल लिया और शायरा को देते हुए कहा.
मैं- ये ले लो. वो- मैं इसका क्या करूं?
मैं- तुम ना इसको अपनी कमर पर बांध लो. वो- क्यों … क्या हुआ?
मैं- मैं कह रहा हूँ … तो बस बांध लो इसे. वो- पर बात क्या है? मैं- तुम खुद पीछे देख लो.
अचानक शायरा ने पीछे देखा, तो वहां पर खड़े सारे लोग सकपका गए और तुरन्त इधर उधर देखने लगे. उनको देखकर अब शायरा भी समझ गयी कि वो सब क्या देख रहे थे. उसने वो तौलिया मुझसे ले लिया और अपनी कमर पर बांधकर अपनी गांड को भी छुपा लिया.
वैसे तो उसको मुझे थैंक्स कहना चाहिये था … पर उसको शर्म आ रही थी इसलिए वो बस हल्का सा मुस्कुरा कर रह गयी. मगर शर्म से उसके गाल लाल हो गए थे.
हम दोनों बहुत ही फास्ट चल रहे थे. शायद शायरा की तरफ से तो ग्रीन सिग्नल था. वो भी समझ रही थी कि मैंने क्यों उससे दोस्ती की है मगर फिर भी वो मेरे साथ दे रही थी.
शर्म के मारे शायरा तो अब कुछ बोल भी नहीं पा रही थी, इसलिए मैंने ही पहल की- अब भीग तो गए ही हैं, तो चलो घर ही चलते हैं. मैंने शायरा की ओर देखते हुए कहा.
वो- हां.हां … चलो … चलते है यहां से. शायरा ने कहा और जल्दी से आगे होकर चल पड़ी.
हम दोनों बारिश में भीगते हुए फिर से पैदल चलने लगे. मुझे तो वैसे ही बारिश में भीगने में मजा आता है, ऊपर से शायरा जैसी हसीन लड़की के साथ में तो ये मजा और भी दोगुना हो गया.
कसम से शायरा के साथ इस तरह बारिश में भीगते हुए पैदल चलने में इतना मजा आ रहा था कि बस लगा कि मैं उसके साथ ऐसे ही पैदल चलता रहूँ.
ये मेरे लिए बिल्कुल एक अलग ही अनुभव था. मैं तो अपनी मस्ती में मस्त था, मगर शायरा अब भी शर्म के कारण कुछ बोल नहीं रही थी. इसलिए मैंने ही उसकी ये झिझक खोलने की सोची.
बारिश जोरों से हो रही थी, जिससे अब रास्ते में काफी जगह रोड़ पर पानी इकट्ठा हो गया था. मैं अब उस पानी को पैरों से ही उड़ाते हुए चलने लगा … और कहीं कहीं जहां ज्यादा पानी था, वहां तो उसमें उछल उछल कर कूदने भी लगा, जिसे देख शायरा भी हंसने लगी.
वो- क्या कर रहा है ये बच्चों के जैसे? मैं- अरे मजा आ रहा है … तुम भी आ जाओ.
वो- नहीं, तुम ही करो. लगता तुम्हें बारिश में भीगना काफी भीगना पसंद है? मैं- हां … बहुत मजा आता है. तुम्हें नहीं पसन्द क्या?
वो- है तो पर … अभी नहीं. मैं- क्यों … अच्छा अच्छा … वो कपड़ों की वजह से मना कर रही हो, पर यहां रोड पर कौन देख रहा है … सब लोग तो छुपे बैठे हैं.
वो- और तुम, तुम नहीं हो क्या? मैं- मैं तो तुम्हारा दोस्त हूँ. वो- अच्छा … तुम दोस्त हो, तो मैं ऐसे ही रहूँ. बस रहने दे और अब चुपचाप घर चलो.
हम दोनों को बातें करते करते पता ही नहीं चला कि कब हम घर आ गए.
