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बात उन दिनों की है जब मैं स्कूल में पढ़ता था। उस वक्त मैं शारीरिक रूप ठीक था, कहने का मतलब औसत कद-काठी का था, जैसा कि लड़कों के साथ होता है।
मेरा भी लण्ड किसी चूत के लिए तरसने लगा। मेरी क्लास में एक लड़की थी, जिसका नाम कविता था। वो क्लास में सबसे सुंदर लड़की थी, वो जब भी चलती थी तो उसके मम्मे उसकी शर्ट से बाहर आने के लिए बेताब हो जाते थे। उसका रंग एकदम गोरा, मतलब दूध की तरह साफ था।
मेरा मन करता था कि इन्हें अभी दबा दूँ।
उसके होंठ गुलाब की पंखुड़ियों की तरह थे जिनमें हरदम रस भरा रहता था, जैसे किसी के इंतज़ार में बैठे हों।
हम तो बस उसकी चूत का अंदाज़ा लगाकर ही खुश हो जाते और पानी निकाल देते थे। मेरी जब भी उससे आँख मिलती तो वो अपने होंठों का रस पी लेती थी और मुझे लगता जैसे मानो उसने मुझे अपनी बाँहों में ले लिया हो।
एक बार मैं क्लास में जल्दी पहुँच गया और वो भी थोड़ी देर में अपनी सहेलियों के साथ आ गई, पर अभी तक कोई लड़का वहाँ नहीं आया था सो मैं दूसरे कमरे में चला गया।
हमारा स्कूल दो मंज़िला था तो उसकी सहेलियाँ किसी कारणवश पहली मंज़िल पर चली गईं, वो वहाँ अकेली रह गई।
मुझे नहीं पता पर ऐसा लगा कि जैसे वो अभी इस कमरे में आएगी और ठीक ऐसा ही हुआ।
वो थोड़ी देर में उस कमरे में आई तो मेरा लण्ड सलामी देने लगा और इसको उसने अन्दर आते ही देख लिया, पर वो शांत थी और मैं भी सामान्य होने की कोशिश करने लगा।
वो हँसने लगी और बोली- क्या हुआ?
मैंने कहा- कुछ नहीं थोड़ी प्यास लगी है इसलिए पानी पीने जा रहा हैं।
वो बोली- इतनी जल्दी प्यास अभी तो घर से आए हो।
अब मैं उसे कैसे बताता कि जब तेरे जैसी शहद लगी हुई लड़की खड़ी हो तो किसे प्यास नहीं लगेगी।
मैंने हिम्मत करके उससे बोल दिया- तुम इतना परेशान क्यों होती हो.. जो बोलना है बोल दो।
मैं कहने को तो कह दिया पर मेरा दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा कि पता नहीं क्या कहेगी।
‘तेरा लंड चाहिए मुझे.. देगा क्या? मुझे इसकी प्यास लगी है।’
मैं तो यह सुनकर दंग रह गया कि यह लड़की इतना सब बोल लेती है। मेरी हिम्मत बढ़ गई और मैंने झट से उसे अपनी बाँहों में ले लिया और ज़ोर से अपने सीने से लगा लिया और उसके होंठों का रस पीने लगा।
उसके होंठों का स्वाद मानो शहद को भी मात दे रहा था। मैंने जैसे ही उसके चूचों को छुआ, तभी बाहर किसी के आने की आवाज़ सुनाई दी, तो हम अलग हो गए।
वो बोली- बाद में कभी करेंगे तुम कन्डोम लेकर आना।
उस दिन क्लास में हम दोनों का ध्यान एक-दूसरे पर ही था।
अंतिम पीरियड में उसने मुझे जाते-जाते एक पत्र दिया जिसमें लिखा था कि वो मेरे घर मेरी दीदी से कुछ पूछने के बहाने से आएगी फिर हम कहीं दूसरी जगह जाकर मज़े करेंगे, पर साथ में यह भी लिखा था कि उसकी दोस्त यानि मेरी दीदी की सहेली को भी वो साथ में लाएगी क्योंकि उसे भी चुदना है।
