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नमस्कार साथियो, मैं महेश अपनी शायरा के साथ की प्रेम और सेक्स कहानी सुना रहा था. अब तक मैंने आपको बताया था कि मैं शायरा के घर में खाना खा रहा था. मुझे राजमा और लेना था मगर और राजमा नहीं थे, तो मैं शायरा की झूठी प्लेट को अपनी तरफ खींच कर उसी की चम्मच से राजमा खाने लगा.
अब आगे:
पास में ही बैठी शायरा भी ये देख रही थी … मगर मेरे उसकी झूठी चम्मच से खाने पर वो शर्मा सी गयी. शायद उसकी झूठी चम्मच से खाने पर जो अहसास मुझे हुआ था, वो ही अहसास शायरा ने भी महसूस किया था … इसलिए शर्म से उसके गाल लाल से हो गए.
वो- ये तुम क्या कर रहे हो, ये चम्मच तो छोड़ दो … ये झूठा है मेरा. मैं- तो क्या हुआ? आपका ही झूठा तो है कोई खराब थोड़े ही है.
वो- मेरा झूठा है, तो उससे कुछ भी खा लोगे? मैं- हां, आपका झूठा तो सब चलेगा. वो- और वो क्यों चलेगा?
इस बात पर एक बार को तो मैं भी थोड़ा सकपका सा गया कि क्या जवाब दूँ! पर जल्दी ही मैंने स्थिति को सम्भाल लिया- अरे … आपके हाथों का ये टेस्टी टेस्टी खाना खाने को जो मिल रहा है.
इसके बाद तो शायरा भी चुप हो गयी.
मैं अब वैसे ही उसकी झूठी चम्मच को चाट चाट कर खाना खाता गया और वो मुझे देख देख शर्म से लाल होती गयी.
खाना खाने के बाद मैंने शायरा को खाने के लिए थैंक्स कहा और वापस अपने कमरे में आकर सो गया.
अगले दिन सुबह मैं उठा ही था कि मेरी नजर नीचे गिरी हुई शायरा के कोरियर के साथ लगी उस चिट्ठी पर पड़ गयी जोकि कोरियर के साथ आई थी.
मैंने तो इसे कोरियर के साथ ही रखा था, पर शायद कल जल्दबाजी में वो यहीं नीचे गिर गयी थी, जिसके कारण वो यहीं रह गयी.
वैसे तो मैंने उसे जानबूझकर नहीं छोड़ा था … मगर उसको देखकर मेरी आंखों में एक चमक सी आ गयी क्योंकि शायरा से बात करने का मुझे ये अब एक और बहाना मिल गया था.
मैं भी जल्दी से नहा धोकर तैयार हुआ और वो कोरियर का पैकेट लेकर आज फिर से शायरा का दरवाजा खटखटा दिया.
शायरा शायद दरवाजे के पास ही थी क्योंकि अब जैसे ही मैंने दरवाजा खटखटाया, उसने तुरन्त ही दरवाजा खोल दिया.
दरवाजा खोलते ही शायरा ने सामने आज फिर से मुझे पाया.
उसको देखकर मैंने एक हल्की सी स्माईल पास की, जिसके बदले में वो भी मुझे देखकर हल्का सा मुस्कुरा दी.
मैं- ज्.ज.जी … कल ये गलती से आपके कोरियर के साथ आई चिट्ठी मेरे पास ही रह गयी थी. मैंने चिट्ठी उसे देते हुए कहा.
वो- थैंक्स, नहीं तो बाद में भी दे देते. मैं- कोई नहीं, वैसे भी मैं निकल ही रहा था इसलिए सोचा कि आपको ये भी देता चलूं. अच्छा … मैं चलता हूँ.
मैंने बस इतना ही कहा था कि वो हंसने लगी और हंसते हुए ही उसने कहा.
वो- हां … हां … आपको होटल से नाश्ता भी करना होगा?
मुझे भी अब हंसी आ गयी और मैं ‘वो … म्.म..मैं ..’ हकलाने लगा.
