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Jeena Isi Ka Naam Hai-10
जीना इसी का नाम है-9
डैम काफी बड़ा था, नाव चल रही थी, हमारे अलावा कोई दूसरी नाव डैम में नहीं थी, डैम के दूसरी तरफ छोटा सा पहाड़ था, हमारी नाव उस तरफ से गुजर रही थी, मुझे ऐसा लग रहा था कि परियों की रानी अपनी सहेलियों के साथ मुझे लेकर परीलोक जा रही हो। कुसुम का शरीर कभी कभी टच हो जाता, मैं पहली बार ऐसा सुखद स्पर्श महसूस कर रहा था, लग रहा था नारी का सुख, प्यार और साथ क्या होता है, शायद जीना इसी का नाम है। हम लोग शाम तक घर आ गए, वापस आते समय अनीता ने अपना सर धीरे से मेरे कंधे पर रख दिया था।
शादी की डेट आ गई थी, कुसुम ओर उसकी सहेलियों ने मेरे शादी की शापिंग की और उस शहर के हिसाब से मेरी कुसुम के साथ शादी हो गई।
मेरे घर में ही सुहागरात का कमरा सजाया गया, मेहमानों से निपट कर मैं रात के एक बजे कुसुम से मिलने आ गया।
वो जाग रही थी उसके चेहरे पर फिर वही घबराहट थी, मैंने हाथों से पकड़ कर उसका चेहरा ऊपर किया, उसने नजर नीचे कर ली, जब मैंने उसे बांहों में लिया तो वो मेरे सीने से लिपट गई, उसकी सांसें तेज हो गई दिल धक धक करने लगा।
मैंने उसके कपड़े उतारने चाहे, वो शर्म के मारे पीछे हटने लगी, थोड़ी देर बाद यह समझौता हुआ कि जीरो लाइट की रोशनी में कम्बल ओढ़ कर हम लोग नंगे हो जायेंगे।
इतना करने के बाद मैंने नंगी कुसुम को लेटे लेटे चिपका लिया, उसके स्तन छोटे छोटे और टाइट थे, उन्हें मैं दबाने लगा, थोड़ी झिझक के बाद वो आसानी से दबाने दे रही थी, मेरा लंड खड़ा था, वो कुसुम को चोदने के लिए बेकरार था, मैं चूमा चाटी करके कुसुम को गर्म कर रहा था।
इसके बाद मैंने उसे चित लिटा दिया और अपना लंड उसकी चूत के मुख पर जमाया और धीरे से धक्का मारा। चूत बहुत कसी थी, मेरा लंड नहीं घुस पाया पर कुसुम आह बोल गई। मैंने सोचा कि अब क्या करें, फिर मैंने कुसुम की टांगें बहुत फैला दी और अपने लंड और उसकी चूत पर थोड़ी थोड़ी वेसलीन लगा दी, लंड को वापस जमाया, थोड़ी जोर से धक्का मारा लंड का सुपारा उसकी अनचुदी चूत में थोड़ा सा अंदर घुसा।
‘मर र र र…गई इ इ इ इ…ओ माँ…आह…!’ कुसुम कराह उठी, वो लंड को बाहर निकालने का प्रयास करने लगी।
मैंने समझ गया कि अगर मैं लंड निकाल लेता हूँ तो फिर यह आसानी से आज तो चोदने नहीं देगी, मैंने लंड फ़ंसाये रखा, उसके दोनों हाथ पकड़ कर दबा दिए, उसे ऐसा दबोचा कि वो हिल न पाए, फिर उसके दर्द की परवाह न करके ताकत के साथ लंड को आगे घुसेड़ा।
पूरा सुपारा फंस गया, कुसुम का बुरा हाल हो गया, उसकी सील टूट रही थी, शील भंग हो रहा था, वो छटपटा रही थी- आह.. अ अ अ नहीं …नहीं उई उई ई ई.. ई.. ई.. ई.. ई… ई ई सी.. सी.. सी.. सी..