मैं बहुत खुश था कि कहाँ एक भी चूत के दर्शन नहीं होते थे.. कल एक नहीं दो-दो चूतों के दर्शन होंगे। सबसे आख़िर में हम दोनों निकले।
मैंने उसकी गाण्ड को दबाते हुए धीरे से कहा- तू तो चालू आइटम है मेरा पूरा फायदा उठाएगी।
खैर.. मैंने भी हामी भर दी और बड़ी बेसब्री से अगले दिन का इंतज़ार करने लगा, क्योंकि यह रविवार का दिन था तो सब घर पर ही थे। वो अपनी सहेली के साथ घर पर आई, मेरी दीदी से मिली और फिर जाने लगी, तो मैंने उसे एक पत्र पकड़ा दिया। उसमें लिखा था कि रास्ते में जो एक घनी झाड़ी है वहाँ पर मिलेंगे।
मैं वहाँ वक्त से पहले पहुँच गया और उसका इंतज़ार करने लगा।
कविता की दोस्त अंजलि के बारे में बताना चाहूँगा कि वो भी एक कामुक जिस्म की मलिका है उसके मम्मे औसत हैं, पर वास्तव में मैं तो उसकी चूत का अंदाज़ा लगाने भर से ही लण्ड का पानी निकाल देता था।
जब वो दोनों वहाँ पहुँची तो मैंने उन्हें धीरे से आवाज़ लगाई और झाड़ी के पीछे बुला लिया।
यह जगह चारों तरफ से झाड़ियों ओर पेड़ों से घिरी हुई थी। वहाँ कोई नहीं आता जाता था, वो आते ही मुझसे चिपक गई।
मैं भी उसके होंठों का रस मदहोशी से चूसने लगा, यह जाने बिना ही कि उसकी सहेली भी उसके साथ है।
जब अंजलि हँसने लगी तो हमें होश आया। हम दोनों अलग हुए और वो भी पास आ गई।
मैंने उससे पूछा- तुम्हें भी चुदना है क्या?
बोली- इसीलिए तो आई हूँ।
पहले तो मैंने उसके होंठों को अपने होंठों से लगाया फिर एक पेड़ के सहारे टिका कर उसका रसपान करने लगा।
इसी बीच कविता का हाथ मेरे बदन पर चलने लगा। उसने मेरे लण्ड को पैन्ट के ऊपर से ही सहलाना शुरू कर दिया और इधर मैं अंजलि के होंठों को काट रहा था।
उसके हाथ मेरे सीने पर चल रहे थे।
मैंने पहले तो अंजलि के चूचों का अंदाज़ा लिया वो एकदम मस्त होकर बाहर निकलने को बेताब थे।
मैंने भी देर ना करते हुए उसकी शर्ट को उतार दिया और कविता को उसकी जीन्स उतारने के लिए कहा।
कविता अंजलि को चोदने में मेरी मदद कर रही थी। उसने मेरे भी कपड़े भी उतारे और मैंने उसके सारे कपड़े उतार दिए।
कविता को नंगी देखकर मुझसे रहा नहीं गया और मैंने झट से उसके उरोजों को मुँह में ले लिया और मसलने लगा।
इसी बीच अंजलि ने मेरे लण्ड को अपने मुँह में ले लिया इससे मेरे शरीर में एक सनसनी और मीठी सी लहर दौड़ गई क्योंकि यह मेरे लिए पहली बार था जब किसी लड़की ने मेरे लंड को चूसा हो।
आज दोनों को चोदने का मौका था इससे बड़ी मेरे लिए क्या लॉटरी हो सकती थी। तो मैंने देर ना करते हुए पहले कविता को घास पर लिटाया ओर उसकी चूत को चाटने लगा और वो अंजलि की चूत चाटने लगी।
जैसे ही मैंने उसकी चूत पर जीभ रखी, वो बेकाबू हो गई… जैसे उसे एक तेज करेंट सा लगा हो। उसकी चूत बाल रहित थी शायद आज ही साफ़ की हुई थी, सो उसके चूत का छेद साफ दिख रहा था।
