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दोस्तो, नमस्कार.. मेरा नाम दिनेश है.. मैं उत्तर प्रदेश का रहने वाला हूँ और वर्तमान समय में गुड़गाँव में रहता हूँ। मेरी उम्र 34 साल है और मैं 6 फीट 2 इंच का हूँ.. मेरी शादी हो चुकी है। मैं एक चुदक्कड़ किस्म का इंसान हूँ और मुझे दुनिया में सबसे अच्छा काम चूत को अच्छे तरीके से बजाना लगता है।
इस संसार में चूत चुदाई से बढ़कर और कोई सुख नहीं है। मैं अधिकाँशतः परिवार से दूर रहता हूँ.. तो चूत का नाम सुनते ही चुदाई की इच्छा होने लगती है।
मैं पिछले तीन वर्षों से अन्तर्वासना का नियमित पाठक रहा हूँ और अन्तर्वासना पर मैंने सैकड़ों कहानियों का लुत्फ़ उठाया है। जितनी बार अन्तर्वासना पर मैंने कहानियाँ पढ़ी हैं, मैंने उतनी बार मुठ मारी है।
मेरे मन में भी कई बार यह ख़याल आया कि मैं भी अपनी कहानियों को आपके समक्ष प्रस्तुत करूँ.. किंतु संकोच बस मैं ऐसा न कर सका पर आज काफ़ी हिम्मत करके मैं अपनी एक कहानी आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ। यह अन्तर्वासना पर मेरी पहली कहानी है।
वर्ष 1996 में बारहवीं की परीक्षा पास करके मैं सिविल सेवा की परीक्षाओं की तैयारी के लिए इलाहाबाद आ गया। यहाँ पर रहने का इंतज़ाम मेरे एक दूर के रिश्तेदार ने अपने घर में किया था। दरअसल उनकी बेटी की शादी मेरे पड़ोस में हुई है और उनकी बेटी रिश्ते में मेरी भाभी लगती हैं।
मैं सितंबर 1996 में इलाहाबाद आ गया। वो एक किराए के मकान में रहते थे और वो एक कमरे का छोटा सा घर था.. जिसमें वो पहले से ही पाँच लोग रहते थे.. मुझे मिलाकर अब कुल 6 लोग हो गए थे।
भाभी के चार बच्चे थे। भाभी जिनका नाम शीला है.. सबसे बड़ी हैं जो मुझसे करीब 3 साल बड़ी हैं, उनके बाद ममता थी.. जिसकी उम्र उस समय करीब 18 साल की थी.. जो कि मेरी हमउम्र भी थी। उसके बाद नीलम.. जो उस समय दसवीं में थी। उनका एक बेटा भी था.. वो आठवीं में था। मैं जब उनके घर पहुँचा.. तो वे लोग मुझसे काफ़ी अच्छे से मिले और मैं 3-4 दिनों में ही उनसे काफ़ी घुल-मिल गया।
सबसे ज़्यादा ममता मुझसे बात करती थी और मैं भी उससे काफ़ी घुल-मिल गया था। ममता जो कि अभी-अभी जवान हुई थी उसका फिगर ऐसा था कि जो भी उसे देखता तो बस देखता रह जाता।
वो किसी परी से कम नहीं दिखती थी। उसका फिगर उस समय 36-26-34, लंबाई 5 फीट 6 इंच.. बदन छरहरा.. दूध सा गोरा चेहरा.. उसमें काली और बड़ी-बड़ी आँखें तीखी नाक.. होंठ एकदम पतले-पतले.. गुलाब की पंखुड़ियों जैसे.. और जैसे ये कह रहे हों.. कि आओ और मुझे चूस लो।
उसके मस्त हुस्न का.. मैं धीरे-धीरे दीवाना हो गया था। वो इतना सुंदर थी कि मैं कई बार उसको देखते हुए ये भी भूल जाता था कि आस-पास में कोई और भी बैठा हुआ है।
मेरे दिल की हालत उससे ज़्यादा दिनों तक नहीं रह सकी। अब मैं जब भी उसे घूरता रहता.. तो जैसे ही हमारी नजरें आपस में मिलतीं.. तो वो हँस देती थी।
मुझे उसकी हँसी बहुत प्यारी लगती थी। मैं तो उसकी हँसी का दीवाना था.. वो हँसती थी तो ऐसा लगता था कि मेरे दिल में कहीं सितार बज रहे हों।
मुझे उसके बिना एक पल भी अच्छा नहीं लगता था और दिन भर उससे बात करने के बहाने ढूंढता रहता था, अब मुझे महसूस होने लगा था कि मैं उससे प्यार करने लगा हूँ।
धीरे-धीरे समय बीतता गया.. लेकिन बात आगे नहीं बढ़ पा रही थी.. क्योंकि न तो मैंने प्यार का इज़हार किया.. न तो उसने..
