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दोस्तो. बीच में इम्तिहान होने की वजह से कुछ देरी हो गई.. माफ़ी चाहता हूँ.. आइए आगे चलते हैं।
अब तक आपने पढ़ा कि मैं सोनम को चोद रहा था और सोनम के शरीर की अकड़न भी बता रही थी कि वो इस मिलन का इंतज़ार नहीं करेगी।
तभी सोनम की चूत ने पानी फेंक दिया जैसे ही मेरे लण्ड को चिकनाई का अहसास हुआ.. उसने भी अपना गुस्सा निकाल दिया और सोनम की पूरी चूत भर दी।
सोनम निढाल होकर मेरे सीने से लग गई.. पूरी संतुष्टि होने पर मैंने भी उसे गले से लगा लिया।
मैं और सोनम कपड़े पहन ही रहे थे कि मेरा फ़ोन बजा.. दिमाग में ख्याल आया इस वक़्त कौन मादरचोद है.. जो परेशान कर रहा है.. साला अब कपड़े भी ना पहनूं क्या।
मैं अपना पैंट अभी घुटनों तक ही चढ़ा पाया था कि फ़ोन की घंटी दुबारा बज उठी। झक मार के फ़ोन उठाना ही पड़ा।
‘कौन है बे.. चुतियापा फ़ैलाने को फ़ोन किया है गांडू?’
अंकिता- अरे..अरे.. सामने मिलते हो तो बड़ा प्यार दिखाते हो.. जब भी फ़ोन करो तो ऐसे बात करते हो जैसे मैं तुम्हारी कोई दुश्मन हूँ।
ऊप्स… यह तो अंकिता का फ़ोन था.. जिसकी चूत लेनी हो.. उससे थोड़ा प्यार ही दिखाते हैं.. लेकिन अंकिता के साथ ही हमेशा ऐसा क्यों हो जाता है.. मैं सकपका गया।
फिर थोड़ा दम साध कर बोला- ओह्ह अंकिता.. सॉरी अगेन यार.. फ़ोन देखा ही नहीं स्वीटी..
अंकिता- अच्छा जी.. हमेशा मेरे साथ ही ऐसा होता है.. ऐसा क्यूँ?
मैंने अपने सर पर हाथ घुमाया और बोला- पता नहीं यार.. सॉरी बोला ना.. वो सबकी रिंगटोन एक जैसी है ना.. तेरी रिंगटोन थोड़ी अलग करता हूँ आज.. ये जो बजती है वो तो दोस्तों वाली है ना.. तुम तो जानती हो..
अंकिता- जानती हूँ.. जानती हूँ बाबा.. रिलैक्स.. अच्छा सुनो.. कहाँ हो.. घर तो नहीं गए ना?
सोनम भी कपड़े पहन चुकी थी.. मेरी पैंट अब भी घुटनों तक ही थी कि सोनम आँखों में शरारत लिए मेरी तरफ आई..
मैं बोला- नहीं.. नहीं.. अभी तो.. कॉल..ले..ज्..ज्ज्ज्.. में.. ही हूँ.. डियर.. बता क्या हुआ।
मेरी आवाज एकदम से फंस सी गई क्योंकि जब तक मैं बात कर रहा था.. सोनम ने मेरा लंड पकड़ कर दबा दिया और मैं समझ ही नहीं पाया कि मेरा आधा खड़ा लण्ड किसके हाथों में आ गया।
अंकिता- अच्छा तब ठीक है.. सुनो मुझे पिक कर लोगे विजयनगर से.. यहाँ से आने का कुछ भी साधन मिल नहीं रहा है।
यहाँ सोनम खिलखिलाते हुए मेरा लण्ड रगड़ रही थी.. लेकिन उसकी हँसी की आवाज़ अंकिता को सुनाई ना दे जाए.. इसलिए मैंने उसका सर नीचे झुकाया और अपना लण्ड उसके मुँह में डाल दिया।
मैं फुसफुसाया, ‘चूस हरामजादी.. ठरक चढ़ी तुझे..’
वो गूँ..गूँ.. करके मेरा लौड़ा चूसने लगी।
अब मैं अंकिता से बोला- क्यूँ तेरा मंगेतर नहीं आया.. उसे बुला ना.. क्या नाम था उस विकलांग का.. हाँ नावेद.. उसे बुला ले।
अंकिता- ऐसे मत बोलो ना.. नावेद आया था.. लेकिन रूचि के पेट में दर्द हो रहा था तो मैंने उसे उसके संग भेज दिया। प्लीज़ आ जाओ ना.. समर!
