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मैंने फिर से पोजीशन लेकर इस बार पूरा लण्ड उसकी चूत में प्रवेश करा दिया।
किशोरी- अह्ह्ह्हा आआहा… मम्माह… आआ… इइइ…
और मैंने एक लय-बद्ध तरीके से झटके लगाने शुरू किए।
करीब दस मिनट के बाद मेरे स्खलन से पहले किशोरी एक बार स्खलित होकर अपना रज त्याग कर चुकी थी।
इस चुदाई में दोनों को ही बहुत मजा आया था।
इस चुदाई से संतुष्ट होने के बाद किशोरी अपनी टांगों को मोड़कर करवट से लेटी हुई थी।
इस दशा में उसकी उठी हुई गाण्ड देख कर मेरा मन मचल उठा था।
लेकिन किशोरी के कसे कूल्हे और गाण्ड का छिद्र देख कर मुझे लग रहा था कि जैसे उसने कभी अपनी गाण्ड में लौड़ा लिया नहीं होगा।
और मुझे भी कोई जल्दी तो थी नहीं, उस वक्त तो किसी के आने का भय भी था।
इसीलिए मैंने ही उसे कहा- चलो किशोरी, अब उठ कर तैयार हो जाओ.. अगर हमें किसी ने इस हालत में देख लिया तो कहर बरपा हो जायेगा।
शायद किशोरी को बहुत ज्यादा मज़ा आया था चूत चुदाई में, वो तो जैसे मदहोश हो गई थी।
‘ह्म्म्म…’ के साथ बड़े अनमने ढंग से उठी और नाइटी वहीं छोड़ पूरी नग्न ही बाथरूम में घुस गई।
मैंने भी उठ कर अपना लोअर पहन लिया।
तभी दरवाजे पर खटखटाहट हुई।
मैं- कौन?
बाहर से अरविन्द अंकल बोले- मैं हूँ!
अरे ये तो अरविन्द अंकल हैं, वो बाहर खड़े दरवाजा पीट रहे थे और जोर से कह रहे थे- …खोलो भाई… जल्दी…
अब मैंने दरवाजा तो खोलना ही था।
अरविन्द अंकल- अरे बेटा अंकुर… यह क्या.. दिन में भी भला कोई सोता है? चलो भई, मौज़ मस्ती करो… बाहर सब तुम्हें पूछ रहे हैं।
‘अरे यार… यह सलोनी भी न… सब कपड़े फैलाए रखती है।’ और उन्होंने वो बेड पर पड़ी नाइटी उठाकर एक तरफ़ रख दी और वहीं बैठ गये।
तभी उनकी नजर सामने बिस्तर पर गई- अच्छा… किशोरी बच्चों को यहाँ सुला गई… गई कहाँ वो? जब से यहाँ आई है, ढंग से मिली भी नहीं।
‘अरे… इसने भी अपने कपड़े ऐसे ही फ़ैला रखे हैं।’
वहाँ किशोरी के पहने हुए कपड़े पड़े थे जो उसने तभी नाइटी पहनने से पूर्व निकाले थे।
जैसे ही उन्होंने किशोरी की जींस उठाई.. उसमें से उसकी काली जालीदार कच्छी निकल कर नीचे गिर गई।
वो चौंक गए, सिमटी हुई शर्ट पर ब्रा भी पड़ी थी।
अरविन्द अंकल की आँखें कुछ देर के लिए सिकुड़ सी गई।
फिर मेरी उपस्थिति का अहसास होते ही वो सिटपिटा से गये।
उन्होंने तिरछी नजरों से मुझे देखा और जल्दी से पैंटी उठाकर वैसे ही जींस में घुसा दी और कपड़ों को वहीं छोड़ दिया, फिर वापिस अपनी जगह आ कर बैठ गये।
वो किशोरी के कपड़ों को देख कर ना जाने क्या-क्या सोच रहे होंगे।
मैं बात को सम्भालते हुए बोला- पता नहीं कौन आया और गया… मैं तो अभी आपके शोर से जगा हूँ।
अब मुझे डर लगने लगा कि ‘अरे यार… किशोरी बिल्कुल नग्न बाथरूम में गई है… अगर इस समय वो बाहर आ गयी तो क्या होगा?
अपने पापा के सामने उसे कैसा लगेगा?!?
और साथ ही ये अरविन्द अंकल मेरे लिये क्या क्या सोचेंगे?
मैं अभी ये सब सोच ही रहा था कि किशोरी ने बाथरूम का दरवाजा खोल दिया।
वो दरवाजे के बीचों बीच पूर्ण नग्न अपने मुखड़े पर साबुन का झाग लगाए खड़ी अपनी आँखें मल रही थी।
शायद किशोरी अपना चेहरा धोने गई थी और पानी बन्द हो गया था, उसको कुछ दिखाई नहीं रहा था क्योंकि उसकी आँखें साबुन से बन्द थी।
उसके उठे हुये दोनों उरोज और उन पर चैरी की भान्ति चिपके हुये चूचुक!
