This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: storyrytr@gmail.com. Starting price: $2,000
कॉलेज गेट पर उतर कर मैंने रूचि को साथ लिया और कुछ कदम दूर चौहान ढाबा पहुँच गया, वहाँ एक झोपड़े में चाय और टोस्ट मंगाया और रूचि को लेकर उसकी आगे की कहानी सुनने को बैठ गया।
उस झोपड़े में एक चारपाई एक कुर्सी और एक छोटी मेज थी।
मैं कुर्सी पर बैठ गया.. ये देखने के लिए कि रूचि क्या करती है.. क्या मेरी गोद में आकर बैठ कर मेरी मंशा को पुख्ता करेगी या फिर मुझे सिर्फ अपना दोस्त समझ कर अपने मन की बात बताने को आई है।
लेकिन रूचि मुझसे हर जगह एक कदम आगे थी, रूचि चारपाई पर अपनी कुहनियों के बल मेरी तरफ मुँह करके लेट गई उसकी गोल-गोल चूचियाँ उसकी टी-शर्ट से फाड़ कर बाहर आने को लालायित हो रही थीं। एक हाथ पर उसका सर था और दूसरा हाथ उसने जानबूझ कर अपनी टी-शर्ट में डाल रखा था। उसकी चूचियाँ चारपाई से लग रही थीं.. अन्दर दिख रही सफ़ेद ब्रा उसकी सांवली चूचियों को और रसभरी और मजेदार बना रही थी।
ऐसे लेटते ही उसने पूछा- क्या देख रहे हो जानू.. ऐसा लग रहा है खा ही जाओगे…
और हँसने लगी।
साला मन तो हुआ यहीं पकड़ कर चोद दूँ लेकिन उसके पूछने के अंदाज से मुझे भी हँसी आ गई और मुँह से निकल गया- जो तू दिखा रही है कमीनी.. सुबह-सुबह रंडीपना सवार हो गया है तुझे।
रूचि उठी और मेरे गालों पर एक चुम्बन करके फिर उसी तरह लेट गई और आगे बताने लगी।
रूचि- आशीष और मेरा एक-दूसरे को चूसने का खेल जारी था कि मेरी चूत की झिरी को चूसते-चूसते आशीष ने अपनी ऊँगली डाल दी और अन्दर-बाहर करने लगा.. मेरी चूत से दुबारा ढेर सारा पानी रिसने लगा और मेरी सिसकारियाँ निकलने लगीं। बहुत कोशिश करने के बावज़ूद मैं अपनी चीखें नहीं रोक पाई जबकि मेरे दांत आशीष के मोटे लण्ड में गड़े थे.. मेरी आवाजें सुनकर शायद अन्दर नहा रही अंकिता को भी पता चल गया था कि क्या हो रहा है। अंकिता तुरंत तौलिया लपेट कर बाहर आई।
इसी बीच मैंने रूचि को बीच में रोका क्योंकि चाय और टोस्ट आ गए थे और कुर्सी पर बैठे-बैठे मेरा लण्ड भी तन चुका था। अपने लण्ड को सैट करने के लिए मैंने उठ कर चाय लेकर कुर्सी पर रखी और रूचि की चूचियों और मोड़ कर रखे घुटनों के बीच बैठ गया।
अब मैं रूचि की मादक चूचियों का दीदार और करीब से कर सकता था.. उसकी चूचियों की झिरी बहुत गहरी थी और सांवली होने की वजह से और उकसा रही थी।
मैंने रूचि के मुलायम पेट पर खुद को टिकाया और आराम से चाय की चुस्कियों के साथ उसको आगे सुनाने को बोला।
