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प्रेषिका : रत्ना शर्मा सम्पादक : जूजाजी मैंने भी लंड की खुराक पाने की चाहत में अपने कपड़े खोल दिए। अब मैं अपने ससुर जी के सामने ब्रा और कच्छी में खड़ी थी। ससुर जी भी पूरे नंगे हो गए थे।
मेरे मुँह से निकल गया- बाप रे… बाप..!
‘क्या हुआ बहू.. इतना ज्यादा बड़ा है क्या मेरा लंड?’
‘आपका बहुत बड़ा है।’
‘क्या बहू?’
‘वो जो नीचे है।’
‘क्या.. इसका नाम लो बहू.. बोलो लंड.. बोलो..’
फिर मैं बोली- हाँ.. आपका लंड.. बहुत बड़ा है।’
ससुर जी मेरे नजदीक आकर बोले- तुमको अच्छा लगा?
‘मैं तो आपका यह बड़ा लंड देख कर उसी दिन से पागल थी।’
आज वही लौड़ा मेरी आँखों के सामने था तो मैंने बिना कुछ कहे उनका लौड़ा अपने हाथ में लेकर मसलने लगी।
अब मैं नीचे बैठ गई और उनके लौड़े को हाथ से आगे-पीछे करने लगी।
ससुर जी ने बोला- इसको मुँह में लो।
तो मैंने कहा- नहीं बाबू जी.. मुझे शर्म आती है, यह गंदा है।
‘बहू तुम भी प्यासी हो और मैं भी प्यासा हूँ। देखो ना.. गोपाल को कितने दिन हो गए और तुम तो अभी जवान हो, सेक्सी गर्म औरत हो।’
ससुर जी के मुँह से अपनी तारीफ सुन कर मैं पागल हुए जा रही थी, मेरी मुनिया ने भी पानी छोड़ दिया था।
‘कुछ भी गंदा नहीं है बहू.. तुम एक औरत हो और मैं एक मर्द हूँ… बस सब कुछ भूल जाओ ताकि दोनों को आनन्द आए और अब मुझे तुम बाबू जी नहीं, बालू बोलो।’
मैंने कहा- ठीक है बालू।
मैंने घुटनों पर बैठ कर हाथ में लेकर हिलाया और फिर मेरे ससुर जी का 11 इन्च का हलब्बी लंड को अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगी। मैं उनके लौड़े को आइस-क्रीम की तरह चचोरने लगी। पहले पहल तो कुछ नमकीन सा लगा फिर मुझे उसका स्वाद अच्छा लगने लगा।
ससुर जी के मुँह से ‘हाय रत्ना बहू.. अहहहाज आह..’ निकलने लगी।
मैं अपने मुँह में उस हलब्बी को चूसे जा रही थी और मेरी चूत भी रसीली हो चली थी।
बालू की सिसकारी सुन कर मेरी भी आहें निकलने लगीं- मूओआयाया ओआहौ… अमम्मुआहह आ ससुर जी अहह बालू, बहुत बड़ा है और टेस्टी लग रहा है.. मैंने पहली बार किसी का लंड अपने मुँह में लिया है।
‘क्यों रत्ना.. गोपाल ने अपना लंड तेरे मुँह में नहीं दिया क्या?’
‘बालू.. उनका बहुत छोटा था, तो बस।’ अब उन्होंने मेरी ब्रा और कच्छी को भी खोल कर मुझे भी खुद के जैसा नंगा कर दिया और ये सब कार्यक्रम ससुर जी के कमरे में चल रहा था।
फिर ससुर जी ने मुझे बिस्तर पर लिटा दिया और मेरी चूत को चाटने लग गए।
मैं पागल सी हो रही थी, दो बार तो ऐसे ही मेरा पानी निकल गया, फिर उन्होंने अपना 11 इन्च का लंड मेरी चूत में लगा दिया।
मुझे थोड़ा दर्द हुआ जबकि मैं दो बच्चों की माँ थी।
फिर भी मेरे मुँह से चीख निकल गई ‘उईईइइमाआ..’ यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं ! ‘क्या हुआ रत्ना.. दर्द हुआ क्या?
‘हाँ बालू.. थोड़ा आराम से करो।’
फिर उन्होंने धीरे-धीरे धक्के लगाने शुरू किए और धीरे-धीरे अपना पूरा लंड मेरी चूत में घुसेड़ दिया।
मैं चिल्लाए जा रही थी- बालू, नहीं पेल अब रुक जा.. बहुत दर्द हो रहा है..!
पर वो कसाई जैसे लगे रहे तनिक भी नहीं रुके और मेरी चुदाई करते रहे।
‘आह्ह उईईइमाआआआ बालू बस करो.. निकालो..!’