लेकिन एक दिन किस्मत ने मेरा साथ दिया। हम सभी खाना खाकर पैरों पर रज़ाई डाले हुए हिन्दी फिल्म ‘हम आपके हैं कौन’ देख रहे थे और वो मेरे पास में बैठी हुई थी कि अचानक से बिजली गुल हो गई। सभी को बहुत बुरा लगा.. क्योंकि वो फिल्म सबको बहुत अच्छी लग रही थी।
फिर हम लोग बातें करने लग गए कि यार इतनी अच्छी फिल्म आ रही थी और बिजली को अभी कटना था।
तो ममता ने बोला- काश बिजली आ जाती तो मज़ा आ जाता..
तो मैंने बोला- तुम इतना बोल रही हो तो अभी आ जाएगी..
मेरा इतना बोलना था कि बिजली आ गई और वो खुशी से मुझसे लिपट गई.. फिर जब उसे होश आया.. तो मुझसे तुरंत अलग हो गई।
मैंने पहली बार उसके जिस्म को महसूस किया था। उसके जिस्म में एक अजीब सी खुश्बू थी.. जो कि मुझे बहुत अच्छी लग रही थी। उसके अलग होने के बाद भी मैं उसी को बार-बार देख रहा था और वो बार-बार झेंपे जा रही थी।
फिर सभी लोग फिल्म देखने लगे.. लेकिन मेरा मन फिल्म में नहीं लग रहा था तो मैं उठकर बाहर आ गया और टहलने लगा।
ठंड में भी मुझे गर्मी लग रही थी और मेरे माथे पर पसीना आ रहा था। कुछ देर बाद ममता भी बाहर आ गई। उसने पूछा- क्या हो गया.. तुम बाहर क्यों आ गए.. फिल्म अच्छी नहीं लग रही है क्या?
मैंने बोला- ऐसी बात नहीं है.. फिल्म तो अच्छी है.. लेकिन मेरा मन नहीं लग रहा था.. इसलिए बाहर आ गया।
उसने पूछा- ऐसा क्या हो गया कि तुम्हारा मन नहीं लग रहा है?
मैंने बोला- एक बात कहूँ.. नाराज़ तो नहीं होगी तुम?
उसने बोला- नहीं होऊँगी।
मैंने बोला- पहले मेरी कसम लो।
उसने बोला- माँ की कसम.. बोलो कुछ नहीं बोलूँगी.. अब बोलो भी।
मैंने बोला- क्या तुम फिर से मेरे गले लगोगी?
उसने अन्दर घर की तरफ देखा और सीधे मुझसे लिपट गई और मैंने उसे अपनी बाँहों में कसकर भर लिया और मुझे पहली बार उसकी चूचियों का आभास हुआ जो कि हमारे बीच में दबी हुई थीं।
मेरी इच्छा हुई कि उनको छूकर देखूं लेकिन हिम्मत नहीं हुई।
कुछ देर बाद वह मुझसे अलग होने लगी तो मैंने फिर से उसे अपनी बाँहों में भर लिया।
उसने बोला- चलो.. अन्दर चलते हैं.. नहीं तो कोई बाहर आ जाएगा।
फिर हम अन्दर आ गए और अपनी जगह पर बैठकर फिल्म देखने लगे। फिर मैंने अपना एक हाथ रज़ाई के अन्दर डाल लिया और धीरे से उसके हाथ को पकड़ लिया।
उसने कोई विरोध नहीं किया.. तो मैं उसके हाथ को धीरे-धीरे सहलाने लगा। कुछ देर बाद मैंने हिम्मत करके अपना हाथ उसकी चूचियों पर रखा.. तो उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और मेरे हाथ को अपने पेट पर रख दिया।
मैंने कई बार उसकी चूचियों को पकड़ना चाहा.. लेकिन हर बार उसने मेरा हाथ पकड़ लिया। फिर मैंने अपना हाथ रज़ाई से बाहर खींच लिया। उस दिन मेरी गाड़ी इतना ही आगे बढ़ पाई।
अगले दिन जब नीलम और पिंटू स्कूल चले गए और अंकल अपने ऑफिस चले गए.. तब घर में केवल मैं.. ममता और उसकी मम्मी ही बचे। जब आंटी दोपहर का खाना बनाने में लग गईं.. तब ममता मेरे पास आई और बोली- नाराज़ हो क्या?
