गाण्ड मेरी पटाखा बहन बानू की

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Gaand Meri Patakha Bahan Banu ki प्रेषक : नामालूम सम्पादक : जूजा जी

हैलो दोस्तो.. जैसे ही मैं घर में दाखिल हुआ तो घर पर कोई नज़र नहीं आया…काफी खामोशी थी।

मुझे अज़ीब सा महसूस हुआ… फिर मुझे रसोई से कुछ आवाज़ आई।

जब मैं रसोई में घुसा.. तो वहाँ मेरी छोटी सौतेली बहन खड़ी होकर खाना बना रही थी।

उन दिनों गर्मियों के दिन थे और उसके कपड़े पसीने से गीले हो गए थे… जो कि उसके मादक जिस्म के साथ चिपके हुए थे।

मैं पीछे से उसके पास जाकर खड़ा हो गया और उसको पीछे से अपनी बाँहों में ले लिया।

मेरा लंड उसके सेक्सी और नरम-नरम गाण्ड के बीच में फँस कर दब गया।

‘ऊओह.. भाईजान… क्या करते हो… तुमने तो मुझे डरा ही दिया…’ वो मेरी तरफ मुड़ कर बोली।

मगर मैं उससे यूँ ही लिपटा रहा और वो दुबारा खाना पकाने लगी।

मेरे हाथ उसके सीने की ऊँची-नीची जगहों पर रेंगने लगे और मैंने उसकी गर्दन पर हल्का सा चुम्बन किया।

‘बानू… घर के और सब लोग कहाँ हैं? इतनी खामोशी क्यों है.?’

बानू ने खाना पकाते हुए कहा- वो तो लाहौर गए हैं.. नानू के पास… खाला की तबियत बहुत खराब हो गई है… कल रात को वापिस आयेंगे।

यह सुनते ही मेरे हरामी दिमाग में फिल्म चलने लगी।

मैं और बानू मेरी प्यारी बहन अकेले घर में पूरा दिन… पूरी रात… उफ्फ़!!!

मेरे मुँह से निकला, ‘हाय तेरी मेरी स्टोरी..’

उसने मेरी तरफ प्रश्नवाचक निगाहों से देखा।

‘बानू जानू… तेरी मेरी स्टोरी का मतलब है.. मैं और तुम अकेले…पूरे घर में… जो मर्ज़ी करें…उम्म्म्ममाअहह…’

मैंने उसके होंठों पर एक लंबी सी चुम्मी ली और उसको अपनी तरफ घुमाते हुए अपनी बाँहों में ले लिया।

अब उसके नरम-नरम मम्मे मेरे सीने के साथ दबने लगे और मेरा ठरकी लंड सीधा उसके पेट पर लग रहा था क्योंकि वो कद में मुझसे छोटी थी।

‘भाईजान.. क्या है…अभी तो खाना बनाने दो ना.. तुम तो बस हर वक्त ही तैयार रहते हो…मैं अब तुम्हारी ही हूँ.. सारा दिन… सारी रात…जो मर्जी कर लेना.. जितना खेलना हो.. मेरे साथ खेल लेना..’

और वो पीछे होने की कोशिश करने लगी।

‘नहीं जानू.. ऐसे तो नहीं…अब तो मैं सारे अरमान पूरे करूँगा… आज तो रसोई में ही स्टोरी16 गर्मी में… तेरे इन पसीने से गीले कपड़ों के साथ ही.. तेरे साथ खेलूँगा…’

और मैंने दोबारा उसको अपनी मज़बूत बाँहों में ले लिया।

मैं एक हाथ से उसकी नरम-नरम गाण्ड दबाने लगा… और उसको दुबारा चुम्बन किया।

‘उम्म्म्म…’

मगर वो फिर खुद को छुड़ाने लगी।

‘भाईजान.. अच्छा चूल्हा तो बंद कर लूँ.. वरना आज भूखा ही सोना पड़ेगा…’

उसके यह कहते ही मैंने एक हाथ से चूल्हा बंद कर दिया और मेरी प्यारी बहना बानू खुद ही मुझसे लिपट गई।

वो मेरे होंठों से फ्रेंच-किस करने लगी।

मेरा एक हाथ उसकी गाण्ड दबा रहा था और दूसरा हाथ उसकी कमीज़ के अन्दर घुस गया और उस के छोटे-छोटे नरम-नरम मम्मों से खेलने लगा।

