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समय का पता ही नहीं चला और 6 बज़ गए मैं भाभी को चोद कर हटा ही था कि हमें घंटी की आवाज़ सुनाई दी।
वीर्य से सने लौड़े पर कच्छा चढ़ा कर मैं नीचे भागा। मैंने दरवाज़ा खोला तो मौसी थीं, मुझसे बोली- पड़ोस का रमेश आ रहा था, उसके साथ आ गई, चल तेरी दौड़ बची। यह सविता तो ऊपर पढ़ रही होगी, बड़ी कामचोर है, दिन भर पढ़ने का नाटक करती है।
मौसी ने आवाज़ देकर सविता भाभी को नीचे बुला लिया और पूछा- ये तेरी पढ़ाई कब पूरी होगी?
भाभी बोलीं- मम्मीजी, अगले संडे को एग्जाम लखनऊ में है, उसके बाद पढ़ाई ख़त्म।
मौसी बोलीं- अशोक तो पूना जा रहा है, तू लखनऊ कैसे जाएगी।
भाभी बोली- आप राजेश को मेरे साथ सैटरडे को लखनऊ भेज दो।
मौसी मुझे देखकर बोलीं- क्यों राजेश, जायेगा इसके साथ?
मैंने कहा- आप कहोगी तो चला जाऊँगा।
मौसी बोलीं- ठीक है, चला जा। तुम दोनों सोनम के यहाँ रुक जाना, आजकल अकेली है, रंजना तो तीर्थ यात्रा पर गई हुई है। सविता और सोनम की पटती भी अच्छी है।
मेरी और भाभी की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा।
भाभी बोलीं- हम सोनम के यहाँ रुक जाएगें और सोमवार को वापस आ जाएँगे।
शाम को मुझे अकेला देखकर मेरे लौड़े को सहलाते हुए भाभी बोलीं- अपने हीरो को तैयार रखना, एग्जाम तो मेरा है लेकिन पास तुम्हारे लौड़े को होना है। सच में मज़ा आ जाएगा जब रात को तुम्हारी रानी बनकर चुदूँगी।
भाभी की बेबाक बेशरम बातें सुनकर मैंने उनकी चूचियाँ दबाई। तभी दूर से आती हुई मौसी को देखकर तेजी से बाथरूम में मुठ मारने चला गया और मुठ मारते हुए मन ही मन उतेजना में बुदबुदाने लगा- सविता… कुतिया… यह लौड़ा अब फेल नहीं होगा, अब तो यह तेरी चूत का का छेद चोगुना करेगा।
दो दिन बाद शनिवार भी आ गया हम दोनों जाने को तैयार हो गए।
भाभी और मैंने शनिवार को चार बजे घर से निकलने का प्रोग्राम रखा, 4-5 घंटे में हम लखनऊ पहुँच जाते, बस से हम लोग जा रहे थे। भाभी साड़ी ब्लाउज में थीं, मैंने टी शर्ट और जीन्स पहनी हुई थी।
शनिवार को हम बस से चले, दिसम्बर का महीना था, रात ठण्डी थी, बस 5 बजे चली 9 बजे तक हम लखनऊ पहुँच जाते।
बस में पीछे वाली दो लोगों की सीट पर हम जाकर बैठ गए।
बैठते ही भाभी ने मेरा हाथ पकड़ लिया और धीरे से सहलाने लगीं। मैंने हाथ की कोहनी धीरे से ब्लाउज के ऊपर से उनकी चूचियों पर लगा दी और उनकी चूची कोहनी से धीरे धीरे दबाने लगा।
थोड़ी देर बाद उत्तेजना में भरकर मैंने अपना एक हाथ उनके ब्लाउज के ऊपर रखकर पूरा स्तन दबा दिया।
भाभी हाथ हटाकर फुसफुसाते हुए बोलीं- सात बजे जब पूरा अँधेरा हो जाए तब मज़े ले लेना, थोड़ा सब्र कर लो।
मैं संभल गया, भाभी और मैं बातें करने लगे। पौने सात बजे करीब बस एक ढाबे पर रुकी, भाभी बाथरूम चली गईं, मैंने दो चाय का आर्डर कर दिया।
भाभी मुस्कराते हुए चाय पीने के बाद मुझसे बोलीं- खुले पैसे मेरे पर्स से दे दो।
मैंने जब पर्स में से पैसे निकाले तो देखा उसमें उनकी ब्रा और पैंटी रखी हुई थी।
मेरी आँखें उनके ब्लाउज की तरफ चली गई।
भाभी मुस्करा उठीं और उन्होंने अपना पल्ला ब्लाउज पर इस तरह से कर लिया की चूचियों से चिपका ब्लाउज पूरा दिखने लगा।
इतने पास से देखने पर साफ़ पता चल रहा था ब्लाउज के अन्दर ब्रा नहीं है। बिना ब्रा के उभार पतले ब्लाउज से साफ़ दिख रहे थे और काली निप्पल की चोंच भी चमक रही थी।
मुझे घूरता देख भाभी होंट काटते हुए धीरे से बोलीं- अभी उतारी है तुम्हारे लिए… हॉर्न कैसे लग रहे हैं?