मैंने बोला- नहीं..
तो उसने बोला- फिर सुबह से बात क्यों नहीं कर रहे हो?
मैंने बोला- मुझे लगा कि रात वाली बात से तुम कहीं नाराज़ तो नहीं हो..
तो उसने बोला- इसमें नाराज़गी की क्या बात है.. मुझे भी तो अच्छा लग रहा था।
मैंने बोला- फिर तुमने मुझे अपनी चूचियों को क्यूँ छूने नहीं दिया?
उसने बोला- वहाँ पर सब बैठे हुए थे.. इसलिए मुझे डर लग रहा था।
फिर मैंने देखा.. आंटी रसोई में खाना बनाने में मशगूल हैं.. तो मैंने मौका देखकर उसे अपने पास खींच लिया और उसकी चूचियों को धीरे-धीरे दबाने लगा।
वो भी मजे ले रही थी.. फिर मैंने धीरे से उसके गालों पर एक चुम्बन किया।
हम दोनों को डर भी लगा हुआ था कि कहीं रसोई में से उसकी मम्मी न आ जाएं.. इसलिए हम अलग हो गए।
अब हमें जब भी मौका लगता तो हम लोग इस प्रकार की हरकतें कर लिया करते थे।
भगवान ने फिर मेरा साथ दिया और ममता के नानाजी बीमार पड़ गए और आंटी उनको देखने के लिए आज़मगढ़ जाने वाली थीं.. लेकिन अंकल का ऑफिस चालू था.. इसलिए आंटी ने फ़ैसला लिया कि वो नीलम और पिंटू को लेकर आज़मगढ़ जाएँगी और ममता यहीं रहेगी.. ताकि अंकल को खाना मिलता रहे।
फिर अगले दिन सुबह ही आंटी दोनों बच्चों के साथ आज़मगढ़ निकल गईं।
मैंने और अंकल ने नाश्ता किया और फिर अंकल ऑफिस चले गए और मैं पेट में दर्द का बहाना बना कर घर पर ही रुक गया।
आज मेरे पास अच्छा मौका था कि मैं ममता को चोद सकूँ।
फिर मैं और ममता बातें करने लगे। हम दोनों ने प्यार का इकरार किया और मैंने जोश में यहाँ तक बोल दिया कि मैं तुमसे ही शादी करूँगा।
तो ममता ने बोला- आज से तुम ही मेरे पति हो।
मैंने बोला- यदि मुझे अपना पति मानती हो.. तो तो मुझे अपने शरीर को पूरा दिखाओ..
फिर हम दोनों बिस्तर पर बैठकर एक-दूसरे के शरीर को छूने लगे। धीरे-धीरे मैंने उसकी टी-शर्ट को निकाल दिया और अन्दर का नज़ारा देखते ही मेरी आँखें खुली की खुली रह गईं।
उसने अन्दर महरून रंग की ब्रा पहनी हुई थी.. जिसमें उसकी चूचियाँ क़ैद थीं और मुझे दावत दे रही थीं कि आओ और मुझे इस क़ैद से निजात दिलवाओ। मैंने ऊपर से ही उसकी चूचियों को रगड़ना शुरू किया तो कुछ ही देर में उसकी सिसकारियाँ निकलने लगीं। कुछ देर की मसक्कत के बाद मैंने उसकी चूचियों को ब्रा की क़ैद से मुक्ति दिलवा दिया।
उसका गोरा बदन देखते ही बन रहा था। उसकी दोनों चूचियों को भगवान ने फ़ुर्सत में बनाया होगा। उसके दोनों सुडौल उभार जिन पर मटर के दाने जितनी बड़े निप्पल.. जैसे अहंकार में डूबे हुए मुझे ये जता रहे हों कि देखी है.. ऐसी खूबसूरती.. किसी और के पास..