पतली नाजुक कमर… अन्दर को धंसा हुआ पेट… गहरा नाभिकूप… नाभि के नीचे उभरा हुआ पेड़ू और चिकनी योनि के बाह्य मोटे लब… योनि के दोनों होंठों के बीच गुलाबी चीरा…
किशोरी का सर्वस्व खुली किताब की तरह सामने दिख रहा था।
ऊपर से आँखें मलने के कारण उसके हाथों के हिलने से किशोरी की बड़े किन्नू के आकार की दोनों चूचियाँ बड़े ही रिदम के साथ इधर उधर थिरक कर जानलेवा समाँ बना रही थी।
मैं दावे से कह सकता हूँ कि सौन्दर्य की ऐसी मिसाल देख कर किसी भी मर्द का लौड़ा पल भर में खड़ा हो सकता है, चाहे वो उसका पिता ही क्यों ना हो!
किशोरी- अरे अंकुर भैया, देखिये ना जरा… यहाँ पानी कैसे चलेगा.. आ ही नहीं रहा.. उफ़्फ़्फ़ बहुत चिरमिरी लग रही है आँखों में…
मैंने कुछ कहे बिना घबरा कर अरविन्द अंकल की तरफ़ देखा।
उन्होंने अपने होंठों पर उंगली रखकर मुझे चुप रहने का इशारा किया और पानी चलाने का इशारा किया।
मैं चुपचाप जाकर किशोरी के नंगे जिस्म को एक हाथ से एक ओर करके टोंटी को देखने लगा।
किशोरी पीछे घूम कर मेरी तरफ़ चेहरा करके खड़ी हो गई थी। दरवाजा अभी भी पूरा खुला हुआ था।
मैंने एक नजर बाहर को देखा!
ओह… यह क्या?
अरविन्द अंकल अभी भी वहीं खड़े हो कर किशोरी के उठे हुए कूल्हे देख रहे थे।
और ना सिर्फ़ देख ही रहे थे बल्कि उनकी आँखें वासनामयी लाल भी दिखाई दे रही थी।
यह वासना भी कैसी कुत्ती चीज है… एक पिता अपनी सगी पुत्री की नंगी काया को देख उत्तेजित हो जाता है।
फिर शायद उनको अपनी दशा का अहसास हो गया था, दरवाजा बंद होने की आवाज आई।
अंकल शायद बाहर चले गए थे अपनी नग्न बेटी को मेरे पास बाथरूम में छोड़कर!
गीजर का पानी शायद ज्यादा गर्म हो गया था… जिससे हवा आ गई थी।
कुछ देर ओन ऑफ करने से पानी आने लगा, मैंने किशोरी का मुख्ड़ा धुलवाया, फिर खुद भी अपना चेहरा धो लिया जब वो मेरे सामने ही तैयार हो रही थी।
किशोरी- क्या हुआ भैया… इतने चुप-चुप से क्यों हो… कोई था क्या यहाँ?
मैं- कब जानम?
किशोरी- जब मैं आपको पानी चालू करने को कह रही थी… मुझे लगा कि आप सामने बेड पर बैठे हो? फिर आप इधर से आए?
मुझे हंसी आ गई…
पहले सोचा था कि इसे कुछ नहीं बताऊँगा पर अब तो इसको चोद ही चुका हूँ और जब इसके पिता इसे देख कर गर्म हो रहा था तो क्यों ना मजे लिए जायें।
मैं- तुम्हें कुछ पता है? बिल्कुल मूर्ख हो तुम… ऐसे ही नंगी आकर खड़ी हो गयी… यहाँ बेड पर अरविन्द अंकल बैठे थे।
किशोरी- क्याआआ?? पापआआआ यहाँ ओह नो??
मैं- जी मैडमजी… और उन्होंने तुम्हारे सब आइटम खुले नंगे देख भी लिये।
किशोरी- अरे यार उसकी चिन्ता नहीं है… पापा हैं नंगी देख भी लिया तो कोई बात नहीं… पर आपको यहाँ देख कर तो समझ गए होंगे कि हमने क्या क्या किया होगा। मर गई यार… उनको तो बहुत बुरा लगा होगा।
मैं- ओह, तो तुम्हें उसकी चिन्ता है… वो तुम ना करो… मैं तो यह सोच रहा था कि तुम्हें नंगी देखे जाने की चिंता होगी।
किशोरी- तो उसकी क्यों नहीं… अब पूछेंगे नहीं कि मैं अकेली तुम्हारे साथ नंगी क्या कर रही थी?
मैं- अरे कुछ नहीं पूछेंगे… तुमको पता है.. आजकल उन्होंने सलोनी को पटा लिया है और दोनों खूब मस्ती कर रहे हैं।
किशोरी- क्याआआ? सलोनी भाभी के साथ? कहानी जारी रहेगी।
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