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सम्पादक : जूजा जी
‘मुझे आप पर पूरा भरोसा है जीजू.. फिर भी बहुत डर लग रहा है… पता नहीं.. क्या होने वाला है..।’
रिंकी का डर कम नहीं हो पा रहा था।
मैंने उसे फिर से ढांढस बंधाया- मेरी प्यारी साली.. अपने मन से सारा डर निकाल दो और आराम से पीठ के बल लेट जाओ… मैं तुम्हें बहुत प्यार से चोदूँगा.. बहुत मज़ा आएगा…’
‘ठीक है जीजू.. अब मेरी जान आपके हाथों में है।’ रिंकी इतना कह कर पलंग पर सीधी होकर लेट गई.. लेकिन उसके चेहरे से भय साफ़ झलक रहा था।
मैंने पास की ड्रेसिंग टेबल से वैसलीन की शीशी उठाई, फिर उसकी दोनों टाँगों को खींच कर पलंग से बाहर लटका दिया।
रिंकी डर के मारे अपनी चूत को जाँघों के बीच दबा कर छुपाने की कोशिश कर रही थी।
मैंने उन्हें फैला कर चौड़ा कर दिया और उसकी टाँगों के बीच खड़ा हो गया।
अब मेरा तना हुआ लण्ड रिंकी की छोटी सी नाज़ुक चूत के करीब हिचकोले मार रहा था।
मैंने धीरे से वैसलीन लेकर उसकी चूत में और अपने लण्ड पर लगा ली ताकि लण्ड घुसाने में आसानी हो।
अब सारा मामला सैट हो चुका था.. अपनी कमसिन साली की मक्खन जैसी नाज़ुक बुर को चोदने का मेरा दिली ख्वाब पूरा होने वाला था।
मैं अपने लण्ड को हाथ से पकड़ कर उसकी चूत पर रगड़ने लगा।
कठोर लण्ड की रगड़ खाकर थोड़ी ही देर में रिंकी की फुद्दी का दाना कड़ा हो कर तन गया। वो मस्ती में कांपने लगी और अपने चूतड़ों को ज़ोर-ज़ोर से हिलाने लगी।
‘बहुत अच्छा लग रहा है जीजू… ओहह… ऊ… ओह… ऊओह.. आह.. बहुत मज़ा आआअरहा है… और रगड़िए जीजू… तेज-तेज रगड़िए…’
वो मस्ती से पागल होने लगी थी और अपने ही हाथों से अपनी चूचियों को मसलने लगी थी। मुझे भी बहुत मज़ा आ रहा था।
मैं बोला- मुझे भी बहुत मज़ा आ रहा है मेरी साली जान… बस ऐसे ही साथ देती रहो… आज मैं तुम्हें चोद कर पूरी औरत बना दूँगा।
मैं अपना लण्ड वैसे ही लगातार उसकी चूत पर रगड़ता जा रहा था।
वो फिर बोलने लगी, ‘हाय जीजू.. ये आपने क्या कर दिया… ऊऊओ… मेरे पूरे बदन में करंट दौड़ रहा है.. मेरी चूत के अन्दर आग लगी हुई है जीजू… अब सहा नहीं आता… ऊह जीजू… मेरे अच्छे जीजू… कुछ कीजिए ना.. मेरी चूत की आग बुझा दीजिए… अपना लण्ड मेरी बुर में घुसा कर चोदिए जीजू… प्लीज़… जीजू… चोदो मेरी चूत को…’
‘लेकिन रिंकी.. तुम तो कह रही थीं कि मेरा लण्ड बहुत मोटा है.. तुम्हारी बुर फट जाएगी… अब क्या हो गया?’
मैंने यूँ ही प्रश्न किया।
‘ओह जीजू.. मुझे क्या मालूम था कि चुदाई में इतना मज़ा आता है.. आहह.. अब और बर्दाश्त नहीं होता…’ रिंकी अपनी कमर को उठा-उठा कर पटक रही थी।
मैं अपना सुपारा उसके भगनासे पर लगातार घिस कर उसकी उत्तेजना को बढ़ा रहा था।
‘हाय जीजू…. ऊऊहह.. मेरी चूत के अन्दर आग लगी है.. अब देर मत कीजिए… अब लण्ड घुसा कर चोदिए अपनी साली को… घुसेड़ दीजिए अपने लण्ड को मेरी बुर के अन्दर… फट जाने दीजिए इसको… कुछ भी हो जाए मगर जल्दी चोदिए मुझे..’