मैंने अपने दोनों हाथों में उनको थाम लिया और बड़े ही प्यार से सहलाने लगा। मेरी ये हरकत ममता को बहुत अच्छी लग रही थी। वो आँखें बंद किए हुए बिस्तर पर लेटी हुई थी। उसने उस समय चिहुंक कर अपनी दोनों आँखें खोल दीं.. जब मैंने उसकी एक चूची को अपने मुँह में भर लिया।
अब धीरे-धीरे वह मदहोश होती जा रही थी और बार-बार मुझसे लिपट रही थी। उसकी सिसकारियाँ तेज होती जा रही थीं। कुछ देर बाद उसने मुझे बताया कि उसको ये सब बहुत ही अच्छा लग रहा है.. लेकिन नीचे कुछ अजीब सा महसूस हो रहा है।
अब मुझे लगा कि यह अब चुदाई के लिए तैयार हो रही है। मैंने बोला- अपना लोवर निकाल दो.. तो मैं देखूं कि क्या हो रहा है?
तो उसने पहले तो मना कर दिया.. लेकिन कई बार कहने पर उसने अपना लोवर निकाल दिया.. अब वह केवल महरून रंग की जालीदार पैंटी में थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि मेरे सामने जन्नत की कोई हूर बैठी हो। मैं ज़्यादा देर न करते हुए उसके ऊपर आ गया और अपने लंड को अंडरवियर के अन्दर से ही उसकी चूत पर रगड़ने लगा।
वो लंड का अहसास पाते ही जोर-ज़ोर से सिसकारियाँ लेने लगी और उसकी चूत से पानी का रिसाव होने लगा।
इसी बीच मैंने अपना एक हाथ उसकी पैंटी में डाल दिया और उसकी चूत के दाने को सहलाने लगा। उसने मेरा कोई विरोध नहीं किया तो मुझे समझ में आ गया कि उसे भी मज़ा आ रहा है।
मौका देख कर मैंने उसके पैंटी को भी धीरे से नीचे खिसका दिया। अब वो मेरे सामने बिल्कुल नंगी थी और मैं उसकी चिकनी चूत को ही एकटक निहार रहा था।
मैंने कई ब्लू-फ़िल्म देखी थीं.. पर आज पहली बार चूत चोदने का मौका हाथ लगा था। मैंने धीरे से अपने मुँह को उसकी बुर पर रख दिया तो वह तुरंत ही उठकर बैठ गई और बोली- नहीं.. ये गंदी जगह है.. इसमें मुँह मत लगाओ।
लेकिन मैं नहीं माना और अपनी ज़िद पर अड़ा रहा.. तो उसने अपने हथियार डाल दिए। मैंने अपना लंड उसको चूसने के लिए बोला तो उसने बिल्कुल मना कर दिया।
मैंने ज़्यादा ज़ोर नहीं डाला और उसकी चूत को चूसने लगा। करीब दो मिनट की चुसाई में ही उसने अपना माल मेरे मुँह पर ही छोड़ दिया। मैं इसके बाद भी नहीं रुका और लगातार उसकी चूत को चूसता रहा।
कुछ देर बाद ही वो चिल्लाने लगी- कुछ करो.. नहीं तो मैं मर जाऊँगी..
मैंने मौके की नज़ाकत को भाँपते हुए अपने कपड़ों को अपने शरीर से अलग कर दिया और उसके बगल में बिल्कुल नंगा होकर लेट गया।
मैं उसके शरीर को धीरे-धीरे सहला रहा था। लेकिन उसका ध्यान केवल मेरे 6 इंच लंबे और अपेक्षाकृत मोटे लंड पर टिका हुआ था। वो उसे बहुत आश्चर्य से देख रही थी तो मैंने पूछा- क्या देख रही हो?
तो उसने बोला- ये मेरे इतने से छोटे छेद में कैसे जाएगा?
