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हैलो दोस्तो, मैं अपनी कहानी लेकर फिर से हाजिर हूँ। माफ़ करना पिछली कहानी लिखे हुए मुझे बहुत समय हो गया।
आप सभी को मेरी पुरानी दोनों कहानियों बचपन की सहेली और बचपन की सहेली ने दिलवाई बहुत पसंद आईं, तभी आप सभी के मेल मुझे मिले, उसके लिए बहुत शुक्रिया। मैं आशा करता हूँ कि आपको यह कहानी भी अच्छी लगेगी और आपकी मेल आती रहेंगी।
मैं लव कुमार, आयु 25 साल, एक सामान्य सा दिखने वाला लड़का हूँ। जैसा कि पिछली कहानी में बताया था कि सीमा से मिलने से पहले मैं नौकरी ढूँढ रहा था। अब मुझे नौकरी मिल चुकी है और इसे करते हुए 6 माह हो चुके हैं। मेरा ऑफिस घर से थोड़ा दूर है तो मैं अपनी बाइक से ही जाता हूँ।
बात दो माह पहले की है, मैं रोज सुबह और शाम को एक ही रास्ते से आता-जाता था, रास्ते में आते हुए बहुत से बाजार और दफ्तर आदि आते थे, शाम को आते हुए बहुत लड़कियाँ भी दिखती थीं जो ऑफिस से निकल रही होती थीं।
मैंने बहुत बार सोचा कि रुक कर किसी पर लाइन मारी जाए, क्या पता कोई फँस जाए। लेकिन मुझे घर जाने की जल्दी रहती थी सो कभी रुका नहीं लेकिन रास्ते में आते हुए देखता रहता था।
उसी में मुझे एक महिला रोज दिखाई देती थी जो देखने में बहुत अच्छी थी। मैं रोज देखता था कि वो ऑटो से जाती थी। ऐसा नहीं कि सिर्फ मेरी उसके प्रति कोई इच्छा थी, पर सब खुद होता चला गया।
तो हुआ यह कि मैं हर रोज अपनी बाइक से आता-जाता था लेकिन एक दिन मेरी बाइक खराब हो गई, जिसके कारण मुझे सुबह तो मेरे दोस्त ने ऑफिस तक छोड़ दिया लेकिन शाम को आते हुए मुझे ऑटो करना पड़ा क्योंकि रास्ता लम्बा था और मैं आराम से जाना चाहता था। तो मैंने पूरा ऑटो तय किया ताकि वो किसी और को ना ले।
मैं ऑटो में बैठा और चल पड़ा।
थोड़ी देर बाद ऑटो वहाँ से निकल रहा था जहाँ वो महिला खड़ी होती थी। मैंने देखा तो वो आज भी किसी साधन का इन्तजार कर रही है। तभी मैंने ऑटो वाले को बोला कि उस महिला को बिठा लेना वो मेरी जान-पहचान की है।
उसने वही किया, आंटी ने जैसे ही ऑटो को हाथ दिया, वो जाकर उनके पास रुका तो आंटी ने ऑटो वाले से जाने का पूछा।
उसने कहा- हाँ.. चलेगा।
फिर वो आंटी अन्दर आने लगी, तो मैंने उनकी ओर देख कर एक मुस्कान पास की, लेकिन उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया।
फिर ऑटो चलता रहा, मैं आंटी को आँख चुरा कर देख लेता था। आंटी ने नीला सूट पहना था जो उन पर बहुत अच्छा लग रहा था।
हालांकि अभी तक मेरे मन में उनके लिए कोई गलत विचार नहीं आया था। पूरे रास्ते मेरी हिम्मत नहीं हुई कि मैं आंटी से कोई बात कर पाऊँ। बस सोचते-सोचते मेरी मंजिल आ गई।
शायद आंटी को और आगे जाना था, मगर मैं उतरा और ऑटो वाले को पूरे पैसे दिए और वहाँ से चल पड़ा।
फिर अगले दिन मुझे ऑटो से ही जाना था। शाम को वापिस आते हुए मैंने फिर पूरा ऑटो तय किया, पर इस बार ऑटो वाले को पहले ही बोल दिया कि रास्ते में मेरी आंटी होगीं उनको बिठाना लेना।
वो तैयार हो गया, हम चल पड़े। फिर ऑटो वहाँ पहुँचा जहाँ आंटी खड़ी होती थीं। मैंने देखा आज भी आंटी वहीं थीं।
मैंने ऑटो वाले को बोला, वो आंटी के पास जाकर रुका, तब आंटी ऑटो वाले से पूछने वाली ही थीं, पर उन्होंने मुझे देखा और अन्दर आकर बैठ गईं और आज उन्होंने मेरी ओर देख कर मुस्कुराहट बिखेर दी और मैंने भी वैसे ही किया।
उसके बाद ऑटो वहाँ से चल पड़ा।
रास्ते मे आंटी ने मुझ से बात करनी शुरू की और पूछा- आप कहीं जॉब करते हो? तो मैंने कहा- हाँ जी। फिर मैंने पूछा- आप वही जॉब करती हो ना.. जहाँ से रोज ऑटो पकड़ती हो? उन्होंने कहा- हाँ..
