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प्रेषिका : रत्ना शर्मा सम्पादक : जूजाजी
उन्होंने मेरे मुँह और बोबों पर वीर्य छोड़ दिया। मुझे बहुत मज़ा आया।
फिर हम लोग घर पे वापस आ गए। फिर ऐसे कुछ दिन गुज़रते गए।
एक दिन मुझे और मेरे ससुर जी को चुदाई करते हुए सुरेश जी ने देख लिया, वे मेरे मोहल्ले में ही रहते हैं और मेरे पति गोपाल के दोस्त हैं।
एक दिन जब मैं अपने कमरे में ससुर जी के साथ चुदाई करवा रही थी तो नीचे दरवाजा खटखटाने की आवाज़ आई, तो ससुर जी ने बोला- बहू तुम जाकर देखो शायद पोस्टमैन होगा।
तो मैंने पसीने में लथपथ तो हो ही रही थी। पेटीकोट को ऐसे ही टांगों पर चढ़ाया और ब्लाउज भी ऐसे ही पहन कर चुन्नी को साड़ी की जगह लपेट कर नीचे चली गई।
मैंने दरवाजा खोला तो सामने मेरे पति के दोस्त सुरेश जी सोनी थे।
‘भाभीजी आप इतने पसीने में… कैसे कुछ काम कर रही थीं?’
‘नहीं.. वो कुछ नहीं बस कपड़े समेट रही थी… क्या हुआ?’
‘वो भाभी जी आपको खाना खाने शाम को हमारे घर पर आना है और भाभी जी आपके ससुर जी कहाँ हैं?’
‘वो ऊपर हैं, कुछ काम कर रहे हैं।’
‘अच्छा आप जाओ.. मैं दरवाजा बंद कर दूँगा।’
मैं तो भाग कर ऊपर आ गई। वो नीचे ही थे और चुपके से ऊपर आकर मैं ऊपर आते ही नंगी हो गई और बाबू जी के खड़े लंड पर जाकर बैठ गई।
‘ओह रत्ना बहू बहुत ही मस्त.. आ..हह तुम आज के बाद अब नंगे ही रहना घर में।’
हमारी चुदाई बदस्तूर मुकम्मल हुई।
पर इसी बीच सुरेश जी ने हमको चुदाई करते देख लिया था और वे बुदबुदाते हुए चले गए, ‘ओह्ह.. हे भगवान यह मैं क्या देख रहा हूँ? एक ससुर अपने ही बेटे की पत्नी यानी भाभी जी को चोद रहा है और भाभी जी भी मज़े लेकर उनके लंड पर उछल रही हैं… वाहह क्या सीन है.. मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा है..ये वही औरत है जो हमसे बोलने में भी हिचकती है.. घूँघट निकालती है और अपने ससुर जी से चुद रही है..’
फिर रात हुई मैं सुरेश जी के घर पर खाना खाने गई।
‘आइए भाभी जी आइए.. आपका ही इंतजार कर रहे थे।’
‘क्या सब लोग खाना ख़ाकर जा चुके है?’
‘हाँ.. आप आइए।’
‘वो घर पर कुछ अधिक काम था और बाबू जी भी अकेले थे तो उनको दूध देके फिर अब आई हूँ।’
‘अच्छा चलो मेरे कमरे में यहाँ बैठिए।”घर पर कोई दिख नहीं रहा, बीना किधर गई है?’ बीना सुरेश जी की पत्नी है।
‘रत्ना भाभी जी.. वो उसका कोई फोन आ गया था मेरे ससुराल से.. अभी तो वो कुछ देर पहले ही गई है।’
‘अच्छा सुरेश जी।’
मैं खाना खाने लगी। खाना बहुत ही अच्छा था, वो मेरे सामने ही बैठे मुझे भोजन कराते रहे।
‘अच्छा भाभीजी बताइए.. मैं कुछ लाता हूँ क्या लाऊँ?’
मैंने खाना खा लिया और जाने को हुई।
‘बैठो तो सही.. लीजिए भाभी जी सौंफ खाइए.. खाने के बाद अच्छा रहता है।’
मैंने सौंफ खाई।
‘कुछ देर बैठो ना.. मैं भी अकेला ही तो हूँ और आपको घर ही तो जाना है… चले जाना..।’
‘घर पर बाबू जी अकेले हैं।’
‘अरे आप कब-कब आती हैं। कुछ देर तो रूको।’
‘अच्छा ठीक है टीवी खोल दीजिए..’
उन्होंने टीवी चला दी, कोई मूवी आ रही थी। तभी उसमें गाना आया, हीरो हेरोइन चुम्मी करते बिल्कुल कम कपड़े में थे। मुझे शर्म आ रही थी।
‘सुरेश भाईसा चैनल बदलिए ना.. सीरियल आ रहा होगा।’
‘हाँ.. तुम औरतों का बस यही है.. सीरियल दिखा दो.. दिन भर कितनी अच्छी मूवी आती हैं।’
हम दोनों हँसने लगे।
‘भाभी जी आपसे एक बात पूछूँ?’
‘क्या?’
‘गोपाल मेरा दोस्त, आपका पति आपको प्यार नहीं करता क्या?’
‘क्यों नहीं.. वो तो मुझसे बहुत प्यार करते हैं। आप ऐसा क्यों पूछ रहे हैं?’
