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अभी तक आपने पढ़ा और जाना कि रानी कौन थी और मैं कैसे उसके साथ मजे लेता आया था।
फिर अचानक मैं उससे दूर हो गया और 6 साल बाद मैं उससे मामाजी की शादी में मिला।
अब आगे…
जब मैं अपनी मम्मी को लेकर मामा जी के घर पहुँचा तो वहाँ पहले से ही काफी रिश्तेदारों और पड़ोसियों की भीड़ लगी थी..
जिनमें कई लड़के-लड़कियाँ भी शामिल थे, मगर मेरी आँखें तो किसी और को ही ढूंढ़ रही थीं और जैसे ही मेरी तलाश खत्म हुई तो मेरी बाँछें खिल उठीं और मेरी नजरें जड़वत हो गईं।
मैंने उसे देखा तो अपलक देखता ही रह गया क्योंकि मुझे अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था कि क्या यह वही रानी है जिसे मैंने छः साल पहले देखा था। गोरे रंग की संगमरमरी बदन वाली 32-28-34 का फिगर लिए हुए.. क्रिकेट के बॉल के समान कठोर चूचे.. भरी हुई पिछाड़ी.. मोटी-मोटी जाँघें.. रसीले होंठ, नशीली आँखों वाली रानी.. अब एक माल हो गई थी। तभी उसकी भी नजर मुझसे मिलीं.. लेकिन यह क्या? कोई प्रतिक्रिया नहीं, ना ही उसकी आँखों में मेरे लिए कोई उत्साह.. बिल्कुल अपरिचितों वाला व्यवहार..
मेरी तो सारी उम्मीदें और उत्साह धराशायी हो गईं.. मेरे सपने ताश के पत्तों की तरह बिखर गए।
खैर… लेकिन मैंने अपने आपको सम्भाला और यह सोच कर अपने आपको सांत्वना देने लगा कि हो सकता है कि हमारी सारी करतूत तो बचपन की थी और वो उसे बचपन की ही गलती समझ कर भुला चुकी होगी या सचमुच में भूल गई होगी। क्योंकि अक्सर बचपन की बातें सबको याद नहीं रहती हैं और फिर मैं भी तो झारखण्ड़ जाने के बाद इन सभी बातों को भुला चुका था। अपितु वो मुझे एक नजर देखने के बाद अपने काम में व्यस्त हो गई और मैं भी वहाँ के लोगों से मिलने और अपनी औपचारिकताएँ पूरी करने में लग गया।
बारात दो दिनों बाद जानी थी तो सब अपने-अपने काम में व्यस्त थे और सब कुछ सामान्य चल रहा था। इस बीच वह कई बार मेरे सामने से आई और गई.. पर मुझे उसके अन्दर अपने लिए कोई दिलचस्पी नहीं दिखी। हाँ.. एक बार उसने मेरा हालचाल जरूर पूछा था और सिर्फ इतना ही कहा था- काफी बड़े हो गए हो..
तो मैंने भी झट से कह दिया- तुम भी तो पहले से काफी बड़ी और खूबसूरत हो गई हो।
तो वो हल्का सा मुस्कुराकर वहाँ से चली गई और तब से वो मुझसे मौसी वाले हाव-भाव में ही पेश आ रही थी..
