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दोस्तो, मैं आपकी इकलौती लाड़ली प्यारी चुदक्कड़ जूही.. एक बार फिर अपनी प्यार और चुदाई की दास्तान लेकर प्रस्तुत हुई हूँ। आप लोगों ने जो मेरी सभी चुदाइयों की कहानियों को सराहा.. उसके लिए मैं झुक कर नमन करती हूँ। आशा है आप यूं ही मेरी चूत और चुदाई की सराहना करते रहेंगे।
पूर्व में आपने पढ़ा था..
अब्दुल फिर से सविता को चोदने को तैयार था। अब्दुल अब ने सविता को कुतिया की स्टाइल में बिठा दिया और सविता की कमर से सट कर बैठ गया। फिर उसने अपना लंड निकाला और सीधे सविता की गांड में घुसाने लगा।
सविता का दर्द फिर से असहनीय हो रहा था.. पर दर्द चूत की चुदाई से नहीं.. गांड की चुदाई से हो रही थी और मैं उसके साथ चुदने को तैयार थी।
दूसरी तरफ पीटर मेरी चूत में अपनी उंगली घुसेड़ कर मेरी पूरी चूत को कुरेद रहा था। मैंने अपने हाथ से नरम-गरम लंड को सहलाना शुरू किया और लंड भी अपने विराट रूप में आने लगा था।
मेरी चूत के आस-पास पूरा बदन लाल हो गया था। मैंने सोचा 69 की पोजीशन में पीटर की लपलपाती जीभ से चूत को चटवाती हूँ.. इसलिए मैं पीटर के ऊपर उल्टा लेट गई।
पीटर का विराट लंड के सामने था और मेरी मासूम सी चूत पीटर के सामने थी। पीटर का तना हुआ लंड मैं फिर से चूसने को तैयार थी। इसके बाद बार-बार वही सब.. असल में मुझे भी याद नहीं कि किसकी चूत में किसकी गाण्ड में किसका लण्ड था..
बस ऐसे ही चोदम-चुदाई तब तक चलती रही थी.. जब तक हम चारों थक कर पस्त हो कर गिर नहीं गए.. थोड़ी देर तक उसी अवस्था में हम लोग एक-दूसरे में लीन रहे।
जब नींद खुली तो रात के नौ बज गए थे।
कुछ ही समय में सविता का जन्मदिन था.. इसलिए मैंने अब्दुल्लाह और पीटर को ऊपर ही पड़े रहने दिया और झट से टी-शर्ट और पजामा घुसाया और नीचे आ गई।
पीटर से मैंने रात की पार्टी की बात की.. तो पीटर ने कहा- और लोग होते तो ज्यादा मज़ा आता।
पीटर ने अपने कुछ दोस्तों को बुलाने के बारे में मुझसे पूछा.. तो मेरा दिमाग ठनका और मैंने आव देखा न ताव.. और फट से ‘हाँ’ कर दी।
पीटर ने भी तुरंत दोस्तों को फ़ोन लगाया.. उन्हें पूरा प्लान बता दिया और सविता के घर आने के लिए कहा। उन्होंने ने भी ‘हाँ’ कर दी और थोड़ी देर में आने का कह कर फ़ोन रख दिया।
मैंने सोचा इतने लोग रहेंगे और खाने के लिए कुछ तो लाना पड़ेगा। मैंने तुरंत ऑनलाइन आर्डर किया और दो केक मंगवा लिए.. एक सविता और दूसरा मेरे लिए.. साथ ही छ: बड़े पिज़्ज़ा भी ऑनलाइन आर्डर कर दिया।
कुछ ही देर में पिज़्ज़ा और केक आ गए और मैंने पिज्जा हॉटकेस में और केक फ्रिज में रख दिया।
थोड़ी देर में पीटर के चार दोस्त भी आ गए और उनके हाथ में दो बड़े-बड़े थैले थे। एक में जहाँ दस-पंद्रह बियर की बोतलें थीं.. तो वहीं दूसरे में पिज़्ज़ा थे। मेरे तो दिमाग से दारू निकल ही गई थी.. पर शुक्र है इन सांडों को याद रहा। खैर छोड़ो.. किसे क्या याद रहा.. किसे नहीं..
