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तृषा ने मुझे अपने नीचे कर लिया और मेरे कपड़े उतारने लग गई। मैंने भी उसके तन से कपड़ों को अलग किया। वो चाँद की रोशनी में डूबी और समंदर के पानी से नहाई हुई परी लग रही थी। मैं उसके जिस्म को बस निहार रहा था.. पर शायद तृषा को शर्म आ गई, वो अपने हाथों से अपने जिस्म को छुपाने की नाकाम कोशिश करने लग गई। मैं उसके जिस्म पर जहाँ-जहाँ भी खाली जगह थी.. वहीं उसे चूमने लग गया। तृषा ने अब अपने हाथ हटा लिए थे। अब उसकी आवाज़ में सिसकारियाँ ज्यादा थीं।
मैंने उसे पलटा और रेत लगे उसके जिस्म को.. समंदर के पानी से धोने लग गया। उसके रेत से सने हुए जिस्म को धोते हुए हर उस जगह को भी चूमता जा रहा था। फिर उसके कूल्हों को चूमता हुआ मैंने उसके पीछे के रास्ते में अपनी ऊँगली फंसा दी। मेरी इस हरकत से वो चिहुंक कर बैठ गई और मुझे लिटा कर मेरे लिंग को अपने हाथों से सहलाते हुए मेरे जिस्म को जोर-जोर से चूमने लग गई।
थोड़ी देर में मेरा लिंग उसके मुँह के अन्दर था। उत्तेजना की वजह से मैंने भीगी रेत को मुठियों से ही निचोड़ दिया और उस रेत से उसके स्तनों की मालिश करने लग गया। अब हम 69 की अवस्था में आ गए.. मैं उसकी योनि को चूमता हुआ नमकीन पानी से भीगी हुई उँगलियाँ उसकी गांड में घुसाने लग गया। कभी-कभी जो नमकीन स्वाद मुझे मिलता.. उससे ये तय नहीं कर पा रहा था कि ये समंदर के पानी का असर है या उसकी योनि का नमकीन पानी है।
अब मैंने उसे सीधा किया और अपने लिंग को एक जोरदार झटके से उसकी योनि में समाहित कर दिया। थोड़ी देर इसी आसन में अन्दर-बाहर करने के बाद उसे घोड़ी वाले आसन में लाया और पीछे से जोर-जोर से अपने लिंग को अन्दर-बाहर करने लग गया।
आखिरकार हम दोनों एक साथ अपने प्यार की पराकाष्ठा पर पहुँच गए। हमारे कपड़े भीगते हुए संमदर के साथ किनारे पर तैर रहे थे।
अब कहीं वो समंदर में ना चली जाए.. इस वजह से तृषा उठी और वैसे ही कपड़ों को इकठ्ठा करने लग गई। उसे देख कर ऐसा लग रहा था.. मानो कोई जल-परी जल-क्रीड़ा कर रही हो।
मैं बस दौड़ कर उसके पास गया और उसे पीछे से पकड़ कर अपनी बांहों में भर लिया।
तृषा ने खुद को मुझसे अलग किया और वही भीगे कपड़े पहन लिए। मैंने भी अपने कपड़े डाले और तृषा के साथ उसकी कार तक आ गया। उसने कार में रखी हुई मुझे शराब कि बोतल बढ़ा दी।
थोड़ी देर में हम सामान्य हुए तो तृषा मुझे अपने साथ अपनी कार में घर पर ले गई। घर पर कोई भी नहीं था। कमरे में बेहद हल्की रोशनी थी.. इतना प्रकाश भर था कि हम बस एक-दूसरे को महसूस कर सकते थे।
रास्ते में मैं उसकी कार में शराब ख़त्म कर चुका था.. सो अब मुझे नशा भी छाने लगा था। मैं बिस्तर के पास जाते ही बिस्तर पर गिर पड़ा और तृषा मेरे ऊपर आ गई।
हम एक-दूसरे में डूबते चले गए। जितनी नाराजगी.. जितना भी प्यार मेरे अन्दर तृषा के लिए था.. वो आज मैंने इस पर न्यौछावर कर दिया। मेरी आँख लग गई।
सुबह-सुबह तृषा की आवाज़ से मैं नींद से जागा। तृषा अपने भीगे बालों का पानी मेरे गालों पर गिराते हुए बोली- जानेमन जाग भी जाओ। वो अभी-अभी नहा कर आई थी और अब तक तौलिया में ही थी।
मैंने उसके हाथ को पकड़ बिस्तर पर गिरा दिया और उसके ऊपर आ कर उसके होंठों को चूमने लगा। फिर मैं उसके कानों के पास बोला- नाश्ता बहुत अच्छा था… लंच में क्या दे रही हो?