रिंकी पागलों की तरह बड़बड़ाने लगी थी।
मैं समझ गया.. लोहा गरम है इसी समय चोट करना ठीक रहेगा।
मैंने अपने फनफनाए हुए कठोर लण्ड को उसकी चूत के छोटे से छेद पर अच्छी तरह सैट किया।
उसकी टाँगों को अपने पेट से सटा कर अच्छी तरह जकड़ लिया और एक ज़ोरदार धक्का मारा.. अचानक रिंकी के गले से एक तेज चीख निकली।
‘आआआह्ह्ह… बाप रेईईई… मर गई मैं… निकालो जीजू… बहुत दर्द हो रहा है… बस करो जीजू… मुझे नहीं चुदवाना है.. मेरी चूत फट गई जीजू… छोड़ दीजिए मुझे अब… मेरी जान निकल रही है..’
रिंकी दर्द से बहाल होकर रोने लगी थी। मैंने देखा.. मेरे लण्ड का सुपाड़ा उसकी चूत को फाड़ कर अन्दर घुस गया था और अन्दर से खून भी निकल रहा था।
अपनी दुलारी साली को दर्द से बिलबिलाते देख कर मुझे दया तो बहुत आई लेकिन मैंने सोचा अगर इस हालत में मैं उसे छोड़ दूँगा तो वो दुबारा फिर कभी इसके लिए राज़ी नहीं होगी।
मैंने उसे हौसला देते हुए कहा- बस मेरी साली जान.. थोड़ा और दर्द सह लो… पहली बार चुदवाने में दर्द तो सहना ही पड़ता है… एक बार रास्ता खुल गया.. तो फिर मज़ा ही मज़ा है…’
मैं रिंकी को धीरज देने की कोशिश कर रहा था, मगर वो दर्द से छटपटा रही थी।
‘नहीं मैं मर जाऊँगी जीजू… प्लीज़ मुझे छोड़ दीजिए… बहुत ज़्यादा दर्द हो रहा है.. प्लीज़ जीजू…. निकाल लीजिए अपना लण्ड…’
रिंकी ने गिड़गिड़ाते हुए अनुरोध किया.. लेकिन मेरे लिए ऐसा करना मुमकिन नहीं था।
मेरी साली रिंकी दर्द से रोती बिलखती रही और मैं उसकी टाँगों को कस कर पकड़े हुए अपने लण्ड को धीरे-धीरे आगे-पीछे करता रहा।
थोड़ी-थोड़ी देर पर मैं लण्ड का दबाव थोड़ा बढ़ा देता था ताकि वो थोड़ा और अन्दर चला जाए।
इस तरह से रिंकी तकरीबन 15 मिनट तक तड़पती रही और मैं लगातार धक्के लगाता रहा।
कुछ देर बाद मैंने महसूस किया कि मेरी साली का दर्द कुछ कम हो रहा था।
दर्द के साथ-साथ अब उसे मज़ा भी आने लगा था.. क्योंकि अब वो अपने चूतड़ों को बड़े ही लय-ताल में ऊपर नीचे करने लगी थी। उसके मुँह से अब ‘कराह’ के साथ-साथ मीठी सिसकारियाँ भी निकलने लगी थीं।
मैंने पूछा- क्यों मेरी साली जान.. अब कैसा लग रहा है.. क्या दर्द कुछ कम हुआ?
‘हाँ जीजू.. अब थोड़ा-थोड़ा अच्छा लग रहा है… बस धीरे-धीरे धक्के लगाते रहिए.. ज़्यादा अन्दर मत घुसाइएगा… बहुत दुखता है।’ रिंकी ने हाँफते हुए स्वर में कहा।
‘ठीक है साली जान.. तुम अब चिंता छोड़ दो… अब चुदाई का असली मज़ा आएगा..’