रूचि भी चाय पीते हुए बताने लगी- और अंकिता हम दोनों को इस हालात में देख कर भौंचक्की रह गई। आशीष का लण्ड मेरे मुँह में और मेरी चूत उसके मुँह में थी और देखा जाए तो इस वक़्त हम तीनों ही नंगे थे.. गीले बदन अंकिता और भी मादक लग रही थी और इसी लिए अंकिता को देखते ही इस बार आशीष ने मेरे मुँह में अपना वीर्य की बौछार कर दी। जैसे ही उठ कर मैं बाथरूम में भागी अंकिता का एक सनसनाता तमाचा मुझे पड़ा और मैं जैसे गिरते-गिरते बची। अचानक हुए इस घटनाक्रम से आशीष का तना हुआ लण्ड एकदम से गिर गया। मुझे पहले से पता था कि आशीष एक नंबर का फट्टू है.. इसलिए अंकिता ने उसे अपना काम निकलवाने को पटाया है लेकिन अंकिता जैसी रण्डी जो आए दिन किसी ना किसी का लण्ड अपनी चूत में लिए फिरती है.. और उसने मुझे चांटा मारा.. ये मेरे बर्दाश्त के बाहर था।
लेकिन उस वक़्त मैं कुछ कर ना सकी उसी वक़्त अंकिता ने मेरे बाल पकड़ कर मुझे वो गालियाँ सुनाईं.. जो मैं बता भी नहीं पाऊँगी और इसके बाद उसने मेरे चेहरे पर थूका.. मेरे आंसू निकल आए जिस दोस्त का मैंने पल-पल साथ दिया आज वही मेरे साथ इस तरह से बात कर रही है।
इसके बाद रूचि कुछ देर के लिए रुक गई.. उसकी आँखों में आँसू झलक आए थे।
मैंने आगे बढ़ कर उसे गले से लगा लिया रूचि भी मुझे पकड़ कर रो पड़ी कि तभी उसके आँसू पोंछते हुए उसके चाय के गिलास से थोड़ी चाय छलक कर उसकी टी-शर्ट पर गिर पड़ी।
गरम चाय यूँ गिरने से सारा ध्यान उस तरफ चला गया.. मैं रूचि की चूचियों पर छलकी चाय साफ़ करने लगा.. लेकिन गरम होने की वजह से रूचि ने झटके में अपनी टी-शर्ट उतार दी और अपने चूचों को गीले रुमाल से साफ़ करने लगी।
थोड़ा सामान्य होने पर उसे ध्यान आया कि इस वक़्त वो सिर्फ अपनी ब्रा में मेरे सामने है और मेरे हाथ उसकी चूचियों पर रखे हुए हैं।
जैसे ही उसकी निगाहें मेरी नजरों से मिलीं.. मेरे हाथ अपने आप ही उसके चूचों को दबा गए और उसके चेहरे को पकड़ कर मैंने रूचि को चूमने लगा।
पहली बार होंठ से होंठ मिलने पर मेरे दिमाग पर एक नशा सा छा गया और उसे लिटा कर मैं जोर से उसके नरम होंठों को चूसने लगा और मेरा एक हाथ रूचि को चापे हुए था.. तो दूसरा उसकी दाईं चूची को मसल रहा था।
सिर्फ एक पतली ब्रा उसके निप्पल को बचा रही थी.. जिसे मैंने खींच कर निकाल दिया।
लेकिन हम दोनों इतनी जोर से चिपके थे कि ब्रा घिसते हुए फट गई और रूचि की चूचियाँ ‘पॉप’ की आवाज़ करते हुए बाहर निकली।
तब तक मैं रूचि के होंठों को चूस-चूस कर सुजा चुका था। रूचि के हाथ भी मेरी पीठ पर चलने लगे और मेरी टी-शर्ट को खींचने की कोशिश करने लगे।
हम दोनों ही वासना के नशे में थे.. कुछ ही पलों में दोनों मादरजात नंगे होकर एक-दूसरे के बदन से चिपके हुए.. एक-दूसरे को चूस रहे थे।
रूचि की चूचियाँ बिलकुल तन चुकी थीं और वो नीचे बैठ कर मेरे लण्ड को अपनी चूचियों की दरार में रगड़ रही थी। बीच-बीच में मेरे लण्ड को अपने मुँह में भी लेकर जोर से चूस देती और उसके दांत लगने से होने वाले असीमित आनन्द से मेरी सिसकारी निकल जाती।
थोड़ी देर में मैं और रूचि खड़े हुए एक-दूसरे के होंठों को हल्के-हल्के से चूस रहे थे और रूचि मेरे खड़े लण्ड के ऊपर बैठी थी।