वो एक कुँवारी लड़की थी, उसके चूत के दोनों पट पास-पास चिपके हुए थे। जब मैंने उसकी चूत में जीभ घुसाई तो वो दर्द से तड़पने लगी।
मैंने अंजलि से कहा- इसके मम्मे दबाती रहो, जिससे उसका दर्द कम होता रहे।
मम्मों को मसलने से उससे मज़ा भी आने लगा क्योंकि दोनों की चूत गीली हो गई थीं तो दोनों को मैंने चाट कर साफ किया।
फिर जीभ को और अन्दर किया और पूरे ज़ोर से उसकी चूत को चाटने लगा।
वो भी ज़ोर-ज़ोर से ‘आहें’ भर रही थी और अंजलि की चूत को चाटने में लगी थी।
दोनों के मुँह से ‘ऊह..आहह..’ निकलने से वातावरण में एक अलग ही मादकता छा गई और मुझसे अब और नहीं रहा गया, तो मैंने कविता को पैन्ट की जेब से कन्डोम निकालने को कहा और तब तक अंजलि को ज़मीन पर लिटा कर 69 की अवस्था में लाकर उसकी चूत चाटने लगा।
मैंने इतनी ज़ोर से चूत को चाटा कि अंजलि ने एक जबरदस्त अकड़न के साथ चूत का पानी छोड़ दिया।
मैंने उसे चाट कर साफ किया और अपना लण्ड उसके मुँह में पूरा गले तक उतार दिया।
मेरे ज़ोर लगाने से उसका चेहरा लाल हो गया।
वो बोली- आप तो बड़े वो हो।
मैंने कहा- क्या ‘वो’ हैं?
वो अश्लील भाव से बोली- महा-चुदक्कड़ हो।
‘वो तो मैं हैं, जब ऐसा माल सामने हो तो किसे चोदने का मन नहीं करेगा।’
खैर जब तक कविता ने कन्डोम को जेब से निकाल लिया और अब मेरे लंड पर लगाने लगी, तो मैंने उसे रोका ओर बोला- रूको जान.. अभी तो तुम्हें मेरा लंड चूसना है।
उसने पहले तो मना किया पर मैं और अंजलि कहाँ मानने वाले थे।
अंजलि ने उसके हाथ पकड़े और मैंने उसके बालों को पकड़ा और 7 इंच लंबा लंड उसके गले तक उतार दिया। वो तड़पने लगी, तो मैंने उसे छोड़ दिया, अब उसे भी शायद लंड का स्वाद अच्छा लगा, तो वो खुद ही चूसने लगी।
अंजलि मेरे पीछे खड़ी मुझे लिपटी हुई थी और कविता नीचे बैठ कर मेरा लंड चूस रही थी। यह सीन देखने के लिए तो मैं कब से तरस गया था। कविता ऐसे चूस रही थी, जैसे मेरा अभी पानी निकाल देगी। मैंने भी खुद पर काबू रखा और पानी निकालने से पहले ही लंड बाहर निकाल लिया।
मैंने कविता को घास पर लिटाया, अंजलि ने लंड पर कन्डोम लगाया और मैं चोदने की स्थिति में हो कर कविता की दोनों टाँगों के बीच बैठ गया।
मैंने धीरे से उसकी चूत में ऊँगली डाली तो अहसास हुआ कि यह तो भट्टी से भी ज़्यादा गर्म है।
ऊँगली डालने से उसकी चीख निकल गई, पर अंजलि ने उसका मुँह अपने मुँह से बंद कर दिया।
धीरे-धीरे मैंने ऊँगली से लंड के जाने का रास्ता बनाया, अब कविता की आवाज़ घुटने लगी तो मैंने उसे बिना ज्यादा तड़फाए चूत चोदने का प्रोग्राम बना डाला। उसकी चूत अब पानी छोड़ने लगी थी।