आंटी ने कहा- कल तुमने ऑटो के सारे पैसे क्यों दे दिए थे? मैंने कहा- कल मैंने पूरा आटो लिया था इसीलिए।
आंटी- फिर ऑटो वाले ने मुझे बैठने के लिए ऑटो क्यों रोका? मैं- क्योंकि मैंने ही उसे कहा था। आंटी- पर क्यों?
मैं- देखो आंटी जी.. मैं दो माह से आपको रोज देखता हूँ कि आप यहाँ से ऑटो लेती हो। तो उनको हैरानी हुई, उन्होंने कहा- क्यों ऐसा क्यों? तो मैंने कहा- रोज यहाँ से आता-जाता हूँ बस तभी बाक़ी कुछ नहीं।
आंटी ने कहा- चलो कोई बात नहीं, पर आज ऑटो के पैसे में दूँगी ताकि तुम्हारा उधार उतर जाए। मैंने उन्हें मना किया, मगर वो नहीं मानी।
मुझे उनकी जिद को मानना पड़ा जैसे ही मेरा स्टॉप आने वाला था उससे थोड़ा पहले ही उन्होंने पूछा- तुमने अपना नाम तो बताया नहीं? तो मैंने कहा- मेरा नाम लव है… लव कुमार।
वो हँस पड़ी और कहा- बहुत स्वीट नाम है। तो मैंने उनका नाम पूछा तो उन्होंने बताया- मेरा नाम मेघा है। मैंने भी कहा- आपका नाम भी बहुत अच्छा है।
इतने में मुझे जहाँ उतरना था वो जगह आ गई और मैं उतरा और उनको ‘बाय’ कह कर वहाँ से चल पड़ा।
अब बारी अगले दिन की थी।
पिछले दिनों की तरह ऑटो लिया और काम पर गया और वापिस आते हुए ऑटो किया, लेकिन आज वापिस आते हुए आंटी वहाँ नहीं थीं। फिर थोड़ी देर मैंने वहाँ इन्तजार किया फिर चल पड़ा लेकिन सोचता रहा कि शायद आज नहीं आई होंगी।
अगले दिन रविवार था, मैंने अपनी बाइक ठीक करवा ली और सोमवार को अपनी बाइक पर ही गया।
शाम को वापिस आते हुए देखा कि आंटी वहीं ख़ड़ी थीं। मैं उनके पास जा खड़ा हो गया लेकिन हेलमेट के कारण वो मुझे पहचान नहीं पाईं तो मैंने हेलमेट उतारा और उनको ‘हैलो’ किया, वो मेरे पास आ गईं।
बोली- क्या बात है लव.. आज तो तुम बाइक से हो।
तो मैंने कहा- यह खराब थी.. इसीलिए मुझे ऑटो से आना-जाना पड़ता था, लेकिन अब यह सही हो गई है तो अब बाइक पर ही आऊँगा।
तो उन्होंने कहा- चलो मतलब.. अब मुझे तो अकेले ही जाना होगा ऑटो से। तो मैंने कहा- आप भी मेरी बाइक से चलो.. इसीलिए तो आया हूँ। उन्होंने कहा- नहीं.. मैं चली जाऊँगी।
पर मैं नहीं माना फिर भी वो मना करती रहीं, पर थोड़ा और जोर देने पर वो मेरे साथ चल पड़ीं। वो थोड़ा दूर हो कर ही बैठी थीं, पर बाइक से ब्रेक पर वो थोड़ा-थोड़ा आगे खिसक आती थीं जिससे उनका जिस्म मुझसे छूने लगा था। मगर अभी तक भी मेरे दिमाग में उनके लिए कोई गलत भाव नहीं था।
हम चलते रहे हल्की-फुल्की बातें करते रहे। फिर मैंने उनको वहाँ तक छोड़ा जहाँ वो ऑटो से उतरती थीं।
जाते हुए उन्होंने कहा- लव तुम मेरी आदत मत बिगाड़ देना, वरना रोज तुमको परेशान करुँगी और तुमको रोज ही मुझे लाना और ले जाना पड़ेगा।
तो मैंने कहा- कोई बात नहीं ले जाया करूँगा। फिर वो हँस पड़ीं और बोलीं- मैं मजाक कर रही हूँ। फिर हम अपने-अपने घर की ओर चल दिए।