बानू के मुँह से अब आवाजें निकलने लगी- उम्म्म्म… ऊउउन्ण…

फिर हमारी चूमा-चाटी खत्म हुई।

‘भाईजान…इतनी गर्मी है… यह शर्ट तो उतार दो अपनी…’ और यह कहते ही बानू ने मेरी शर्ट उतार दी।

‘बानू जान…खुद भी इतनी गर्मी में खड़ी हो… तू भी अपनी यह कमीज़ को उतार कर फेंक दे ना… अब तो घर पर कोई नहीं है…अब हम नंगे ही रहेंगे सारा दिन… सारी रात…’

‘तेरी मेरी स्टोरी’ के ख़याल से मेरा लंड डंडे की तरह अकड़ गया था कि अब पूरी रात… पूरा दिन मेरी छोटी बहन बानू मेरी आँखों के सामने नंगी फिरेगी… उसकी नंगी उठी हुई गाण्ड… तने हुए मम्मे.. मेरी आँखों के सामने हर वक्त रहेंगे।

फिर मैंने बानू की कमीज़ उतारी.. तो वो बोली- भाईजान… मेरा तो खुद बड़ा दिल करता था कि घर में बगैर कपड़ों के ही फिरूँ… शुक्र है अम्मी-अब्बा गए हैं.. अब तो मैं अपनी यह इच्छा भी पूरी कर लूँगी..

अब बानू मेरे सामने सिर्फ़ एक काले रंग की चिंदी सी ब्रा में खड़ी थी और उसने नीचे से सलवार पहनी हुई थी।

मैंने फ़ौरन उसके मम्मों पर हाथ डाला और दोनों हाथों से उसके मम्मे दबाने लगा… नींबू की तरह निचोड़ने लगा।

बानू की तो जैसे जान ही निकल गई और उस ने मुँह ऊपर को कर लिया और कामुक आवाजें निकालने लगी।

‘आअहह… भाईजानआ… उफफ्फ़…आराअम से खेलो ओहह.. .. तुम्हारे ही हैं यह…आअहह…’

वो तो मज़े से सराबोर हो गई थी…

फिर मैंने उसको दुबारा चुम्मी की… एक हाथ से उसके मम्मे दबाने लगा और दूसरे हाथ से उसकी सलवार का नाड़ा खोल दिया और सलवार को खोल कर नीचे सरका दिया…

जब मेरा हाथ उस की टाँगों के बीच में गया तो मेरी खुशी की इन्तेहा नहीं रही…

क्योंकि बानू ने नीचे कुछ भी नहीं पहना हुआ था और उसकी फुद्दी पर थोड़े-थोड़े बाल आ चुके थे।

मैं ज़रा पीछे हटा… ताकि उसकी चिकनी और टाइट फुद्दी का नज़ारा कर सकूँ।

वाहह… क्या छोटी सी… फुद्दी थी मेरी प्यारी बहना की..

बानू ने भी अपनी टांगें खोल लीं और डीपफ़्रीज़र के साथ सट कर खड़ी हो गई…और बोली- भाईजान आज जितना खेलना है खेल लो.. ‘तेरी मेरी स्टोरी’ के साथ… आज की रात तो यह सिर्फ़ तुम्हारी है… जो करना ही कर लो… बस मुझे इतना प्यार करो… कि ये वक्त कभी भुला ना सकूँ.. अपने प्यारे भाईजान को।

वो मेरी बाँहों पर हाथ फेर रही थी… मैं नीचे बैठ गया… और एक हाथ से उसकी फुद्दी के होंठों खोले और एक ऊँगली बीच में फेरी…

तो उसने अपनी टांगें अकड़ा लीं… जैसे उसको करेंट लग गया हो।

फिर मैं उसकी चूत के ज़रा और करीब हुआ और अपने अंगूठे से उसकी फुद्दी रगड़ने लगा।

बानू के मुँह से ‘सी..उए.. सीई.. आआआह..’ की आवाजें निकल रही थीं।

मैं तो तजुर्बेदार बंदा था… मुझे मालूम था कि यहीं से तो हर लड़की को काबू किया जाता है।

फिर मैंने उसको एक चुम्बन किया उसकी फुद्दी पर… और बिल्कुल उसकी फुद्दी के होंठों के बीच में हल्का-हल्का चाटने लगा।

