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कहानी का पिछला भाग : मेरे चाचू ने बेरहमी से चोदा-2
सम्पादक : जूजा जी
मैं अपने अब्बू की खुशी में खुश हो गई और वलीद को भी समझा दिया।
लेकिन हसन भाई न संभल सके.. वो मुझसे और प्रेम करने लगे। मैं उन्हें मना भी करने लगी और मैंने उनसे बात भी करनी छोड़ दी। वो पागल हो गए.. उन्होंने अपनी अम्मी को बोल दिया तो उनकी अम्मी ने मेरी अम्मी को कहा। मेरी अम्मी ने कहा- अब तो बहुत देर हो चुकी है.. आप लोग पहले कहाँ थे.. अब कुछ नहीं हो सकता।
हसन भाई तो टूट गए… वो मुझसे मिन्नतें करते..
मैंने मना किया और अब मैं अपने मँगेतर हिलाल से बातें करने लगी और उसको पसंद करने लगी।
हालांकि मैंने हिलाल को नहीं देखा था क्योंकि वो कराची में था और मैं एबटाबाद में थी।
हम मोबाइल पर बातें करते.. अब वलीद और हसन भाई मेरे दिमाग से निकल गए।
हसन भाई फिर भी मुझे ना छोड़ते और मैसेज करते।
आहिस्ता-आहिस्ता हसन भाई पूरी की पूरी फैमिली में मेरी वजह से बदनाम हो गए। सब उन्हें बुरा कहते।
अब वो पागल हो गए और जब वो समझे कि मैं अब उनकी नहीं हो सकती तो वो मुझे बुरा-भला कहने लगे.. और हिलाल को भी गालियाँ निकालते और उससे काला और बदसूरत कहते।
क्योंकि हिलाल वाकयी में काला है और खूबसूरत नहीं है।
वो मुझे पर ताने मारते..
अब तो मुझसे बर्दाश्त नहीं हुआ तो मैंने अम्मी को बोल दिया और अम्मी ने मेरे चाचा को बोल दिया।
सब हसन भाई से नफ़रत करने लगे और हिलाल को भी जब पता चला तो वो भी हसन भाई को कॉल या मैसेज करके गालियाँ देने लगा।
हसन की औकात पूरी फैमिली में मेरी वजह से एक कुत्ते के जैसी हो गई।
उनकी पूरी इज्जत खत्म हो गई। अब वो और अनवर भाई अकेले पड़ गए… इतनी जिल्लत के बाद तो इंसान मर जाता है।
हसन भाई भी मरने को तैयार थे लेकिन बस कुछ दिन के बाद वो समझने लगे और होश में आने लगे।
अब उन्हें मुझसे मुहब्बत नहीं बल्कि नफ़रत हो चुकी थी क्योंकि मेरी वजह से वो बदनाम हो कर रह गए थे।
उन्होंने मुझसे बदला लेने की कसम खा ली।
इसी तरह वक़्त गुज़र गया और मैं जवान हो कर मस्त माल बन चुकी थी.. अब मैं स्कूल के अंतिम दिनों में थी। मैं और भी सेक्सी और हॉट हो गई थी।
उधर हसन भाई अब बदले के लिए तैयार थे।
इस बदले के लिए उन्होंने मेरी बेस्ट-फ्रेंड जो कि कराची में रहती थी और जिससे पता था कि हसन मुझसे मुहब्बत करते हैं.. हसन ने उसी का सहारा लिया और उससे कहा- अब मैं हीरा से नहीं.. तुमसे मुहब्बत करता हूँ।
उसने भी मान लिया और वो हसन से फंस गई।
फिर वो एक-दूसरे के बहुत क़रीब हो गए… इतना कि वो एक-दूसरे की हर बात मानने लग गए।
फिर मेरी वो सहेली जून-जुलाई की छुट्टियों में कराची से एबटाबाद आई.. तो मैं उससे मिल कर बहुत खुश हुई।
हम दोनों सहेलियां साथ घूमने लगीं। मेरी इस सहेली का नाम मदीहा है।
मदीहा भी बहुत खुश थी… मेरी वजह से नहीं बल्कि इसलिए कि उसकी मुलाक़ात हसन भाई से हो गई थी।
मुझे जब उसने बताया कि वो और हसन एक-दूसरे से मुहब्बत करते हैं तो मुझे गुस्सा आया और जलन भी महसूस हुई।
मैंने उससे डांटा और उसे हसन से मिलने के लिए मना किया।
हसन ने उस ज़िल्लत के बाद गाँव आना छोड़ दिया था।
अगर कोई शादी या न्योता हो तो 2-3 घंटे के लिए आकर चला जाता था।
हालांकि गाँव में मेरे दादा का घर यानि उसके मामू का घर.. नानी-नाना का घर.. खालाओं का घर और बहनों का घर भी था। लेकिन उसने मेरे कारण हुई जिल्लत की वजह से आना छोड़ दिया था।