‘बस मेरी जान थोड़ा सा और.. बस रत्ना, मेरी जान… मैं बहुत तड़पा हूँ तेरे लिए, आज जाकर तू मेरे लंड के नीचे आई है, बहुत चुदासी है तू रानी और आज जब तू गरबा में नाच रही थी, तो बिल्कुल रंडी लग रही थी, आह्ह.. मैंने गोपाल के लिए नहीं अपने लिए तुझे पसन्द करके शादी कराई थी तेरी.. आह्ह..ले और ले..साली।’
मैं भी उनकी बातों से गर्म होकर उनके धक्कों का साथ देते हुए अपनी गाण्ड को ऊपर उठाए जा रही थी।
फिर ‘रत्ना.. आआहा..हहहह.. हहाह मैं आ.. आ गया.. अह..’ उन्होंने अपने मूसल का पानी मेरी चूत में छोड़ दिया सब माल मेरे गर्भ में चला गया।
फिर कुछ देर हम दोनों ऐसे ही नंगे ही उनके पलंग पर पड़े रहे।
थोड़ी देर में उन्होंने मुझे फिर से गोद में लेकर चोदा और पूरी रात मेरे ससुर जी ने 4 बार मेरी चुदाई की और सुबह मैं उठी तो मेरे ससुर जी पहले ही उठ गए थे।
मैं नंगी ही उनके कमरे में पड़ी थी।
फिर मैं उठ कर नंगी ही ऊपर अपने कमरे में आ गई। मैंने अपने कपड़े पहने और घर के काम में लग गई।
ससुर जी बोले- बहू तुम्हारी तबीयत तो ठीक है ना?
मैंने कहा- हाँ.. मैं बिल्कुल ठीक हूँ बाबू जी।
हम दोनों ज़ोर से हँसने लगे।
अब मेरी ज़िंदगी इस तरह ही कटने लगी थी।
यह रोज की बात हो गई। मैं नहाने के लिए गुसलखाने में जाती और ससुर जी अपने कमरे के छेद से मुझे नहाते हुए देखते, फिर बोलते- रत्ना बहू आज तुम गुसलखाने में क्या कर रही थीं और इस रंग की कच्छी-ब्रा पहने हो!
यह सब कुछ सुन कर मैं शर्म से लाल हो जाती। मैं क्या करती, मुझे भी उनकी ज़रूरत थी। फिर मेरे सासू जी तो एक महीने तक इस घर पर आने वाली नहीं थीं। मेरे ससुर जी अकेले ही घर में मेरे साथ खूब मस्ती करते और वे मेरा ख्याल भी बहुत रखते, जैसे मैं उनकी बहू नहीं पत्नी होऊँ।
वो मेरे पति से भी ज्यादा ख्याल रखते, मैं और ससुर जी खेत पर भी काम करने जाते, हम दोनों में सब कुछ अच्छा चल रहा था।
फिर एक दिन हम दोनों बाजार में सब्जी लेने गए। मैं गुलाबी साड़ी में थी और बहुत ही कटीली लग रही थी।
‘बहू.. आज बहुत ही मस्त लग रही हो.. कहीं ऐसा न हो कि बाजार में सब मूठ मारने लग जाएँ.. जरा संभल कर चलना मेरी रत्ना रानी!’
‘जी.. आप भी ना बाबू जी.. बहुत बदमाश हो गए हो.. बहुत मस्ती करते हो! चलो, अब हम लोग चलें।’
हम लोग बाजार के लिए चल दिए और बस में चढ़े।
बस में बहुत भीड़ थी, सब एक-दूसरे से सट कर खड़े थे। मेरे आगे मेरे ससुर और पीछे मेरे कोई दूसरा आदमी था, जो बहुत ही मोटा और काला था, मेरी गाण्ड पर ज़ोर लगाए जा रहा था।
जब भी बस के ब्रेक लगते, वो मेरे ऊपर चढ़ जाता और मैं ससुर जी के ऊपर हो जाती।
‘बहू मज़े लो अपनी ज़िंदगी के.. समझ लो बस में नहीं हो.. बिस्तर में हो।’
उस आदमी ने तो हद ही कर दी, मेरी साड़ी के बाहर से ही वो मेरी गाण्ड पर हाथ फेरने लग गया। वह हाथ फेरते-फेरते मेरी गांड में ऊँगली करने लगा।
मैंने भी कोई विरोध नहीं किया, तो उसने हिम्मत करके एक हाथ आगे लाकर मेरे एक बोबे पर धर दिया और उसको मसलने लगा।
मैं पागल हुई जा रही थी। बहुत भीड़ की वजह से किसी को कोई पता भी नहीं चल पा रहा था।
मेरे ससुर जी एक हाथ पीछे करके अपने एक हाथ से मेरी चूत को साड़ी के ऊपर से ही सहलाने लगे।
मुझे बहुत ही आनन्द आ रहा था मेरे आगे-पीछे दोनों तरफ से मेरे अंगों को मसला जा रहा था।
तभी बस रुकी और देखा कि सब्जी मंडी आ गई। हम उतरे और सब्जी ली और वापस घर आ गए।
रात को ससुर ने मुझे खूब चोदा।
कहानी जारी रहेगी। आपके विचार व्यक्त करने के लिए मुझे लिखें।
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