‘क्योंकि जब मैं आपके घर पर आया था, तो मैंने जो कुछ देखा उसको देख कर मुझे यही लगा, कि शायद गोपाल आपको प्यार नहीं करता है और जो कुछ मैंने देखा तो उसे देख कर तो मेरे पैरों तले ज़मीन निकल गई।’
‘क्या हुआ सुरेश जी…?’ मैंने डरते हुए पूछा।
‘वही जो एक मर्द और एक औरत अकेले में करते हैं। आप अपने ससुर जी से एक रंडी बनकर चुदवा रही थीं। बताओ क्या मैं झूठ बोल रहा हूँ रत्ना भाभीजी? बोलो?’
‘नहीं आप झूठ तो नहीं बोल रहे हो, वो मेरा कसूर नहीं है.. मैंने कुछ नहीं किया सुरेश जी.. मेरे ससुर जी बहुत ही बड़े चुदक्कड़ हैं।’
मेरे मुँह से ये सुन कर तो सुरेश जी बोले- वाह रत्ना भाभीजी.. जो सच है वो बताओ.. नहीं तो मैं गोपाल को फोन करके अभी बता दूँगा।
‘नहीं सुरेश जी.. प्लीज़.. आपको मेरी कसम प्लीज़.. आप जो बोलेंगे.. मैं करने को तैयार हूँ।’
‘अच्छा जो बोलूँगा वो करोगी.. फिर एक बार सोच लो रत्ना भाभी जी..!’
‘अच्छा बाबा.. हाँ.. सुरेश जी बस आप मेरे पति को कुछ नहीं कहोगे।’
‘अच्छा ठीक है भाभी जी.. तो जैसे तुम अपने ससुर जी रंडी की तरह से चुदवा रही थीं वैसे ही मैं भी आपको चोदना चाहता हूँ। मेरी दिल की बहुत दिन से बड़ी तमन्ना है।’
‘अच्छा ऐसा क्यों सुरेश जी.. मेरे से सुन्दर तो आपकी पत्नी है.. आप भी सुन्दर हो।’
‘लेकिन रत्ना रानी वो तुम्हारे जितनी सुंदर और सेक्सी नहीं है।’
‘अच्छा सुरेश जी मैं क्या इतनी सेक्सी हूँ?’
‘और नहीं तो क्या रत्ना… जब से तुमको आज ससुर जी से चुदवाते हुए देखा है, तब से ही तुम्हें रंडी बना कर चोदने का मन हो रहा है।’
मैं चुप थी।
‘अच्छा तो आ जाओ ना.. नहीं तो कोई आ जाएगा.. रत्ना ओह्ह रत्ना कितनी मस्त माल हो तुम.. काश तुम मेरी पत्नी होती, तो मैं भी चुदाई करता और मेरे सब दोस्तों से भी तुमको चुदवाता और हम दोनों खूब पैसे कमाते।’
‘बहुत अच्छा, चुदवाने से पैसे मिलते हैं क्या सुरेश?’
‘हाँ.. मेरी रंडी रत्ना ओह्ह कितनी सेक्सी आवाज़ है तेरी.. ले मेरा लंड मुँह में ले…. मेरा बाबू जी जितना मोटा तो नहीं है, पर बहुत लंबा है।’
सुरेश ने अपनी पैन्ट खोल कर अपना लंड हवा में लहरा दिया।
‘ओह्ह गॉड.. सुरेश जी इतना लंबा.. आपका तो बहुत बड़ा है।’
‘हाँ.. मेरी रंडी रत्ना.. तेरे लिए ही लंबा हुआ है ये मेरी जान.. मुँह में ले रंडी।’
सुरेश ने मेरे बाल पकड़ कर मुझे अपनी ओर खींचा।
‘तू रहने दे.. बाल क्यों खींच रहे हो.. लेती हूँ ना…’
मैंने सुरेश का लंड अपने मुँह में ले लिया।
‘अह अहह आपका लंड तो बहुत ही टेस्टी है।’
‘सुरेश मेरी जान मैं तो इस लंड से रोज ही चुदवाऊँगी।’
‘अहह हाँ.. रंडी रोज चोदूँगा तेरे ससुर और पति गोपाल के सामने भी ऐसे ही चोदूँगा..’
‘आह मेरे बोबे में भी रगड़ो न अपना लंड..’
‘आह अहोमूओआहह रत्ना रंडी कितने मुलायम मम्मे हैं तेरे.. तुझे पता है तू जब बाजार जाती है तो ब्रा पहने हुए भी तेरे बोबे तेरे चूतड़ों की तरह बहुत हिलते हैं इस गाँव के सब लौंडे तुझे चोदना चाहते हैं।’
‘सुरेश जी अहह चाटना छोड़ो.. अब प्लीज़ मुझे छोड़ो.. मैं इतनी भी कामुक नहीं हूँ।’
‘आह ओह्ह आहहमूओुआ हय रत्ना हय मेरी रंडी.. ओह्ह ले आ.. मेरी कुतिया..।’
मैं झट से कुतिया बन गई और सुरेश ने अपना लंड मेरी बुर में पेल दिया।
‘अहहुईमाआ.. सुरेश अहह निकालो प्लीज़.. अह..’
‘रत्ना रंडी.. मेरी जान तूने अपने ससुर का लंड बहुत बार लिया है.. रंडी बता और किस-किस का लंड अपनी चूत में खाया है। रत्ना मादरचोदी बहुत सती सावित्री बनती है तू घूँघट निकालती है रण्डी.. साली सब मोहल्ले की गाँव की औरतें तुझे सीधी समझती हैं और तू रंडी साली एक बहुत ही चुदासी औरत है। तू और तेरी चूत आह.. ओह्ह..ले..’
कहानी जारी रहेगी। आपके विचार व्यक्त करने के लिए मुझे लिखें।
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