फिर मैं कविता पर पूरा झुक गया, अब मेरा लंड उसकी चूत के मुहाने पर था और अंजलि हम दोनों की मदद कर रही थी। उसने मेरे लंड को चूत पे टिका दिया, मैंने भी कविता को पूरा कस कर जकड़ लिया और उसके होंठों का रस पीने लगा। क्योंकि मुझे पता था कि पहली बार में इसे बहुत दर्द होगा। मैंने इसे बताया नहीं था वरना ये मुझसे चुदती ही नहीं।
अब मैंने धीरे-धीरे लंड का चूत पर दबाव बढ़ने लगा। पहले तो वो लण्ड का स्पर्श पाकर ‘आहें’ भरने लगी, पर जैसे ही लण्ड के सुपारे ने चूत पर दस्तक दी वो दर्द से चिल्ला उठी।
मैंने उसके मुँह को अपने मुँह से लगा लिया और आवाज़ दूर तक नहीं गई। मैंने थोड़ा इन्तजार किया और जब उसे आराम आने लगा तो फिर से एक ज़ोर का धक्का लगाया।
अबकी बार उसकी चूत की गर्मी का अहसास मेरे सख्त लण्ड को हुआ। वो एकदम कुँवारी थी। मेरा लंड छिल गया, पर मुझ पर तो चुदाई का भूत सवार था, तो मैंने एक शॉट और मारा और कविता मेरे हाथों और मुँह के पिंजड़े में तड़पने लगी।
अंजलि बोली- यही मौका है, तोड़ दो रंडी की सील…
मैं भी और दुगने जोश में आ गया और एक आख़िर शॉट में पूरा लंड बाहर निकाल कर चूत में ठेल दिया।
इस बार उसकी चूत ने खून की धार छोड़ दी, अंजलि यह देखकर पहले तो घबराई पर मैंने उसे समझाया- पहली बार ऐसा होता है। तो वो सामान्य हुई।
कविता दर्द के मारे तड़प रही थी मैंने कई देर तक बिना हिलेडुले उसके होंठों का रसपान किया और उसे भी समझाया- पहली बार दर्द होता है चिंता मत करो। उसके बाद तो मज़े ही मज़े हैं।
फिर धीरे-धीरे लंड आगे-पीछे करने लगा। अब उसे भी होश आने लगा और वो भी साथ देने लगी। अब मैं सीधा हो गया और उसकी चूत को ज़बरदस्ती अलग-अलग आसनों में चोदने लगा।
उधर अंजलि ये सब देखकर अपनी चूत के दाने को रगड़ रही थी और आहें भर रही थी।
मैंने लण्ड बाहर निकाला और धीरे से कविता को बिना बताए कन्डोम उतार दिया और अब उसके दोनों पैरों को अपने कंधे पर रखकर ज़ोर-ज़ोर से उसकी चूत का मंथन करने लगा क्योंकि चूत गीली हो चुकी थी तो ‘फ़च-फ़च’ की आवाज़ आ रही थी।
फिर मैंने उसे पेड़ के सहारे घोड़ी बनाया और पीछे से लण्ड उसकी चूत में उतार दिया।
उसकी ‘आहें’ मुझे ओर तेज चोदने को विवश करने लगीं।
मैंने उसके पूरे बदन को निचोड़ लिया था, तो उससे भी संयम नहीं हुआ और वो कहने लगी कि अब उसका होने वाला है।
मैंने अंजलि को इशारा किया और उसकी चूत का रस पीने को कहा।
मैंने कविता का मुँह अपनी तरफ किया और गले से लगा लिया और लंड को चूत में उतार कर रगड़ने लगा।
उससे संयम नहीं हुआ और वो मेरी बाँहों में ही टूट गई और उसने मुझे कस कर जकड़ लिया। उसकी चूत ने बहुत ज्यादा पानी छोड़ा था, तो वो मेरे लंड और उसकी चूत पर लगा हुआ था। मेरे लंड का चूत के पानी से आज मिलन हो गया था।
अंजलि ने बड़े चाव से इसे चाट कर साफ किया और कविता की चूत भी साफ कर दी। अब कविता की चूत के दोनों पट अलग-अलग लग रहे थे और वो सही से चल भी नहीं पा रही थी। मैंने उसे आराम करने को कहा और अंजलि को चोदने की तैयारी करने लगा।
