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पिछले भाग में आपने पढ़ा।
पिछले चार घंटों से हम दोनों एक-दूसरे को प्यार करने में लगे थे। फिर मैं उठा और उसकी पैन्टी से अपने लण्ड को अच्छी तरह से पौंछ कर साफ़ किया। फिर उसकी चूत की भी सफाई की.. जो कि हम दोनों के कामरस से सराबोर थी।
फिर मैं उठा और अपने कपड़ों को पहनने लगा तो आंटी मुझसे बहुत ही विनम्रता के साथ देखते हुए बोलीं- प्लीज़ आज यहीं रुक जाओ न..
अब आगे..
मैंने बोला- मैं अपने घर में क्या बोलूँगा.. इतनी देर से मैं कहाँ था? और अब मैं कहाँ रहूँगा रात भर.. आप तो इतनी बड़ी और 2 बच्चों की माँ हो.. आप मेरी मज़बूरी को समझ सकती हो.. मैं खुद तुम्हें छोड़ कर जाना नहीं चाहता.. पर क्या करूँ.. मेरे आगे भी मज़बूरी है प्लीज़.. इसे समझो आप कोई लड़की नहीं हो.. एक माँ भी हो.. आप एक माँ-बाप की फीलिंग समझ सकती हो।
तो वो अचानक उठकर बिस्तर से जैसे ही उतरी तो उसके पैरों में इतनी ताकत नहीं बची थी कि वे आराम से खड़ी हो सकें। तो सीधे ही मेरे सीने पर आकर रुक गईं..
मैंने भी उसे संभालते हुए अपनी बाँहों में जकड़ लिया और उसके होंठों पर होंठ रख कर उसके होंठों का रसपान करने लगा।
उसकी आँखों में एक अजीब सी कशिश थी… आज पहली बार मैंने किसी की आँखों में अपने लिए इतना प्यार और समर्पण देखा था। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं ! उसकी आँखों में आंसू भर आए थे.. जो बस गिरना बाकी थे।
अचानक मेरे दिमाग में एक प्लान आया और मैंने उसे बताया- देखो, अगर तुम मेरे पेरेंट्स से अगर यहाँ रुकने के लिए बोलोगी.. थोड़ा कम अच्छा लगेगा, पर विनोद अगर मेरी माँ से बोलेगा तो ठीक रहेगा।
उसने झट से मेरी ‘हाँ’ में ‘हाँ’ मिला दी तो मैंने बोला- ठीक आठ बजे विनोद को बोलना कि वो मेरे नम्बर पर काल करे तो में अपनी माँ से बात करा दूँगा। उसे बस इतना बोलना है कि मेरी माँ आज घर पर अकेली है तो आप राहुल को रात में घर में सोने के लिए भेज दें.. बस बाकी का मैं सम्हाल लूँगा।
इस पर माया चेहरा खिल उठा और वो मुझे प्यार से चुम्बन करने लगी और बोली- तुम तो बहुत होशियार हो।
फिर मुझे याद आया कि मेरा तो सेल-फोन टूट गया है.. तो मैं मन ही मन निराश हो गया।
मेरे चेहरे के भावों को देखकर माया बोली- अब दुखी क्यों हो गए?
तो मैंने उन्हें अपना फोन दिखाते हुए सारी घटना कह सुनाई।
वो हँसते हुए बोली- तुम्हें जब सब पता चल चुका था.. तो ड्रामा क्यों कर थे।
मैंने बोला- मेरा फोन खराब हो गया है.. तुम मज़ाक कर रही हो।
तो वो धीरे से उठी और मुझसे बोली- तुम्हारा फोन कितने का था?
मैंने पूछा- क्यों?
बोली- अभी जाकर नया ले लो.. नहीं तो बात कैसे हो पाएगी और अपने पापा से क्या बोलोगे कि नया फ़ोन कैसे टूटा?
फिर मैंने बोला- शायद 6300 का था।
उस समय मेरे पास नोकिया 3310 था मार्केट में नया ही आया था।
तो माया ने मुझे 7000 रूपए दिए और बोली- जाओ जल्दी से फोन खरीद कर फोन करना।
माया का इतना प्यार देखकर मैंने फिर से उसे अपनी बाँहों में लेकर चूमना शुरू कर दिया।
माया बोली- अब तो पूरी रात पड़ी है.. जी भर के प्यार कर लेना.. अभी जाओ जल्दी..
क्या करूँ यार मुझे जाना पड़ा.. पर उसे छोड़ने का मेरा तो मन ही नहीं कर रहा था।
मैं उसके घर से निकल आया।
अब आगे फिर मैं उनके घर से निकल कर मॉल रोड गया और नोकिया सेंटर से एक नया फ़ोन 3310 फिर से ख़रीदा जो की 6150 रूपए का मिला.. मैंने अपना वाला हैंडसेट भी रिपेयरिंग सेंटर में बेच दिया.. क्योंकि उसका मैं क्या करता जिसके मुझे 1500 रूपए मिले।
फिर मैंने माया को अपने नए सेल से कॉल की.. तो उसने फ़ोन उठाते ही ‘आई लव यू मेरी जान’ कहा..
