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मैं पूरा जोर लगा कर तीव्र धक्के लगा रहा था तभी चाची की योनि एकदम से सिकुड़ गई और वह मेरे लिंग को जकड़ कर अंदर खींचने लगी।
चाची का शरीर एवं उनकी टाँगें अकड़ने लगी और उनका पूरा बदन कांपने रहा था तथा उन्होंने अपनी दोनों टांगों को भींच लिया था जिसके कारण मेरे लिंग पर उनकी योनि की रगड़ बहुत ही जोर से लगने लगी।
इसके बाद के दो-तीन धक्कों ने हम दोनों को उत्तेजना के उन्माद की उस ऊँचाई पर पहुँचा दिया कि दोनों ने चिल्लाते हुए एक साथ ही अपने अपने रस का स्खलन कर दिया।
चाची की योनि के अंदर हो रही सिकुड़न एवं खिंचावट तथा उनके शरीर एवं कांपती टांगों में हो रही अकड़न के कारण वह अपने को सम्भाल नहीं पाई और धम्म से औंधे मुँह बिस्तर पर लेट गई।
मेरा लिंग जो उस समय उनकी सिकुड़ी हुई योनि में बुरी तरह फंसा हुआ था एकदम से खींचा जिसके कारण मेरे शरीर को भी झटका लगा और मैं चाची के उपर ही गिर पड़ा।
लगभग पांच मिनट तक दोनों पसीने से लथपथ तथा हाँफते हुए लेटे रहे और अपनी अपनी साँसों को नियंत्रित करने की चेष्टा करते रहे। जब हम दोनों की साँसें सामान्य हुई और चाची की शरीर की कंपकपी तथा योनि की सिकुड़न समाप्त हुई तभी मेरे लिंग को आज़ादी मिली। चाची की सम्पूर्ण यौन आनन्द कामना पूर्ति-1 चाची की सम्पूर्ण यौन आनन्द कामना पूर्ति-2
चाची की योनि में से मेरे लिंग के बाहर आते ही मैं उनके ऊपर से हट कर उनकी बगल में लेट गया और उन्हें अपने बाहुपाश में लेकर उनके चेहरे तथा होंठों को चूमने लगा।
कुछ क्षण तो चाची ने मुझे उन्हें चूमने दिया लेकिन फिर उन्होंने भी करवट बदल ली और मेरे ऊपर चढ़ गई तथा मेरे माथे से मेरी गर्दन तक पूरे चेहरे को चूम चूम कर गीला कर दिया।
उन्हें मुझ पर इतना प्यार आ रहा था कि उन्होंने मेरे चेहरे के बाद शरीर के नीचे की ओर बढ़ते हुए मेरे हर अंग को चूमते हुए वह मेरे लिंग तक पहुँच गई।
वहाँ पर उन्होंने मेरे लिंग और अंडकोष को अपने हाथों में ले कर उन पर अपने चुम्बनों की बौछार लगा दी और उन्हें भी पूरा गीला कर दिया।
चाची को यह सब करते देख कर मैंने उनसे पूछा- चाची, मुझ पर अचानक इतना प्यार क्यों आ रहा है?