वो- चलो अन्दर आ जाओ … मैं नाश्ता ही करने जा रही थी.
शायरा ने हंसते हुए कहा और अन्दर किचन में चली गयी. मैं भी उसके पीछे अन्दर आ गया.
तब तक शायरा हम दोनों के लिए दो प्लेट में नाश्ता ले आई और अब हम दोनों ही साथ में बैठकर नाश्ता करने लगे.
मैं- कोरियर शायद आपके पति ने भेजा है ना? लगता है सर बहुत प्यार करते हैं आपसे? वो- हां.आ … तभी तो तो खुद आने की बजाए ये लोहा लंगड़ भेजते रहते हैं.
शायरा के पति का जिक्र करते ही उसका चेहरा उतर सा गया था. वो शायद अपने पति के बारे में बात नहीं करना चाहती थी … इसलिए उसने बात बदल दी.
वो- वैसे ये कोरियर कब आया था? मैं- दोपहर के करीब. वो- दोपहर तक तो मैं भी आ ही गयी थी?
उसके मुँह से ये बात सुनते ही मैं भी थोड़ा घबरा सा गया. मेरी घबराहट देखकर उसके चेहरे पर एक हल्की मुस्कान फैल गयी.
मैं- ह.हां.. व्.वो शायद ग्यारह बारह बजे के करीब आया होगा. वो- पर तुम तो कॉलेज चले गए थे फिर घर कब आ गए!
शायरा आज काफी कोन्फिडेन्स से भी बात कर रही थी. उसको शायद मुझे छेड़ने में मजा आ रहा था, इसलिए वो अब मुझे कुछ ज्यादा ही कुरेदने लगी.
मैं- हां … वो कल मेरी थोड़ी तबीयत सी ठीक नहीं थी. वो- इतनी मेहनत करोगे … तो तबीयत तो खराब होगी ही?
उसका इशारा मेरी और ममता जी की चुदाई की तरफ था इसलिए उसने ये बात बहुत धीरे से शायद मन में ही बुदबुदाई थी … मगर फिर भी मैंने सुन ली.
मैं- क्या? वो- आपने कुछ सुना क्या?
मैं- हां … आप कुछ कह रही थीं? वो- हां मैं कह रही थी कि कल गर्मी भी तो बहुत ज्यादा थी ना इसलिए.
मैं- हां … कल बहुत गर्मी थी. वो- तबियत कैसी है अब?
मैं- अब ठीक है और आपके हाथों का बना नाश्ता करके तो और भी ठीक हो गयी. बहुत टेस्टी है बिल्कुल मेरी भाभी की तरह. वो- भाभी के जैसी लगती हूँ क्या मैं? और क्या ये … आप मुझे ‘आप..आप..’ कहके बात करते रहते हो. इतनी भी बड़ी नहीं हूँ मैं! वो तो घरवालों ने जल्दी शादी कर दी, नहीं तो भी अभी तक पढ़ ही रही होती मैं.
मैं- फिर आप भी तो मुझे आप कहती हैं और मेरी तो अभी तक शादी भी नहीं हुई है. वो- फिर से आपने आप कहा. मैं- फिर आपने भी तो आप कहा.
हम दोनों ही अब इस बात पर जोरों से हंस पड़े. शायरा हंसते हुए बहुत खूबसूरत लग रही थी इसलिए मुझसे रहा नहीं गया.
मैं- आप हंसते हुए बहुत खूबसूरत दिखती हैं. मेरे मुँह से अपनी तारीफ सुनकर वो एकदम से चुप हो गयी.
मैं- वो सॉरी मुझे ऐसा नहीं कहना चाहिए था. वो- कोई बात नहीं.
मैं- वैसे भाभी की जगह क्या आप मेरी दोस्त बन सकते हो? वो- फिर तो आप मुझे आप ‘आप’ नहीं कहेंगे न!