ना.. ना.. चूत में डाल कर नहीं.. अपनी गाण्ड टिका कर.. मेरे होंठों मेरे गले को काट रही थी।
मेरे हाथ भी रूचि की गाण्ड को मसल रहे थे, उसके गले को काटते हुए मैंने रूचि को अपने करीब खींचा और ऊपर उठा कर उसके चूचे अपने मुँह में ले लिए।
रूचि के पैर भी मेरी कमर पर कस गए और उसकी चूचियों को काटते चूमते हुए मेरा एक हाथ रूचि की गाण्ड पर और दूसरा उसकी पीठ पर था जबकि रूचि के हाथ मेरी गर्दन पर कसे हुए थे।
रूचि की रस-भरी चूचियाँ चूसते हुए अपना नीचे वाला हाथ निकाल कर मैंने रूचि की चूचियाँ दबाना चालू कर दीं और दूसरे हाथ की दो उँगलियाँ रूचि की गीली हो चुकी चूत में घुसा कर अन्दर-बाहर करने लगा।
रूचि जबरदस्त उत्तेजित हो गई थी उसके मुँह से ‘आह..’ निकलने लगी।
रूचि- आअह्ह… आअह्ह.. ऊऊह्ह्ह… समर आअह्ह.. ह्हम्मम्म.. आह्ह समर मादरचोद.. आउच.. आह्ह हरामी साले.. आह पता था.. आह्ह कमीने तुम.. उह्हह्ह् यहीं चोद… आआह्ह्ह दोगे। आह्ह्ह्ह.. ईईह्ह्ह्ह् और अन्दर डालो आह्ह्ह नोच डालो मेरे चूचे आअह्ह्ह.. मादर.. ऊह्ह्ह..चोद.. चोद दे आअह्ह्ह.. फ़क मी.. समर।
तभी रूचि की चीख निकल गई और आँखें बाहर आने को हो गईं.. क्योंकि मेरा लण्ड काफी देर से खड़ा था और उस पर रूचि को अपने ऊपर बिठाए-बिठाए दर्द होने लगा था.. इसलिए मैंने अपनी उँगलियाँ निकाल कर उसकी गीली चूत में एक ही झटके में अपना लण्ड पेल दिया.. क्योंकि कंडोम पहले से ही चढ़ाया हुआ था तो अन्दर जाने में कोई दिक्कत नहीं हुई.. लेकिन काफी दिनों से अनछुई चूत की दीवारें कसी होने के कारण रूचि की चीख निकलना जायज था।
रूचि ने घूर कर मुझे देखा और हलकी सी चपत लगाई.. थोड़ा सा डरी और फिर अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए.. नीचे से मैं झटके लगाने लगा।
रूचि के मुँह से दुबारा ‘आह्ह्ह..आअह्ह्ह’ की सिसकारी निकलने लगी.. लेकिन होंठ कसे होने के कारण घुट कर रह गई।
रूचि को भी अब मजा आने लगा था.. मैं अब सामान्य रूप से खड़ा था जबकि रूचि ने उछलना चालू कर दिया था। लेकिन मेरी अपेक्षा से ज्यादा होकर उसने दोनों हाथों से ऊपर झोपड़े का एक बांस पकड़ लिया और उसको पकड़ कर मेरे लण्ड पर ऊपर-नीचे होने लगी।
मेरे हाथ रूचि की गाण्ड पर कस गए और मेरे होंठ रूचि के निप्पलों से छेड़छाड़ करने लगे।
रूचि के इस तरह से चुदने की वजह से मेरा 6.5″ का लण्ड उसकी चूत में एकदम अन्दर तक चोट करता.. क्योंकि नीचे आते हुए वो अपना पूरा भार लण्ड पर डालती और उसको दुबारा ऊपर भेजने को मैंने उसकी कमर कसी हुई थी।
हर बार जब रूचि की गीली चूत और मेरे लण्ड का मिलन होता तो ‘फच.. फच..’ की आवाज होती।
ऊपर बांस की ‘चरर.. परर..’ की आवाज़ इसमें मिश्री सा रस घोल रही थी।
हर बार रूचि के गर्भाशय तक चोट कर रहा मेरा लण्ड.. रूचि की सिसकारी निकाल देता।
उस शोर भरे माहौल में मुझे बस यही आवाजें सुनाई दे रही थीं। ‘आह्ह्ह..फच..चर्र..आह्ह..फच..पर्र..ऊह्ह्ह फच..चर्र..फच..पर्र..आह्ह..फच..फच..’
