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Pahla Pyar Pahla Chumban Pahla Milan सर्दी की रातों के सन्नाटे में जब याद उनकी आती है तो अंग-अंग में आग लग जाती है तब हम उनके अंगों को याद किया करते हैं और अपना अंग सहला लिया करते हैं और अपने ही प्रेमरस से अपनी आग बुझा के उनके प्रेम और प्रेमरस के प्यासे हम उन्हें ओढ़ के ना जाने कब सो जाते हैं।
नमस्कार सभी कामरस छोडने को आतुर मित्रो, मैं अन्तर्वासना की कहानियाँ पढ़ना पसन्द करता हूँ। तो मेरा भी मन हुआ कि मैं अपनी ज़िन्दगी की एक घटना आप सबको बताऊँ। यह मेरी पहली कहनी है, आशा है कि आप लोगों को पसन्द आएगी।
मैं हूँ 22 साल का 5’9” कद का एक दीवाना। रंग गेहुँआ है, दिखने में ठीक-ठाक हूँ। कोटा का रहने वाला हूँ।
कहानी तब की है जब मैं कालेज में फ़स्ट ईयर में था, बी एस सी कर रहा था। तब मैं उन्नीस साल का था।
मेरी क्लास में एक लडकी थी नाम था मेनिका (बदला हुआ) देखने में एकदम मस्त, हाय ! आज भी उसके बारे में सोचता हूँ तो आग लग जती है। गोरा रंग, 5’3” का कद, मासूम चहरा, कमर तक लम्बी चोटी, नई-नई जवानी थी सो शरीर छरहरा था पर अंगों पर उभार आ चुका था, सन्तरे के आकार के स्तन,खरबूजे जैसे दो माँसल नितम्ब, पतली और लम्बी-लम्बी उंगलियाँ।
जब वो जींस-टाप पहनकर सज-धज कर चलती थी तब उसकी चोटी उसके नितम्बों से टकराकर हिला करती थी, वो नज़ारा बेहाल कर देता था मुझे।
उसका भोला-सा गोल चहरा, लाल-लाल होंठ, हाय, जी करता था अभी गोद में उठाकर चूम लूँ।
ना जाने कौन सा नशा किया था उसने जो उसकी बड़ी-बड़ी आँखें हमेशा चढ़ी-चढ़ी रहती थी।
मैं उसे पसन्द करता था, दरअसल हर लड़का उस पर लाइन मारता था। कईयों ने उसे प्रोपोज़ भी किया था, पर उसने उसे साफ़ ना कर दी। मेरी कभी हिम्मत ना हुई, सोचा जब अच्छे खासों को ना कर चुकी है तो फिर मैं किस खेत की मूली हूँ।
एक दिन क्लास चल रही थी, प्रोफ़ेसर पढ़ा रहे थे, मैंने देखा कि वो मुझे देख रही थी।
मुझे अपनी तरफ़ देखता पाकर उसने अपनी नज़रें फेर ली।
थोड़ी देर बाद मैंने उसकी तरफ़ फिर देखा तो फिर वही सिलसिला हुआ, वो दिन कुछ उसी तरह निकल गया।
उस रात मेरी नींद गायब थी, मैं उसी के बारे में सोच रहा था- क्या वो मुझे पसन्द करती है? काश वो मेरी हो जाये! ऐसे ही ख्यालों में करवटें बदलते हुए ना जाने कब मैं सो गया।
नज़रों के मिलने का सिलसिला चल पड़ा था, मेरी रातों की नींद और दिन का चैन गायब था। और शायद उसकी भी। हफ़्ता भर निकल गया था, आज मैंने बात को आगे बढ़ाने की ठान ली।
कालेज खत्म होने के बाद जैसे ही मुझे वो अकेली दिखी, मैं उसके पीछे की तरफ़ से उसके पास गया और कहा- सुनो!
वो चौंककर पलटी और बोली- कऽऽऽऽ…क्या?
‘वो आज मैं अपना मोबाईल नहीं लाया और मुझे एक ज़रूरी फ़ोन करना है, तो क्या आप मुझे अपना फ़ोन यूज़ करने देंगी?’
