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निशा और तृष्णा ने अब तक मेरे हाथ पकड़े हुए थे और अब इतनी जोर से हाथ दबा रही थीं कि अब हल्का-हल्का दर्द सा भी होने लगा था।
खैर.. हम अपनी मंजिल पर पहुँच गए थे.. सामने एक बड़ा सा दरवाज़ा था, गाने की धुन और लोगों के चिल्लाने का शोर इतना था कि दरवाज़े बंद होने के बावजूद भी मैं सुन सकता था। हम सबने एक गहरी सांस ली और दरवाज़े को धक्का दे अन्दर आ गए।
यहाँ इतना धुँआ था कि मैं बर्दाश्त नहीं कर पाया और खांसते हुए बाहर आ गया। मेरी इतनी हिम्मत नहीं हो रही थी कि मैं दुबारा अन्दर जाने की कोशिश करता, मैं दीवार से टिक कर आँखें बंद कर खड़ा हो गया, एक बेहद मीठी आवाज़ से मेरा ध्यान टूटा।
किसी बेहतरीन कारीगर की तराशी हुई संगमरमर की मूर्ति की तरह थी वो.. उसकी आँखें गहरे भूरे रंग की और भरा पूरा संगमरमर सा बदन..
वो- ऐसी जगह.. पहली बार आए हो क्या..? मैं- हाँ.. पर लगता नहीं ज्यादा देर यहाँ टिक पाऊँगा।
फिर कोई दरवाज़े को खोल कर बाहर निकला और उसके साथ निकले धुएँ से फिर से मैं खांसने लग गया। वो मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए बोली- आप छत पर चलो.. लगता है ये जगह आपको सूट नहीं करने वाली है। मैं (उसके साथ छत पे जाते हुए)- अब तो जो भी हो.. इसकी आदत तो डालनी ही होगी मुझे। अब मैं खाली हाथ वापस जा भी नहीं सकता।
वो- मतलब..? मैं- माफ़ कीजिएगा.. मैं अपने बारे में बताना भूल गया। मेरा नाम नक्श है और कल ही यशराज फिल्म्स ने मुझे अपनी तीन फिल्मों के लिए साइन किया है। वो किलकारी सी भरती हुई बोली- तो हम बैठे थे जिनके इंतज़ार में.. वो खुद ही हमारी बांहों में आ गिरे। मैं- मतलब? वो- मैं आपकी फिल्म की दो हिरोइन में से एक हूँ..
फिर उसने अपना हाथ बढ़ाते हुए कहा- मेरा नाम ज़न्नत खान।
मैं उसके गले लगते हुए बोला- हाथ मिलाना दूसरों से.. मुझसे अब गले लगने की आदत डाल लो.. मैं नहीं चाहता कि हमारी फिल्म में हमारे बीच प्यार की कोई कमी दिखे।
जब मैं अलग होने लगा तो ज़न्नत ने मुझे खींच कर फिर से गले लगा लिया और मेरे कानों के पास आ कर बोल उठी- अब तसल्ली तो होने दो.. ऐसे कहाँ मुझे छोड़ कर जा रहे हो।
हम दोनों गले लगे ही हुए थे कि सुभाष जी वहाँ आ गए, उनके साथ में एक लड़की भी थी।
सुभाष जी (हल्के नशे में)- तो आप ज़न्नत से मिल चुके हो.. ये रहीं आपकी दूसरी हीरोइन.. ‘तृषा श्रीवास्तव’
मेरा दिल इस नाम के साथ ही ज़ोरों से धड़क उठा।
‘इस फिल्म में तुम्हें इन दोनों के साथ ऐसी केमिस्ट्री बनानी है कि परदे पर आग लग जाए बस..’ उसे वहीं छोड़ कर वो फिर से नीचे हॉल में चले गए।
तृषा ने मेरे पास आते हुए कहा- आपकी परफ्यूम की पसंद बड़ी अच्छी है।
मैं तो जैसे इस नाम को सुनने के साथ उससे जुड़ सा गया था। मेरे अन्दर का ज्वार जैसे फूटने को हो आया था, मुझे अब उसके चेहरे में अपनी तृषा दिख रही थी।
मैंने उसे खींच कर गले से लगा लिया और कस कर बांहों में भरते हुए मैंने कहा- कहाँ चली गई थीं.. मुझे छोड़ कर.. जाने से पहले एक बार भी मेरा ख्याल तक नहीं आया तुम्हें..? कम से कम एक बार तो सोच लिया होता तुमने.. कि मैं तुम्हारे बिना जिंदा भी रह पाऊँगा या नहीं..