शायद इसी वक्त थोड़ा सा खून निकला होगा जो मुझे बाद में उसकी चूत पर दिखाई दिया था। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं ! मैंने ताकत से उसे दबोच रखा था, वो छुट नहीं पा रही थी, मैंने जोर लगाते हुए बड़ी मुश्किल से पूरा लंड डाला और कुछ देर ऐसे ही पड़ा रहा। कुसुम भी कुछ शांत हो गई, फिर चुदाई वापस से चालू की उसकी कसी चूत में मेरा लंड मुश्किल से समां रहा था, चूत की दीवार से रगड़ रगड़ कर चुदाई हो रही थी, कुसुम होंठ भींच कर बड़ी मुश्किल से धक्के बर्दाश्त कर रही थी, वो कराह रही थी- उन्ह उन्ह उन्ह … और चुदा रही थी। उसे मजा आया या नहीं, मुझे नहीं मालूम पर मैं तो अनचुदी चूत को चोद कर धन्य हो गया।
मुझे मजा आ रहा था, मैं स्पीड बढ़ा रहा था, लंड और टाईट हो गया था, कुसुम जोर से कराह रही थी, मैंने पानी छोड़ दिया- आह आह आह… मजा आ गया था।
कुसुम को पानी छुटने पर मजा आ रहा था, लंड ढीला पड़ने पर कुसुम ने राहत की साँस ली, दोनों पसीने पसीने हो गए, कुछ देर इसी अवस्था में रहने के बाद हम सो गए।
सुबह 7 बजे कुसुम की सहेली पूनम ने दरवाजा खटखटाया, वो चाय ले कर आई थी…
दरवाजा मैंने ही खोला, कुसुम पलंग पर बैठी थी, पूनम की आँखों में शरारत थी।
कुसुम जैसे ही चाय लेने उठी, उसके मुँह से आह… निकल गई।
पूनम मुस्कुरा कर बोली- ओह.. ऐसा?
कुसुम ने उसे मारने के अंदाज़ में मुक्का तान दिया दिया… पूनम भाग गई।
इसके बाद धीरे धीरे कुसुम भी चुदाने की शौकीन हो गई, उसे भी बहुत मजा आने लगा, कभी कभी तो स्वयम् ही पहल भी करने लगी है। उसकी चूत ढीली हो चुकी है और बूबे नर्म और बड़े बड़े हो गए हैं।
शादी के एक साल और सात महीने बाद कुसुम ने एक लड़के को जन्म दिया, कुसुम की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा, उसके लिए दुनिया भर की दौलत और आराम का कोई मोल नहीं था, सिर्फ अपनी ही दुनिया उसके लिए अनमोल थी, और गौरव था भी गोल मोल गोरा और बहुत प्यारा बच्चा।
इसके दो साल बाद की बात है, मैं कम्पनी का काम निपटा कर गेट पर आया और गेट से बहार निकल कर खड़ा होकर सोचने लगा कि सामने की गुमटी में एक कप चाय पी ली जाए।
तभी एक चमचमाती कर आकर रुकी, उसमें से बेशकीमती पोशाक पहने हुए एक महिला निकली, मैंने पहचाना कि वो अनीता थी, वही जानलेवा जलवा, पर उसके चेहरे पर कुछ उदासी थी।
मुझे देख कर बोली- कम्पनी से पता लगाते लगाते आ रही हूँ !
फिर मैंने उसे अंदर बुलाया और ऑफिस के गेस्ट रूम में ले गया। वहाँ हम दोनों बाते करने लगे।
अनीता ने पूछा- तुमने शादी कर ली?
मैंने कहा- हाँ !
उसने एक ठंडी साँस ली, बोली- अच्छा किया, यह तो होना ही था, तुम्हारी दुनिया आबाद हो गई, पर मैं जिसे सुख मानती थी असल में वो सच्चा सुख नहीं था केवल पैसे और नाम की वासना थी, शरीर की वासना थी, वासना कभी इन्सान को संतृप्त नहीं कर सकती। यह शक्ति सिर्फ़ प्यार में है, त्याग में है और तुम्हारा प्यार तुम्हें मिल गया, मैं अधूरी रह गई।
मैं खामोश रहा, अनीता बोलती गई- तुम्हारे से तलाक और सेठ धर्मचंद से शादी की खबर सुन कर पिताजी इतने नाराज हो गए कि उन्होंने मेरा चेहरा भी देखना पसंद नहीं किया, वो अमेरिका में ही चल बसे, भाई को मुझसे कोई मतलब ही नहीं था, इस घटना के कुछ दिन बाद ही सेठ धर्मचंद भी गुजर गए, मेरी सारी हवस पूरी हो गई, मैं करोड़ों की मालकिन बन गई पर आज मुझे चाहने वाला कोई नहीं है, मुझे अपना समझने वाला कोई नहीं है।
उसकी आँखों में आसू आ गए।
मैंने कहा- अनीता, तुम अब भी किसी अच्छे आदमी से शादी कर लो।
वो बोली- अब यह संभव नहीं है। वक्त निकल चुका है, मुझे फ़ेफ़ड़े का केंसर हो गया है।
मैंने कहा- इलाज नहीं करवाया?
वो बोली- कोई फायदा नहीं है, मेरी जीने की तमन्ना ही नहीं रही और नाऊ आई ऍम H I V पॉजिटिव!
