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अन्तर्वासना के सभी नियमित एवं नवागंतुक लंड पाठक एवं चूत पाठिकाओं को अदिति ग्वालानी का आनन्दमयी चुम्बन के एहसास जैसा नमस्कार! जैसा कि आप सब जानते हैं अन्तर्वासना में मेरी कहाकी प्रकाशित हो चुकी है जिस वजह से बहुत से मेल आये और उनमें से कुछ बहुत अच्छे दोस्त भी मिले। उन दोस्तों में से ही एक अज़ीज़ दोस्त जिनका नाम तृप्तेश मानसरोवर है, उन्होंने आग्रह कर मुझे उनकी आपबीती कहानी अन्तर्वासना पर भेजने का कहा। तो आइये अब सुनते हैं आपबीती कहानी तृप्तेश की ज़ुबानी:
दोस्तो, मैं तृप्तेश 22 साल का गठीला नौजवान। एक या डेढ़ साल ही हुए होंगे मुझे अपने ग्रेजुएशन की पढ़ाई आरम्भ किए हुए।
मैं रायपुर, छत्तीसगढ़ का रहने वाला हूँ और स्कूली शिक्षा वहाँ के ही एक बहुप्रतिष्ठित स्कूल से की है। ऐसा नहीं है कि मेरी स्कूल लाइफ में कोई अफेयर्स नहीं थे, पर वो अलग बात थी या यूँ कहूँ कि बचपना था, सेक्स और यौनांगों के प्रति उतनी गंभीरता से जानकारी नहीं थी।
खैर यह तो रही स्कूल की बात, अब असल मुद्दे पे आता हूँ। हुआ यूँ कि मैं कोलंबिया कॉलेज के इलेक्ट्रॉनिक्स ब्रांच के चौथे सेमेस्टर का विद्यार्थी था, पास ही स्थित एक टपरी (छोटी झोपड़ीनुमा चाय, पान की दुकान) थी, रोज कॉलेज छुटने के बाद हम सब दोस्त मिलकर छुट्टी के बाद सिगरेट के कश लगाने अक्सर वहाँ जाया करते और मौज मस्ती किया करते थे। चूंकि रायपुर के सभी इंजीनियरिंग कॉलेज गाँव जो की रायपुर से लगे हुए हैं वहीं थे। जब भी हम टपरी पे जाते तो गाँव की कुछ लड़कियां टपरी के पास स्तिथ बोरिंग में पानी लेने आती थी। हम लोगों को ये सब करता देख आपस में कुछ खुसफुसा कर खी खी कर हँसा करती थी और चली जाया करती थी।
कई दिनों तक यही सिलसिला चलता रहा। उनमें से एक लड़की मुझे कुछ अलग तरह से देखती थी थोड़ा घूर घूर के ध्यानपूर्वक… पहले तो मैंने गौर नहीं किया लेकिन मेरे कुछ दोस्तों के कहने पर मैं ध्यान देना चालू किया।
दोस्तो, जवानी की आग ऐसी होती है कि बस जैसे प्यासे को पानी चाहे कहीं का भी हो। आपको और एक चीज़ बता दूँ कि गाँव की लड़कियाँ भले ही देखने में उतनी खूबसूरत न हों पर घरेलू काम करते करते उनका फिगर बहुत ही गठीला हो जाता है।
उस गाँव के बीच में हमारा कॉलेज था और उस गाँव के दोनों और से रास्ते थे कॉलेज के लिए। मैं अक्सर पीछे वाले रास्ते से आया करता था क्यूंकि थोड़ा धूल भरा लेकिन शॉर्टकट था। एक दिन मैं यूँ ही कॉलेज से जा रहा था पीछे वाले रास्ते से कि अचानक कुछ दूर चलते ही मुझे वो लड़की दिखाई दी, वो रास्ता छोटी पगडण्डी सा था, ज्यादा चहल-पहल वाला नहीं था। इत्तेफाक से उस दिन उस रास्ते पर सिर्फ हम दोनों ही थे, वो टोकरी सर पर लिए आगे आगे चल रही थी, रास्ता संकरा होने की वजह से मैं उसे ओवरटेक नहीं कर पा रहा था। मैंने गाड़ी का हॉर्न मारा तो वो पलटी, देख कर मुस्कुराई, फिर चलने लगी।
