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Most Popular Stories Published in June 2015 प्रिय अन्तर्वासना पाठको जून महीने में प्रकाशित कहानियों में से पाठकों की पसंद की पांच कहानियां आपके समक्ष प्रस्तुत हैं…
दोस्तो, वैसे तो मेरी कहानी के शीर्षक ने ही आपको बता दिया है कि कहानी किस विषय से संबन्धित है पर यह एक सच्ची बात है जो पिछले महीने ही मेरे साथ घटित हुई है। मैं आपके मनोरंजन के लिए इसमें थोड़े मसाले डाल के पेश करूंगा, तो अपनी अपनी चड्डी में हाथ डालो और कहानी पढ़ कर मज़े लो।
मेरा नाम विनय कपूर है और दिल्ली में रहता हूँ। उम्र 52 साल, पत्नी 49 साल, बेटी 24 साल की है, अभी 6 महीने पहले ही उसकी शादी हुई है। बेटी की शादी में ही मुझे मेरी समधन बहुत भा गई। करीब 45 साल की, गोरी चिट्टी, और खूब भरवां बदन। सच कहता हूँ उसको देख के दिल में ख्याल आया कि अगर इसको चोदने को मिल जाए तो ज़िंदगी का मज़ा आ जाए।
मैंने यह भी नोटिस किया कि वो भी बड़े ध्यान से मुझे देखती, मेरी हर बात में इंटरेस्ट दिखाती। उसका नाम सुमन चोपड़ा है, एक हाई स्कूल में वाइस प्रिन्सिपल है। पढ़ी लिखी, और खुद को बहुत अच्छी तरह से संभाल के रखा है उसने।
खैर मैं तो बेटी वाला था सो अपने दिल को काबू में ही करके रखा। शादी ठीक ठाक हो गई, मगर उसके बाद जब भी हमारी मुलाक़ात होती वो हर बार मेरे साथ कुछ ज़्यादा ही फ्री होने की कोशिश करती।
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रोमा कुछ देर तो जिस्म को इधर-उधर हिलाती रही.. जब उसका सब्र टूट गया तो बोल पड़ी- आह.. क्या आप भी.. थोड़ा ज़ोर से दबाओ ना.. ऐसे मज़ा नहीं आ रहा। नीरज- मेरी जान.. जब ज़्यादा आगे बढूँगा.. तो रोक दोगी.. इसलिए ऐसे ही ठीक है.. रोमा- नहीं रोकूंगी.. करो ना प्लीज़।
नीरज को बस रोमा की ‘हाँ’ का इंतज़ार था.. अब वो जंगली बन गया था। रोमा के मम्मों को ज़ोर-ज़ोर से मसलने लगा था।
रोमा- आह.. हाँ ऐसे ही करो.. आह.. ब्रा निकाल दो.. आह.. चूसो मेरे मम्मों को.. आह.. कल बहुत मज़ा आया था.. आह.. आज भी वैसा मज़ा दो ना..
नीरज ने ब्रा निकाल दी.. अब रोमा के कड़क मम्मे आज़ाद हो गए थे.. जिन पर नीरज भूखे कुत्ते की तरह टूट पड़ा.. वो निप्पल को दाँतों से हल्का काटने लगा और साथ ही मम्मों को चूसता रहा जिससे एक मीठी टीस सी रोमा की चूत में उठने लगी.. वो चुदास से भर कर तड़पने लगी।
रोमा- आह.. आईईइ.. नीरज आह.. मेरे नीचे कुछ करो ना.. आह.. बहुत गुदगुदी हो रही है आह..
नीरज ने रोमा की पैन्टी भी निकाल दी अब वो रोमा की कच्ची चूत को जीभ से चाटने लगा था। रोमा- आह.. नीरज मज़ा आ गया आह.. उह.. आज तो कल से भी ज़्यादा मज़ा आ रहा है आह..