चाची बोली- विवेक, तुम तो मेरा सबसे कीमती हीरा हो। मैं तुम्हें अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करने लगी हूँ क्योंकि तुमने अभी यौन संसर्ग में मुझे जो आनन्द और संतुष्टि दी है उसकी तो मैंने कभी कल्पना भी नहीं करी थी।
फिर सांस लेने के लिए रुकी चाची आगे बोली- जो सम्पूर्ण आनन्द तुमने अभी दिया है वह तो तुमने बीती रात को मेरे साथ पहली बार यौन संसर्ग करते समय भी नहीं दिया था। मुझे तुम्हारे चाचा ने भी पिछले अठरह वर्ष के विवाहित जीवन में आज तक कभी भी इतने सम्पूर्ण आनन्द नहीं दिया। वे तो आज तक मेरी एक साधारण सी आनन्द एवं संतुष्टि की मनोकामना भी पूरी नहीं कर सके।
मैंने चाची की बात सुन कर मैंने कहा- चाची, आप के साथ यौन संसर्ग करने की मेरी अधूरी मनोकामना को भी तो आपने बीती रात को पूरा कर दिया था। रात को संसर्ग के बाद जब आपने कहा था कि आपको सिर्फ आनन्द आया था तब मैंने ठान लिया था कि मैं आपको एक दिन सम्पूर्ण आनन्द एवं संतुष्टि अवश्य दूंगा। मुझे ख़ुशी है कि आज मैंने आप के साथ दूसरी बार यौन संसर्ग करते हुए आपकी सम्पूर्ण आनन्द की मनोकामना को भी पूरा किया है।
चाची एक बार फिर मेरे अंगों को चूमते हुए बोली- विवेक, मैं सच कह रही हूँ कि तुम मेरे जीवन के वह दूसरे पुरुष हो जिसके साथ मैं हम-बिस्तर हुई हूँ। तुमने यौन संसर्ग में मेरी सम्पूर्ण आनन्द प्राप्ति की मनोकामना को पूरा कर के मुझे एहसास करा दिया कि मैंने तुम्हारे साथ सम्भोग करके कोई भी गलती नहीं करी।
इसके बाद चाची ने घड़ी की ओर देख कर कहा- विवेक, दोपहर के ढाई बज गए है। हम दोनों को पसीने की इस गंध को दूर करने के लिए पहले नहा लेते है, उसके बाद दोनों साथ बैठ कर खाना खाते हैं और फिर थोड़ा आराम करेंगे।
उसके बाद हम दोनों ने गुसलखाने में जाकर एक दूसरे के गुप्तांगो को मल मल कर साफ़ किया तथा शरीर पर साबुन लगा कर अच्छी तरह से एक दूसरे को नहलाया ताकि दोनों के शरीर पर पसीने की अंश मात्र गंध भी नहीं रहे।
नहाने के बाद हम दोनों ने नग्न अवस्था में ही भोजनकक्ष में बैठ कर खाना खाया और तत्पश्चात चाची के कमरे में विश्राम करने चले गए।
चाची के बिस्तर पर हम दोनों लिपट कर लेटे हुए एक दूसरे के गुप्तांगों को सहलाते एवं मसलते हुए तथा बातें करते करते सो गए।
अँधेरा होने पर जब मेरी नींद खुली तो चाची को अपने पास लेटे हुए नहीं देख कर मैं रसोई में गया तो उन्हें रात के लिए खाना बनाते हुए पाया।
उस समय उनके बाल खुले हुए थे और उन्होंने हल्की गुलाबी रंग की नेट की आधी लम्बाई की नाइटी पहनी हुई थी जो उनके घुटनों तक ही लम्बी थी।
चाची की सुन्दरता का वह रूप देख कर मैं हैरान हो गया क्योंकि उस समय वह सनी लियॉन से भी अधिक कामुक लग रही थी।
रसोई की ट्यूब लाईट की रोशनी में उनकी झीनी नाइटी में से उनका नग्न शरीर की झलक को देख कर मेरा मन मचल गया और मैंने उन्हें पीछे से अपनी बाजुओं में जकड़ लिया, उनके दोनों उरोजों को मैं अपने हाथों से मसलने लगा और अपने लिंग को उनके नितम्बों की दरार में घुसाने की चेष्टा करने लगा।