मेरा दूसरा हाथ उसकी एक ऊँगली उसकी गाण्ड में घुसने की कोशिश कर रही थी।

अब मैं उस की टाँगों के बिल्कुल बीच में बैठा और बड़े मज़े से चूत चाटने लगा।

बानू कसमसा रही थी… मैंने उसकी टाँगों के इर्द-गिर्द अपने मज़बूत हाथों का घेरा डाला हुआ था.. जो पीछे से होते हुए उसकी गाण्ड पर कसावट डाल रहे थे।

वो बिल्कुल फंसी हुई थी और मज़े से पागल हो रही थी।

‘उफ़फ्फ़.. भाईजानअ…बस..बस… भाईजानआ… आअहह…मैं छूटने वाली हूँ…आआहह ..ह .. में मर गई…आआहह…’ और एकदम उसकी चूत छूट गई… और वो ठंडी पड़ गई। वो मेरी तरफ प्यार से देखते हुए मेरा मुँह अपने हाथों में लेते हुए बोली- भाईजान… तुम दुनिया के सब से अच्छे भाईजान हो…जो मुझे ज़िंदगी के इतने मज़े देते हो तेरी मेरी स्टोरी के… जिसकी तमन्ना दुनिया की आधी लड़कियाँ सिर्फ़ ख्वाब ही देखती हैं…

मैं खड़ा हुआ और बोला- बानू.. मेरी प्यारी बहना… अब मेरा नम्बर?

मैं मुस्कराते हुए उसको देखने लगा…

तो वो मुझसे लिपट गई और बोली- भाईजान… मैं तो खुद तुम्हारी हो गई हूँ…पूरी की पूरी तेरी मेरी स्टोरी…

मैं उसको पीछे हटाते हुए बोला- बानू तेरी फुद्दी तो मैं रात को लूँगा… अभी तो मुझे तेरी गाण्ड का मज़ा लेना है… आज बड़ा दिल कर रहा है तेरी छोटी सी नरम-नरम गाण्ड में अपना लंबा लंड डालने का…

मैं उसकी गाण्ड को दबाता हुआ बोला।

वो मुझसे अलग होते हुए बोली- नहीं भाईजान… गाण्ड नहीं…मैंने आज तक गाण्ड में कुछ नहीं डाला है… अभी जब तुम अपनी ऊँगली डालने की कोशिश कर रहे थे… तो बहुत दर्द हो रहा था… तुम्हारा इतना मोटा लंबा लौड़ा कैसे जाएगा?

मैंने उसको दुबारा कमर से पकड़ कर अपने करीब किया और उसके होंठों पर एक चुम्बन किया और बोला- बानू… गाण्ड तो मैं तेरी ज़रूर मारूँगा.. मगर यकीन कर… एक बार थोड़ा सा दर्द बर्दाश्त कर ले अपने भाईजान के लिए…देख मैंने तेरे लिए क्या नहीं किया… बाकी सब मैं खुद संभाल लूँगा…

मैंने फ्रीज़र खोला और उसमें रखा हुआ मक्खन निकाल कर अपने हाथ पर लिया।

बानू नंगी खड़ी मुझे देख रही थी। मेरा लंड उस वक्त पूरा खड़ा था और कड़क डंडा सा हो गया था।

मैंने सारा मक्खन अपने लंड पर मल दिया…

अब मेरा लंड बहुत चिकना सा हो गया।

फिर मैंने बानू को चूमा और उसको घुमा दिया।

बानू परेशान-परेशान सी दिख रही थी- भाईजान… प्लीज़… देखो… मैं तुम्हारी बात मान रही हूँ… मगर आराम से करना.. मुझे दर्द नहीं होना चाहिए…

मैंने उसके दोनों हाथ डीप-फ़्रीज़र पर रखे.. और वो झुकी सी कुतिया जैसी बन चुकी थी उसकी गाण्ड बाहर को निकली हुई थी, जो मक्खन मेरे हाथ में बचा था.. उसे मैंने उसकी गाण्ड के छेद पर मला और बोला- बानू…बस तू फिकर ना कर.. तू मेरी इतनी प्यारी बहना है…मैं तुझे कोई तकलीफ़ कैसे दे सकता हूँ… मैं तो सिर्फ़ तुझे मजे ही देता हूँ ना…आज के बाद देख लेना तू खुद कहेगी…कि मेरी गाण्ड मारो…