2-3 बार यही हुआ, फिर मैंने उसे आवाज़ दी, पूछा- तुम्हारा नाम क्या है? पहले तो वो कुछ नहीं बोली, फिर लगा जैसे मुझसे यही आशा कर रही हो, तपाक से बोली- गीता! मैंने पूछा- इसी गाँव में रहती हो? तो उसने बहुत ही आश्चर्यजनक जवाब दिया, कहा- आप रोज़ तो देखते हैं, टपरी के पास पानी लेने जाती तो हूँ। मैं दो मिनट के लिए मौन रह गया, फिर पूछा- अभी कहाँ जा रही हो? तो उसने जवाब दिया- रात को पकाने के लिए सब्जी लेने… पगडण्डी ख़त्म होते ही मेन रोड पर एक दो लोग सड़क किनारे सब्जी बेचा करते थे।
मैंने उससे पूछा- वहाँ छोड़ दूँ तुम्हें? बोली- नहीं गाँव के किसी ने देख लिया तो गलत समझेगा। मुझे यूँ लगा जैसे कोई इशारा मिल रहा हो मुझे, मैंने उसे समझाया- गाँव तो थोड़ा पीछे रह गया और इस पगडण्डी पर तो बहुत कम लोग आते जाते हैं। मेरे समझाने पर उसने मान लिया, अपने दुपट्टे को मुँह पर बांध लिया और पीछे बैठ गई। मैंने उसे वहाँ छोड़ दिया, उसने धन्यवाद कहा और मैं आगे निकल गया।
यह सिलसिला कुछ एक दो बार हुआ, तीसरी बार मैंने देर न करते हुए उससे कह दिया- गीता, मुझे तुम बहुत अच्छी लगती हो। मुझे तुमसे प्यार होने लगा है।
तो वो हंस कर शर्मा कर वहाँ से चली गई, फिर एक दो दिन नहीं दिखी, फिर 3 या 4 दिन बाद दिखी तो उसने कहा- आप तो पढ़े लिखे हो और मैं कहाँ…
मैंने उसे समझाया कि ये सब मायने नहीं रखता। वो मान गई पर बोली- मुझे कभी धोखा मत देना, मैं नहीं सह पाऊँगी। मैंने भी हाँ कर दी। फ़िर हम दोनों यूँ ही मिलने लगे।
एक दिन मैंने उसके होटों पर बातों बातों में ही चुम्बन कर दिया… क्या मस्त स्वाद था… बता पाना मुश्किल है! मेरे उस चुम्बन से वो घबरा गई, शायद उसका पहली बार था बोली- यह क्या कर रहे हो आप? मैंने कहा- गीता यह भी प्यार जताने का एक तरीका है।
लेकिन वो ये सब से मना करने लगी… लेकिन साहब जवानी की आग न शहर देखती है न गाँव… न पढ़ा लिखा देखती है न अनपढ़… वो तो बस लगती है तो सब कुछ जला कर रख देती है। बस कुछ आग तो मेरे चुम्बन ने लगा दी, कुछ मैंने उसे मोबाइल वीडियोज़ और मूवीज के ज़रिये लगा दी।
बस फिर क्या था, एक दिन उसके घर वाले शादी में बाहर गये हुए थे लेकिन मैं उसके घर नहीं जा सकता था क्यूंकि गाँव में ये सब बहुत ज्यादा रिस्की होता है इसलिए मैंने उसे गाड़ी में बिठाया और पगडण्डी वाले रास्ते होते हुए उस रास्ते में ले आया जो रायपुर शहर और गाँव को जोड़ता है, वहाँ बस दूर दूर तक वीरान खेत थे, कुछ छोटी नदी टाइप की थी बस और एक दो झोपड़ी थी, किसानों ने बना रखी थी क्यूंकि उस समय गर्मी का समय था, खेती कुछ ख़ास नहीं होती, ख़ास कर शाम होते होते बिल्कुल वीरान हो जाता था वहाँ…
खैर साब, मैं उसे पीछे बिठा कर उसके गाँव से पगडण्डी वाले रास्ते होते हुए निकल गया। उसने मुझे पूछा- आप जो मुझे मोबाइल में दिखाते हो, क्या वो सब प्रेमी आपस में करते हैं? मैंने कहा- हाँ, यह भी प्यार करने का तरीका है।
तो उसने शरमाते हुए मुझसे पूछा- तो क्या हम भी ये सब करेंगे? मैंने कहा- बिल्कुल करेंगे।