तब चाची ने खाना बनाना छोड़ कर मेरी ओर मुड़ी और मेरे होंठों को चूमते हुए कहा- मेरे राजा, अभी थोड़ा सब्र करो और अपने चूहे को काबू में रखो। रात का खाना खाने के बाद बेशक इसे पूरी रात के लिए मेरी बिल में उछल कूद करने के लिए खुला छोड़ देना। बेफिक्र रहो यह बिल तो अब तुम्हारे चूहे की ही अमानत है।
चाची की बात सुन कर मैं क्षण भर के लिए उनसे अलग तो हुआ लेकिन पलट कर उनकी नाइटी को उनके तन से अलग करते हुए उन्हें पूर्ण नग्न किया और उनके उरोजों को चूसने लगा।
चाची ने आत्मविभोर हो कर बाएँ बाजू से मुझे अपने आलिंगन में जकड़ लिया और दायें हाथ से मेरे बालों को सहलाते हुए मुझे स्तनपान कराने लगी।
पांच मिनट के बाद चाची बोली- राजा, यह संतरे तुम्हारे है और हमेशा तुम्हारे ही रहेंगे। अभी थोड़ी देर के लिए इन्हें छोड़ दो। खाना खाने के बाद चाहो तो इन्हें पूरी रात चूसते रहना।
खाना खाने के बाद चाची ने रसोई के सामान को समेटा तथा साफ़ किया और मैंने घर के सभी दरवाज़े, खिड़कियाँ और लाइटें आदि बंद करके उनके साथ उन्हीके शयनकक्ष में रात के लिए चले गए।
शयनकक्ष में पहुँचते ही मैं बिस्तर पर लेट गया और चाची को खींच कर अपने ऊपर लिटा लिया और उनके माथे, आँखों, गालों और गर्दन आदि को चूमा तथा उनके होंठों को चूसता रहा।
चाची ने भी मेरा साथ दिया और काफी देर तक उन्होंने भी मेरे माथे, आँखों, गालों और गर्दन आदि को चूमा तथा मेरे होंठों को चूसती रही।
मेरा तना हुआ लिंग उनकी दोनों जांघो के बीच में उनकी योनि के द्वार के पास एक नाग की तरह फुफकार मार रहा था और चाची अपनी दोनों जांघों को भींच कर उसे शांत करने की चेष्टा कर रही थी।
चाची के होंठों के छोड़ कर जब मैंने उनके स्तनों को चूसना शुरू किया और उनकी योनि में अपनी बड़ी ऊँगली डाल कर हिलाने लगा तब उनकी उत्तेजना बढ़ने लगी।
उन्होंने अपने हाथों से मेरे लिंग और अंडकोष को पकड़ कर सहलाना एवं मसलना शुरू कर दिया।
मेरे लिंग और अंडकोष पर उनका हाथ लगते ही जब मेरी उत्तेजना में वृद्धि हो गई तब मैंने चाची को 69 की स्तिथि में संभोग पूर्व क्रीड़ा के लिए अनुरोध किया।
तब चाची बिना देर किये घूम गई और अपनी योनि को मेरे मुख पर रख कर मेरे लिंग को अपने मुँह में ले लिया और हम दोनों एक दूसरे के गुप्तांगों को चूसने और चाटने लगे।
सम्भोग पूर्व की इस क्रीड़ा को करते हुए पांच मिनट ही बीते थे की चाची की योनि में से रस का संखलन हुआ जिसे मैंने अमृत समझ कर उसका रसपान किया।
तभी चाची ने तीव्र उत्तेजना में आ कर मेरे लिंग-मुंड के किनारों को अपनी जीभ से रगडा जिस के कारण मैं अपने वीर्य-रस को स्खलित होने से रोक नहीं सका और चाची के मुँह को उससे भर दिया।
चाची चटकारे लेते हुए उस रस को पी गई और मेरे लिंग के बाहर और अंदर बचे-खुचे रस को भी चूस एवं चाट कर उसे बिल्कुल साफ़ कर दिया।
जब मैंने चाची से पूछा- चाची, क्या मेरा रस बहुत स्वादिष्ट है जो आप इतने बड़े चटकारे ले कर पी रही थे इसे?