घर आकर हम दोनों ने अब साथ में ही चाय पी, जो कि शायरा ने मुझे पिलाई. फिर मैं अपने कमरे में आ गया.
अगले दिन तैयार होकर मैंने फिर से शायरा का दरवाजा खटखटा दिया- मैडम चलें? ड्राईवर तैयार है. वो- अरे … मैं तो भूल ही गयी थी, रुको एक मिनट, मैं चाबी लेकर आती हूँ. ये कहते हुए शायरा कमरे में चली गयी और कुछ देर बाद ही एक हाथ में स्कूटी की चाबी ले आई.
वो- ये लो … पर देख लेना उसमें पैट्रोल भी है या नहीं, बहुत दिनों से ऐसे ही खड़ी है. इतनी जल्दी स्टार्ट भी नहीं होगी.
मैं- अरे … सारी हिदायतें ही दोगी या फिर मेरी सैलरी का भी कुछ करोगी? इस पापी पेट का सवाल है भई. तुम्हारी वजह से मैं लेट भी हो गया और अब तो होटल भी.
शायर होटल सुनकर हंसने लग गयी और हंसते हुए ही बोली- हां हां तुम्हारा होटल बन्द हो गया होगा … अब ये नाटक बन्द करो और अन्दर आ जाओ.
मैंने और शायरा ने अब साथ में बैठकर नाश्ता किया. फिर हम नीचे स्कूटी के पास आ गए. वैसे तो स्कूटी नयी ही थी, पर काफी दिनों से खड़ी हुई थी, जिसके कारण थोड़ी बहुत उसने दिक्कत तो की, पर फिर भी मैंने उसे स्टार्ट कर ही लिया.
शायरा को तो स्कूटी चलानी आती नहीं थी, इसलिए सबसे पहले मैंने स्कूटी से शायरा को उसके बैंक छोड़ा, फिर स्कूटी को लेकर अपने कॉलेज आ गया.
सुबह सुबह तो सब ही अपनी अपनी जल्दी में होते हैं … इसलिए मेरे और शायरा के ऊपर किसी ने ध्यान नहीं दिया. मगर शाम को जब मैं शायरा को लेने उसके बैंक गया तो शायरा को मेरे पास आते देख उसके साथ ही दो लड़कियां और भी वहां आ गईं.
उनमें से एक तो शायद शादीशुदा थी और दूसरी शायद शायरा की ही उम्र की थी पर वो शायद कुंवारी थी.
मैंने घर जाने के लिए स्कूटी को स्टार्ट किया ही था कि तब तक वो बोल पड़ी- अरे शायरा ये कौन है … सुबह भी तुम्हें छोड़ने आया था? शायरा- अरे ये वो …
शायरा ने बस इतना ही कहा था कि वो लड़की बीच में ही बोल पड़ी- और कौन हो हो सकता है … तुम भी ना अजीब सवाल पूछती हो? औरत- तुम्हारा हज़्बेंड? वो लड़की- और नहीं तो कौन हो सकता है … बाकी किसी को ये घास भी डालती है … तुम भी ना?
उस औरत ने मुझे ऊपर से नीचे घूरकर देखा.
वो औरत- वैसे तुम्हारा हज़्बेंड है तो हैंडसम. दोनों की जोड़ी मस्त है. वे दोनों हमें पति पत्नी समझ रही थीं. मेरे लिए तो ये गुड न्यूज़ थी, मगर शायर अब थोड़ी असमान्य महसूस करने लगी.
औरत- क्या नाम है आपका और आप विदेश से कब वापस आए? मैं- जी म..महेश, महेश है मेरा नाम.
शायरा- अरे … ये वो. शायरा हकलाने लगी.
वो लड़की- चल अब देर क्यों कर रही है … नहीं तो बस निकल जाएगी और बारिश भी आने वाली है. औरत- हां हां चल, बाद में बात करते हैं.
