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अन्तर्वासना के पाठकों को मेरा प्रणाम। मेरी साली की चुदाई की दास्तान आप सब लोगों को पसंद आई, ढेर सारे मेल्स भी आये, उसके लिए धन्यवाद।
आज मैं फिर आप लोगों के सामने अपनी एक और सच्ची दास्तान लेकर आया हूँ। बात जब उस समय की है जब मैं बी.ए. सेकंड इयर में था। मैं अपनी मौसी के यहाँ बस से भोपाल जा रहा था। कोटा से भोपाल का रास्ता 10 से 12 घंटे का है। कोटा से बाहर निकलते ही एक महिला ने बस को रुकने का इशारा किया, बस वाले बस रोकी और सवारी ली और चल दी।
मैं 3X3 की सीट पर अकेला बैठा था तो वो महिला मेरी ही सीट पर आकर बैठी।
मैंने गोर करके उस महिला को देखा तो भरा पूरा शरीर था, थोड़ी सांवली थी मगर गजब का आकर्षण था उसकी आँखों में… उम्र लगभग 30 साल की होगी। खैर वो बैठी तो मुझसे पूछा- कहाँ तक जाओगे?
मैंने जवाब दिया- भोपाल। तो वो बोली- मुझे ब्यावर जाना है। चलो कम से कम आधे से ज्यादा तक सफ़र आप साथ रहोगे।
बस मैं उनको देखकर मुस्कुरा दिया और उन्होंने भी इसका जवाब मुस्कुरा कर दिया।
फिर उन्होंने मेरे फेमिली बैकग्राउंड के बारे में पूछा तो मैंने अपने बारे में उन्हें जानकारी दी और उन्हें बताया कि भोपाल में मेरी मौसी रहती हैं। फिर मैंने उनसे उनके बारे में पूछा तो उन्होंने अपना नाम मुझे सुगन बताया और भोपाल में उनकी ससुराल है। वो और उनके पति दोनों जॉब करते हैं। उन्होंने मुझे बताया कि उनके पति नेवी में हैं और मैं टीचर हूँ और मेरी ब्यावर पोस्टिंग है। हम दोनों परिवार से अलग रहते हैं।
बातें करते करते पता नहीं कब झालावाड़ आ गया। रात का समय तो था ही सही, तो बस आधी से ज्यादा खाली हो गई मतलब सबसे पीछे हम रह गये और हमारे पीछे की सब सीटें खाली हो गई। बस वहाँ से आगे चली। सर्दी का समय था तो मुझे ठण्ड लग रही थी और मेरे पास ओढ़ने का कुछ भी नहीं था तो मैंने उनसे निवेदन करते हुए कहा- मैडम आप के पास कुछ ओढ़ने का मिल जायेगा क्या? लगता है कि आज सर्दी कुछ ज्यादा ही है।
मैडम ने मुझे देखा और कहा- मेरे पास भी यही एक शॉल है, लेकिन एक रास्ता है तुम्हें बुरा न लगे तो?
मैंने कहा- क्या है? मैडम बोली- इसी शॉल को तुम भी ओढ़ लो।
मैंने तो एक बार को मना कर दिया लेकिन उनके जोर देने पर मैंने भी वो ही शॉल ओढ़ ली। अब हम दोनों एक ही शॉल के अन्दर थे। शॉल ओढ़ने के बाद काफी आराम मिला मुझे। बस अपनी पूरी रफ़्तार से चल रही थी, मैडम की नज़दीकी मिलने से अब तो मेरे शरीर को और गर्माहट मिल रही थी। मैडम ने मुझे देखा और मुस्कुराते हुए पूछा- कोई गर्लफ्रेंड है तुम्हारी? तो मैंने मना कर दिया- नहीं है।
मैंने भी मोके की नज़ाकत को देखते हुए मैडम से पूछा- मैडम, क्या आप ब्यावर ही रहती है और जॉब कहाँ करती हैं?
