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अब मैं अपने घर के दरवाज़े तक पहुँच चुका था। तभी घर के अन्दर से एक हंसी की आवाज़ सुनाई दी.. मैं वहीं रुक गया.. तृषा मेरे घर में आई हुई थी।
आखिर वो इतनी खुश कैसे हो सकती है। मेरा दिल अब तक उसे बेवफा मानने को तैयार नहीं था। मुझसे अब बर्दाश्त नहीं हुआ, मैंने वो छोटी वोदका की बोतल खोली और उसे ऐसे ही पी गया। जितनी तेज़ जलन मेरे गले में हुई उससे कई ज्यादा ठंडक मेरे सीने को मिली।
मेरी साँसें बहुत तेज़ हो चुकी थीं। दिल की धड़कनें इतनी तेज़ हो गई थीं.. मानो दिल का दौरा न पड़ जाए मुझे..
थोड़ी देर के लिए मैं वहीं ज़मीन पर बैठ गया। फिर मैंने अपने आपको संभाला और अपने घर में दाखिल हुआ। सबसे पहला चेहरा तृषा का ही मेरे सामने था। हॉल में मेरे मम्मी-पापा के बीच बैठी बहुत खुश नज़र आ रही थी।
मम्मी- बेटा तृषा को बधाई दो.. उसकी शादी तय हो गई है। मैं- माँ बधाई तो गैरों को दी जाती है। अपनों को तो गलें लगा कर दुआएँ दी जाती हैं।
मैं आगे बढ़ा और तृषा को सबके सामने ही गले से लगा लिया। एक खामोशी सी छा गई वहाँ पर। तब तृषा ने माहौल को संभालते हुए मुझे अलग किया और…
तृषा- तुम्हें क्या लगता है.. तुम्हारी जान छूटी.. आंटी के बनाए आलू के परांठे खाने.. मैं कहीं से भी आ जाऊँगी और मुझे जीभ निकाल चिढ़ाती हुई मेरी मम्मी की गोद में बैठ गई।
फिर सब हंसने लगे।
मैं अपने आपको संभालता हुआ ऊपर छत पर चला गया। शराब का नशा धीरे-धीरे अपना रंग दिखा रहा था। मेरे कदम अब लड़खड़ाने लगे थे।
मैं अब छत के किनारे तक आ गया था। मेरा एक पाँव छत की रेलिंग पर था। मन में एक ही ख़याल आ रहा था क्यूँ ना कूद ही जाऊँ यहाँ से.. शायद जिस्म के दूसरे हिस्सों का दर्द मेरे दिल के दर्द को कम कर दे।
मैं ये सब सोच ही रहा था कि छत के दरवाज़े की खुलने की आवाज़ आई। तृषा छत पर थी और उसने दरवाज़े को लॉक कर दिया।
मैं- सुना था कि खूबसूरत लोगों के पास दिल नहीं होता.. आज देख भी लिया।
तृषा- उफ्फ्फ़.. क्या अंदाज़ हैं आपके.. वैसे जान ‘खूबसूरत’ कहने का शुक्रिया।
यह कहते हुए उसने अपनी बाँहें मेरे गले में डाल दीं। ‘वैसे मेरे पास दिल हो या ना हो, पर आपके दिल में मेरे लिए इतना प्यार देख कर जी करता है कि कच्चा चबा जाऊँ तुम्हें!’
मैं- जान.. अपनी भूख अपने होने वाले पति के लिए बचा के रखो.. मुझसे अब कुछ भी कहना दुश्वार हो रहा था.. ऐसा लग रहा था कि जैसे मेरे दिल को कोई अपनी हथेलियों में रख दबा रहा हो।
तृषा- आपको पीने शौक कब से हो गया.. यह बुरी आदत है इसे छोड़ दो।
मैं- छोड़ना तुम्हारी आदत होगी.. मेरी नहीं.. वैसे तुमसे प्यार करना भी तो मेरी बुरी आदत की तरह ही है। अब तुम्हें चाहना भी छोड़ दूँ?
तृषा- हाँ.. मैं तुम्हारे लायक नहीं निशु..