प्रतिक्रिया में.. मैंने भी वही दोहरा दिया और उसको ‘थैंक्स’ बोला.. तो वो गुस्सा करने लगी।
बोली- एक तरफ मुझे अपना बनाते हो और दूसरी तरफ एक झटके में ही बेगाना कर देते हो.. क्या जरूरत है तुम्हें ‘थैंक्स’ बोलने की.. अगर मैं तुम्हारे लिए कुछ भी करूँगी.. तो मुझे ख़ुशी मिलेगी.. आज के बाद जब कभी भी किसी चीज़ की जरुरत पड़े तो बस कह देना.. बिना कुछ सोचे.. नहीं तो मैं समझूँगी कि तुम मुझे अपना समझते हो।
मुझे उसके इस अपनेपन पर बहुत प्यार आया और मैंने उसे ‘आई लव यू’ बोल कर फ़ोन पर चुम्बन दे दिया.. जिसके प्रतिउत्तर में माया ने भी मुझे चुम्बन किया।
फिर मैंने ‘बाय’ बोल कर फ़ोन काटा और अपने घर चल दिया।
मैं जैसे ही घर पहुँचा तो माँ ने सवालों की झड़ी लगा दी- कहाँ थे.. क्या कर थे?
मैं खामोशी से सुन रहा था..
थोड़ी देर बाद जब वे शांत हुईं तो प्यार से बोलीं- तूने कुछ बताया नहीं?
तो मैंने उन्हें बोला- माँ.. अब मैं स्कूल का नहीं.. कालेज का छात्र हूँ और मैं अपने दोस्तों के साथ मूवी देखने गया था.. इस वजह से देर हो गई.. आप प्लीज़ ये पापा को मत बोलना।
वो मान गईं.. अब आप सब समझ ही सकते हो कि माँ अपने बच्चे को बहुत प्यार करती है।
खैर.. जैसे-जैसे समय बीतता गया.. मेरे दिल की भी धड़कनें बढ़ती ही जा रही थी और मेरा लौड़ा भी पैन्ट में टेन्ट बनाए खड़ा था।
फिर जब मैं बाथरूम में जाकर मुट्ठ मार रहा था.. तभी मेरे फोन की रिंग बजी.. जो कि बाहर कमरे में चार्जिंग पर लगा था।
मैं रिंग को नजरअंदाज करते हुए मुट्ठ मारने में मशगूल हो गया और जब मेरा होने ही वाला था.. तभी दोबारा फोन बजा जिसे मेरी माँ ने उठाया और बात की
मैंने पानी से अपने सामान को साफ़ किया और कमरे में पहुँचा.. तो सुना, माँ बोल रही थीं- अरे बेटा, इसमें अहसान की क्या बात है.. मैं अभी राहुल के पापा से बात करके राहुल को भेज दूँगी और वैसे भी उनका आने का समय हो गया है।
यह कहते हुए माँ ने फ़ोन काट दिया और मेरा प्लान सफल होने के कगार पर था।
मुझे उनकी बातों से लग गया था कि वो विनोद से बात कर रही हैं।
फिर माँ से मैंने पूछा- किसका फ़ोन था?
तो उन्होंने बोला- विनोद का।
अभी करीब सवा आठ बजे होंगे।
मैंने पूछा- उसने इतनी रात फ़ोन क्यों किया था?
तो उन्होंने बताया- वो अपनी बहन को पेपर दिलाने बाहर ले गया है और उसकी माँ घर पर अकेले ही हैं.. पापा कहीं बाहर जॉब करते हैं।
तो मैंने पूछा- फिर?
वो बोलीं- कह रहा था कि राहुल को आज और कल रात के लिए घर भेज दीजिएगा क्योंकि हम परसों सुबह तक घर पहुँचेंगे।
तो मैंने बोला- फिर आपने क्या कहा?
बोलीं- अरे इतने दीन भाव से कह रहा था.. तो मैंने बोल दिया उसके पापा आने वाले हैं.. मैं उनसे बात करके भेज दूँगी।
मैंने तपाक से बोला- अगर पापा ने मना कर दिया तो आपकी बात का क्या होगा?
तो बोलीं- अरे वो मुझ पर छोड़ दो.. मैं जानती हूँ.. वो किसी की मदद करने में पीछे नहीं रहते.. फिर तो ये तेरा दोस्त है.. वो कुछ नहीं कहेंगे।
मुझे बहुत ख़ुशी हो रही थी, पर अन्दर ही अन्दर पापा के निर्णय का डर भी था।
तभी दरवाजे की घन्टी बजी.. मैंने गेट खोला तो पापा ही थे।
माँ ने आकर उन्हें पानी दिया और विनोद की बात बताते हुए कहने लगीं- मैंने बोल दिया है.. राहुल को 9 बजे तक भेज दूँगीं।
तो पापा का भी पता नहीं क्या मूड था.. उन्होंने भी ‘हाँ’ कर दी।
फिर क्या था.. मेरे मन में हज़ारों तरह की तरंगें दौड़ने लगीं।
फिर पापा ने मुझे बुलाया और कहने लगे- उसका घर कहाँ है?
तो मैंने बोला- बस पास में ही है..
तो उन्होंने कार की चाभी दी और बोला गाड़ी अन्दर कर दो और फिर चले जाओ।
मेरी माँ बोलीं- अरे यह क्या.. आप इसे उनके घर छोड़ आओ.. आप उनका घर भी देख लोगे.. कहाँ है?
शायद यह माँ की अपने बेटे के लिए चिंता बोल रही थी, तो पापा भी बोले- हाँ.. ये ठीक रहेगा।
तो मैंने बोला- एक मिनट आप रुकिए.. मैं अभी आया।
मैं अपने कमरे में गया और लोअर पहना और टी-शर्ट पहन कर आ गया और अपने पापा के साथ उनके घर पहुँच गया।
फिर पापा उनके घर के बाहर मुझे ड्राप करके वापस चले गए।
मैंने विनोद के घर की घण्टी बजाई।
सभी पाठकों को बहुत सारा धन्यवाद। मेरी चुदाई की अभीप्सा की यह मदमस्त घटना आपको कैसी लग रही है। अपने विचारों को मुझे भेजने के लिए मुझे ईमेल कीजिएगा।
कहानी जारी रहेगी।
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