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अपने लिंग को शांत करने के लिए जब मैं हस्तमैथुन करके बाथरूम से बाहर निकला तब देखा की प्रीति बाथरूम के दरवाज़े के पास खड़ी मुस्करा रही थी।
उसकी मुस्कराहट देख कर मैं समझ गया कि उसने मेरे द्वारा बाथरूम के अंदर करी गई हर क्रिया को देख लिया था। उसके बाद प्रीति ने धुले हुए कपड़ों की गठरी उठाई और अगले दिन आने के लिए कह कर चली गई।
शाम को मैं अपने दोस्तों के साथ सिनेमा देखने चला गया और रात को दस बजे जब कमरे पर पहुँचा तो देखा की प्रीति मैले कपड़ों की एक गठरी के साथ अन्दर बैठी हुई थी। इतनी रात गए प्रीति को अपने कमरे देख कर मैं थोड़ा हैरान और परेशान हो गया और उससे पूछा- क्या बात है इस समय तुम यहाँ क्या कर रही हो? तुमने तो कल आने के लिए कहा था?
मेरे प्रश्न के उत्तर में उसने कहा- मेरे सास-ससुर और देवर शाम की गाड़ी से एक सम्बन्धी के अंतिम संस्कार के लिए बाहर चले गए है। घर पर कपड़ों की धुलाई एवं प्रेस करने के लिए मुझे अकेली छोड़ गए हैं।
मैंने उससे प्रश्न किया- फिर तुम्हें अपने घर में ही रहना चाहिए था, तुम मेरे कमरे में क्यों आई हो?
उसने तुरंत उत्तर दिया- मुझे उस बस्ती में अकेले रहते हुए डर लगता रहा था और मुझे सुबह तो यहाँ आना ही था इसलिए सोचा कि रात को ही यहीं सो जाऊँगी। यहाँ आप हैं इसलिए मुझे रात में अकेले रहने का डर भी नहीं लगेगा।
मैंने कहा- तुमने यह कैसे सोच लिया कि मैं तुम्हें अपने कमरे में सोने दूंगा? और यहाँ सिर्फ एक ही बिस्तर है तो तुम कहाँ पर सोओगी? प्रीति का उत्तर था- मुझे विशवास है कि आप दयावान दिल के हैं इसलिए मुझे ज़रूर अपने कमरे में सोने देंगे। जहाँ तक सोने की बात है मैं कमरे के किसी भी कोने में अपने साथ लाई चादर बिछा कर सो जाऊँगी।
मैंने कहा- प्रीति मुझे यह ठीक नहीं लगता कि तुम रात के समय मेरे साथ अकेले में इस कमरे में रहो। पलट कर प्रीति ने उत्तर दिया- तो क्या किसी नग्न नहाती हुई युवती को छुप छुप कर देखना ठीक होता है?
उसकी इस बात पर मैं निरुत्तर हो गया और उस बात को वहीं समाप्त करते हुए उससे पूछा- अच्छा यह बताओ कि तुमने कुछ खाया भी है या नहीं?
मेरी इस बात पर उसने झट से उठ कर गठरी में से एक पोटली निकाली जिसमे कुछ रोटी और अचार था और बोली- मैं तो घर से रोटी बना कर लाई थी। लेकिन जब तक यहाँ पर रहने की अनुमति नहीं मिलेगी तब तक खा नहीं पाऊँगी। मैंने उसे कहा- अब तो तुम्हे यहाँ पर रात के लिए सोने की अनुमति मिल गई है अब तो तुम रोटी खा लो।
तब वह उठी और हीटर के पास मेरे लिए ढाबे से आया खाना उठा कर ले आई और कहा- आपने भी तो अभी तक रात का खाना नहीं खाया है इसलिए जब आप खायेंगे तब ही मैं भी खाऊँगी।
इसके बाद उसने हीटर जला कर उस पर मेरे लिए खाना गर्म करना शुरू कर दिया तब मैंने उसे उसकी रोटी भी गर्म कर लेने के लिए कहा।
प्रीति ने बिस्तर पर एक अखबार बिछा कर उस पर मेरे लिए गर्म खाना लगा दिया तथा अपना खाना नीचे लेकर खाने के लिए बैठ गई। मैंने उसे ऐसे करते हुए देख कर विरोध किया और अनजाने में उसे पकड़ कर बिस्तर पर बिठा दिया।
खाना खा कर जब मैं हाथ धोने के लिए बाथरूम में गया तब उसने सभी बर्तन उठा कर बाहर बालकनी में रख दिए और अपनी चादर को कमरे के एक कोने में बिछा दिया।
मैंने बाथरूम अपने सभी कपड़े उतार कर रात के सोने के कपड़े पहने और कमरे में आया तो देखा की प्रीति ब्लाउज एवं पेटीकोट में खड़ी अपनी उतारी हुई साड़ी को लपेट रही थी।
मैंने अधिक बात न करते हुए अपने बिस्तर पर लेट गया और उसे कह दिया कि बत्ती बंद कर के सो जाए।
एक सुन्दर युवती, जिसे दिन में मैंने पूर्ण नग्न देखा था, के कमरे में होने के कारण मुझे नींद नहीं आ रही थी और मैं बार बार सिर ऊँचा कर उसे देख रहा था। करीब एक घंटे के बाद मुझे प्रीति की हल्की सी चीख सुनाई दी तब मैंने बत्ती जला कर देखा तो उठ कर अपनी चादर उठा कर झाड़ रही थी। मैंने पूछा- क्या हुआ, तुम चीखी क्यों थी और यह चादर क्यों झाड़ रही हो?