वो मुझे धकेलते हुए बोली- बदमाश.. जाओ यहाँ से.. आज नाश्ते से ही काम चला लो.. आज कुछ नहीं मिलने वाला।
मैं- कुछ भी कहो.. मैं नहीं छोड़ने वाला हूँ! फिर मैंने उसके तौलिए को खींच कर अलग कर दिया। तृषा-नहीं.. प्लीज भगवान् के लिए मुझे छोड़ दो। मैं-अरे जानेमन.. तुम्हारी चूत में से कितना भी रस ले लूँ.. फिर भी बच ही जाएगा।
यह कहता हुआ मैं उसकी चूत में ऊँगली करने लग गया।
अब तृषा भी बेकाबू हो रही थी। मैंने अपने लिंग को निकाल कर उसके मुँह में दे दिया। वो भी भी तसल्ली से इसे चूसने लग गई.. पर सुबह-सुबह का वक़्त था.. सो मुझे जोर से पेशाब लगी थी। मैंने तृषा के बालों को पकड़ कर उसे फर्श पर बिठाया और उसके चेहरे पर अपने लिंग को रगड़ता हुआ पेशाब करने लग गया। तृषा भागने की कोशिश कर रही थी.. पर मैंने उसके बालों को जोर से पकड़ा हुआ था।
जब मैं खाली हुआ तो फिर से अपने लिंग को उसके मुँह में दे दिया। फिर मैं उसे फर्श पर बिखरे हुए उसी पेशाब पर उसे लिटा दिया और उसकी गांड में अपने लिंग को एक ज़ोरदार झटके से घुसा दिया।
उसका पूरा बदन लाल हो गया था। वो जोर से चीखना चाह रही थी.. पर मैंने कोई मौक़ा ना देते हुए उसके मुँह में अपनी चारों उँगलियाँ डाल दी।
मैं जोर-जोर से उसे धक्के लगा रहा था। थोड़ी-थोड़ी देर में मैं लिंग को उसकी गांड से निकाल कर चूत में डालता और फिर से उसे उसकी गांड में डाल देता।
मेरी इस छेड़छाड़ से वो झड़ गई और थोड़ी देर में जब मैं झड़ने को हुआ तो फिर से उसकी मुँह में लंड डाल कर अपना सारा रस निकाल दिया।
अब फिर से उसे नहाना पड़ा.. पर इस बार मैं भी उसके साथ था।
वहाँ भी एक शॉट लगा कर उसे शांत किया और फिर हम बाहर आ गए।
मैं- अपने घर में अकेली रहती हो..? मम्मी पापा?
तृषा- मम्मी लन्दन में.. और पापा न्यूयॉर्क में.. दोनों का तलाक हो चुका है, यहाँ मैं अकेली ही रहती हूँ।
तभी मेरे फ़ोन की घंटी बजी। मैं अपने कपड़े पहन रहा था.. सो मैंने फ़ोन को स्पीकर पर कर दिया।
निशा- मैंने सुना है कि तुम्हें तुम्हारी तृषा मिल गई?
मैं- तुम्हें कैसे पता?
निशा- वो आपकी दूसरी वाली… क्या नाम था उसका.. हाँ ज़न्नत खान.. वो बता रही थी कि आप और तृषा एक साथ बाहर गए हो। वैसे जनाब नाश्ता और लंच यहीं करोगे या परमानेंटली उसी के घर पर शिफ्ट हो रहे हो.?
मैं- नहीं यार… मैं अभी आता हूँ. वैसे भी अब बिस्तर पर नींद नहीं आती, मैं सोफे को बहुत मिस कर रहा हूँ।
निशा- ताने मारना बंद करो। मैंने बिस्तर मंगवा दिया है और कम से कम जाकर अपने लिए शॉपिंग वगैरह तो कर लो.. हीरो बन गए हो और विलेन से भी बुरे हालत में रहते हो।
मैं- ठीक है मेम साब.. आपका हुकुम सर आँखों पर.. मैंने फ़ोन काट दिया।
तृषा- यह वही है न.. जिनके बारे में तुमने बताया था? मैं- हाँ.. तृषा- तुम यहीं मेरे साथ क्यूँ नहीं रहते हो.. वैसे ये भी ठीक है हमें थोड़ी दूरी बना कर रहना चाहिए वरना ये मीडिया वाले छोड़ते नहीं हैं। मैं- क्या करते हैं वो?