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This is more a Love Story than a Sex Story
निशा- कहाँ चल दिए आप..? अपना पता कहीं भूल तो नहीं गए? मैं- किसी की प्यार भरी आँखें मुझे कुछ याद रहने दे तब न.. तुम चलो.. मैं आता हूँ। अब ये मत पूछना कि कब आओगे? निशा- ठीक है जी.. जैसा आप कहें।
मैं तृषा की कार में बैठ गया.. आज मैं ड्राइव कर रहा था। तृषा- क्या हुआ..? आज ड्राइव कर रहे हो। मैं- तुम्हारे साथ दोनों हाथ फ्री रहने का भी फायदा नहीं है। वैसे भी मुझे अखबारों की सुर्खियाँ बनने का शौक नहीं है। तृषा- तो एक्टिंग में क्यूँ आए। कुछ और बन जाते.. क्यूंकि यहाँ तो आपकी छींक भी.. सुर्खियाँ बनाने के लिए काफी है। मैंने हंसते हुए कहा- अब कल की कल देखेंगे।
बरसात तेज़ हो रही थी और शीशे पर ओस की बूंदें जमनी शुरू हो गई थीं। मैंने गाड़ी को साइड में रोक दिया। क्यूंकि सामने कुछ दिख ही नहीं रहा था।
तृषा- गाड़ी क्यूँ रोक दी है.. आपके इरादे मुझे ठीक नहीं लग रहे हैं। मैंने अपने होंठों पर हाथ फिराते हुए कहा- कुछ कहने की ज़रूरत है क्या? अब समझ भी जाओ। फिर से हम गले मिल चुके थे.. हमारी साँसें अब तेज़ हो चली थीं।
मैंने खिड़की को थोड़ा सा खोल लिया। अब बारिश की बूंदें छिटक कर हमारे जिस्म पर पड़ रही थीं। हर बूंद हमारे अन्दर की आग में घी का काम कर रही थी। आज तृषा घर से भी लाल रंग की साड़ी में आई थी और यही लाल रंग मुझे तो पागल किए जा रहा था।
मैंने गाड़ी की पिछली सीट पर उसकी साड़ी को उतारना शुरू कर दिया। मैंने उसके बदन को चूमते हुए उसके हर कपड़े को अलग कर दिया और उन कपड़ों को आगे की सीट पर रख दिया। फिर मैंने साड़ी को रस्सी की तरह पकड़ा और तृषा को पलट के उसके हाथ बाँध दिए फिर साड़ी को उसकी गांड से ले जाते हुए उसकी गर्दन तक ले आया।
अब मैंने एक दरवाज़ा खोला और तृषा के सर को थोड़ा पीछे की ओर लटका दिया। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं ! फिर मैंने अपने लण्ड को उसके मुँह में अन्दर तक घुसा दिया। अब जब जब वो हिलती.. तो साड़ी उसकी गांड और चूत दोनों पर रगड़ खाती।
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‘आज फिर से अखबार पढ़े बिना तुम स्कूल चले गए? अपना हाथ आगे बढ़ाओ… तड़ाक तड़ाक !!’
‘ये शब्द’ आज भी मेरे कानों में सुनाई देने लगते हैं जब मैं अखबार पढ़ने के लिए बैठता हूँ! क्योंकि उस दिन भी मुझे अखबार न पढ़ने के कारण पापा से 2 डंडे अपने हाथ पर खाने पड़े थे। पापा मुझे IAS बनाना चाहते थे और क्योंकि एक IAS का ज्ञान एकदम up-to-date होना चाहिए इसलिए वो मेरे अन्दर अखबार पढ़ने की एक आदत को डालना चाहते थे। लेकिन मेरा… मेरा दिमाग तो उस समय किशोरावस्था में कदम रख रहा था… एक ऐसी उम्र जिसमें सिर्फ सेक्स ही सेक्स सूझता है। अपने शरीर में होते हुए बदलावों को मैं भी दूसरे लड़कों की तरह खुद पर महसूस कर रहा था और जब शरीर में ही इतनी चंचलता होगी तो दिमाग की चंचलता को तो बताना भी यहाँ कठिन ही होगा। तो बस यही सब मेरे साथ भी हो रहा था, मैं अखबार खोलता और जैसे ही अपनी नज़र अखबार में छपी हुई ख़बरों पर दौड़ाता तो सिर्फ *** की खबर पढ़ने में ही मेरा भी मन लगता। मैं करता भी तो क्या करता? सारा अखबार सिर्फ *** की खबरों से ही भरा होता था और मैं भी बस शायद उन्हीं ख़बरों को पढ़ने में दिलचस्पी लेता था लेकिन जैसे ही मुझे ‘पापा का मेरे लिए देखा वो IAS का सपना’ याद आता तो मैं उस दिन अखबार को ग्लानिवश नहीं पढ़ता और बस इसलिए मुझे उनसे मार खानी पड़ती थी। हजारों कहानियाँ हैं अन्तर्वासना डॉट कॉम पर !