मैं- तो क्या आप मेरी दोस्त बनेंगी! वो- ये तो सोचना पड़ेगा, क्योंकि मैं शादीशुदा हूँ.
मैं- तो क्या हुआ? शादीशुदा के क्या कोई दोस्त नहीं होते? शादी के बाद क्या आपकी कोई लड़की दोस्त नहीं रही? वो- हां वो तो है.
मैं- तो फिर वैसे ही मेरी भी दोस्ती सही. वो- हां पर ये दोस्ती, दोस्ती तक ही रहनी चाहिए.
तब तक मैंने नाश्ता कर लिया था, इसलिए मैंने अपना एक हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा.
मैं- हाय मेरा नाम महेश है. मैं बीए फर्स्ट ईयर की पढ़ाई कर रहा हूँ और अभी कुछ दिन पहले ही यहां रहने आया हूँ. वो- वैसे तुम यहां पढ़ाई करने आए हो या दोस्ती करने?
मैं- वैसे आया तो पढ़ाई करने ही हूँ … पर कोई नया दोस्त बन जाए तो इसमें गलत क्या है?
वो- हाई, मेरा नाम शायरा है, मैं हाउसवाइफ हूँ. पर टाईम पास के लिए जॉब भी करती हूँ, मेरी शादी को ‘*’ साल हो गया है और मेरे हज़्बेंड दुबई में रहते हैं.
ये कहते हुए अब शायरा ने भी मुझसे हाथ मिला लिया.
मैं- आप से मिलकर अच्छा लगा … लो हो गयी हमारी दोस्ती.
हम दोनों बिल्कुल ऐसे बात कर रहे थे जैसे कि पहली बार मिल रहे हों इसलिए अब हम दोनों को ही फिर से हंसी आ गयी.
मैं- वैसे एक बात कहूँ? वो- हां कहो.
मैं- तुम बहुत दिनों बाद ऐसे बातें कर रही हो ना? वो- क्यों? और तुम्हें कैसे पता?
मैं- तुम्हें पहले जब भी देखा था तो एटिट्यूड के साथ देखा … ना किसी से बात करना और ना हंसना, पर आज बिल्कुल अलग लग रही हो.
वो- मैं ऐसी ही हूँ, पर कुछ दिनों से मैं खुद को भूल सी गयी थी. मैं- तुम ना … ऐसे ही रहा करो, तुम्हारे चेहरे पर हंसी अच्छी लगती है. वो- लाइन मार रहे हो?
शायरा ने सीधा ही ये कहा, जिससे मैं भी थोड़ा सा झेंप सा गया.
मैं- न..नहीं तो … वो- वैसे लाईन मार रहे हो, तो भूल जाओ.
मैं- अरे मैं तो बस तारीफ कर रहा हूँ. तुम्हारी मुस्कान मुझे मेरी भाभी की याद दिला देती है. वो- क्या हर बात में भाभी भाभी करते रहते हो, लगता बहुत प्यार करते हो अपनी भाभी से!
मैं- हां, वो तो है. क्योंकि उन्हीं ने पूरे घर को सम्भाला हुआ है. वो- और तुम्हें भी?
शायरा ने कल मेरी और ममता जी की बातें सुनी थीं, इसलिए उसको पता था कि मेरा और मेरी भाभी का चक्कर चल रहा है. शायरा के कहने का मतलब मैं समझ रहा था … मगर फिर भी मैंने बात को बदल दिया.
मैं- अम्म् हां … वैसे आपके घर में और कोई नहीं है? वो- नहीं, बस सास ससुर थे मगर वो शादी से पहले ही चल बसे थे.
मैं- फिर आप इतने बड़े शहर में अकेली कैसे रह लेती हैं? वो- फिर आप … मैं तो बचपन से यहीं बड़ी हुई हूँ, पर मेरे मम्मी पापा अब भैया के साथ मुम्बई में शिफ्ट हो गए हैं.
मैं- ऐसे में अकेलापन काटने को नहीं लगता? वो- हां लगता तो है, पर अब आदत सी हो गयी है. मैं- मैं तो महीने भर में ही बोर हो गया हूँ.