क्योंकि वो रिश्ते में तो मेरी मौसी ही थी।
इस कारण मुझे रानी से कुछ भी उल्टा-पुल्टा कहने या उससे बात करने की हिम्मत नहीं हो रही थी और अब मैंने भी अपने दिमाग से उन बीती बातों को निकाल दिया था।
उसी दौरान मुझे पता चला कि यहाँ के इलाके और आस-पास के सारे लड़के रानी की जवानी के आगे-पीछे भौंरे की भाँति मँड़राते रहते हैं क्योंकि रानी उस इलाके की ही नहीं बल्कि वो अपने स्कूल की भी सबसे हसीन माल थी।
जो भी उसे देखता.. एक बार सपने में भी याद करके जरूर अपने फड़फड़ाते लण्ड की मुट्ठी मार लेता होगा।
खैर.. दो दिन गुजर गए और बारात जाने का दिन आ गया।
इन दो दिनों के दौरान मैंने महसूस किया कि मामा के रिश्तेदारों में से आई एक लड़की, जिसका नाम गुड्डी है.. मुझे बहुत गौर से देखती है और मुझसे बातें करने की कोशिश में लगी रहती है।
समय-समय पर नाश्ता व खाना के लिए मुझे पूछ कर खिलाना और मेरा ख्याल रखना.. सब वही करती थी।
इन सारी बातों को रानी भी गौर किया करती थी.. मगर कभी कुछ बोलती नहीं थी।
रानी दिन भर यहीं रहती और रात में सोने के वक्त अपने घर चली जाती थी।
सभी लोग बारात निकलने की तैयारी कर रहे थे… मैं भी एक कमरे में तैयार हो रहा था।
तभी गुड्डी अपने हाथों में दो रसगुल्ले लेकर आई और मेरे मुँह में खिलाते हुए बोली- किसी भी शुभ कार्य में निकलने से पहले मुँह मीठा करके जाना चाहिए।
तो मैंने भी उसके हाथों से एक रसगुल्ला लेते हुए बोला- चलो मैं भी अपने हाथों से तुम्हारा मुँह मीठा करा देता हूँ।
इस पर वह भागने के ख्याल से पीछे हटते हुए बोली- नहीं मुझे नहीं खाना है।
तभी मैंने झट से उसके हाथ को पकड़ लिया और अपनी ओर खींचता हुआ बोला- मेरे हाथों से खाए बिना भाग कर जाओगी कहाँ..
तब गुड्डी अपना हाथ मुझसे छुड़ाने के लिए खींचातानी करने लगी।
इसी खींचातानी में मेरा पैर फिसल गया और मैं उसका हाथ पकड़े ही बिस्तर पर बैठ गया।
जिसके साथ ही गुड्डी भी ‘धप्प’ से आकर मेरी गोद में गिर गई।
उसी पल मैंने उसे अपनी बाँहों में भर लिया और अपना दाँया पैर उसके दोनों पैरों के ऊपर चढ़ा कर उसे जकड़ लिया।
फिर मैंने अपने दाँतों के बीच आधा रसगुल्ला दबा कर.. अपने मुँह को गुड्डी के मुँह के पास सटा दिया और उसको रसगुल्ला खिलाने की कोशिश करने लगा।
इस खींचातानी में जैसे ही गुड्डी का कुँआरा बदन मेरे बदन से सटा.. कि मेरे लण्ड महाराज फनफना कर खड़े हो गए।
जब गुड्डी मेरी गोद में गिरी थी उसी वक्त मेरा लोहे सा खड़ा लण्ड उसकी गाण्ड की दोनों फाँकों के बीच जाकर ‘घप्प’ से अटक गया.. जिससे वो थोड़ी सी चिहुँक गई थी।
मगर अब गुड्डी को भी शायद अपनी गाण्ड में चुभते मेरे लण्ड से मजा आ रहा था इसलिए वो उठने के बजाए मुझसे चिपक कर मेरे होंठों से होंठों को चिपका कर मेरे मुँह में दबे रसगुल्ले को चाट-चाट कर खा रही थी और मैं भी उसे रसगुल्ला खिलाने के बहाने उसके रसीले होंठों को चूम-चाट रहा था और साथ में उसकी बड़ी-बड़ी चूचियों को भी मसल रहा था।
मुझे ऐसा करते किसी के देखने का डर भी नहीं था क्योंकि घर के सारे लोग बारात को निकालने के लिए दूल्हे के परछावन का रस्म पूरा करने के लिए मंदिर जा चुके थे।
मैं नि़डर होकर नए माल को पटा कर उसे चुदाई के लिए तैयार करने में लगा था।
तभी अचानक पता नहीं कहाँ से रानी आ धमकी और मुझे गुड्डी के साथ उस स्थिति में देख कर आँखों में क्रोध की ज्वाला लिए हम दोनों पर बरस पड़ी।
तभी मैंने स्थिति को संभालते हुए रानी को समझाने के उद्देश्य से बताया- मौसी.. तुम जैसा समझ रही हो.. ऐसी कोई बात नहीं है बल्कि गुड्डी मुझे रसगुल्ला खिलाने आई थी और रसगुल्ले का रस मेरे गालों में पोत कर भाग रही थी.. बस मैं भी इसे पकड़ कर इसके गालों पर रस पोत रहा था।
इस पर रानी और भड़क गई और गुस्से में बोली- ये कौन सा मजाक का वक्त है और यह कौन सा तरीका है.. किसी लड़की के शरीर से मजाक करने का.. यह सब मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है। बातों से मजाक होता है ना कि शरीर से..