मैंने उनसे सामान लेकर यथा स्थान पर रख दिया और सारे दोस्तों को ड्राइंग-रूम में बिठा दिया।
फिर पीटर ने मुझे एक-एक करके अपने दोस्तों से मिलाना शुरू किया। एक जो सबसे लम्बा था.. उसका नाम था.. जेरोम, दूसरा जो सबसे मोटा था.. उसका नाम था.. टोनी, तीसरा जो सबमें सबसे पतला था.. उसका नाम था तमाम.. और चौथा जो सबसे हंसमुख और सबसे काम काला था.. उसका नाम था क्रिस..
बातों-बातों में रात के ग्यारह कब बज गए.. पता ही नहीं चला।
मैं सविता और अब्दुल्लाह को बुलाने ऊपर चली गई और पीटर अपने दोस्तों के साथ मस्ती-मज़ाक करने लगा। मैं ऊपर पहुंची तो देखा अब्दुल्लाह और सविता दो जिस्म और एक जान की तरह एक-दूसरे से लिपटे सो रहे थे। मैंने चुपके से अब्दुल्लाह को उठाया और कहा- सविता को प्यारी से झप्पी देकर उठा दे..
उसने फट से अपना लंड सविता के मुँह से सटा दिया और उठाने लगा। सविता भी अपने उस लंड को चाटते-चाटते आँखें खोलने लगी।
मैंने सविता को पूरा प्रोग्राम बताया.. और कहा- तैयार होकर नीचे आ जाओ। सविता ने भी जल्दी-जल्दी में साड़ी पहनी और मेरे साथ नीचे चल दी।
नीचे फिर से मेल-जोल का कार्यक्रम चलने लगा.. उधर मैंने स्पीकर पर गाने चालू कर दिया और सब लोग उछल-कूद करने लगे और मज़े से झूमने लगे।
इसी तरह नाचते-कूदते कब बारह बज गए.. पता ही नहीं चला।
पीटर केक ले आया और हम लोगों ने सविता को घेर लिया और फिर ‘हैप्पी बर्थ-डे सविता’ चिल्लाने लगे।
सविता ने केक काटा और केक का पहला निवाला जो कि मुझे उम्मीद थी कि मुझे मिलेगा.. वो सविता ने अब्दुल्लाह को खिला दिया। एक दिन के लंड ने सविता और मेरी दोस्ती को तितर-बितर कर दिया। खैर छोड़िए… लंड साली चीज़ ही ऐसी है..
फिर ऐसे आवारा सांड जैसे लंड होंगे.. तो फिर कुछ भी मुमकिन है। अब्दुल्लाह ने भी फुर्ती दिखाई और फट से सविता के बालों को पीछे से पकड़ा और उसका मुँह केक में घुसा दिया।
उधर मेरे और पीटर के दिमाग में कुछ और ही खुराफात चल रही थी। हमने मुट्ठी से केक उठाया और सविता की साड़ी के अन्दर हाथ घुसा कर उसकी चूत और गांड में केक घुसा दिया।
जैसे ही हमने हाथ घुसाया.. सविता आश्चर्यचकित होकर उछल पड़ी और मुझे बड़ी-बड़ी आँखें निकाल कर घूरने लगी.. पर बेचारी इतने लोगों के सामने कुछ कर भी तो नहीं सकती थी। इसलिए उसने इस सब को नजरअंदाज करना ही ठीक समझा।
फिर हम लोग पीने लगे.. डकारने लगे। जहाँ एक ओर मुझे पीटर और उसके दोस्तों ने घेर रखा था.. वहीं सविता भी अब्दुल्लाह की बाँहों में बाँहें डाल कर अब्दुल्लाह और तमाम के साथ खेल-कूद रही थी।
जब हम थक गए तो सोफे पर बैठ गए और पिज़्ज़ा निकाल कर खाने लगे।
मैंने सविता को रसोई में बुलाया और पूछा- क्या सीन है अब.. सिर्फ पार्टी करनी है या और ‘कुछ’ करने का भी मूड है..? सविता बोली- एन्जॉय करते हैं यार.. फिर कहा- तू आने वाली है..? और इतना मज़ा पता नहीं.. फिर कभी हो पाएगा या नहीं। मैंने कहा- ठीक है..