ये आखिरी शब्द मेरे कानों में पिघले सीसे की तरह गिरे।
अनीता सिसक सिसक कर रो रही थी, मैं जड़ हो गया, कुछ देर बाद वो बोली- मेरी जिंदगी ज्यादा नहीं बची है, मुझे माफ़ कर दो सौरभ… पर तुम मुझे प्यार करना ताकि मरते वक्त मुझे यह शांति रहे कि अभी भी मुझे कोई प्यार करने वाला है। बोलो मुझे चाहोगे न… बोलो…?
मेरी भी आँखों में आँसू आ गए, मैंने हाँ में सर हिला दिया, वो रोते रोते बोली- सौरभ, जब मैं मर जाऊँ तो मेरी अर्थी को कन्धा देने जरूर आना, मेरी आत्मा को शांति मिल जाएगी।
वो मुझसे लिपट गई और रोती रही, मन का गुबार आँसू बन कर निकल रहा था।
फिर थोड़ी देर बाद बोली- अपनी बीवी से नहीं मिलवाओगे?
मैं बोला- जरूर मिलवाऊँगा।
अनीता ने आंसू पौंछे और सामान्य होने की कोशिश करती हुई मरे साथ गेस्ट रूम से बाहर आ गई।
मैं अनीता को लेकर घर आ गया, रास्ते में अनीता को बता दिया- कुसुम को इस बारे में अभी तक कुछ पता नहीं है।
वो मेरा इशारा समझ गई, कुसुम को मैंने बताया की यह पहले शहर में मेरे साथ काम करती थी, शादी में नहीं आ सकी इसलिए मिलने आ गई है।
कुसुम कुछ नहीं बोली और चाय पानी का इंतजाम करने लगी।
अनीता के चेहरे की उदासी छिप नहीं रही थी, तभी कुसुम की माँ गौरव को लेकर वहाँ आ गई।
गौव को देख कर अनीता ने पूछा- तुम्हारा बेटा है?
मैंने कहा- हाँ!
अनीता ने गौरव को सीने ले लगा लिया और प्यार करने लगी, फिर उसकी रुलाई फ़ूट पड़ी, बच्चे की तरफ इशारा करके बोली- सौरभ जीना इसी का नाम है… इसी का नाम है! और कुछ नहीं…
कुसुम उसे इस तरह रोते देख कर आश्चर्य में पड़ गई, मुझसे बोली- क्या हुआ?
मैंने उसे इशारे से चुप रहने को कहा। अनीता समझ गई कि ज्यादा रोने से बात खुल सकती है, उसने किसी तरह अपने आप को संभाला।
अनिता ने जाते वक्त कुसुम को एक सोने की अंगूठी दी, कुसुम ने इंकार किया तो बोली- रख लो, मैं तुम्हारी बड़ी बहन जैसी हूँ।
कुसुम इंकार न कर सकी।
अनीता के जाते ही कुसुम ने पूछा- यह रो क्यों रही थी?
मैंने सोचा समझा झूट बोल दिया- इसका पति इसे छोड़ कर चला गया था, और बाद में इसने एक सेठ से शादी कर ली वो भी पिछले साल ही मर गया, इसकी कोई संतान नहीं है इसलिए बच्चे को देखा कर रोना आ गया होगा।
इस घटना के 5 महीने बाद अनीता का फोन आया, बोली- सौरभ, मेरी तबीयत बहुत बिगड़ गई है, शायद मैं अब नहीं बचूँगी, तुम्हें एक बार और देखना चाहती हूँ, मैं कार भेज रही हूँ, तुम जल्दी आ जाओ, साथ में कुसुम और गौरव को भी लाना!
अनीता की भेजी कार रात 8 बजे मेरे घर आ गई, मैं कुसुम और गौरव को लेकर निकल गया। यहाँ से अनीता का शहर करीब 500 k.m था, हम लोग सुबह सुबह अनीता के विशाल बंगले पर पहुँचे पर तब तक अनीता दुनिया छोड़ चुकी थी, उस पर सफेद चादर डाली जा चुकी थी।
पास खड़ी नर्स ने मुझसे कहा- सौरभ साहब आप ही हैं क्या?
मैंने- हाँ!
नर्स बोली- मैडम आपके लिए एक संदेशा छोड़ कर गई हैं। और उसने एक तह किया कागज मेरे हाथ पर रख दिया।
मैंने कागज खोल कर पढ़ा उस पर लिखा था- बहुत देर से दर पे आँखें लगी थी, हजूर आते आते बहुत देर कर दी…
कहानी कैसी लगी? मुझे मेल करके अवश्य बताना।
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