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पिछले भाग में आपने पढ़ा कि नीलम अपने भाई भाई की सुहागरात की चुदाई का आँखों देखा हाल सुना रही थी। अब आगे: उनको खिड़की की तरफ आता देख मैं भी अपने रूम के ओट में हो गई यह देखने के लिये कि अब भैया भाभी क्या करेगें। देखा कि भैया ने भाभी को उठा कर खिड़की पर बैठा दिया और बोले लो अब मूत लो लेकिन ध्यान रखना कि सुबह सबसे पहले बारजा धो लेना। जब भाभी मूत ली तो भैया बोले- मैं तेरे लिये सोने के कंगन और सेक्सी ब्रा और पैंटी लाया हूँ, कल सुबह पहन लेना। इतना कहकर दोनों सोने के लिये चले गये।
एक बार मैं फिर उनकी खिड़की की तरफ चल दी तो दोनों ही नंगे एक-दूसरे से चिपक कर को रहे थे। उसके बाद मैंने भी अपने पूरे कपड़े उतरे और सोने के लिये चल दी।
भैया-भाभी की चुदाई की कहानी सुनाने के बाद नीलम ने मेरे होंठो को चूमना शुरू कर दिया। एक तरीके से वह मेरी जीभ का भी रसास्वादन कर रही थी। रसास्वादन करते-करते नीलम बोली- शरद आज मैं तुमसे चुदने ही आई हूँ, आज मुझे जी भर के चोदो… मेरी जन्म-जन्म की प्यास बुझा दो।
मैं अगर अपनी बात कहूँ तो नीलम के अलावा उस तरह का सेक्स का मजा मुझे फिर कभी नहीं आया।
नीलम धीरे से मेरे निप्पल को चाट रही थी और बीच-बीच में वो दाँत गड़ा देती जिसका असर यह होता कि मैं भी उसके निप्पल को पकड़ कर मरोड़ देता, जिससे वो सिसकारने लग जाती।
‘शरद मेरी एक बात मानोगे?’ ‘हाँ बोलो…’
‘जैसा-जैसा मैं कहूँ, वैसा-वैसा तुम करना, मैं तुम्हें स्वर्ग का आनन्द दूँगी। और यह मत बोलना यह गन्दा है, वो गन्दा है… बस करते जाना।’ ‘ठीक है आज मैं तुम्हारी सब बात मानूगा। मैं साथ हि साथ उसकी बुर मैं उँगली करने लगा, वो गीली हो चुकी थी और उसका रस मेरे हाथो में था। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं ! तभी उसने मेरा हाथ पकड़ा और अपने पूरे बदन को टच करते हुए उँगली को अपने मुँह में ले गई और रस को चूस लिया और अपनी जीभ मेरे में डाल दी।
हम लोग 69 की अवस्था में आ गये, वो मेरा लण्ड चूस रही थी और मैं उसकी चूत को चाट रहा था और उसकी चूत से आते हुए रस का मजा ले रहा था, ऐसा लग रहा था कि जैसे मैं कोई मलाई चाट रहा हूँ।
इतने में मैं भी झर गया और उसने भी मेरी मलाई को पूरा चाट गई। फिर हम दोनों एक दूसरे से अलग हुए और थोड़ी देर निढाल होकर जमीन पर ही लेटे पड़े रहे और नीलम बड़े प्यार से मेरे लौड़े को पकड़ कर सहला रही थी और मैं उसकी चूची को दबाता तो कभी उसके निप्पल मैं चिकोटी कटाता।
नीलम मुझसे बिल्कुल सट कर लेटी थी और अपनी एक टांग मेरे जांघों के ऊपर रखे हुए थी। कभी-कभी तो मेरे सुपाड़े के आवरण को बड़ी बेदर्दी से इस प्रकार नीचे की ओर करती थी कि मेरे मुँह से हल्की सी सीत्कार निकल जाती थी और फिर अपने नाखून से उस कटी हुई जगह को कुरेदती थी। उसकी इस हरकत से जहाँ मीठा-मीठा दर्द होता था वहीं एक अजीब सी उत्तेजना बढ़ती जाती थी और इस कारण मेरा लण्ड फिर से खड़ा होकर के अकड़ने लगा।
लण्ड महराज को अकड़ता देख वो धीरे से मुस्कुराई और बोली- बड़ा अकड़ रहा है, रूक जा थोड़ी देर मैं तेरी अकड़ निकालती हूँ। इतना कहते ही नीलम उठी और तेजी से रसोई की ओर गई और वहाँ से एक कटोरी में तेल ले आई, धार बनाकर मेरे लण्ड पर तेल उड़ेली और लण्ड को तेल से सरोबार कर दिया। फिर खुद भी जमीन पर लेट कर अपनी टांगों को उठा कर अपने सर से मिलाते हुए बोली- मेरे राजा, अपनी उँगली से तेल ले-ले कर मेरे चूत के छेद में डालो ताकि यह भी चिकनी हो जाये।