मैं अब आगे कुछ कहता, तब तक शायरा बीच में ही बोल पड़ी- मुझे लगता है आज के लिए इतनी बातें काफ़ी हैं, नहीं तो ऑफिस के लिए देर हो जाएगी. मैं- अरे हां मुझे भी कॉलेज के लिए देर हो रही है. आज तो बहुत बातें हो गईं. बहुत दिनों बाद किसी से फ्री होकर बात की है … इसलिए मैं तो भूल ही गया था कि मुझे कॉलेज भी जाना है. वो- वैसे तुमसे बात करके मुझे भी अच्छा लगा.
इसके बाद मैं कुर्सी से उठकर खड़ा हो गया. मेरे साथ साथ शायरा भी खड़ी हो गयी.
वो- अभी सीधा कॉलेज के लिए निकल रहे हो? मैं- आं हां .. वो- तो फिर रुको एक मिनट, मैं भी चलती हूँ.
ये कहकर शायरा जल्दी से अपने कमरे में चली गयी. मैं भी कुछ देर तो उसके इंतजार में खड़ा रहा, फिर शायरा के आते ही हम दोनों घर से निकल गए.
रास्ते में बस हल्की फुल्की ही बातें हुईं, तब तक बस स्टॉप आ गया. बस स्टॉप पर रोजाना जाने वाले वही सब लड़के लड़कियां खड़े थे, जो कि अब मुझे व शायरा को ही देखे जा रहे थे. शायद वो सब यही सोच रहे थे कि जिस लड़की ने आज तक किसी से सीधे मुँह बात तक नहीं की, वो आज मेरे साथ कैसे?
उनमें खड़े सब लड़कों के दिल तो शायद आज टूट ही गए थे. मैं भी खुश था कि शायरा जैसी हॉट लड़की मेरे साथ थी.
फिर बस स्टॉप पर आकर शायरा तो बस के इंतजार में वहीं खड़ी हो गयी मगर मैं कॉलेज जाने के लिए वहां से पैदल ही निकल लिया.
शायरा को ये अजीब लगा कि मैं बिना कुछ कहे ही ऐसे पैदल कहां जा रहा हूँ, पर उसको सोच में डूबा हुआ देख कर मुझे अच्छा लगा. कम से कम वो अब मेरे बारे में सोचेगी तो.
वैसे शायरा से इतनी जल्दी इतनी बातें हो जाएंगी, ये मैंने सोचा भी नहीं था. मुझे लग रहा था कि मैं कुछ ज्यादा ही फास्ट जा रहा हूँ. पर इससे शायरा को कोई ऐतराज़ नहीं था. वो भी मुझसे बात करके खुश थी और मुझसे बात करने में इंट्रेस्टेड भी लग रही थी.
अब मुझे भी उसका इंटेरेस्ट बनाए रखना था, पर इसके लिए मुझे आराम से काम लेना होगा और धीरे धीरे स्टेप बाइ स्टेप आगे बढ़ना होगा. ये सब सोचते सोचते मैं कॉलेज आ गया.
कॉलेज में तो सब सामान्य ही रहा, पर कॉलेज खत्म होने के बाद जब मैं वापस जाने लगा … तो शायरा आज भी मुझे कॉलेज के बस स्टॉप पर खड़ी मिली.
वो शायद कुछ देर पहले ही वहां आई थी. जैसे ही हमारी नज़र मिलीं, हमारे चेहरे पर स्माइल आ गयी … मगर हम में से किसी ने कुछ कहा नहीं.
बाकी दिनों तो मैं उसे देखते ही छुप जाता था या फिर किसी दूसरे रास्ते वहां से निकल जाता था … मगर आज मैं छुपा नहीं, बल्कि उसके सामने ही रोजाना की तरह घर के लिए पैदल चल पड़ा.