फिर सविता और अब्दुल्लाह कुछ बातें करने लगे.. तो मैंने पीटर को बुला कर फ्रिज से केक.. कुछ बियर और पिज़्ज़ा लेकर अपने कुछ दोस्तों के साथ ऊपर जाने को कहा। पीटर के तीन दोस्त ये सब लेकर ऊपर जाने लगे।
मैंने सविता को कहा- तू नीचे मज़े कर.. मैं ऊपर जाती हूँ।
सविता ने भी ‘हाँ’ में अपना सर हिलाया। जैसे ही हम लोग जाने लगे.. सविता और अब्दुल्लाह ने केक अपने हाथों में लिए और ठीक जैसे मैंने और पीटर ने सविता के साथ किया.. वैसा ही इन दोनों ने मेरे साथ किया।
मेरे पजामे के अन्दर इन्होंने मेरी चूत और गांड में केक रगड़ दिया। मैंने भी चूत में ऊँगली घुसाई और केक निकाल कर चाट लिया.. और ऐसे चटखारा लिया.. जैसे कि मुझे बड़ा अच्छा लगा हो।
ये सीन देख कर तो सविता का चेहरा देखने लायक था।
फिर क्या था.. हम लोग ऊपर आ गए और अब्दुल्लाह.. तमाम और सविता को नीचे छोड़ दिया।
हम लोग ऊपर आए तो देखा पीटर के दोस्त ऊपर बैठे थे। पीटर भी आकर बैठ गया और मैं पीटर के बगल में बैठ गई। हम लोग एक-एक गिलास बियर लेकर बैठ गए और बातें करने लगे। बातों-बातों में पीटर कहने लगा- कहाँ से सब शुरू होगा..
मैंने एक पैन-पेपर लिया और चारों के नाम की चिट बनाई और किस तरह की क्रिया होगी.. इसका भी चिट बना कर रख दिया।
अब खेल शुरू हुआ और जब मैंने पहली चिट उठाई.. तो उसमें जेरोम का नाम था और मिशन था.. चुम्बन। बाकी चिल्लाने लगे और मैं हँसते-हँसते जेरोम के पास चली गई और उसके होंठों को चुम्बन किया और वापिस आ गई।
अब मैंने दूसरी बार चिट उठाई तो उसमें पीटर का नाम निकला और मिशन था ‘बूब-सकिंग’.. मैंने अपनी टी-शर्ट ऊपर उठाई और अपने मम्मे पीटर के होठों से लगा दिए और थोड़ी देर तक पीटर मेरे दूध चूसता रहा फिर हम बैठ गए।
इतने में माहौल गरम होने लगा था.. मेरे मम्मों का जलवा सबके लौड़ों को झनझना गया था।
तीसरी चिट में नाम निकला क्रिस का.. जिसमें था ‘ब्लोजॉब’..
मैं क्रिस की तरफ गई और मैंने उसका निक्कर नीचे खिसकाया और उसका तना हुआ लंड फटाक से बाहर आ गया.. मैंने उसे दोनों हाथों से पकड़ा और चूसने लगी। हाल में सिस्कारियां गूँजने लगी थीं.. मैंने धीरे-धीरे लौड़ा चूसने की गति तेज कर दी… पर क्रिस का वीर्य तो निकलने का नाम ही नहीं ले रहा था।
मैंने लण्ड चूसने की स्पीड और तेज की.. तब जाकर कुछ देर में उसका क्रीम जैसे गाढ़ा वीर्य बाहर आया।
अब बंदा तो एक ही बचा था.. इसलिए मैंने सिर्फ मिशन की पर्ची निकाली.. जिसमें था लिकिंग..