और फिर वो गुड्डी की तरफ नजरें फेरते हुए खा जाने वाली नजरों से घूर कर बोली- लड़की होकर लड़कों से उलझते और मजाक करते तुम्हें शर्म नहीं आती.. चलो यहाँ से..
फिर वो गुड़डी का हाथ पकड़ कर उसे खींचते हुए मेरी तरफ जलती हुई निगाहों से देखती हुई.. वहाँ से चली गई।
मेरा तो सारा प्यार और चुदाई का भूत काफूर हो गया था और डर से मेरी हालत खराब हो गई थी.. क्योंकि अब मुझे डर था कि कहीं ये बाहर जाकर सारी बातें मेरी और उसकी मम्मी के साथ बाकी लोगों को ना बता दे।
लेकिन.. भगवान का लाख-लाख शुक्र था कि उसने ऐसा कुछ नहीं किया। बस सिर्फ गुड्डी को डांट-फटकार कर और आइंदा मेरे साथ ऐसी हरकत नहीं करने की धमकी देकर छोड़ दिया।
इस बात के लिए मुझे रानी मौसी पर काफी गुस्सा भी आया कि मेरे सारे किए-धरे पर रानी ने पानी फेर दिया। इस तरह रानी मेरे खड़े लण्ड पर धोखा करके चली गई थी.. एक लड़की भी चुदाई के लिए हाथ लगी.. तो वो भी निकल गई।
खैर.. जो हुआ सो हुआ.. अब बारात निकल रही थी तो मैं भी जाकर गाड़ी में बैठ गया और बारात में चला गया।
इधर दूसरे दिन शादी खत्म होने के बाद लड़की की विदाई होते-होते शाम हो गई तो सारे बाराती देर रात तक घर पहुँचे।
इस वजह से जिन रिश्तेदारों का घर दूर था.. वे सभी लोग रात में मामा के घर ही रूक गए।
अब समस्या यह थी कि इतने सारे लोगों को सुलाया कहाँ जाए।
फिर घर में महिलाओं की संख्या भी काफी थी। यह सोच कर तय हुआ कि गर्मी का दिन है ही.. तो क्यों ना छत पर ही सब का बिस्तर लगा दिया जाए। इस प्रकार छत पर जिसको जहाँ जगह मिली.. वहीं सो गया।
मैं भी खाना खा कर सोने के लिए जब छत पर गया तो पूरी छत भरी पड़ी थी।
अब मैं कहाँ सोऊँ यही सोच में पड़ा था कि तभी मम्मी आ गईं और बोलीं- बहुत से लोग अगल-बगल के पड़ोसियों की छतों पर भी जा कर सोये हैं.. न हो तो तुम भी रानी मौसी के घर छत पर जा कर सो जाओ।
पर मैं तो गुड्डी की तलाश कर रहा था कि पता नहीं वो कहाँ सोई है.. मिल गई तो उसी की अगल-बगल में सोने का कोई जुगाड़ लगाऊँ ताकि रात में मौका मिलते ही उसकी चुदाई कर दी जाए.. पर वो मुझे कहीं नहीं दिखी।
अब मैं समझ गया कि वो नीचे ही कहीं सो गई होगी.. क्योंकि सारे लोग दो रातों से जगे होने के कारण काफी थके हुए थे.. इसलिए जल्दी ही कुम्भकरण की नींद सो चुके थे।
खैर.. मैं रानी मौसी के घर गया तब तक शायद रानी मौसी भी सो चुकी थी।
अतः उनकी मम्मी से एक बिस्तर और तकिया माँग कर छत पर चला गया और वहीं एक कोने में डाल कर सो गया..