मैंने कहा- बजाने का मन कर रहा है।
हँसते हुए भाभी बोलीं- बस चले, तब बजा लेना। मैं भी तुम्हारा हैंडल पकड़ कर गियर बदलती रहूँगी।
तभी बस का हॉर्न बजा, हम लोग बस में आ गए।
बस जब ढाबे से से चली तब तक सात बज़ चुके थे और अँधेरा हो गया था।
बस में पीछे की बड़ी सीट खाली थी और सवारी आगे बैठी हुईं थीं हम सबसे पीछे थे।
भाभी ने मुझे दिखाते हुए अपने ब्लाउज के सारे बटन खोल लिए।
अपनी नंगी चूचियाँ दिखाते हुए बोलीं- चाय तो पी ली, अब दूध और पी लेना।
चूचियाँ ढकते हुए बोलीं- उह उह… ठण्ड लग रही है पहले बैग में से लोई (गरम चादर) उतार लो ना!
मैंने लोई बैग से निकाल लीं। बस में मुझे ऐसा लगा कि अधिकतर लोग हमें पति पत्नी समझ रहे थे।
इस बीच बस वाले ने अन्दर की लाइट बंद कर दी थी, पूरी बस में अँधेरा हो गया था। मेरा लौड़ा तन कर हथोड़ा हो रहा था।
लाइट बंद होते ही भाभी ने लोई ओढ़ ली और मुझे भी उढ़ा दी। हम दोनों अब एक लोई में थे। भाभी ने मेरा हाथ ब्लाउज के अन्दर घुसवा लिया और मेरे हाथ अपनी नंगी चूचियों पर रख दिए। उनके दोनों नग्न स्तन मेरे हाथों में थे, मैं उन्हें कस कस कर दबाने लगा, स्तनों की निप्पल पकड़ कर मैंने नुकीली कर दी थीं और बारी बारी से दोनों गुल्लों का जूस निकाल रहा था।
भाभी गर्म हो गईं थीं। उन्होंने मेरी जींस की चैन खोल कर मेरा लौड़ा अपने हाथ में ले लिया और सहलाने लगीं।
मुझसे रहा नहीं गया, मैंने चिपक कर उनके गाल चूम लिए। उन्होंने मुझे झटके से हटा दिया, वो थोड़ा घबरा गईं थीं, मेरे लौड़े से हाथ हटाते हुए धीरे से बोलीं- होश में रहो!
मैंने भी अपना हाथ खींच लिया। हमारे पीछे कोई नहीं बैठा था, बस में घुप्प अँधेरा था, थोड़ी देर हम शांत रहे। इसके बाद भाभी ने हाथ दुबारा खींच लिया और अपने पेट पर रख लिया, मुझसे रहा नहीं जा रहा था, मेरा लौड़ा उफान खा रहा था। मैं उनका नंगा पेट और नाभि सहलाने लगा बार बार उनकी नाभि में उंगली घुसा देता था।
भाभी भी गर्म हो रही थीं, उन्होंने दुबारा जींस में से मेरा लौड़ा बाहर निकाल लिया था और अँधेरे में उसके टोपे पर उँगलियाँ फिराने लगीं।
मैं अपना हाथ उनकी साड़ी की गाँठ के अन्दर घुसाने लगा। भाभी ने मेरा हाथ हटा कर अपनी साड़ी की गाँठ थोड़ी ढीली कर दी और मेरा हाथ नाभि पर रख दिया। नाभि के रास्ते से आराम से हाथ उनकी साड़ी के अन्दर घुस गया।
चिकना पेडू सहलाते हुए हाथ बार चूत प्रदेश में फिसल रहा था।
चूत पूरी चिकनी थी, मैं चूत में उंगली डालने की कोशिश कर रहा था पर सफल नहीं हो पा रहा था, बार बार चूत का मुँह सहला कर रह जा रहा था।
भाभी मेरा हाथ हटाते हुए बोलीं- दो मिनट रुको। उन्होंने झुककर अपनी साड़ी और पेटीकोट को ऊपर उठा लिया और लोई से मुझे और खुद को ठीक से ढक लिया। मेरा हाथ अपनी गर्म जाँघों पर रख दिया।