और मैंने तो कोशिश भी की थी पर तुमने मना कर दिया तो उसने कहा कि उसे अब कोई ऐतराज़ नहीं है। बस फिर क्या था, मैं उसे उस वीरान जगह पर ले गया, खेत में बाइक उतार दी और अन्दर जितना हो सके उतना अन्दर ले गया, वहाँ बाइक खड़ी कर कुछ दूर और पैदल चलना पड़ा, तब पास जाकर एक खेत में खाली झोपड़ी दिखाई दी और आस पास दूर दूर तक न बंदा था न बन्दे की जात… सच कहूँ तो चोदने के मूड के साथ साथ फटी भी पड़ी थी कि कहीं कोई जंगली जानवर न आ जाये…
फिर हम उस झोपड़ी में गए और ज़मीन पर बैठ गए क्यूंकि वो एकदम खाली थी। फिर मैंने उसके बदन को छूना चालू किया और किस करने ही वाला था कि उसने रोक दिया, कहा- गर्मी लग रही है, पानी पीना है। तो मैंने अपने बैग से बोतल निकाल कर उसे पानी पिलाया और खुद भी पिया, फिर चूमाचाटी का दौर चालू हुआ, मुझे उसे सिखाना पड़ा कि फ्रेंच किस कैसे करते हैं, होंट से होंट, जीभ से जीभ, सब कुछ देर चलता रहा फिर हम दोनों पूरे तरीके से गरम हो चुके थे।
मैंने उसका दुपट्टा निकाल कर ज़मीन पर बिछाया और धीरे धीरे उसके पूरे कपड़े निकाल दिए, अब वो सिर्फ ब्रा और पैंटी में थी, अब मैंने भी अपने पूरे कपड़े निकल दिए।
उसे फिर मैं किस करने के साथ साथ उसके बटले जिन्हें स्तन भी कहा जाता है, दबाने लगा। वो मस्त होती जा रही थी और मादक आवाजें निकाल रही थी। मैंने उसकी ब्रा भी निकाल फेंकी और अपनी भी अंडरवियर निकल दी।
मेरा लंड उसके सामने था और मैं पूरा नंगा था। अब उसने हाथों से अपना चेहरा ढक लिया और नज़रें चुरा चुरा कर मेरा लंड देखने लगी, मैं बाहर जाकर मूत कर आया और बिना लंड धोये अन्दर आ गया क्यूंकि पानी ख़त्म हो चुका था और वहाँ पर था नहीं।
वो ठहरी बेचारी गाँव की छोरी, उसे क्या पता कि अब क्या होना है या क्या करना है… मैंने उसे अपने मोबाइल पर ब्लू फिल्म दिखाई और कहा- देखो, इसमें जो औरत है, वो जैसा करेगी वो तुम्हें मेरे साथ करना है।
पहले तो वो शर्माने लगी लेकिन थोड़ा गर्म करने पर उसने मेरा लंड हाथ में पकड़ा, हिलाया, थोड़ा बड़ा होने पर मुख में लेकर चूसने लगी। मैं खड़ा था और वो नीचे बैठी मेरा लंड चूस रही थी।
क्या बताऊँ कितना आनन्द आ रहा था। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
करीब 5 मिनट चूसने के बाद मैं कण्ट्रोल न कर सका और उसके मुख में ही झड़ गया, उसने खांसते हुए पूरा वीर्य बाहर जाकर थूक दिया, मेरा लंड अब थोड़ा शांत हो चुका था।
मैंने अब उसे लिटाया और उसे यहाँ वहाँ चूमते हुए उसकी पैंटी उतारने लगा।
जब मैंने उसकी पैंटी उतारी तो देखा नीचे पैंटी में कुछ हरा सफ़ेद सा दाग था और पैंटी के ऊपर एक हल्के पीले रंग का कपड़ा था जिसमे लाल रंग का दाग था, शायद माहवारी का था… बाकी उसके पैंटी वाले हरे सफ़ेद से दाग के बार में पूछे पर उसने बताया कि कभी कभी उसकी चूत से कुछ अजीब सा द्रव गाढ़ा सा कुछ निकलता है, उसे भी नहीं पता कि क्या था।
खैर मैंने उसकी पैंटी उतार दी लेकिन चूत चाटने में थोड़ा संकुचाया, वो दाग वाग का सोच कर…