रानी के घर की छत काफी बड़ी थी और उस पर पहले से ही दो-चार लोग सोये हुए थे।
गर्मी ज्यादा थी तो मैंने एक तरफ जाकर अपने कपड़े उतारे और सिर्फ हाफ पैंट और बनियान पहन कर सो गया।
गर्मी के दिनों में मैं रात को अंडरवियर पहन कर नहीं सोता हूँ। मैं बहुत ज्यादा थका हुआ था इसलिए सोते ही मुझे गहरी नींद आ गई।
रात का करीब एक बजा होगा कि मुझे एक बड़ा ही मस्त और प्यारा सपना आने लगा। मुझे ऐसा लगा जैसे एक मदमस्त.. जवान.. हुस्न की परी मेरे पास आकर लेट गई है और वो धीरे से मुझे चूम रही है.. सहला रही है। अचानक वो उठी और मेरे ऊपर सवार हो गई फिर उसने अपने गर्म-गर्म गुलाबी होंठों को मेरे होंठों पर रख कर उसे जकड़ लिया और लॉलीपॉप की तरह चूसने लगी। उसने मेरे दोनों बाजुओं को अपने हाथों से जकड़ रखा था।
मैं चाह कर भी उससे अपने आप को नहीं छुड़ा पा रहा था।
फिर उसने अपनी जीभ को मेरे मुँह के अन्दर घुसा दिया और उसे मथानी की तरह मथने लगी। वो अपनी लार को मेरे मुँह की लार से मिला कर पिए जा रही थी।
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वो पागलों की तरह मुझसे लिपट कर अपनी बाँहों में भरकर बेतहाशा चुम्बन पे चुम्बन किए जा रही थी। मेरे होंठों की एक-एक बूंद रस किसी प्यासे भौंरे की भाँति निचोड़-निचोड़ कर पीने को आतुर थी। मैं छूटने के लिए छटपटा रहा था.. मगर उसकी पकड़ इतनी मजबूत थी कि मैं किसी लड़की की भाँति एक मर्द के बाजुओं की पकड़ के आगे अपने आपको कमजोर महसूस कर रहा था।
वो पूरी तरह से पसीने से लथपथ हो चुकी थी और उसके अंग से बहता पसीना मेरे भी पूरे शरीर को तर कर रहा था.. साथ ही उसके बदन से बहते पसीने से एक अजीब सी मदहोश कर देने वाली खुशबू निकल रही थी.. जो मेरे अन्दर भी अब एक आग भड़का रही थी। उस मादक महक और तपते बदन की छुअन से मेरे लण्ड महाराज ने भी अब अपना फन उठाना शुरू कर दिया था।
आखिर मैं भी तो ठहरा एक मर्द ही ना.. उस बला की खूबसूरत लड़की की तड़पती जवानी के सामने कब तक टिक पाता।
उसके बदन की गर्मी और उस गर्मी से निकलने वाली चिंगारी के सामने मैं पिघलने लगा था। अब मैं समर्पण की मुद्रा में आ चुका था और मैंने अपने शरीर को ढीला छोड़ दिया।
इस बीच उसने मेरे शरीर से बनियान भी निकाल दिया और मेरे पैंट की जिप खोलकर मेरे लोहे के समान खड़े छः इंच के हो चुके मोटे लण्ड को बाहर निकाल लिया और गप्प से अपने मुँह में लेकर उसे चूसने लगी।
मैं तो जैसे जन्नत की सैर करने लगा था.. क्योंकि पहली बार कोई लड़की मेरा लण्ड चूस रही थी। दाहिने हाथ से वो मेरे टट्टों को सहलाए जा रही थी और बाँए हाथ के बीच की अँगुली को वो अपनी चूत में पेल कर आगे-पीछे कर रही थी। इसके साथ ही अपने मुँह में मेरे तीन इंच मोटे लण्ड को पूरा निगल कर उसे भूखी शेरनी की तरह जोर-जोर से आगे-पीछे किए जा रही थी।
मेरा लण्ड पूरी तरह से उसके थूक से सन कर हिलोरें मार रहा था कि अचानक मेरे लण्ड ने जोर की पिचकारी मारी और मेरा पूरा वीर्य उसके मुँह में ‘फच-फच’ कर भरता चला गया।