‘ठीक है।’
मैंने पूरी प्लानिंग पहले से की थी, अपने मोबाईल को साइलेंट मोड पर करके अपने बैग में रख लिया।
उसके फ़ोन से अपने फ़ोन पर काल किया, फ़िर काट दिया और उसको बोला- ‘वो फ़ोन उठा नहीं रहा।
और फ़ोन उसे देते हुए कहा- बाई द वे, थैंक्स… मैं बाद में बात कर लूँगा।
उसने मुझे कुछ शक भरी निगहों से देखा और बोली- ओके, बाय ! मैं- बाय…
वो चली गई मैं उसे पीछे से देखता रहा, थोड़ी दूर जाकर उसने मुझे एक बार मुझे मुड़कर देखा और चली गई। क्या बताऊँ कि मेरे लिये वो पल कितने रूहानी थे।
वो दिन तो जैसे तैसे कटा, बस रात का इन्तज़ार था।
रात को लगभग 11 बजे मैंने उसे मेसेज किया- हाय! ‘कौन?’ ‘आज आपसे मिला था ना, आपका फ़ोन माँगा था।’ ‘ओह… तो आप हैं।’ ‘हाँ जी…’ ‘कहिये, क्या काम है?’ ‘जी, मुझे आप पसन्द हैं।’ ‘ओह, तो इसलिये फ़ोन माँगा था?’ ‘हाँ, और आपने समझकर भी अनजान बनते हुए दे दिया।’ ‘हाँ, वो तो है।’ ‘अगर बुरा ना मानो तो एक बात कहूँ?’ ‘हाँ, कहो!’ ‘आप बहुत खूबसूरत हैं।’ ‘चल झूठा!’ ‘अरे, सच में…’
उस रात हम काफ़ी देर तक बातें करते रहे। मेरी खुशी मिली उत्तेजना हदें पार कर चुकी थी। ना जाने मुझे क्या हुआ मैंने अपने सारे कपड़े उतार दिये और शीशे के सामने अपने आप को देखकर अपने लिंग को सहलाने लगा।
मेरी साँसें तेज होने लगी, आँखे बन्द हो गई, लिंग पूरे तनाव में आ गया, हाथ बस लिंग को हिला रहे थे, सहला रहे थे, मन में बस उसका चेहरा, उसके हिलते हुए नितम्ब, उसके स्तन! उत्तेजना के मारे लगता था कि कहीं लिंग का अगला भाग फट ना जाये।
4-5 मिनट बाद जोर से मेनिका चिल्लाते हुए मैंने पिचकारी छोड़ दी और बिस्तर पर गिर पड़ा।
अब हम रोज़ फ़ोन पर देर रात तक बातें करने लगे। कालेज में हमारे किस्से बनने लगे, क्यूंकि हम ज्यादातर एक साथ रहने लगे।
मैं रोज़ उसके उसके बारे में सोच कर हस्थमैथुन करने लगा, बस उसे चूमने-भोगने के सपने देखने लगा।
इन दिनों में हमने एक दूजे से प्यार का इज़हार भी कर दिया था।
हमने दो तीन बार फोन सेक्स भी किया।
अब हम दोनों एक दूसरे में समाने को बेकरार थे तो हमने एक होटल में मिलने का प्रोग्राम बनाया।
और फिर एक दिन हम दोनों ने कालेज से बंक मारकर एक होटल में एक कमरा बुक कराया और कमरे में गये।
कमरे में जाते ही मैंने दरवाज़ा बन्द किया और उसे अपनी बाहों में जकड़ लिया।
उसने भी अपने हाथों से मेरे सिर को पकड़ लिया।
मेरा बायाँ हाथ उसके नितम्बों पर था और दायाँ उसकी पीठ पर।
उसकी आँखों में लाल डोरे खिंच गये और उनमें नशा सा उतर आया था और मैं जितना उनमें देखता, उतना ही नशा मुझ पर भी चढ़ रहा था।
और फिर हमारे होंठ एकदम से पास आये और मैंने उसके ऊपर के होंठ को अपने होठों से दबा लिया, उसने मेरे निचले होंठ को!
हमारी साँसें मिल गई, फिर हमारी जीभ मिली, अब मेरे दाँये हाथ ने उसकी पीठ से हठकर उसके गर्दन के ऊपर के बालों को जकड़ लिया।
हमारी साँसें मिली, हमारी खुशबू मिली, हम एक दूसरे को पी जाना चाहते थे।
मैं उस समय ना जाने कौन सी दुनिया में था जहाँ सिर्फ़ वो थी और मैं। यह हमारा पहला चुम्बन था। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं ! फिर मैं उसके चेहरे, गर्दन, छाती पे पागलों की तरह चूमने लगा और वो आँखें बन्द करे आहें भर रही थी।
फिर मैंने उसका टाप और जींस उतार दिया और उसे बेड पर बिठा दिया।
उसने शर्म के मारे अपना मुँह अपने हाथों से ढक लिया।
क्या बताऊ सिर्फ़ ब्रा-पैन्टी में वो क्या लग रही थी। मैंने भी निक्कर को छोड़ कर अपने सारे कपड़े उतार दिये।
अब मैं बेड पर गया और उसे वापस अपनी बाँहों में जकड़ लिया, उसे चूमने लगा, ब्रा के ऊपर से ही उसके स्तनों को दबाने और चूमने लगा। उसके बगलों से आती डियो और पसीने की मिली-जुली खुशबू मुझे पागल कर रही थी।
अब मैंने उसकी ब्रा को निकाल फेंका, गोरे-गोरे स्तनों पे पाँच के सिक्के के आकार के कत्थई चूचक, मैंने उन्हें खूब चूसा और दबाया।
वो सिसकारियाँ ले रही थी और कह रही थी- ऐसे ही… आहहह… मेरे राजाऽऽऽ… आज मुझे पूरा रगड़ दे रे… हाय…!