मैंने उसके कहे अनुसार किया, उसके बाद बबली ने पास पड़ी पलंग से रजाई जमीन पर बिछाई और अपने चूतड़ के नीचे तकिया रखा, उसके ऐसा करते ही उसकी चूत उपर की ओर उठ गई और चूत का मुहाना दिखने लगा।
मैंने भी घुटने के बल बैठ कर अपनी पोजीशन पकड़ी और अपने लण्ड को सेट करके धक्का मारा, लेकिन लण्ड अन्दर न जाकर ऊपर निकल गया।
फिर नीलम ने अपने हाथ से अपनी चूत को थोड़ा सा फैलाया और मैंने लण्ड को धीरे से सेट करके अन्दर झटके से डाला। नीलम एक बारगी तो चिल्ला उठी और मुझे धक्के देकर हटाने लगी और बोली- कमीने हट… कमीने बहुत दर्द हो रहा है।
लेकिन मुझे लगा कि मैं अपना लण्ड निकाल नहीं सकता हूँ, इसलिए मैं थोड़ा रूक कर उसके दूध के निप्पल को चूसने लगा। जब कुछ देर बाद उसका दर्द कम हुआ तो अपने चूतड़ को उठाकर मेरे लण्ड को अन्दर लेने की कोशिश करने लगी और मेरे कान में बोली- मेरे राजा, इसको फाड़ दो।
उसकी इस बात को सुनकर मैं भी लण्ड को अन्दर-बाहर करने लगा। धीरे-धीरे वो बड़बड़ाने लगी- चोद मेरे को चोद, फाड़ दे मेरी बुर को। कब से तड़पा रही थी ये मादरचोद। और पता नहीं क्या-क्या बोले जा रही थी।
थोड़ी देर बाद मेरा शरीर अकड़ने लगा और मैं खलास होकर उसके ऊपर गिर गया और थोड़ी देर उसके ऊपर लेटा रहा। फिर उसने मुझे धीरे से हटाया और खड़ी हुई और जब उसकी नजर निकले हुए खून पर पड़ी तो हँस कर बोली- देख तूने तो मेरा खून बहा दिया…
इतना कहकर वो पानी से भरा हुआ मग लाई और अपनी चूत को साफ करने लगी फिर बड़े प्यार से मेरे लण्ड को साफ किया और ऊपर से मेरा कुर्ता पहन कर चादर को लेकर बाथरूम में गई और चादर को अच्छे से साफ किया।
बाथरूम से निकल कर उसने क्रीम को उँगली में लेकर अपने बुर में डालकर क्रीम लगाने लगी। मैंने पूछा- यह क्या कर रही हो?
तो बोली- थोड़ी जलन हो रही है, इसलिये क्रीम लगा रही हूँ। फिर मेरे लण्ड की तरफ देखकर मुस्कुरा के बोली- देख कैसा मुरझाया सा लटका है, अभी थोड़ी देर पहले कैसे अकड़ रहा था। अब देखो तो पूरी अकड़ निकाल दी ना।
‘नीलम क्या मेरे लिये चाय बनाओगी? और यह क्या… मैं पूरा नंगा हूँ और तुम कुर्ता पहनी हो?’
‘लो बाबा, ये लो… कहकर कुर्ता उतार कर मुझे दे दिया और चाय बनाने लगी।
चाय बनाते समय जब नीलम के कूल्हे हिल रहे थे तो उसको देखकर मेरे लण्ड ने फिर से फुँफकार मारनी शुरू कर दी।
नीलम ने चाय दी और मेरी गोद में बैठते हुए बोली- लो चाय के साथ बिस्कुट भी खा लो।
इतना कहकर उसने लपक कर के मेरे लौड़े को पकड़ा और अपनी चूत में डाल लिया- राजा तुम मेरे को आज चोद के मस्त कर दो। फिर वो मेरे कानों को अपने होंठों से किटकिटाए जा रही थी।
मैंने थोड़ी देर के बाद नीलम को उसी तरह गोद में उठाया और डायनिंग टेबल पर पटक दिया और उसके दोनो पैरों को अपने कंधे पर रखकर जोर से धक्के पे धक्के देता गया। चोदते हुए उसकी हिलती हुई चूची देखना बड़ा ही खूबसूरत था।
उस दिन वास्तव में मेरी जिज्ञासा शान्त हुई थी कि मैंने नीलम को कई आसनों से चोदा और चुदाई का पहला पाठ सीखा।
तो दोस्तो, अगली कहानी में नीलम और मैंने क्या-क्या मस्ती की और बबली यानी नीलम की भाभी किस प्रकार मुझसे चुदी, यह मैं आप लोगों को बताऊँगा।
तो दोस्तो, मेरी कहानी कैसी लगी। मुझे नीचे दिये ई-मेल पर अपनी प्रतिक्रिया भेजें। आपका अपना शरद… [email protected]
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