जैसे ही मेरा वीर्यपात हुआ कि वैसे ही हड़बड़ा कर मेरी नींद खुल गई और जैसे ही मैं जागा… सामने का नजारा देख कर मेरी आँखें फटी की फटी रह गईं.. मुझे काटो तो खून नहीं.. अवाक होकर बुत बना.. मैं देखता रह गया।
मुझे अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था कि जो मैं देख रहा हूँ वो वाकयी में एक हकीकत है या सपना। मैंने अपने आपको च्यूंटी काटी.. तब जाकर बहुत मुश्किल से मुझे यकीन आया कि अभी कुछ समय पूर्व जो भी घटना मेरे साथ घटी है वो सपना नहीं बल्कि हकीकत था।
मैं नींद में उसे सपना समझ रहा था और वो लड़की कोई और नहीं बल्कि मेरे बचपन की यार.. मेरे सपनों की रानी.. मेरी ‘रानी मौसी’ थी।
जिस रानी को चोदने का सपना मैं बचपन से संजोए था.. आज वही रानी मेरा शोषण करने पर उतारू थी।
सपने से जागते ही मैंने देखा कि मेरा लण्ड चूसने के दौरान अचानक मेरे लण्ड से निकली पिचकारी रानी के गले तक चली गई थी.. जिसके कारण उसे ठसका लग गया था.. और उसे खाँसी आ गई थी।
रानी अपने मुँह में भर चुके मेरे वीर्य को थूक रही थी और मेरे बनियान से अपने मुँह को पोंछ रही थी।
फिर रानी ने मेरे लण्ड को मेरी ही बनियान से पोंछ कर साफ किया.. इस दौरान मैं चुपचाप लेटा रहा और अपने जगे होने को अहसास रानी को नहीं होने दिया क्योंकि आज मैं भी देखना चाहता था कि आगे रानी मेरे साथ क्या-क्या करती है?
मेरे लण्ड को पोंछने के बाद रानी एक बार फिर मेरे ऊपर छा गई और मेरे साथ वहीं खेल दुहराने लगी.. उसे किसी के देखने का भी डर नहीं था क्योंकि बिल्कुल घुप्प अंधेरे की रात थी और गाँव में बिजली भी नहीं थी।
इस बार रानी ने अपनी टी-शर्ट को निकाल दिया और ब्रा की डोरियाँ कंधे से सरका कर ब्रा को नीचे कर लिया। फिर अपनी चूचियों को मेरे होंठों पर सटा कर रगड़ने लगी।
मेरे तो हाथ ही बेकाबू हुए जा रहे थे और उन गोरी-गोरी मदमस्त कठोर हो चुकी चूचियों को मसलने और पीने के लिए मेरे होंठ मचल रहे थे।
ऐसी चूचियाँ दबाने और पीने के लिए किस्मत वालों को ही नसीब होती हैं। मैं शायद बेहद ही खुशनसीब व्यक्ति था जो ऐसी जवान चूत और चूचियाँ खुद ही मेरा शोषण करने के लिए उत्तेजित थीं, मेरा शीलहरण करने के लिए फड़फड़ा रही थीं।
मैं अपने आप पर लाख काबू पाने की कोशिश कर रहा था.. मगर मेरा लौड़ा मेरी सारी कोशिशों को नाकाम कर बेकाबू हो मेरे जगे होने की पोल खोले जा रहा था और वह रानी की हरकतों से फिर से खड़ा हो कर खूँटा बन गया।
मेरे लण्ड का सुपारा फूल कर शाही लीची हो गया था और अब रानी की बुर में जाने के लिए मचल रहा था। मेरी जीभ भी लपलपा रही थी कि कब मैं झर-झर कर बहते चूत के उस रस का पान कर लूँ जो नाहक ही बरबाद हो रहा है।
तभी रानी मेरे सीने पर झुकी और मेरे चूचकों को अपने होंठों से चूम कर उन्हें चूसने लगी और एक हाथ से मेरे लण्ड को पकड़ कर मुठियाने लगी।
मेरे पूरे बदन में करंट दौड़ गया और ऐसा लगा.. जैसे अब सारे ढोंग छोड़ कर उसकी चूचियों को मसल-मसल कर भर्ता बना दूँ और उसे पटक कर चूत में गचागच लण्ड पेल के फाड़ डालूँ।