इतना कहते-कहते मेरी आँखें भर आईं।
तभी तालियों की आवाज़ से मैं नींद से जगा जैसे। ज़न्नत और कुछ लोग तालियाँ बजा रहे थे।
‘क्या फील के साथ एक्टिंग की है यार तुमने।’ यह कहते हुए ज़न्नत ताली बजा रही थी।
मैंने तृषा को खुद से अलग किया, वो भी थोड़ी शॉक्ड थी। तभी ज़न्नत के फ़ोन पर एक कॉल आया और वो चली गई, मैं अब तृषा से दूर जाना चाह रहा था तो मैंने तृषा से काम का बहाना किया और होटल के बाहर आ गया। मेरा दिल बेचैन सा हो गया था.. मैंने एक टैक्सी बुलाई और रात को ही समंदर के किनारे पर आ गया। अब इन लहरों का शोर मेरे अन्दर की वादियों में गूंज रहा था.. समंदर की तेज़ हवाएँ जैसे मेरे अन्दर लगी.. इस आग को बुझाने की जगह और भड़का रही थीं।
मैं वहीं रेत पर घुटनों के बल गिर पड़ा और जोर-जोर से चिल्लाने लगा, इतने दिनों से मैं खुद को ही भूल बैठा था, आज जैसे हर वो याद मेरे आँखों के सामने घूम रही थी। थोड़ी देर बाद मैं किसी तरह खुद को काबू में करने की कोशिश करने लगा।
तभी किसी ने अपना हाथ मेरे कंधे पर रख दिया… मैंने मुड़ कर देखा तो तृषा श्रीवास्तव थी। तृषा- कोई कितना भी बड़ा एक्टर क्यूँ न हो, उसका जिस्म तो एक्टिंग कर सकता है.. पर उसका दिल नहीं। तुम्हारी धड़कने मैंने महसूस की हैं.. ये झूठ नहीं कह रही थी। क्या है तुम्हारा सच..? मैंने सुना था कभी कि बांटने से दर्द हल्का होता होता है।
मैंने उससे कहा- कभी मैंने भी किसी को चाहा था.. पर इस दुनिया ने उसे मुझसे जुदा कर दिया.. वो अब इस दुनिया में भी नहीं है।
तृषा- तुमने एक्टिंग को ही क्यूँ चुना।
मैं- मैं अपने आप को भूल जाना चाहता था.. मुझे ये यादें बस दर्द देती हैं।
तृषा- इस दुनिया में जितना अपने दर्द में तड़पोगे.. उतनी ही तालियाँ तुम्हें मिलेंगी। ये फिल्मों की दुनिया ही ऐसी है.. जो जितना बड़ा कलाकार यहाँ है.. उसने उतने ही बड़े ग़मों को समेट रखा है.. मैं- क्या इस दर्द का कोई इलाज नहीं? तृषा ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा- है न.. जैसे-जैसे वक़्त बीतेगा.. तुम इस दर्द में भी मुस्कुराना सीख जाओगे।
फिर वो मेरे पास आ कर बैठ गई और कहने लगी- ‘मैंने भी कभी किसी से बेइन्तेहाँ मोहब्बत की थी.. पर शायद उसे मेरे दिल की धड़कन कभी सुनाई ही नहीं दी। इस जिस्म के अन्दर जो दिल था उसे वो कभी समझ ही नहीं पाया.. या शायद वो मेरे प्यार के काबिल ही नहीं था। आज तुम्हें ऐसे तड़फता देख कर मेरे दिल में दबी हुई वो आग.. फिर से जल उठी। हर किसी के दिल में ऐसी ही कोई बात दबी होती है। जब-जब हम परदे पर अपने दर्द में रोते हैं.. तब-तब उनके जज़्बात भी बाहर आ जाते हैं। इस दुनिया में हर लड़की को किसी ऐसे की ज़रूरत होती है.. जो उसे सच्चे दिल से चाहे। मुझे अपनी दुनिया में तो वो प्यार मिल न सका.. पर अब इस सपनों की दुनिया में ही तुम्हारे सच्चे प्यार को जी सकूँगी। तुम ये समझ लेना कि तुम्हारी तृषा मेरे चेहरे में तुम्हारे सामने है।