ये आवाजें लगातार रफ़्तार पकड़ती जा रही थीं और मेरे होंठों से बार-बार चूमते रूचि के निप्पल गुज़र रहे थे। रूचि मदहोश होती जा रही थी और अब और खुल कर चुद रही थी।
हमारा झोपड़ा सबसे कोने में था और सुबह के शोर-शराबे के बीच चुदाई की आवाजें दब गईं वरना कोई ना कोई तो आ ही जाता।
हम एक-दूसरे को चूम रहे थे और मुझे ये भी पता था कि मेरा लण्ड सुबह से खड़ा है.. जल्दी ही झड़ जाएगा और कंडोम भी एक ही है।
इन्हीं सबके बीच मुझे सूसू लगी थी.. जिसे मैंने रोक रखा था। उस वजह से मेरा लण्ड झड़ने से मना कर रहा था वरना लग रहा था कि रूचि की कसावट भरी चूत में कुछ ही पलों की मेहमान है। लगभग आधे घंटे की वासना से भरी चुदाई के बाद रूचि ने धीरे से मेरे कान में कहा- समर मैं झड़ने वाली हूँ।
मैंने कहा- मैं भी.. मेरी लंडबाज जानेमन…
और रूचि को गोद से उतार कर हम चारपाई पर आ गए और उसे अपने नीचे लिटा कर जोर-जोर से धक्के मारने लगा रूचि भी अपनी गाण्ड उठा-उठा कर मेरा साथ देने लगी।
मुश्किल से 5 मिनट में ही रूचि की चूत से फव्वारा छूट कर मेरी जाँघों और अंडूओं भिगाने लगा… मैंने भी अपने लण्ड को आराम दिया और मेरी पिचकारी भी कंडोम को भर गई।
इसके बाद मैं रूचि के ऊपर ही लेट गया मेरा लण्ड मुरझा कर बाहर निकलते ही रूचि की चूत से एक जोर का फव्वारा और छूटा और मेरी जांघें दुबारा भिगो गया।
हम दोनों ही हँस पड़े और एक-दूसरे के होंठों को दुबारा चूसने लगे।
कुछ देर के बाद मैंने उठने की कोशिश की लेकिन रूचि पर ही गिर गया क्योंकि खड़े-खड़े मेरी पीठ में दर्द हो गया था।
चुदाई के वक़्त पता नहीं लगा.. पर अब तेज़ टीस उठ रही थी।
किसी तरह उठ कर मैंने और रूचि ने कपड़े पहने.. क्योंकि हाल उसका भी वैसा ही था लेकिन हम दोनों के चेहरे की ख़ुशी बता रही थी कि ये हम दोनों का ही जबरदस्त चोदन हुआ था।
रूचि की कहानी खत्म नहीं हुई थी दोपहर का खाना मंगा कर वो आगे बताने बैठ गई।
जानते हैं अगले भाग में क्या किया था अंकिता ने रूचि के साथ?
दोस्तों अपने विचार पर जरूर भेजें मुझे प्रतीक्षा रहेगी।
This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: storyrytr@gmail.com. Starting price: $2,000