मगर मैंने ऐसा नहीं किया क्योंकि मैं खुद का शोषण होते देखना चाह रहा था.. जो एक अनोखा शोषण था।
तभी रानी ने अपनी मस्त पतली डोरी वाली पैंटी को अपनी गोरी-गोरी टाँगों के बीच से सरकाते हुए बाहर निकाल फेंका.. जो आकर मेरी हथेलियों पर गिरी। मैंने पैंटी को अपनी मुट्ठी में भींच लिया.. वो पूरी तरह से गीली हो चुकी थी।
मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं पैंटी में लगे रानी की चूत के माल को अभी के अभी चाट जाऊँ।
हय.. क्या मस्त खुशबू आ रही थी पैंटी से.. आह्ह्ह्ह्ह.. मैं तो पागल हुए जा रहा था।
मेरा लण्ड तूफान मचाए हुए था और आण्ड की नसें दर्द से फट रही थीं.. क्योंकि उनमें काफी तनाव आ गया था।
तभी रानी उठी और अपने दोनों पैरों को मेरी कमर के दाँयें-बाँये फंसाती हुई अपने एक हाथ से मेरे लण्ड को पकड़ अपनी चूत की फाँक पर मेरे सुपाड़े को सटा कर रगड़ने लगी और उसकी चूत से बहता हुआ पानी मेरे लण्ड को नहलाते हुए मेरी झाँटों पर रिस कर गिर रहा था।
मैं तो जैसे मरा ही जा रहा था और मेरी कमर उचक कर उसकी चूत में लण्ड को घुसेड़ने के लिए बावली हो रही थी मगर यह सोच कर मैं अपनी मर्दानगी को काबू में किए हुए था कि ये काम तो खुद रानी ही करने वाली है।
तभी ‘सीसीआआह्ह्ह्ह’ करती हुई रानी गचाक से मेरे लण्ड पर बैठ गई और मेरा लण्ड ‘गच्च’ की आवाज के साथ आधे से ज्यादा रानी की चूत को चीरता हुआ अन्दर घुस गया क्योंकि रानी की चूत छोटी और गोल वाली फुद्दी थी.. उसके मुँह से हल्की सी चीख निकल गई.. मगर अपने होंठों को भींचते हुए उस मीठे दर्द को सहन कर… रानी एक बार फिर हल्का सा उठी और फिर एक जोरदार धक्का मारा और अबकी बार पूरा लण्ड अन्दर खा लिया।
मैंने महसूस किया कि पूरा लण्ड अन्दर जाते ही वो थोड़ा कँपकँपाने लगी थी.. साथ ही मुझे भी तीखा दर्द का अहसास हुआ मगर मैंने भी अपने होंठों को भींच रखा था।
फिर थोड़ा रूक कर धीरे-धीरे ऊपर-नीचे होकर 8-10 झटके लगाने के बाद रानी की रफ्तार बढ़ गई.. और वो मेरे ऊपर ही लेट गई और मेरे होंठों पर अपने गर्म तवे समान तपते होंठों को रख कर उसे बेतरतीब चूसना चालू कर दिया।
साथ ही तेज-तेज झटके लगा कर मेरे कुँवारे लण्ड का शोषण करना शुरू कर दिया।
हाय.. मैं तो मर जावां.. ऐसी चूत से अपना शोषण करवा कर के..
मैं तो ता-उम्र गुलाम हो जाऊँ.. ऐसी चुदक्कड़ चूत का..
तकरीबन दस मिनट तक मेरी जबरदस्त चुदाई करने के बाद उसका शरीर अब अकड़ने लगा था और उसने जोर से मुझे अपनी बाँहों में भींच लिया और ‘फक्क-फक्क’ कर झड़ने लगी।
इसके साथ ही उसका शरीर ढीला पड़ गया और वो मेरे ऊपर ही ढेर हो गई।
दोस्तो, अब अगले भाग में बताऊँगा कि आगे क्या हुआ.. रानी ने अपने आपको तो शांत कर लिया मगर मेरा लण्ड तो अभी खड़ा का खड़ा ही था.. उसे मैंने कैसे शांत किया।
तब तक आप सभी मुझे ढेर सारी मेल करके बताएँ कि आप लोगों को मेरी यह आपबीती कैसी लग रही है और इसे पढ़ने में आपको कितना मजा आ रहा है?
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