वो लड़की व औरत मुझसे और भी बातें करतीं … मगर उस दिन भी बारिश का मौसम बना हुआ था और कभी भी बारिश आ सकती थी. इसलिए वो दोनों जल्दी से वहां से चली गईं.
शायरा तो मुझसे अब नज़र ही नहीं मिला रही थी मगर मैं अब थोड़े मज़ाक के मूड में आ गया था.
मैं- तो चले डियर वाइफ? शायरा- क्या?
मैं- अरे मज़ाक कर रहा हूँ. वो- ये लड़कियां भी ना!
मैं- वैसे कौन थीं ये? वो- मेरे साथ बैंक में ही काम करती हैं, उनकी ये ग़लतफहमी दूर करनी होगी.
ये कहते हुए शायरा उचक कर मेरे पीछे स्कूटी पर बैठ गयी.
मैं- वैसे मुझे तो कोई प्राब्लम नहीं है. वो- तुम अब लिमिट क्रॉस कर रहे हो. मैं- सॉरी, मैं तो बस मज़ाक कर रहा था.
शायरा ने अब आगे कुछ कहा तो नहीं, मगर उसके चेहरे पर मुस्कान सी फैल गयी थी. ये मैंने स्कूटी के शीशे में देख लिया.
वो- चलो अब! मैं- हां … हां … चल ही तो रहा हूँ.
ये कहते हुए मैंने भी अब स्कूटी को आगे बढ़ा दिया. अब जिस रास्ते हम जा रहे थे, उसी रास्ते वो औरत व लड़की भी पैदल गयी थीं, इसलिए थोड़ा सा आगे चलते ही वो दोनों हमें फिर से मिल गईं. उस औरत व लड़की ने जैसे ही हमें देखा तो उस लड़की ने हंसते हुए मेरी तरफ अपना हाथ हिला दिया. अब बदले में मुझे भी तो कुछ करना था, इसलिए मैंने भी स्कूटी को थोड़ा धीरे करके उसकी तरफ अपना हाथ हिला दिया.
जिससे शायर ने अब झूठा गुस्सा दिखाते हुए मेरी पीठ पर हल्का सा एक मुक्का लगा दिया.
मैं- अब क्या हुआ? वो- तुम चलोगे या फिर इनके साथ ही जाना है? मैं- चल तो रहा हूँ.
मैंने फिर से स्कूटी की स्पीड बढ़ा दी मगर थोड़ा सा चलते ही स्कूटी बन्द हो गयी. मैंने एक दो बार उसे स्टार्ट करने की भी कोशिश की मगर वो अब स्टार्ट ही नहीं हुई.
वो- इसे क्या हुआ? मैं- पता नहीं? स्टार्ट नहीं हो रही.
वो- तो अब क्या करें? मैं- कोई नहीं, यहां पास में ही एक मैकेनिक की दुकान है, वहां ले चलते हैं.
वो- और वहां तक? मैं- वहां तक तुम धक्के लगाओ.
वो- यहां बाजार में मुझसे अब धक्के लगवाओगे. मैं- अच्छा तो फिर आगे आकर ये हैंडल पकड़ लो. मैं धक्के लगाता हूँ.
हम दोनों अब स्कूटी से नीचे उतर गए. मजबूरी थी, इसलिए शायरा ने स्कूटी का हैंडल पकड़ लिया और मैं पीछे से धक्के लगाने लगा.
हम धीरे धीरे स्कूटी चला रहे थे कि तब तक पीछे से वो लड़की और वो औरत भी आ गईं और हम चारों अब साथ में चलने लगे.
वो औरत- क्या हुआ? शायरा- पता नहीं स्टार्ट नहीं हो रही.
वो लड़की- अरे शायरा जीजा जी से यहीं धक्के लगवाती रहेगी या घर पर भी कुछ लगावाएगी?