मुझे यूं पैदल जाते देख शायर ने मुझे आवाज दी- आज घर नहीं जाओगे क्या? मैं रुक गया- हां … घर ही तो जा रहा हूँ. वो- फिर इधर कहां जा रहे हो?
मैं- वो म..मैं … पैदल ही जाता हूँ. वो- क्यों?
मैं- वो उस दिन के बाद से अब बस से जाने में मुझे डर सा लगता है और बस में सब सवारियां भी मुझे ही घूरती रहती हैं … इसलिए मैं पैदल ही आना जाना करता हूँ. वो- तो इसमें क्या है, चलो कुछ नहीं होता. मैं- नहीं.
मुझे शर्म सी आई.
वो- मेरे साथ चलो. मैं- तुम्हारे साथ?
वो- क्यों मेरे साथ कोई प्राब्लम है? मैं- मुझे तो अब दिल्ली की बसों में भी जाने में डर लगता है और फिर तुम्हारे साथ तो बिल्कुल भी नहीं.
वो- वो क्यों? मैं- अब बस में तो एक दूसरे से थोड़ा बहुत छू भी जाते हैं, क्या पता तुम कब मेरा गाल सुजा दो.
मैंने ये मासूम सा बनते हुए कहा और एक हाथ को अपने गाल पर रख लिया, जिससे शायरा हंसने लगी.
वो- वो मैंने बोला तो था उस दिन के लिए सॉरी … मैंने बिना सोचे समझे ही तुम्हें थप्पड़ मार दिया था. मैं- पता है उस दिन पहली बार किसी ने मुझे थप्पड़ मारा था.
वो- मुझे ग़लतफहमी हुई हो गयी थी. मैं- लेकिन सज़ा तो मुझे मिली ना!
वो- पर तुम भी तो बार बार मेरे पीछे ही आ रहे थे. और उस रात फोन पर भी मुझे देखकर ऐसी गंदी गंदी बातें कर रहे थे. मैं- उस रात? उस रात तो मुझे पता भी नहीं था कि तुम वहां हो. उस समय मैं गया था तो उस दुकान में कोई भी नहीं था … बस मैं अकेला ही था, पर पता नहीं तुम कब आ गयी थीं.
वो- फिर भी तुम्हें ध्यान रखना चाहिये, वहां तो कोई भी आ सकता था. मैं- हां ग़लती हो गई … पर उसके लिए थप्पड़ नहीं मारना चाहिए.
हम दोनों अब बातों में व्यस्त हो गए थे. तब तक में एक बस आई और चली भी गयी, जिसका ध्यान हमें बाद में आया.
वो- लो … अब तुम्हारे चक्कर में बस भी निकल गयी. मैं- तो क्या हुआ दूसरी आ जाएगी. नहीं तो मेरे साथ पैदल चलो, रास्ते में बातें भी होती रहेंगी और आज तो धूप भी नहीं है … शायद बारिश आएगी.
उस दिन बारिश का मौसम सा हो रहा था … इसलिए मैंने ऊपर आसमान की तरफ देखते हुए कहा. वो- हां … अब क्या पता दूसरी कब आएगी … चलो मैं भी चलती हूँ.
मैं और शायरा घर के लिए पैदल ही चलने लगे.
शायरा के साथ पैदल चलना मेरे लिए बहुत बड़ी बात थी. वैसे तो मुझे अब घर तक जाने का एक शार्टकट रास्ता भी पता चल गया था. मगर मैंने आज उसका इस्तेमाल नहीं किया बल्कि बस वाला लम्बा रास्ता ही पकड़ा. वैसे भी मौसम अच्छा हो गया था. जिसके कारण पैदल चलने भी मजा आ रहा था.
शायरा अब मुझसे जुड़ गई थी. इसके आगे उसके साथ प्रेम और सेक्स कहानी में क्या हुआ, ये अगले भाग में लिखूंगा. आपके मेल मिल रहे हैं और बहुत अच्छा भी लग रहा है. ऐसे ही मेल भेज कर अपना प्यार देते रहिए.
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कहानी जारी है.
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