उन्होंने जवाब दिया- हाँ… और जॉब भी वहीं है। हम दोनों बाते कर रहे थे तो मुझे लगा क़ि मेरी कोहनी मैडम के एक मम्मे से बार बार टच हो रही है और मैडम कुछ भी नहीं कह रही। या तो उनको पता नहीं है या फिर वो अनजान बनने का नाटक कर रही हैं।
मैंने अपनी कोहनी को उनके मम्मे पर थोड़ी और दबाई तो मैडम चुपचाप बैठी रही। फिर मैंने और ज्यादा मम्मे को दबाया कोहनी से, तो मैडम ने मुझे देखा और थोड़ी मुस्कुराई।
मैं समझ गया कि मैडम को भी मज़ा आ रहा है। फिर तो मैंने उनके एक मम्मे को पकड़ लिया और धीरे धीरे दबाने लगा, मैडम बस आँखें बंद किये बैठी थी।
फिर तो मैं उनके दोनों मम्मों से खेलने लग गया था। बस में हालांकि उजाले के लिए एक दो मिनी लाइट जली हुई थी लेकिन हम दोनों एक ही शॉल में थे तो अंदर क्या हो रहा था तो किसको पता। फिर तो मैं मैडम के मम्मों सहलाते हुए बड़े प्यार से दबा रहा था तो मैडम अपने ही होठों को अपने ही दांतों से दबा रही थी और अपने मुँह से हल्की हल्की सी सीत्कारें निकाल रही थी ताकि कोई और न सुने।
थोड़ी देर के बाद मैंने मैडम से पूछा- क्या मैं आपके ब्लाउज के हुक खोल दूँ? मैडम ने भी पहले इधर उधर देखा फिर हामी भरी। मैंने भी देर न करते हुए आहिस्ते आहिस्ते अपने अंदाज़े से उनकी ब्लाउज के सारे हुक खोल दिए, फिर मैं ब्रा के ऊपर से ही उनके उरोजों को दबाने लगा। मैडम अपने मुँह से धीरे धीरे आह… आह… कर रही थी। फिर मैंने गोर करके देखा तो मैडम ने सफ़ेद रंग की ब्रा पहनी हुई थी। मैंने फिर दूसरी सवारियों की तरफ देखा तो ज्यादातर सोये हुए थे। मैं उनकी ब्रा को ऊपर खिसकाते हुए उनके उरोजों को ब्रा से आज़ाद कर दिया और मम्मो की घुण्डियों को मसलने लगा।
मेरे ऐसा करने से वो तड़प उठी और मुँह से सी.. सी… आह.. आह… की आवाज़ निकालने लगी।
मुझे तो पता नहीं कि मुझे क्या हुआ मैं तो उनके उरोजों को ज़ोर ज़ोर से मसलने लगा। मैडम भी पूरी मस्ती से मम्मों को दबवा रही थी और मस्ती के इस नशे में अपने एक हाथ से मेरा लण्ड पकड़ लिया और उसे अपने नर्म हाथों से हौले हौले दबाने लगी थी।
मैडम ने मुझसे पूछा कि ये सब कहाँ से सीखा?
तो मैं बोला- मैडम, आपसे पहले भी 4-5 औरतों की चुदाई कर चुका।
इतने में खिलचीपुर कब आया हमें पता ही नहीं चला, मैडम बोली- अब यहाँ से 2 घंटे और लगेंगे।
तो मैं बोला- कोई बात नहीं मैडम, क्या मैं इनको मुँह में लेकर इनका दूध पी लूँ?
मैडम बोली- अब ये तेरे ही हैं, जो करना है कर ले!
फिर मैंने इधर उधर देखा और शॉल के अंदर मुँह घुसा कर मम्मे की निप्पल को अपने मुँह में भर लिया और छोटे बच्चे की तरह चूसने लगा और दूसरे मम्मे को मसलने दबाने लगा।
थोड़ी देर के बाद मैंने मैडम की साड़ी को भी धीरे धीरे मम्मे को चूसते हुए एक हाथ से ऊँची कर दी और उनकी जांघों को सहलाने लगा। सहलाते सहलाते मैंने अपने हाथ को उनकी योनि से टच कर दिया और उनकी चूत को अंडरवियर के ऊपर से सहलाने लगा। योनि की जगह से उनकी कच्छी पूरी गीली हो गई थी, मैडम की चूत पूरी पनिया गई थी, मैंने अपना हाथ कच्छी के अंदर घुस दिया और उनकी चूत के दाने को मसलने लगा। जैसे ही चूत के दाने को मैंने मसला तो मैडम पूरी तरह से कसमसा गई और सीईई… सीई ईईई… सी… सी.. मुँह से आवाज़ भी निकलने लगी और मेरे लण्ड को और जोर से दबाने लगी। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं ! थोड़ी देर में चूत के दाने को धीरे धीरे एक उंगली से मसलता रहा और मैडम को मीठी मस्ती की सैर करवाता रहा। इतने में राजगढ़ भी निकल गया लेकिन मस्ती के मज़े में मैडम भूल गई कि अगला स्टॉप उनका है। मैंने ही उन्हें बताया कि राजगढ़ निकल गया और अगला स्टॉप आपका है।
मैडम ने जल्दी से अपने कपड़े ठीक किये और मुस्कुराते हुए मुझे बहुत धन्यवाद दिया और कहा इतना मज़ा तो फॉर प्ले में उन्हें कभी नहीं आया जितना आज आया। बहुत बहुत धन्यवाद आपका, लेकिन मनु मैं चाहती हूँ कि इस अधूरे काम को अब पूरा भी करके जाओ। ‘मैं समझा नहीं मैडम?’ मैंने कहा। कहानी जारी रहेगी..
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