मैंने उसे खुद से दूर कर अलग करते हुए कहा- मेरे करीब मत ही आओ तो बेहतर होगा। मेरे दिल की आग में जल जाओगी। तृषा- मैंने आग के समंदर को पार किया है.. बहुत जली हूँ खुद की आग में.. तुम्हारी चाहत की तपिश भी झेल जाऊँगी। मैं- क्यूँ खेल रही हो मुझसे.. मैं टूट चुका हूँ। तृषा- टूटे हुए दिल को समझने के लिए दर्द भरे दिल की ज़रूरत होती है। तुम्हें मैं ही संभाल सकती हूँ। खुद से लड़ना बंद करो और मेरे पास आ जाओ।
मैंने उसकी तरफ घूर कर देखा।
‘यूँ समझ लो कि इस जिंदगी ने तुम्हें फिर से मौक़ा दिया है अपनी तृषा के प्यार को पाने का’ उसने मेरी तरफ अपनी बाँहें फैला दीं।
मेरी आँखें भर आई थीं। अब सब कुछ मुझे धुंधला-धुंधला सा दिख रहा था। ऐसा लग रहा था कि जैसे सच में तृषा मेरे सामने बाँहें फैलाए हो।
अब तो ये धोखा ही सही.. पर मैं तृषा को फिर से बांहों में भरना चाहता था। मैं आगे बढ़ा.. पर मेरे कदम लड़खड़ा गए, जैसे ही मैं गिरने को हुआ.. तृषा ने मुझे अपनी बांहों में भर लिया। मैं- मुझे कभी छोड़ कर तो नहीं जाओगी न..?
तृषा- नहीं.. हमेशा तुम्हारी बांहों में ऐसे ही रहूँगी। मैं- हमेशा ऐसे ही प्यार करोगी मुझे? तृषा- नहीं इससे बहुत बहुत ज्यादा। मेरी आँखें अब तक बंद थीं.. तभी तृषा के होंठ मेरे होंठों से मिल गए। हम दोनों ही आँखों में आंसुओं का सैलाब लिए एक-दूसरे को चूम रहे थे।
जहाँ तक नज़रें जाती.. वहाँ बस अँधेरी रात का सन्नाटा पसरा हुआ था। अगर कोई शोर था तो वो शोर समंदर की लहरों का था।
समंदर की ठंडी नमकीन हवाओं ने जैसे उसके होंठों पर भी नमक की परत चढ़ा दी हो.. मैं उसके होंठों को चूमता हुआ उसमें खोने लगा।
तृषा ने मुझे अपने नीचे कर लिया और मेरे कपड़े उतारने लग गई। मैंने भी उसके तन से कपड़ों को अलग किया, वो चाँद की रोशनी में डूबी और समंदर के पानी से नहाई हुई परी लग रही थी।
मैं उसके जिस्म को बस निहार रहा था.. पर शायद तृषा को शर्म आ गई, वो अपने हाथों से अपने जिस्म को छुपाने की नाकाम कोशिश करने लग गई।
मैं उसके जिस्म पर जहाँ-जहाँ भी खाली जगह थी.. वहीं उसे चूमने लग गया। तृषा ने अब अपने हाथ हटा लिए थे, अब उसकी आवाज़ में सिसकियाँ ज्यादा थीं।
मैंने उसे पलटा और रेत लगे उसके जिस्म को.. समंदर के पानी से धोने लग गया।
उसके रेत से सने हुए जिस्म को धोते हुए हर उस जगह को भी चूमता जा रहा था। फिर उसके कूल्हों को चूमता हुआ मैंने उसके पीछे के रास्ते में अपनी ऊँगली फंसा दी।
मेरी इस हरकत से वो चिहुंक कर बैठ गई और मुझे लिटा कर मेरे लिंग को अपने हाथों से सहलाते हुए मेरे जिस्म को जोर-जोर से चूमने लग गई।
कहानी पर आप सभी के विचार आमंत्रित हैं। कहानी जारी है। [email protected]
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