फिर वहाँ थोड़ी देर तक खामोशी सी छाई रही। आज मैं उसे वो हर बात कह देना चाहता था.. जो मेरे सीने में आग बन कर धधक रही थी। मैंने उसका हाथ अपने हाथों में लिया और अपने घुटने पर आ गया।
‘आज मैं एक बात कहना चाहता हूँ। मैंने जब से प्यार का मतलब जाना है बस तुम्हें ही चाहा है। मैंने जब से जिन्दगी का सपना संजोया है.. हर सपने में तुम्हें ही अपने साथ देखा है। तुम्हारी आँखों में अपने लिए प्यार देखना.. बस यही मेरी सबसे बुरी आदत है। जब से मुझसे दूर हुई हो, मैं साँसें तो ले रहा हूँ.. पर ज़िंदा होने का एहसास खो दिया है। मैं नहीं जानता हूँ कि ये मेरा प्यार है या पागलपन। मैं इतना जानता हूँ कि अगर कोई एहसास है जिसने मुझे अब तक ज़िंदा रखा है.. तो वो तुम्हारे प्यार का एहसास है.. तुम्हारे साथ बिताए उन लम्हों की यादें हैं.. तुम मेरी दुनिया में वापस आओ या ना आओ.. मैं अपनी यादों में ही हमेशा तुम्हें इतना ही प्यार करता रहूँगा। इतना प्यार की तुम्हारी ये जिंदगी उस प्यार को समेटने में ही ख़त्म हो जाएगी.. पर ये प्यार ख़त्म नहीं होगा।’
मेरी आँखों में आंसू आ गए थे। तृषा भी घुटनों पर बैठ मेरे पास आई.. मेरे चेहरे को ऊपर करके उसने मेरे होंठों को चूम लिया।
‘मैं जानती हूँ.. तुम्हारे प्यार के लिए मेरा यह जन्म काफी नहीं.. ऊपर वाले से थोड़ा वक़्त उधार ले लो.. मैं फिर से आऊँगी.. और इस बार बस मैं और तुम होगे.. ना मम्मी-पापा कर डर होगा.. न दुनियावालों की कोई परवाह.. फिर से एक साथ अपना बचपन जिएँगे.. एक साथ जवानी और अंत में बूढ़े हो कर एक-दूसरे की बांहों में इस दुनिया को अलविदा कह जायेंगे.. पर इस जन्म में नहीं..’
तृषा उठ कर जाने को हुई.. पर मैंने उसका हाथ पकड़ा और अपने सीने से लगा लिया। उसकी आँखें भी भरी हुई थीं।
तृषा- निशु.. शादी के बाद मैं जिन्दा लाश बन जाऊँगी। मैं तुम्हारे प्यार का हर लम्हा अपनी शादी वाले दिन तक समेट लेना चाहती हूँ.. ताकि मैं मर भी जाऊँ तो भी तुम्हारे प्यार से पूरी होकर- मरूँ.. तब तक कोई अधूरापन ना हो..
मैंने उसके कान पकड़े और उससे कहा- ये मरने-जीने की बातें कहाँ से आ गईं। तृषा- इस्स्स्स.. अब शादी को लोग बर्बादी भी तो कहते हैं और बर्बादी में सब जीते कहाँ हैं। मैं- बातें बनाना तो कोई तुमसे सीखे।
उसने हमेशा की तरह वैसे ही चहकते हुए कहा- वैसे जान.. मेरे आज के प्यार का कोटा अब तक भरा नहीं है। मैं- ह्म्म्म.. वैसे जान यूँ खुले-खुले आसमान के नीचे कोटा फुल करने में मज़ा आएगा न.. तृषा- सबर करो मेरे शेर.. नीचे शिकारी हमारी राह देख रहे होंगे.. अब मैं जाती हूँ…
‘मैं जाती हूँ अब…’
मेरे जेहन में ये शब्द बार-बार गूंजने लगे थे। जैसे-जैसे वो अपनी कदम वापिस नीचे की ओर बढ़ा रही थी.. वैसे-वैसे मेरे दिल का वो भारीपन वापस आ रहा था।
मैं हाथ बढ़ा कर उसे रोकना चाह रहा था.. पर मानो मैं वहीं जड़ हो गया था। अब वो चली गई थी।
मैंने अपना मोबाइल निकाला और रेडियो ऑन किया.. गाना आ रहा था- दर्द दिलों के कम हो जाते.. मैं और तुम.. गर हम हो जाते। थोड़ी देर बाद दरवाज़े के खुलने की आवाज़ आई और तृषा और उसके मम्मी-पापा अपने घर की ओर चल दिए। तृषा के बढ़ते कदम और इस गाने के बोल।
‘इश्क अधूरा.. दुनिया अधूरी.. मेरी चाहत कर दो न पूरी। दिल तो ये ही चाहे… तेरा और मेरा हो जाए मुकम्मल ये अफसाना। दूर ये सारे भरम हो जाते.. मैं और तुम गर हम हो जाते।’