इशारा साफ़ था.. अब मेरी चूत में लगा केक कटने वाला था।
मैंने अपना पजामा खोला और टोनी की बगल में जाकर बैठ गई।
टोनी ने मेरे टांगें चौड़ी कीं और अपनी लम्बी सी जीभ.. मेरी चूत की पंखुड़ियों पर लगा कर मेरी चूत में लगे केक को चाट कर साफ़ करने लगा। मैं टोनी के सर पर हाथ फेरने लगी.. और टोनी मेरी चूत चाटने में व्यस्त था।
हमारे पास एक एक्स्ट्रा केक था.. इसलिए हमने केक काटना ही उचित समझा.. पर ये केक किसी साधारण तरीके से हम नहीं काटने वाले थे। हमने ये विचार किया कि क्यों न सब नग्न अवस्था में होकर ही इस केक को काटें..।
मेरे आधे कपड़े तो पहले ही निकल चुके थे.. बाकी बची टी-शर्ट भी ज्यादा देर तक नहीं रह पाई और जेरोम ने वो भी निकाल दी। मैंने भी एक-एक करके सब मर्दों के कपड़े निकाल दिए और हम सब घेरा बना कर खड़े हो गए।
इन सभी काले लौंडों में.. मैं एक अकेली एक गोरी छोरी थी.. ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो मैं ही इन सबकी महारानी हूँ.. सुनकर बड़ा अच्छा लगता है.. ही.. ही.। खैर छोड़िए.. इन सब बातों को ओर अपनी काम-क्रीड़ा को आगे बढ़ाते।
हमने केक रखा और फिर केक काटने के लिए चाकू ढूंढा.. पर वो मिला नहीं.. तो मैंने सोचा इतने सारे नुकीले हथियार खड़े हैं.. ये कब काम आएंगे। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं ! मैंने जेरोम का लंड पकड़ा और केक को उसके लंड से काटा और फिर उसका लंड चूस कर केक खाया।
अब यहाँ तो चार-चार चाकू थे इसलिए मुझे चार बार केक काटना पड़ा और चार-चार बार लंड चूस कर उससे केक साफ़ किया।
मैंने तो केक खा लिया.. पर अब इन भूखे शेरों की बारी थी… इसलिए इन्होंने सबसे पहले तो एक बार फिर मेरी चूत में केक ठूंस दिया और गांड को भी नहीं बक्शा.. ऐसा लग रहा था.. सही बर्थडे तो मेरी चूत का ही हो रहा था..
इसके पश्चात इन्होंने मेरे अंग-अंग में केक रगड़ दिया और फिर मुझे फर्श पर लिटा दिया और केक चाटने लगे। जहाँ एक तरह इन्होंने मुझे सीधा लिटा दिया और खुद आकर मेरे अंग-अंग को निचोड़ने लगे।
एक जहाँ मेरी चूत की पंखुड़ियों में घुस कर अठखेलियां कर रहा था.. दूसरा मेरी नाभि को तितर-बितर कर रहा था.. वहीं तीसरा मेरी एक चूची को चूसते ही जा रहा था और चौथा मेरे दूसरे मम्मे को अपने दाँतों से मसल रहा था।
मैं चुपचाप लेटी बस मजा ही ले सकती थी.. भला करती भी क्या.. एक नन्ही सी जान और इतने सारे गरमाए हुए सांड।
जब इनका मन भरने लगा.. तो ये मेरे दूसरे अंगों को निशाना बनाने लगे।
एक ने जहाँ मुझे अपने होंठों के ऊपर बिठा लिया और मेरी गांड चाटने लगा। वहीं दूसरा मेरी चूत से अटखेलियां करने लगा। तीसरे ने फटाक से अपना लंड मेरे मुँह में घुसेड़ मारा और मुँह की चुदाई चालू कर दी और चौथे का लंड पकड़ कर मैं हिलाने लगी।
इन कमीने काले सांडों ने मुझे एक सेकंड के लिए भी अकेले नहीं छोड़ा.. आगे कैसे हमने चुदाई का लुत्फ़ लिया.. आपको अगले भाग में बताऊँगी।
आपको मेरी कहानी कैसी लगी, मुझे पर मेल करके जरूर बताइयेगा। प्लीज इस कहानी के नीचे अपने कमेंट जरूर लिखिएगा और रेट करना मत भूलिएगा धन्यवाद। आपकी प्यारी चुदक्कड़ जूही परमार [email protected]
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