अगले दिन फिर वो ही किया, उनको अपने साथ बाइक पर लाया और ये शुक्रवार तक चलता रहा, पर शनिवार को वो फिर से नहीं मिलीं।
मैंने थोड़ी देर इन्तजार किया मगर वो नहीं आईं तो मैं वहाँ से अपने घर आ गया।
अगले दिन रविवार था, तो दोपहर के समय मैं बाज़ार चला गया। वहाँ घूम रहा था तो मुझे वहाँ मेघा आंटी दिखाई दीं।
मैंने देखा कि वो अकेली थीं तो मैं उनके पास चला गया तो उन्होंने मुझे देखा।
आंटी बोलीं- तुम यहाँ क्या कर रहे हो? मैंने कहा- रविवार होने के कारण घर में बोर हो रहा था तो सोचा बाज़ार घूम लूँ। आंटी ने कहा- चलो अच्छा किया।
फिर मैंने उनको कहा- अगर आपको ज़ल्दी नहीं हो तो कॉफ़ी पीते हैं। तो वो हँस दीं और कहा- किसी लड़की को ले जाओ कॉफ़ी के लिए.. आंटी के साथ जाओगे। तो मैंने कहा- जरूरी नहीं कि लड़की के साथ ही जाऊँ, जो अच्छा लगता हो उसके साथ भी तो जा सकते हैं।
तो आंटी चुप हो गईं और हम कॉफ़ी शॉप पर चल दिए। वहाँ बात करते हुए मैंने उनसे पूछा- क्या आप कल ऑफिस नहीं गई थीं? तो उन्होंने कहा- गई तो थी, लेकिन शनिवार को हाफ-डे होता है, तो जल्दी आ गई थी। मैंने कहा- आपने मुझे क्यों नहीं बताया मैं वहाँ आपका इन्तजार कर रहा था।
उन्होंने कहा- मुझे शुक्रवार को याद नहीं रहा और शनिवार को याद आया और मैंने तुमको बताना चाहा मगर मेरे पास तुम्हारा नम्बर नहीं था।
मैंने- चलो कोई बात नहीं.. अब मेरा नम्बर ले लो और कभी भी जरूरत हो तो आप मुझे फ़ोन कर लेना। फिर हमने एक-दूसरे का नम्बर ले लिया। घर जाते ही आंटी का फ़ोन आ गया कि घर पहुँच गए? तो मैंने कहा- हाँ…जी।
फिर हमारी रोज़ फ़ोन पर भी बात होने लगी थी।
मुझे उन्होंने बताया कि उनके पति किसी कंपनी में बहुत अच्छी पोस्ट पर हैं और वो अकेली होने के कारण ही जॉब करती हैं।
बुधवार को आंटी का कॉल आया- मौसम बारिश का है.. क्या तुम मुझे घर आकर ले जा सकते हो? मैं तुमको वहीं मिलूँगी जहाँ तुम मुझे छोड़ते हो।’
मैंने ‘हाँ’ कर दी और तैयार हो कर मेघा आंटी के घर की ओऱ चल दिया लेकिन थोड़ी दूर जाने पर ही बारिश तेजी से होने लगी, मुझे कोई जगह नहीं मिली जहाँ मैं रुक कर बारिश से बच पाऊँ, इसलिए मैं चलता रहा।
वहाँ पहुँच कर देखा कि जहाँ आंटी उतरती हैं वहाँ वे भी खड़ी-खड़ी भीग चुकी थीं। मैं आंटी के पास पहुँचा तो आज उनको देख कर मेरे मन में कुछ हुआ।
आज आंटी बहुत सेक्सी लग रही थीं, उन्होंने सफेद रंग का सूट पहना था जो भीगने के कारण आंटी के शरीर से चिपका हुआ था। आज मैं 33 साल की महिला को अपनी गन्दी नजरों से देख रहा था। उनका 34 साइज़ का सीना मेरे सामने चमक रहा था। उनकी ब्रा सफेद सूट में से नजर आ रही थी और उनका पेट तो बहुत ज्यादा कामुकता बिखेर रहा था। कहानी जारी रहेगी। आपके विचारों को मुझे अवश्य मेल करें। [email protected]
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