उसकी आवाज़ें सुनकर मैं और उत्तेजित हो रहा था।
अब मैंने उसकी पैंटी भी खींच दी, वो बोली- जल्दी कुछ करो ना… आहहह… अब बर्दाश्त नहीं होता!
‘अभी लो मेरी रानीईईईईई… तुम्हें निहाल किये देता हूँ।’
जब मैंने उसकी लाडो को देखा, वो एकदम चिकनी थी, फ़ूली हुई सी, कोई ढाई तीन इन्च का चीरा होगा।
मैंने उसकी लाडो को अपनी उँगलियों से चौड़ा किया और सूँघा, बड़ी ही मादक सुगन्ध थी।
अब मैंने उसकी लाडो को ऐसे चूमा जैसे उसके होंठों को चूमा था, वो तो ‘आहहहहईई…’ की आवाज़ के साथ उछल ही पड़ी।
अब मेरा सब्र खत्म हो चुका था, मैंने अपने हथियार पर और उसकी लाडो पर खूब सा थूक लगाया और उसकी लाडो को चौड़ा करके अपना लिंग उस पर रख कर दबाव बढ़ाने लगा।
वो बेड पर लेटी हुई थी और मैं घुटनों के बल था।
वो बोली- आराम से, मेरा पहली बार है।
उसके चहरे पर अब दर्द के भाव साफ दिख रहे थे।
मैं बोला- बस थोड़ा और मेरी मेनिका!
सच कहूँ तो मुझे भी उस समय थोड़ी तकलीफ हो रही थी।
मैंने उसे चूमा और उसके स्तनों का मर्दन करते हुए अपने लिंग को धीमे-धीमे अन्दर-बाहर करने लगा, फिर मैंने एक दो धक्के तेज़ लगाये।
अब मेर लिंग पूरा अन्दर चला गया।
उसकी एकदम से चीख निकल ग- ऊईईई… मर गईईई…रेएए!
अब मैंने धक्के रोक कर उसके होंठों पर चूमना शुरू कर दिया।
थोड़ी देर बाद मैंने फिर से धक्के लगाना शुरु कर दिया, अब वो भी सिसकारियाँ लेने लगी और कमर उछालने लगी।
पहली बार की उत्तेजना में मैं दो-तीन मिनट में ही झड़ गया और मेरे झड़ते ही उसकी योनि ने भी मेरे लिंग को जकड़ लिया और प्रेम के आँसू बहाने लगी।
मैं हाँफते हुए उसके ऊपर गिर पड़ा। हम दोनों पसीने से सराबोर हो चुके थे।
मैंने उसे अपनी बाहों में भरा और उलटा हो गया इस तरह वो मेरे ऊपर आ गई।
इसी बीच मेरा लिंग भी फिसलकर उसकी योनि से बाहर आ गया।
उसके स्तन और चेहरा मेरी छाती पे थे, मेरे हाथ उसकी कमर पे, उसके पैर मेरे पैरों से साँप की तरह लिपटे थे। उसके हाथों ने मेरे कंधों को पीछे की तरफ़ से पकड़ा हुआ था।
क्या गज़ब का एहसास था, ऐसी ही अवस्था में हम दोनों सो गये।
मेरी ज़िन्दगी की सबसे अच्छी नींद थी वो।
आधे घन्टे बाद हम सोकर उठे, फिर से वही खेल खेला, पर इस बार खेल काफ़ी लम्बा चला।
हमने उस दिन कई अलग-अलग अवस्थाओं में प्रेम किया।
उस दिन उसने मेरा लिंग ना चूसा और ना गुदामैथुन करने दिया, पर मैंने उसे इसके लिये बाद में मना लिया।
खैर वो कहानी फिर कभी।
उस दिन के बाद से हमें जब भी मौका मिलता, हम प्रेम किया करते थे।
हमारा सम्बन्ध दो साल चला, उसके बाद उसने किसी और से शादी कर ली, ऐसा क्यूँ हुआ, वो भी फिर कभी बताऊँगा।
आपके मेल की प्रतीक्षा रहेगी।
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