मैंने तेज-तेज सोनम के मुँह को चोदना चालू कर दिया था.. सोनम भी मेरे टोपे की फांकों पर जीभ चला रही थी। मेरे जो दोस्त पढ़ रहे हैं.. एक बार अपने लण्ड के टोपे की फांकों को चुसवाइए.. बड़ा मजा आता है।
मेरी ‘आह्ह्ह’ निकल गई.. लेकिन मैं संभल कर बोला- ह्म्म्म.. मेरा क्या फ़ायदा वैसे..?
अंकिता- जो तुम कहो.. पक्का वादा।
मैंने सोचा अब जाऊँगा तो लण्ड का पानी निकाल कर ही.. सो मैंने अंकिता को बोला- ठीक है स्वीटी पाई.. बीस मिनट में आता हूँ.. तू रेव@मोती पहुँच.. मैं उधर ही आता हूँ।
फोन रखते ही मैंने सोनम के बाल लगाम की तरह पकड़े और उसके मुँह को चूत की तरह चोदने लगा। कमाल की बात थी सोनम के मुँह से भी लण्ड बार-बार अन्दर-बाहर होने की वजह से ‘स्लर्र्प.. स्लर्र्प..’ की आवाज़ निकल रही थी।
सोनम के हाथ मेरी गाण्ड पर कस गए थे और लण्ड के अन्दर तक जाने की वजह से बार बार ‘गूँ.. गूँ..’ की आवाज़ निकल जाती थी। लेकिन मेरा लण्ड खड़ा का खड़ा लड़ने पर आतुर था।
तभी सोनम ने मुझे धक्का देकर अपना सर निकाला और एक लंबी सांस ली फिर अपनी तोतली आवाज में बोली- माल दोगे क्या?
मैंने प्यार से सहलाया, ‘नहीं मेरी जान मारूँगा.. क्यों चोदूँगा.. बस..’
सोनम- नहीं सैम.. आज नहीं मेली चूत भी दल्द हो लही.. मैंने कपले भी पहन लिए हैं.. औल वक़्त भी हो लहा है।
मैंने सोचा ठीक ही कह रही है.. मैंने दुबारा.. उसके बाल पकड़े और उसके मुँह में अपना लण्ड डाल दिया।
सोनम भी जल्दी छुटकारा पाने के लिए मेरा लण्ड पकड़ कर रगड़ते हुए चूसने लगी। सोनम की चुसाई से यह तो पता लग गया कि सुनील सर ने इसे चूसने की ट्रेनिंग अच्छी दी है.. सुनने में तो यह भी आया था कि सुनील अपने जूनियरों की क्लास में सोनम के साथ चिपक कर बैठता था और बीच-बीच में सोनम उसका लण्ड मसल देती थी।
सोनम इस वक़्त मेरा लण्ड जोर-जोर से चूस रही थी.. एकदम छिनाल जैसी दिख रही थी। मेरे लण्ड की सारी नसें तनी जा रही थीं.. जब-जब सोनम मेरे लवड़े को मुँह से बाहर निकाल कर अन्दर लेती.. मेरी एक मीठी ‘आह’ निकल जाती थी। कुछ ही देर में मेरा लण्ड झड़ने वाला था।
सोनम किनारे बैठ कर साइड से मेरा लण्ड चूसते हुए हाथों से रगड़ रही थी.. कि एक जोर की पिचकारी के साथ मेरा वीर्य लगभग सात फ़ीट तक गिरा। सोनम के होंठों पर लगा हल्का सा वीर्य.. वो साफ़ कर रही थी और मेरा वीर्य निकलता जा रहा था।
कुछ देर बाद मेरी सांस में सांस आई.. तब तक सोनम जाने के लिए तैयार खड़ी हो चुकी थी। मैंने उसे देखा.. मन में ख्याल आया जितना बेवकूफ और सीधा लोग इसे समझते हैं.. ये है नहीं।
मैंने घड़ी देखी.. अभी 3-50 हुए थे। अंकिता को मिलना था.. इसे घर छोड़ना था। अभी कॉलेज से निकलना भी था.. इन सब विचारों के साथ आखिर मैंने अपनी पैंट चढ़ा ही ली।
दोस्तो.. आगे क्या हुआ.. ये जानने के लिए पढ़ते रहें और मुझे मेल करते रहें। [email protected]
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