मेरी बात के उत्तर में उन्होने कहा- मेरी जान, एक बात कहती हूँ कि अब जब भी हम अकेले हों तब तुम मुझे चाची या आप मत कहना। मैं तो अब तुम्हारी शयन-संगनी बन चुकी हूँ इसलिए तुम मुझे मीनाक्षी कह कर ही पुकारा करो।
फिर मेरे प्रश्न के सन्दर्भ में उन्होंने कहा- तुम्हारा खट्टा-मीठा रस मुझे तो बहुत ही स्वादिष्ट लगा। मेरी इच्छा तो उसे पेट भर कर पीने की थी लेकिन तुमने तो बहुत कंजूसी से थोड़ा सा ही पिलाया।
उनकी बात सुन कर मैंने कहा- मेरी प्यारी मीना, मुझे तो तुम्हारे नीचे वाले बिना दांत के प्यासे मुँह का भी तो ख्याल रखना है इसलिए तुम मेरा बाकी का बचा हुआ रस उस मुँह से पी लेना।
मेरे इतना कहते ही चाची ने पलटी मारी और 69 की स्तिथि में हो कर मेरे लिंग को चूसने लगी तथा मुझसे अपनी योनि चुसवाने लगी।
पन्द्रह मिनट के बाद जब मेरा लिंग तन कर सख्त भो गया और चाची की योनि में भी हलचल होने लगी तब उसने मेरे ऊपर आकर मेरे लिंग को अपनी योनि में डाल लिया।
कुछ क्षण लिंग को अपनी योनि में गर्म करने के बाद वह उछल उछल कर संसर्ग करने लगी तथा मैं भी उसका साथ देने लगा और उसके हर धक्के का उत्तर उचक कर देता।
दस मिनट के बाद चाची मेरे ऊपर से हट गई और सुबह की तरह बिस्तर पर घोड़ी बन कर खड़ी हो गई।
तब मैंने अपने लिंग को उसके पीछे से उसकी योनि में प्रवेश कराया और उसे अंदर बाहर करने लगा।
लगभग पन्द्रह मिनट तक मध्य-गति में सम्भोग करते रहने पर चाची की योनी ने दो बार अपना रस स्खलित किया तब मैंने अपनी गति बहुत तेज़ कर दी।
इस तेज़ गति के सम्भोग को अभी दो मिनट ही हुए थे की चाची का शरीर अकड़ गया और उसकी योनि में बहुत ही तीव्र खिंचावट हुई जिससे मेरे लिंग को बहुत ज़बरदस्त रगड़ लगी।
उस रगड़ के कारण मेरा लिंग-मुंड फूल गया और चाची की सिकुड़ी हुई योनी में फस गया तभी हम दोनों के मुँह से बहुत तेज़ सिसकारी निकली और दोनों ने ही अपना अपना लावा उगल दिया।
उसके बाद हम दोनों ने लिंग को योनि के अंदर ही रखते हुए बिस्तर पर लेट गए और अपनी उखड़ी हुई साँसें बटोरने लगे।
दस मिनट के बाद जब सब कुछ सामान्य हो गया तब मैंने अपने लिंग को चाची की योनि में से बाहर निकाला और उसके मुँह में दे दिया।
चाची ने बहुत ही प्यार से उसे चाट कर साफ़ कर दिया और फिर काफी देर तक अपने होंठों को मेरे होंठों पर रख कर मेरा चुम्बन लेती रही। मैंने भी कुछ देर उसका साथ दे कर फिर अलग होते हुए पूछा- कहो जानेमन, कैसा रहा? क्या सम्पूर्ण आनन्द और संतुष्टि मिली?
मेरे प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा- हाँ मेरी जान, सब कुछ वैसा ही मिला जैसा दिन में मिला था। सम्पूर्ण आनन्द भी और सम्पूर्ण संतुष्टि भी। लेकिन तुमने मुझ में इस असीम आनन्द को बार बार अनुभव करने की लालसा भी पैदा कर दी है।
इस प्रकार चाचा के आने तक अगले दो दिन मैंने चाची के साथ ही सोया और रोज़ तीन तीन बार सम्भोग करके उसकी सम्पूर्ण आनन्द की मनोकामना पूरी करी। उसके बाद बाकी के दस दिन मैं सिर्फ दिन के समय ही चाचा के काम पर जाने के बाद चाची के साथ कम से कम दो बार सम्भोग ज़रूर करता और उसे आनन्द एवं संतुष्टि देता रहा।
अब मैं हर छुट्टियों में गाँव ज़रूर जाता हूँ और वहाँ जब भी मुझे और चाची को एकांत मिल जाता है तब हम दोनों आनन्द और संतुष्टि प्राप्त कर लेते हैं।
प्रिय मित्रो, मेरी पहले प्रकाशित रचनाओं की तरह इस रचना को भी श्रीमती तृष्णा जी ने सम्पादन और व्याकरण सुधार आदि कर के त्रुटि-रहित किया है तथा अन्तर्वासना पर प्रकाशित करवाने में मेरी सहायता करी है जिसके लिए मैं उनका बहुत अनुगृहीत एवं आभारी हूँ।
इस शृंखला को जारी रखते हुए मैं अपने जीवन में घटित हुई एक और घटना का विवरण आपको अगली रचना में बताऊँगा।
तब तक मेरी इस रचना पर आप अपनी प्रतिकिया मुझे या श्रीमती तृष्णा जी को [email protected] gmail.com या [email protected] mail.com पर भेज सकते हैं।
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