फिर मुझे याद आया कि मैं अपने बैग में हमेशा सैनीटाईज़र रखता हूँ, मैंने वो निकाला और उसकी चूत के ऊपरी हिस्से में लगाने लगा क्यूंकि उसकी उम्र ज्यादा नहीं लग रही थी, शायद इसलिए उसकी चूत पर ज्यादा बाल भी नहीं थे, जब मैंने सैनीटाईज़र लगाया तो उसकी चूत में जलन होने लगी, वो तड़पने लगी। मुझे कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या करूँ… पानी भी ख़त्म हो गया था तो मैंने थूक थूक कर उसके चूत की जलन शांत करने की कोशिश की और उसे मूतने को बोला। जब वो मूत के आई तो थोड़ा रिलैक्स लगी।
अब फिर चुम्बन चालू कर उसे गर्म करने लगा मैंने उसकी चूत चाटना चालू किया, अब वो और भी गर्म हो चुकी थी और मैं उसकी चूत के दाने को रगड़ने मसलने लगा, वो उत्तेजना में तड़पने लगी, मेरे लंड को हिलाने लगी नीचे हाथ डाल कर!
मेरा लंड थोड़ा और खड़ा हो गया, मैंने फिर से लंड उसके मुंह में दे दिया, इस बार उसने शर्म छोड़ मस्त चुसाई की।
अब मैं पूरे जोश में था, मैंने उसकी टाँगे चौड़ी की और लंड चूत के छेद पर सेट कर लंड अन्दर डालने लगा लेकिन असफल रहा। मैं तो भूल ही गया था कि वो कुंवारी है! फिर जैसे तैसे मैंने लंड अन्दर किया, सुपारा अन्दर गया ही था कि वो चीखने लगी, बोली- बहुत दर्द हो रहा है, निकालो इसे!
मैंने उसकी एक न सुनी और ताकत लगाई, आधा लंड अन्दर था और उसकी चूत से खून बह कर जो नीचे बिछे उसके दुपट्टे में लग रहा था, वो ज्यादा जोर न चीखे इसलिए उसके होठों में अपने होंठ दबा दिए मैंने।
2-3 मिनट रुक कर मैंने फिर से धक्का लगाना चालू किया, अब उसे भी मज़ा आने लगा। क्यूँकि कंडोम मैं लाया नहीं था, इसलिए ऐसे ही पेल दिया, अन्दर थोड़ा दर्द शुरू में मुझे भी हुआ पर बिना कंडोम का मज़ा तो शादीशुदा व्यक्ति ही जानता है, अच्छे से मैंने उसे जम कर चोदा, वो अकड़ गई, टांगें मेरी कमर पे कसते हुए झड़ गई।
फिर मैंने उसे अपने ऊपर आने को कहा, वो मेरे ऊपर आकर उछाल मारने लगी, मैं उसके स्तन हाथ में लेकर दबा रहा था।
फिर मैंने उसे घोड़ी स्टाइल में चोदा और अन्दर ही झड़ गया। उसने कहा- आपने अपना मेरे अन्दर ही निकाल दिया? अगर मैं माँ बन गई तो बहुत बदनामी होगी।
मैंने कहा- तुम चिंता मत करो, ऐसा कुछ नहीं होगा।
फिर रात करीब आठ बजे तक मैंने उसे छोटी नहर जो किसानों के खेत में पानी पहुंचाने के लिए होती है, वहाँ किनारे ले जाकर और पानी में भी चोदा। क्या ज़न्नत का नज़ारा था वहाँ, हरे भरे पेड़, खेत, पानी और चुदाई… आप अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते जी…
अगले दिन मैंने उसे गर्भनिरोधक गोली ले जाकर दी और उसे नित्य मौका मिलने पर उन्ही प्राकृतिक दृश्यों वाली जगहों में चोदता रहा। आगे और भी बहुत कुछ हुआ वो अगले भागों में ! मेरी कहानी थोड़ी लम्बी ज़रूर है मगर उम्मीद करता हूँ कि आपको पसंद आएगी। आपका तृप्तेश [email protected]
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