प्रीति ने उत्तर दिया- पता नहीं… मेरे ऊपर कोई कीड़ा चढ़ आया था और डर के मारे मेरी चीख निकल गई।
तब मैंने ध्यान से देखा तो पाया कि प्रीति ने अपनी चादर नाली के पास बिछा रखी थी इसलिए उसमें से आने जाने वाले कीड़े उसके ऊपर से चढ़ रहे थे।
मैंने प्रीति को यह बात समझाई और कहा- अब अगर तुम चाहती हो की हम दोनों आराम से सो जाए तो एक ही रास्ता है। तुम्हें मेरे साथ बिस्तर पर ही सोना पड़ेगा, नहीं तो सारी रात ऐसे ही नाचती रहोगी और मुझे भी नचाती रहोगी।
प्रीति ने पहले तो ना कर दी लेकिन जब मैं बत्ती बंद करके बिस्तर पर लेट गया तब वह बहुत ही आहिस्ता से आकर मेरे बगल में मेरी ओर पीठ करके लेट गई।
उसके मेरे साथ लेटते ही मेरे लिंग महाराज में चेतना जागृत हो गई और नीचे अंडरवियर नहीं पहने होने के कारण उसने मेरी कैपरी को तम्बू बना दिया।
आधे घंटे के बाद जब मैं अपनी उत्तेजित वासना पर नियंत्रण खो बैठा और मैं प्रीति की ओर करवट ली और उसके नितम्बों की दरार में अपने लिंग को दबाना शुरू कर दिया तथा अपनी हाथ से उसके उरोजों को सहलाने लगा।
मैं डर रहा था कि कहीं प्रीति मेरी इस हरकत का विरोध न करे लेकिन अचम्भा तब हुआ जब उसने अपने ब्लाउज के बटन खोल कर मेरे हाथ में अपने नग्न उरोजों को मसलने का न्योता दे दिया।
प्रीति की तरफ से हरी झंडी मिलने के बाद मैंने उसे खींचा तो वह मेरी ओर करवट करके लेट गई और मुझे अपने उरोजों को मसलने एवं चूसने दिए।
दस मिनट के बाद मैंने उसके उरोजों को छोड़ कर उसके होंठों पर आक्रमण कर दिया और उन्हें चूसने लगा तब प्रीति ने मेरा पूरा साथ दिया और वह भी मेरे होंठों और जीभ को चूसने लगी।
मुझे प्रीति के सम्पूर्ण सहयोग एवं सहमति की पुष्टि तब हुई जब उसने मेरी कैपरी में हाथ डाल कर मेरे लिंग को पकड़ लिया और उसे सहलाने लगी।
मैंने जब उसके पेटीकोट का नाड़ा खोला तब उसने अपने कूल्हे उठा दिया ताकि मैं उसको नीच सरका कर उसके बदन से अलग कर सकूँ। जब पेटीकोट उतर गया तब प्रीति ने मेरे कान को चूमते हुए धीरे से फुसफसाया- मेरा ब्लाउज तंग कर रहा है उसे भी निकाल दो और अपने सभी कपड़े भी उतार दो तो अच्छा रहेगा।
उसकी बात मानते हुए मैं उठ कर बैठ गया और उसे थोड़ा ऊँचा कर के उसकी बाजुओं में फसे हुए ब्लाउज को निकाल कर पेटीकोट के पास फेंक दिया। फिर अपनी बनियान उतार दी और अपने कूल्हों को थोड़ा ऊंचा कर के प्रीति को मेरी कैपरी नीचे सरकाने के लिए कहा।
उसने तुरंत दोनों हाथों से कैपरी को खींच कर नीचे कर दी और जब मैंने टांगें उठाई तो उसने उसको मेरे शरीर से अलग करते हुए अपने पेटीकोट और ब्लाउज के ऊपर फेंक दी।
अब हम दोनों बिल्कुल नग्न एक दूसरे से लिपटे हुए होंठों पर चुम्बन ले रहे थे और प्रीति के उरोज मेरी छाती के साथ चिपके हुए थे तथा मेरा लिंग उसकी दोनों जाँघों के बीच में उसकी योनि का मुख चूम रहा था।