मैं हौले-हौले धक्के लगाता रहा… कुछ ही देर बाद रिंकी की चूत गीली होकर पानी छोड़ने लगी।
मेरा लण्ड भी उसके चूतरस से सन कर अब कुछ आराम से अन्दर-बाहर होने लगा था।
हर धक्के के साथ ‘फॅक-फॅक’ की आवाज़ आनी शुरू हो गई।
मुझे भी अब ज़्यादा मज़ा मिलने लगा था… रिंकी भी मस्त हो कर चुदाई में मेरा सहयोग देने लगी थी।
वो बोल रही थी, ‘अब अच्छा लग रहा है जीजू.. अब मज़ा आ रहा है… ओह जीजू… ऐसे ही चोदते रहिए…. और अन्दर घुसा कर चोदिए जीजू…. आहह.. आपका लण्ड बहुत मस्त है जीजू जी… बहुत सुख दे रहा है…।’
रिंकी मस्ती में बड़बड़ाए जा रही थी। मुझे भी बहुत आराम मिल रहा था। मैंने भी चुदाई की रफ़्तार बढ़ा दी, तेज़ी से धक्के लगाने लगा। अब मेरा लगभग पूरा लण्ड रिंकी की चूत में जा रहा था.. मैं भी मस्ती के सातवें आसमान पर पहुँच गया और मेरे मुँह से मस्ती के शब्द फूटने लगे।
‘हाय रिंकी.. मेरी प्यारी साली.. मेरी जान… आज तुमने मुझसे चुदवा कर बहुत बड़ा उपकार किया है… हाँ साली जान… तुम्हारी चूत बहुत कसी हुई है…. बहुत मस्त है… तुम्हारी चूची भी बहुत कसी-कसी है.. ओह… तुम्हें चोदने में बहुत मज़ा आ रहा है…’
रिंकी अपने चूतड़ उछाल-उछाल कर चुदाई में मेरी मदद कर रही थी। हम दोनों जीजा-साली मस्ती की बुलंदियों को छू रहे थे।
तभी रिंकी चिल्लाई- जीजू…. मुझे कुछ हो रहा है… आहह… जीजू… मेरे अन्दर से कुछ निकल रहा है… ऊहह… जीजू… मज़ा आ गया… अह.. उई… माअं…’
रिंकी अपनी कमर उठा कर मेरे पूरे लण्ड को अपनी बुर के अन्दर समा लेने की कोशिश करने लगी।
मैं समझ गया कि मेरी साली का झड़ने का वक्त आ गया है।
वह फिर से झड़ रही थी.. मुझसे भी अब और सहना मुश्किल हो रहा था।
मैं खूब तेज-तेज धक्के मार कर उसे चोदने लगा और थोड़ी ही देर में हम जीजा-साली एक साथ स्खलित हो गए।
मेरा ढेर सारा वीर्य रिंकी की चूत में पिचकारी की तरह निकल कर भर गया.. और मैं उसके ऊपर लेट कर चिपक गया।
रिंकी ने मुझे अपनी बाँहों में कस कर जकड़ लिया।
कुछ देर तक हम दोनों जीजा-साली ऐसे ही एक-दूसरे के नंगे बदन से चिपके हाँफते रहे।
जब साँसें कुछ काबू में हुई तो रिंकी ने मेरे होंठों पर एक प्यार भरा चुंबन लेकर कहा- जीजू.. आज आपने अपनी साली को वो सुख दिया है जिसके बारे में मैं बिल्कुल अंजान थी… अब मुझे इसी तरह रोज चोदिएगा.. ठीक है ना जीजू?
मैंने उसकी चूचियों को चूमते हुए जबाब दिया- आज तुम्हें चोद कर जो सुख मिला है.. वो तुम्हारी अम्मा को चोद कर भी नहीं मिला… तुमने आज अपने जीजू को तृप्त कर दिया।
वो भी बड़ी खुश हुई और कहने लगी- आपने मुझे आज बता दिया कि औरत और मर्द का क्या सम्बन्ध होता है.. मेरे पति मनोज ने मुझे कभी ये सुख नहीं दिया… वो तो अपने छोटे लंड से कुछ ही देर में झड़ जाता था।
वो मेरे सीने से चिपकी हुई थी और मैं उसकी रेशमी ज़ुल्फों से खेल रहा था।
रिंकी ने एक बार फिर मेरे लण्ड को हाथ से पकड़ लिया।
उसके हाथों के स्पर्श से फिर मेरा लण्ड खड़ा होने लगा.. फिर से मेरे में काम-वासना जागृत होने लगी।
जब फिर उफान पर आ गया तो मैंने अपनी साली से कहा- पेट के बल लेट जाओ…
उसने पूछा- क्यूँ जीजू?
मैंने कहा- इस बार तेरी गाण्ड मारनी है…
वो सकपका गई और कहने लगी- कल मार लेना…
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