मैंने अपने लंड का सुपारा उसकी छोटी सी गाण्ड की मोरी पर रखा और ज़ोर लगाया…

लंड और बानू की गाण्ड चिकनी होने की वजह से… टोपा तो आराम से अन्दर चला गया।

अब मैं दोनों हाथ आगे बढ़ा कर बानू के झूलते कबूतर पकड़े और ज़ोर लगा कर अपना लंड बानू की गाण्ड के अन्दर ठेलने लगा।

चिकनाहट की वजह से लंड आराम-आराम से अन्दर जा रहा था।

बानू आगे को हो रही थी… ताकि लंड उसकी गाण्ड में ना घुसे…

मगर मैंने उसके मम्मों से उसको अपने लौड़े की तरफ खींचा और एक तगड़ा झटका दिया।

मेरा पूरा लंड अन्दर घुस गया… मैं उसके साथ पीछे से लिपट गया।

बानू की चीख निकल गई- भाईजानआअ… आआहह… बसस्स… बसस्स .. प्लीज़… रुक जाओ… मेरी गाण्ड फट रही है… प्लीज़ भाईजान…

मैं बानू को चुम्बन करने लगा… गर्दन पर… कमर पर… और एक हाथ से उसके मम्मे भी दबा रहा था और दूसरे हाथ को उसकी फुद्दी पर ले गया… और रगड़ने लगा।

अब मैं आराम-आराम से अन्दर-बाहर करने लगा।

‘बानू बस… अब तो सब खत्म हो गया…अब तो तू मज़े में झूला झूलेगी…’

थोड़ी देर के बाद… बानू अपनी गाण्ड की चुदाई का आनन्द लेने लगी…

मैं आराम-आराम से धक्के मार रहा था और बानू मेरे आगे अपनी गाण्ड को बड़े प्यार से घुमा रही थी।

‘उफफफ्फ़… जानू…आआहह…’

अब मैं छूटने लगा था… उसकी गाण्ड बहुत कसी हुई थी।

‘आहह…बानूउऊ…मेरी बहना… उफफफफफ्फ़… तेरी मस्त गाण्ड…आअहह…’

एकदम से मैं उसकी गाण्ड के अन्दर ही छूट गया और अपना लंड बाहर निकाल लिया।

बानू फ़ौरन वापिस घूमी और अपने घुटनों पर बैठ कर मेरा लण्ड चूसने लगी और माल की एक-एक बूँद साफ कर ली।

‘भाईजान… वाकयी…गाण्ड की चुदाई को तो बहुत मस्त है… मैं तो ऐसे ही डर रही थी…’

मैं अपनी 18 साल की सौतेली बहन के मासूम चेहरे को देख रहा था.. जो मेरा लण्ड किसी लॉलीपॉप की तरह चूस रही थी।

उफ़…कितनी मादक है मेरी बहन… मैं उसके मम्मे दबाने लगा।

वो खड़ी हुई और मुझसे लिपट गई… मेरा लण्ड उसके पेट के साथ छुआ तो…उसको दुबारा ठरक चढ़ गई।

मैंने उसको एक चुम्मी की- उम्म्माआहह… बानू अब तो खाना पका…मैं ज़रा शावर ले कर आता हूँ… बाकी काम खाने के बाद…

मैं बाथरूम में चला गया.. मैंने फुव्वारा खोला और अभी ठंडा पानी मेरे ऊपर गिरना शुरू ही हुआ था कि किसी ने मुझे पीछे से अपनी बाँहों में ले लिया…

मैंने देखा तो बानू भी वहाँ नंगी खड़ी थी… मेरी प्यारी चुदक्कड़ बहन… उस के छोटे-छोट अमरुद…उसकी तंग सी फुद्दी… कन्धों तक बाल…उफ़फ्फ़… कितनी कामुक लग रही थी वो…

‘भाईजान… खाना तो बाद में ही बना लूँगी… मगर आपके साथ नहाने का मौका रोज़-रोज़ नहीं मिलता…’

वो मुस्कराते हुए इतनी क्यूट लग रही थी… कि मेरा लंड दुबारा खड़ा होने लगा। मुझे आप अपने विचार यहाँ मेल करें।

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