पांच मिनट के बाद प्रीति उठ कर पलटी हो कर मेरे लिंग को अपने मुँह में ले कर चूसने लगी तथा अपनी योनि को मेरे मुँह पर चाटने के लिए लगा दी। मैं भी अपनी जीभ से उसकी योनि के होंठों को चाटने लगा और बीच बीच में उसके भगनासा को जीभ से ही मसल देता। जब जब मैं उसके भगनासा पर वार करता तब तब वह सिस्कारियाँ लेते हुए उछलती और मेरी जीभ उसकी योनि के अंदर तक घुस जाती।
प्रीति भी बहुत ही प्यार से मेरे मेरे लिंग को चूसती रही और बीच बीच में जब वह अपनी जीभ की नोक को लिंग के छिद्र में डालने की कोशिश करती तब मुझ झुरझुरी होती और मेरे पूर्व-रस की दो बूँद की एक किश्त उसके मुँह में टपक पड़ती।
वह बड़े प्यार से उन दो बूंदों की किश्त को अमृत समझ कर निगल जाती और फिर अगली दो बूंदों की किश्त के लिए लिंग को चूसने लगती। दस मिनट तक की चुसाई के बाद प्रीति ने ऊँचे स्वर में एक लम्बी सिसकारी ली और अपनी टांगें सिकोड़ ली जिसके कारण मेरा सिर उसकी जाँघों में फंस गया। मैं अपने को उसकी जाँघों के बीच से छुड़ाने की कोशिश कर रहा था तभी प्रीति ने अपनी योनि में से स्वादिष्ट योनि-रस की बौछार कर दी जिसे पीने से मेरी उत्तेजना को आग लग गई।
मैंने एक बार फिर प्रीति के भगनासा को जीभ से मसलने लगा और देखते ही देखते उसने ऊँचे स्वर में एक लम्बी सिसकारी ली और एक बार फिर स्वादिष्ट योनि-रस की बौछार कर दी।
इसके बाद उसने मेरे लिंग को बहुत ही जोर से चूसा और उसमें से सारा पूर्व-रस खींच कर पी लिया और फिर अपने को मुझसे अलग कर के अपनी टांगें चौड़ी करके लेट गई। मैं समझ गया की अब वह सम्भोग के लिए तैयार थी इसलिए मैंने फुर्ती से उठ कर उसकी टांगों के बीच में बैठ गया और अपने लिंग को उसकी योनि के होंठों के बीच में फसा कर धक्का लगाया। लेकिन मेरा लिंग उसकी योनि में नहीं घुसा और एक तरफ फिसल गया।
फिर मैंने प्रीति के हाथ में अपना लिंग दे दिया और उसे योनि के मुँह पर रखने के लिए कहा। जैसे ही प्रीति ने मेरे लिंग को अपनी योनि के होंठों में फसाया मैंने जोर से धक्का दे दिया और लिंग-मुंड को उसकी योनि के अंदर डाल दिया। प्रीति के मुँह से जोर की एक चीख निकली तथा सिर हिलाते हुए सिस्कारियाँ भरते हुए तड़पने लगी। मैं कुछ देर के लिए वहीँ रुक गया और उसके होंठों को चूमने एवं चूसने लगा। जैसे ही प्रीति की तड़प एवं सिस्कारियाँ बंद हुई में अपने लिंग का दबाव बढ़ाया और धीरे धीरे वह लिंग उसकी योनि-रस से गीली योनि में घुसने लगा।
अगले पांच मिनट में मैंने अपना साढ़े छह इंच लम्बा लिंग प्रीति की तंग योनि में जड़ तक डाल ही दिया।
तब मैंने प्रीति के उरोजों को चूसते हुए पूछा- प्रीति, तुम इतना चिल्लाई क्यों? क्या पहली बार सम्भोग कर रही हो? क्या बहुत दर्द हुआ जो तुम्हारी आँखों से आंसू निकल आये? कहानी जारी रहेगी।
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