धीरे-धीरे यह *** शब्द मेरे ज़हन में एक तीर की भाँति चुभने लगा और मैं रात-दिन बस यही सोचता रहता कि अगर कभी मुझे भी sex करने का अवसर मिला तो मैं सिर्फ *** ही करूँगा… सिर्फ ***! मगर एक पढ़े-लिखे परिवार में पैदा होने के कारण मेरे लिए ये सब करना संभव नहीं था लेकिन जब भी मैं रात को कल्पनाएँ बनाता तो ये जबरदस्ती ही मेरे सामने उभर कर आती और मुझे लगता कि शायद मैं या मेरी सोच… कोई तो ‘जंगली’ जरूर है… जो इस शब्द को मेरे भीतर में सहेज रही है।
जिंदगी के 10 साल कब गुज़र गए पता ही नहीं चला… स्कूल से कॉलेज और कॉलेज से जॉब… जी हाँ… हर लड़के की तरह मैं भी अब तक अपना कैरियर बना कर अपने पैरों पर खड़ा था। MBA करने के बाद मुझे भी एक अच्छी MNC में जॉब मिल गई थी और अब माँ-बाप भी मुझ पर शादी करने का दबाव बना रहे थे। सच पूछो तो मैं भी अब शादी करना चाहता था… सिर्फ घर बसाने के लिए ही नहीं बल्कि अपनी शारीरिक जरूरतों को पूरा करने के लिए भी! मगर मैं अपने दिमाग में पल रही उस सोच को लेकर परेशान था… क्योंकि मुझमें यह बात अब तक पूरी तरह से घर कर चुकी थी कि मेरा sex के लिए पहला अनुभव सिर्फ जबरन चोदन ही होगा… जिसे मैं बचपन से अखबारों में पढ़ता और फिल्मों में देखता आया हूँ।
आख़िरकार ‘शमा’ से मेरी सगाई पक्की हो गई! ‘शमा’… एक मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉक्टर थी। बहुत ही सीधी-साधी और भोली भाली सी लड़की… जो डॉक्टर होते हुए भी अपना बड़ों का आदर करती थी।
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मेरी एक पाठिका का मेल आया कि चूतनिवास जी मेरा नाम रीना है और मैंने आपको पहचान लिया है। मैं आपकी पत्नी जूसी रानी के सगे भाई की बेटी हूँ और अपने असली नाम से ही यह मेल लिख रही हूँ।
मैंने एक साल पहले ही आपको लिखा था लेकिन अपने उत्तर नहीं दिया।
मैंने लिखा कि रीना मैंने भी तुमको पहचान लिया था और इसी लिए उत्तर नहीं दिया कि तुम मेरी रिश्तेदार हो। अब जब तुमने भी मुझे पहचान लिया है तो फिर तुम मुझे लिख क्यों रही हो।
उत्तर आया कि मैं आपकी चुदाई से बहुत प्रभावित हूँ और मैंने तय कर लिया है कि मैं आपसे ही चुदवा कर अपनी चूत की सील तुड़वाऊँगी।
मैंने लिखा कि ‘यह जानते हुए भी कि तुम मेरे सगे साले की बेटी हो तुम मुझी से चूत क्यों फड़वाना चाहती हो?’
जवाब आया कि ‘मैंने तो तय कर लिया है आप से ही चुदूँगी क्योंकि आप लड़कियों को बहुत अधिक मज़ा देते हो। मैंने अपनी कई चुदवा चुकी सहेलियों से बात की है लेकिन कोई भी अपने बॉय फ्रेंड से इतना मज़ा नहीं पा रही जैसा आपकी कहानियों में बताया गया है। और रिश्तेदारी है तो इसमें सुरक्षा भी तो है। कोई ब्लैकमेल का रिस्क नहीं है। कोई गर्भ ठहरने के खतरा नहीं है। इसलिए राजे, बहन के लौड़े तू ही मेरी चूत का उद्घाटन करेगा।’
अपना नाम, तू तड़ाक की भाषा और गाली सुन कर मैं समझ गया कि यह लड़की तो चुदवाये बिना मानेगी नहीं। मैं नहीं चोदूँगा तो कोई और इस लण्ड की प्यासी की चूत के मज़े ले लेगा। मैंने लिखा कि ‘रीना रानी, ठीक है बहनचोद, कमीनी कुतिया, कर दूंगा तेरी चूत का कल्याण!’
यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं ! रीना रानी कानपुर में रहती है, उम्र 19-20 वर्ष और M.Sc.(BOTANY) प्रथम वर्ष की छात्रा है। इसे मैंने करीब दो साल पहले एक शादी में देखा था और याद आ रहा था कि रीना रानी काफी सुन्दर लड़की थी। उस समय तक उसके चूचे छोटे छोटे थे लेकिन वैसे फिगर मस्त थी। तब मैंने उसे कोई ज़्यादा ध्यान से नहीं देखा था इसलिए ठीक से याद नहीं था कि उसके हाथ, पैर, चूतड़, गर्दन इत्यादि कैसे थे।
मैंने शताब्दी एक्सप्रेस से कानपुर का टिकट बुक करवाया। तीन दिन बाद का आने जाने का पक्का टिकट हो गया। मार्च 16 को कानपुर जाने का और 18 का वापिसी का रिजर्वेशन करवा लिया। जूसी रानी से बताया कि कानपुर काम से जा रहा हूँ और तेरे भाई के घर पर ही ठहरूँगा। जूसीरानी ने फोन पर अपने भाई रितेश को बता भी दिया।
यहाँ मैं ये बता देना चाहता हूँ कि इस कहानी में किसी पात्र अथवा स्थान का नाम बदला नहीं गया है। ऐसा इसलिए कि मेरे बार बार समझने पर भी रीना रानी ज़िद पकड़े रही कि कहानी या तो मेरे असली नाम से ही छपेगी नहीं तो छपेगी ही नहीं।
मैंने कहा- ठीक है, माँ चुदवा बहनचोद।
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