खैर.. मैं और मदीहा रात को भी साथ सोते.. हमारे घर के साथ मदीहा की भी फूफी का घर था।
मदीहा की फूफी अनवर भाई की भाभी लगती थी और जब भी हसन भाई आते, तो वे अनवर भाई के घर ही सोते और वहीं रहते।
मदीहा भी जब आई तो रात को अनवर भाई के ही घर रहती क्योंकि वो उसकी फूफी का घर था।
अनवर भाई का घर बहुत ही बड़ा था। वो एक तीन मंजिला मकान था और हर मंजिल पर 5-5 कमरे थे। मदीहा वहाँ रहती तो मुझे भी रात को वहाँ सोना पड़ता।
हम दोनों अलग कमरे में सोते थे।
फिर एक दिन हसन भाई गाँव आए तो मदीहा की खुशी की इंतेहा ना रही.. वो एक-दूसरे को मिले तो सलाम किया।
जब मैं सामने आई तो हसन भाई के चेहरे पर गुस्सा आ गया और वो नफ़रत से मुझे देख कर चले गए।
मैंने सलाम भी किया लेकिन उन्होंने सलाम का जवाब तक ना दिया।
फिर रात को छत पर मदीहा और हसन भाई अकले में मिले तो दोनों एक-दूसरे से गप्पें मारने लगे और चुम्मा-चाटी भी की। दोनों मोहब्बत में पागल थे.. फिर दोनों छत पर बैठ गए।
मदीहा बैठ गई ओर हसन भाई उसकी गोद में सर रख कर लेट गए और मदीहा उन के बालों में हाथ फेरने लगी।
वो दोनों गप्पें मारने लगे।
फिर हसन भाई ने कहा- मदीहा मैं बहुत उदास हूँ और दिल खफा है.. मुझे तुम्हारी मदद चाहिए।
मदीहा ने कहा- हाँ जान बोलो… कैसी मदद चाहिए.. तुम्हारे लिए मैं कुछ भी कर सकती हूँ.. समझे कुछ भी…
इस पर हसन भाई ने कहा- मदीहा मुझे तुम्हारी बेस्ट-फ्रेंड साना से बदला लेना है.. उसकी वजह से मैं पूरी फैमिली में बदनाम हो गया हूँ.. मुझ पर लोगों ने लानत भेजी.. क्या होता अगर वो बात अपने दिल में रखती.. आज मैं किसी को मुँह दिखाने के काबिल नहीं रहा.. प्लीज़ मुझे मदद करो।
ये कह कर हसन भाई रोने लगे..
मदीहा ने एकदम उन्हें अपने गले से लगा कर चुप करवाया और कहा- प्लीज़ हसन मत रो.. मुझे भी अंदाज़ा है.. साना ने बहुत बुरा किया.. सच कहूँ तो मुझे भी अब वो अच्छी नहीं लगती। बातों-बातों में मुझ पर टोक मारती है और जो तुम्हारे साथ किया.. वो तो उसने बहुत ही बुरा किया। मैं तुम्हारी मदद करूँगी.. चाहे कैसी ही क्यों ना हो।
हसन ने कहा- ओके.. तो बताओ कि तुम एक-दूसरे से कितनी खुली हो?
मदीहा ने कहा- इतनी कि हमने एक-दूसरे के नंगे जिस्म भी देखते हैं.. हमको मौका मिले तो नंगे नहाते भी हैं और रात को अगर साथ सो जाऊँ तो एक-दूसरे के मम्मों को दबाते हैं.. अन्दर-बाहर से..
हसन ने सुना तो एकदम बोला- ओके.. यही तो मैं चाहता हूँ.. मतलब मैं बदला उसके साथ चुदाई करके लूँगा।
फिर उन दोनों ने योजना बनाई और चले गए।
सुबह मदीहा रोज़ की तरह मुझसे मिली और सारा दिन मेरे साथ रही.. रात को उसने मुझसे कहा- हीरा आओ आज हम लोग रात को फूफी के घर (मतलब अनवर भाई के घर) रहेंगे..
मैं मान गई.. हालांकि वहाँ हसन भाई भी थे.. रात को हसन के प्लान के मुताबिक़ जिस कमरे में हम दोनों सोते थे.. वहाँ हमारे आने से 4-5 मिनट पहले हसन भाई उस कमरे में चले गए और जिस बिस्तर पर हम सोते थे.. उसके सामने वाले बिस्तर के नीचे जाकर वो लेट गए।
अनवर भाई को भी ये सब पता था।
खैर.. थोड़ी देर बाद मैं और मदीहा उस कमरे में आए और दरवाज़ा बंद कर के कुण्डी लगा दी और बिस्तर पर चले गए और बातें करने लगे।
मेरी हसीन चुदाई की कहानी अभी जारी है।
हिंदी पोर्न स्टोरी का अगला भाग : मेरे चाचू ने बेरहमी से चोदा-4
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