मैंने बोला- अगर तुम मेरा साथ दोगी.. तो आराम से घुस जाएगा।
बोली- तुम जो कहोगे.. वो मैं करूँगी।
फिर मैं उसके ऊपर चढ़ गया और अपने लंड को उसकी चूत के मुँह पर रगड़ना शुरू कर दिया और वो फिर से सिसकारियाँ भरने लगी और बीच-बीच में अपने चूतड़ को उचकाने लगी।
जब वो मुझे ज़्यादा ही मदहोश होने लगी.. तब मैंने अच्छा मौका देखकर अपने लण्ड के सुपारे पर ढेर सारा थूक लगाकर चूत के मुँह पर लण्ड टिका दिया और रगड़ने लगा।
इसके साथ ही मैं उसके रसीले होंठों का भी रसपान कर रहा था और वो भी खूब मजे से मेरा साथ दे रही थी।
लेकिन उसे यह नहीं पता था कि अगले पल उसके साथ क्या होने वाला था।
मैंने मौका देखकर एक तगड़ा झटका दिया और मेरा आधा लंड उसकी कुँवारी चूत की सील को चीरता हुआ अन्दर घुस गया।
‘ऊईईईईई…’
उसकी चीख उसके गले में ही घुट गई। वो मुझे घूर रही थी और उसकी आँखें मुझसे सवाल कर रही थीं.. किंतु इस समय मैं किसी भी सवाल का जबाब देने के मूड में नहीं था।
कुछ देर में ममता थोड़ा सामान्य हुई तो मैंने दूसरा जोरदार झटका मारा और लंड सीधा उसकी चूत की गहराइयों में समा गया।
ममता की दोनों आँखों से आँसू निकल रहे थे और मेरी गिरफ़्त से वो छूट जाना चाहती थी.. लेकिन वो चाहकर भी मेरी मजबूत पकड़ से नहीं छूट पाई। मैं उसको चूम रहा रहा था और धीरे-धीरे लण्ड को भी उसकी चूत में आगे-पीछे कर रहा था। अब धीरे-धीरे उसको भी मज़ा आने लगा और वो मेरा साथ देने लगी। ठंड में भी हम दोनों पसीने से भीग गए।
ममता की ‘आहों’ से पूरा कमरा गरम हो गया था और मेरा भी जोश बढ़ता जा रहा था। मेरी चोदने की रफ़्तार बहुत तेज हो गई थी और ममता भी लिपट-चिपट कर मेरा उत्साह दोगुना कर रही थी। करीब 15 से 20 मिनट की चुदाई के बाद अचानक ममता ज़ोर-ज़ोर से अपने चूतड़ों को मटकाते हुए झड़ गई।
अब मैंने अपनी रफ्तार और तेज कर दी और कुछ देर बाद ही मेरे लण्ड ने फुंफ़कार मारते हुए उसकी चूत मे वीर्य की पिचकारी मार दी। जैसे ही मेरे लण्ड ने अपनी पिचकारी मारनी शुरू किया उसकी चूत में एक खिंचाव सा महसूस हुआ और मैं झड़ते चला गया।
हम काफ़ी देर तक वैसे ही एक-दूसरे से चिपके पड़े रहे, वो मुझे बार-बार चुम्बन किए जा रही थी।
उसकी इस हरकत से मेरा लण्ड फिर से खड़ा हो गया और फिर से हमने चुदाई का एक नया दौर शुरू कर दिया।
उस दिन जब तक अंकल नहीं आ गए तब तक हमने कुल 4 बार चुदाई की।
इसके बाद हमने अगले 7-8 दिनों तक जब तक कि आंटी वापस नहीं आ गईं और हमें जब भी मौका मिला.. हमने कम से कम कुल मिलकर 20 से 25 बार चुदाई के मजे लिए।
अगले चार महीनों तक तो हमारे बीच सब कुछ ठीक-ठाक चला.. फिर मुझे लगा क़ि यहाँ रहा तो मैं अपनी पढ़ाई नहीं कर पाऊँगा.. इसलिए मैंने उनका घर छोड़ दिया और एक लॉज में एक कमरा लेकर अपनी पढ़ाई में जुट गया।
अब मेरा उनके घर आना-जाना काफ़ी कम हो गया.. लेकिन हमें जब भी मौका मिलता था.. तो हम चुदाई कर लिया करते थे। जब मैं किसी सप्ताह उनके घर नहीं जाता था तो ममता मुझसे मिलने आ जाया करती थी और मौका देखकर हम चुदाई कर लिया करते थे।
सन् 1999 में उसकी शादी हो गई और उसके बाद हमने फिर कभी चुदाई नहीं की.. सन् 2000 मे मेरा शारीरिक संबंध उसकी छोटी बहन नीलम से हो गया जो 2006 तक कायम रहा।
उसके बाद मेरा चयन हो गया और मैं अपने जॉब में व्यस्त हो गया। फिर शादी हो जाने के कारण अब मेरा इलाहाबाद जाना काफ़ी कम हो गया है किंतु जब भी जाता हूँ तो नीलम की चुदाई अवश्य ही करता हूँ।
नीलम से मेरे संबंध कैसे बने.. वो आपको मैं अगली बार बताऊँगा.. तब तक के लिए आप लोगों से विदा लेता हूँ और आशा करता हूँ कि मेरी कहानी आप लोगों को कैसी लगी.. आप अवश्य ही मुझे मेल करके सूचित करेंगे।
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