पता नहीं रब को क्या मंज़ूर था।
अब मैं अपने कमरे में आ चुका था। मेरे व्हाट्सएप पर तृषा का मैसेज आया था ‘अपने प्यार को यूँ दर्द में देखना इस दुनिया में किसी को भी गंवारा नहीं होगा। तुम्हें ऐसे देख कहीं मैं ना टूट जाऊँ। मुझसे लड़ो.. झगड़ो.. मुझे कुछ भी करो.. पर यूँ खुद को जलाओ मत.. क्यूंकि जब-जब आग तुम्हारे सीने में लगती है.. जलती मैं हूँ..- तुम्हारी टीपू सुलतान’ मैं अक्सर इसी नाम से उसे चिढ़ाता था।
मैं अपने बिस्तर पर था.. पर मुझसे नींद तो मानो कोसों दूर थी। बस दिमाग में तृषा के साथ बिताए लम्हे फ़्लैश बैक फिल्म की तरह चल रहे थे।
तृषा के साथ बिताए वो पल.. मेरी सबसे हसीन यादों में से एक थे। आज उसकी शादी तय हो चुकी थी.. वो अब बहुत जल्द किसी और की होने वाली थी। पता नहीं.. उसके बाद मैं उसे कभी देख भी पाऊँ या नहीं.. पर एक काम तो मैं कर ही सकता था.. इन बाकी बचे हुए दिनों में ही अपनी पूरी जिंदगी जी लेना.. उसके साथ का हर लम्हा अपनी यादों में कैद कर लेना।
मैं जानता हूँ.. जिंदगी यादों के सहारे नहीं जी जा सकती है.. पर जब ज़िंदगी में साथ की कोई उम्मीद ही ना हो.. तो ये यादें ही हमेशा साथ निभाती हैं। मुझे तृषा के दर्द का एहसास था, अब मैं उसे और नहीं रुलाना चाहता था। मैं तृषा के साथ बिताने वाले वक़्त की कल की प्लानिंग करने लग गया..
सुबह के दस बजे थे। मैं नाश्ते के लिए बैठा ही था कि तृषा का फ़ोन आया। मम्मी ने कॉल रिसीव किया और फिर मुझे कहने लगी।
‘बेटा वो तृषा को शादी की तैयारी करनी है.. उसे तुम्हारी मदद चाहिए.. और हाँ.. तुम्हारा आज के नाश्ते से रात के खाने तक का इंतज़ाम वहीं है।’
मैं मन ही मन में बोलता रहा कि अरे मेरी भोली माँ.. वो तेरे बेटे को खिलाने को नहीं.. बल्कि खाने की तैयारी में है। दिल का तंदूर उसने बना ही दिया है अब पता नहीं क्या-क्या पकाने वाली है।
खैर.. अब नाश्ता करता तो मम्मी भी नाराज़ हो जातीं.. सो मैं उठा.. अपने हाथ धोए और तृषा के घर चला गया। दरवाज़ा पर तृषा खड़ी थी। मैं- क्यों जी.. मैदान खाली है क्या?
तृषा ने हँसते हुए कहा- ह्म्म्म.. सबको दूसरे शहर भेज दिया है.. मेरी शादी का जोड़ा लाने.. अब तो कल ही आ पायेंगे!
मैं- और आपने अपना हनीमून प्लान कर लिया।
तृषा मुझे रोकते हुए बोली- तुम्हारा हर इलज़ाम कुबूल है मुझे.. पर ये नहीं.. तुमसे प्यार किया है मैंने.. और पहले भी तुमसे कह चुकी हूँ… तुम्हारी थी.. तुम्हारी हूँ और हमेशा तुम्हारी ही रहूँगी।
मैं शायद कुछ ज्यादा ही कह गया था। फिर बात को संभालते हुए मैंने कहा- तो आपको शादी की तैयारी में हेल्प चाहिए थी.. अब बताओ ‘फूट मसाज’ दूँ या ‘फुल बॉडी मसाज’ चाहिए।
तृषा- ह्म्म्म… मौके का फायदा.. जान पहले आराम तो कर लो.. मैं कुछ खाने के लिए लेकर आती हूँ। यह कहते हुए जैसे ही रसोई में जाने को हुई.. मैंने उसका हाथ पकड़ा और गोद में उठा लिया और उसके बेडरूम में ला कर पटक दिया।
तृषा- बड़े बदमाश हो तुम.. बड़े नादान हो तुम.. हाँ.. मगर ये सच है.. हमारी जान हो तुम.. ये कहते हुए उसने अपने होंठ मेरे होंठों से मिला दिए।
कहानी पर आप सभी के विचार आमंत्रित हैं। कहानी जारी है। [email protected]
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