वो लड़की तो बड़ी तेज निकली. उसने हंसते हुए कहा और शायरा के हाथ पर चींटी काट ली.
शायरा तो उसकी धक्का लगवाने की बात से शर्म पानी पानी ही हो गयी थी … मगर इन सब बातों में मैं पक्का बेशर्म हूँ इसलिए मैं मजा लेता रहा.
मैं- अजी … धक्के लगाने में तो मैं एक्सपर्ट हूँ. जब शुरू करता हूँ तो फिर रुकता नहीं. मैंने भी हंसते हुए कहा, जिससे वो लड़की भी हंसने लगी.
लड़की- क्यों शायरा … ऐसा है क्या? उस लड़की ने हंसते हुए कहा मगर बेचारी शायरा तो शर्म से अब कुछ बोल भी नहीं पा रही थी. बस नीची गर्दन करके रह गयी. इसलिए मैंने ही जवाब दिया.
मैं- हां … आप भी कभी मौका दो तो बताएं!
मेरी इस बात पर वो लड़की भी झेंप गयी और उसकी आगे कुछ बोलने की हिम्मत ही नहीं हुई.
तब तक मैकेनिक की दुकान भी आ गया थी, इसलिए मैं और शायरा तो स्कूटी को लेकर मैकेनिक के पास रुक गए और वो औरत व लड़की सीधा बस स्टॉप के लिए आगे चली गईं.
जैसे ही वो दोनों आगे गई … शायरा- क्या बकवास कर रहे थे ये तुम? मैं- मैं क्या बकवास कर रहा था … वो ही उल्टा सीधा बोल रही थी.
वो- तो तुमको क्या जरूरत थी उससे फ़ालतू बात करने की! मैं- उसको चुप भी तो कराना जरूरी था, नहीं तो वो ऐसे ही कुछ ना कुछ बकती रहती … और तुम ऐसे ही शर्माती रहती.
वो- मैं क्यों शर्माऊँगी. मैं- और नहीं तो क्या … तुम शर्मा ही तो रही थीं. जब वो लड़की बोल रही थी, तब उसे तो तुमने कुछ कहा नहीं और अब मुझको सुना रही हो. वो- उसको क्या बोलना … वो तो है ही ऐसी … पर तुम तो चुप रह सकते थे.
शायरा मुझे झूठमूठ का डांट तो रही थी मगर शर्म से उसके गाल लाल हो रहे थे. उसने मुझसे नजरें मिलाकर बात नहीं की, बस इधर उधर ही देखती रही ताकि मैं शर्म से उसके चेहरे पर आई मुस्कान को ना देख सकूं.
खैर … स्कूटी में ज्यादा दिक्कत नहीं थी, बस स्पार्क प्लग में ही कुछ दिक्कत थी. हम बातें कर थे कि तब तक मैकेनिक ने उसे ठीक कर दिया और फिर से घर के लिए चल पड़े.
बारिश का मौसम तो पहले हो रखा था, अब जैसे ही हम वहां से निकले रास्ते में ही हल्की हल्की बारिश होना शुरू हो गयी. हम दोनों भीग ना जाएं … इसलिए मैं भी अब स्कूटी को थोड़ा तेज स्पीड से चलाने लगा.
हम गली के मोड़ पर पहुंचे ही थे कि अचानक से अब एक बच्चा आगे आ गया. बच्चे को देखते ही मैंने भी अब जोर से ब्रेक लगा दिए. मैं स्कूटी को स्पीड से तो चला ही रहा था … अब अचानक से मैंने जैसे ही ब्रेक लगाए तो शायरा सीधा मेरे ऊपर आ गई.
शायरा के चुभने में नर्म और दिखने में सख्त मम्मे मेरी पीठ पर लगे तो मेरी मस्ती बढ़ गई.
अब आगे क्या हुआ … ये अगले भाग में लिखूंगा. आप मेल करते रहिएगा. [email protected]
कहानी जारी है.
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