नंगी जांघे सहलाते ही मेरे लौड़े ने थोड़ा सा वीर्य छोड़ दिया।
उन्होंने दोनों जांघें एक दूसरे से चिपका रखी थीं, मुझे इस खेल में बड़ा आनन्द आ रहा था। मैंने दबाब बनाते हुए अपना हाथ दोनों जाँघों के बीच घुसा दिया।
भाभी ने थोड़ी सी अपनी टांगें चौड़ी कर ली, अब मेरा हाथ सरकते हुए उनकी चूत के द्वार पर पहुँच गया, उन्होंने एक हाथ से जोरों से मेरा लौड़ा सहलाते हुए दूसरे हाथ से मेरी उंगली चूत के दाने पर रख दी और कान में बोलीं- पहले थोड़ा इसे सहलाओ, बड़ा मन कर रहा है।
मैं उनकी चूत के दाने को सहलाने लगा, बीच बीच में उंगली उनकी चूत के अन्दर भी घुसा देता था, पूरी चूत रसीली हो रही थी।
मस्ती चरम सीमा पर थी, इसी बीच कोई स्टॉप था, लाइट खुल गई हम लोग हट गए।
इस स्टॉप पर काफी लोग उतर गए थे।
इसके बाद हमारे आगे वाली दो तरफ की सीटों पर बैठे लोग आगे सीटों पर चले गए।
अब हमारे चारों तरफ खाली था, लखनऊ आने में अभी एक घंटा था, लाइट दुबारा बंद हो गई।
हम लोग बगल में खाली पड़ी तीन लोगों की सीट पर आ गए।
भाभी ने मुझसे कहा- मेरी गोद में लेट लो, कोई नहीं देख रहा है।
मैं सीट पर पैर फेलाते हुए भाभी की गोद में लेट गया, लोई से उन्होंने मुझे ढक लिया और मेरा मुँह नीचे सरकते अपने स्तनों में लगा दिया।
मैं अब उनके दूध चूसने लगा और वो मेरा लौड़ा सहलाने लगीं। एक चूची चूसते हुए दूसरी दबाते हुए सेक्स के आनन्द में मज़ा आ गया।
कुछ देर बाद उन्होंने मुझे उठा दिया और बोलीं थोड़ी देर मुझे भी अपनी गोद में लेटा लो न।
अब हमने जगह बदल ली, भाभी मेरी गोद में लेट गईं और उन्होंने मेरा लौड़ा अपने मुँह में ले लिया।
मैं अपनी सिसकारियों पर रोक लगाए हुए था, यह चरम सीमा थी।
मैंने 3-4 बार उनकी चूचियाँ कस कर मसल दीं थी, इस बीच मेरा वीर्य उनके मुँह में छुट गया, भाभी ने पूरा वीर्य मुँह में लिया उसके 5 मिनट बाद हम दोनों अलग हो गए। हम दोनों ने अपने कपड़े ठीक करे।
दस मिनट बाद हमारा हमारा स्टॉप आ गया था।
स्टॉप पर उतर कर भाभी साड़ी का पल्लू हटाकर मुझसे बोलीं- देखो, ब्लाउज के सारे बटन टूट गए, सिर्फ एक बचा है।
मैंने देखा कि उनके ब्लाउज का सिर्फ नीचे का एक बटन बचा था, जिसे उन्होंने लगा लिया, स्तन ब्लाउज में कहने मात्र को बंद हो गए थे, उनकी नंगी गोलाइयाँ और काली निप्पल ब्लाउज से बाहर झांक रहा थी और स्तनों की सुन्दरता में चार चाँद लगा रही थी।
भाभी ने ब्लाउज को पल्लू से ढकते हुए कहा- अब ऑटो में चूचियों पर रहम कर देना।
भाभी और मैंने ऑटो कर लिया, ऑटो में भाभी ने मेरे मुँह पर पप्पियों की बारिश कर दी और बोलीं- रास्ते में बड़ा मज़ा आया।
पूरे रास्ते हम पति पत्नी की तरह बैठे और एक दूसरे को बाहों में भरकर स्टॉप आने तक लब-चुम्बन करते रहे।
कहानी जारी रहेगी। [email protected]
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