तृषा- अभी आपकी यह पहली फिल्म है.. मेरी ये दूसरी फिल्म है.. तो मुझे अनुभव थोड़ा ज्यादा है। आपकी फिल्म एक बार हिट हो जाने दो फिर देखना कि ये क्या-क्या करते हैं। मैं- तुम्हारी कौन सी फिल्म आई है। मैंने तो नहीं देखी है। तृषा- कैसे देखोगे अभी पंद्रह दिन पहले ही तो रिलीज़ हुई है.. कल जिसकी सक्सेस पार्टी में गए थे.. उस फिल्म के लीड रोल में मैं ही थी।
मैं- ह्म्म्म… चलो थोड़ी शॉपिंग करते हैं। मेरे पास अभी तक ढंग के कपड़े भी नहीं हैं। तृषा- हाँ मैं डिज़ाइनर अपॉइंटमेंट ले लेती हूँ.. फिर हम दोनों काम पर चलेंगे।
मैं- जानेमन.. अभी मैं सुपरस्टार बना नहीं हूँ। ऐसा करो कि मुझे खुद ही जाने दो.. मैं अपने लेवल के कपड़े खरीद लूँगा.. तुम बस अपनी कार में ही रहना और हाँ.. अभी मैं आपसे पैसे लेने वाला नहीं हूँ.. सो कुछ और मत कहना।
तृषा- मैं भी साथ चलूंगी। मैं भी एक्ट्रेस हूँ.. ऐसे तैयार हो जाऊँगी कि कोई भी मुझे नहीं पहचान पाएगा। मैं- उसके लिए तो जो पहना है उसे उतारना भी होगा न !
मैं फिर से उसके कपड़े उतारने लग गया।
तृषा- नहीं… प्लीज छोड़ दो मुझे। फिर कुछ देर बाद हम दोनों एक साथ शॉपिंग पर गए। वो पूरा दिन हमने खूब मज़ा किया। रात को थक कर आ कर सो गए।
दूसरे दिन सुबह सुबह निशा का कॉल निशा- जनाब बिस्तर उदघाटन की राह देख रहा है.. कब आयेंगे आप? मैंने तृषा को सुनाते हुए कहा- पहले यहाँ वाला बिस्तर तो तोड़ दूँ।
फिर मैं और निशा जोर-जोर से हंसने लग गए। इधर तृषा ने तकिए को मेरे चेहरे पर मारना शुरू कर दिया। जैसे-तैसे हालात को काबू में किया।
निशा-तुम्हें हंसते हुए देख कर अच्छा लगता है.. ऐसे ही रहना और जल्दी से घर आओ.. मैं तुम्हारे लिए नाश्ता बना रही हूँ और हाँ.. तृषा को भी साथ ले आना।
हम दोनों तैयार हुए। मैंने कल जो शॉपिंग की थी.. उसमें से आधे कपड़े यहीं छोड़ कर बाकी कपड़े अपने साथ फ्लैट में ले आया।
मैं घर में अन्दर आया तो सबने तृषा को दरवाज़े पर ही रोक दिया। ‘अरे रुको थोड़ी देर’
यह कहते हुए तृष्णा ने एक गिलास में चावल डाल कर दरवाज़े पर रख दिया।
तृष्णा- भाभी जी, गृह प्रवेश करो। तृषा ने हंसते हुए कहा- लात किसको मारनी है..? गिलास को या नक्श को? ज्योति- नक्श को तो हर रोज़ ही मारोगी। फिलहाल गिलास को ही लात मार कर अन्दर आ जाओ।
फिर हम सबने एक साथ नाश्ता किया और वो पूरा दिन तृषा की कार में हम सब पूरे शहर में धमाल मचाते रहे।
ऐसे ही हमारे कुछ दिन मज़े में बीते। मेरी फिल्म की मुहूर्त शॉट का वक़्त आ चुका था। आज मैं अच्छे से तैयार हो कर लोकेशन पर चला गया। मेरे लिए वहाँ एक वैन थी। मैं वहीं चला गया और एक मेकअप मैन ने मुझे तैयार किया।
तभी दरवाज़े पे दस्तक हुई.. निशा थी। उसे वहाँ असिस्टेंट डायरेक्टर बना दिया गया था।
कहानी पर आप सभी के विचार आमंत्रित हैं। कहानी जारी है। [email protected]
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