अंजलि भी कुँवारी थी, पर उसे चुदाई के बारे में ज्यादा मालूम था क्योंकि वो ऊँगली करती रहती थी। मैंने पहले तो उसके होंठों का रसपान किया फिर उरोजों को चचोरा और फिर चूत चाटने लगा। एक ऊँगली डालने से वो बिदक उठी, क्योंकि पहली बार किसी मर्द की ऊँगली उसकी चूत का रास्ता खोज रही थी।
मैंने भी ऊँगली करना जारी रखा, जब तक की वो मना ना करे। वो ज़ोर-ज़ोर से ‘आहें’ भरने लगी।
हालांकि वहाँ दूर-दूर तक कोई नहीं था, फिर भी मैंने कविता को रास्ते की तरफ ध्यान रखने को कहा।
मैं चाहता था कि एक बार इस कुँवारी लड़की को इसकी चिल्लाने की आवाजों के साथ चोदूँ।
कविता ने भी मेरा साथ दिया, वो रास्ते पर नज़र लगाए बैठी थी और मैं अपने औजार के साथ अंजलि की सील तोड़ने के लिए तैयार था।
मैंने उसके पैरों को अपने कंधे पर रखा और लण्ड का निशाना चूत के छेद पर कर लिया। उसकी चूत पानी छोड़ रही थी।
वो कह रही थी- आराम से डालना.. मेरा पहली बार है।’
मैंने भी उसे भरोसा दिलाया और लण्ड का सुपारा उसकी चूत में एक ही झटके में उतार दिया। उसकी चीख की आवाज़ गूँज गई, जो मुझे अच्छी लग रही थी।
वो लंड निकालने को कहने लगी, पर मैंने समझाया तो मान गई और थोड़ा सामान्य होने के बाद मैंने धीरे से लंड को और अन्दर किया, तो वो रोने लगी।
अब मैंने भी आव देखा ना ताव और लण्ड को पूरा ही उसकी चूत में उतार दिया। इस बार रोने की बारी अंजलि की थी और वो ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी।
मैंने भी उसे चुप नहीं कराया और आराम से धीरे-धीरे आगे-पीछे करके चोदने लगा।
यह सब वातावरण में एक अलग ही नशा घोल रहा था।
कविता ने भी चुटकी लेते हुए कहा- चोद दे इसे.. रंडी बना डाल.. लौड़े की बहुत भूखी थी.. साली छिनाल..
मेरा भी जोश दुगना हो गया और मैं उसे हचक कर ज़ोर-ज़ोर से चोदने लगा। अब तक अंजलि सामान्य हो चुकी थी। वो भी मेरा साथ देने लगी और इस बार अलग-अलग स्थितिओं में चुदने की बारी अंजलि की थी, तो मैंने भी इस वक्त की चुदाई में कामसूत्र के सारे आसान उस पर आज़मा डाले। वो कई बार पानी छोड़ चुकी थी। कविता ने उसकी चूत चाटी और आख़िर अब मेरा भी निकलने वाला था, तो मैंने कविता को अपने नजदीक बुलाया और दोनों से लण्ड को बारी-बारी चुसवाया।
अब मैं चरम अवस्था पर था और दोनों को अपना पानी पिलाना चाहता था तो मैंने कविता को फिर से अपनी बाँहों में लिया और उसकी चूत में लण्ड उतार दिया।
थोड़ी देर में मेरा लण्ड पिचकारी छोड़ने को तैयार था। कविता चाहती थी कि मैं अपने वीर्य से उसकी चूत भर दूँ, मैंने भी वैसे ही किया और एक शानदार अहसास के साथ सारा का सारा पानी उसकी चूत में निकाल दिया। इस वक्त मैंने कविता को ज़ोर से अपने आगोश में जकड़ रखा था। जैसे ही लण्ड उसकी चूत से बाहर आया तो अंजलि उसे चाटने लगी क्योंकि उस पर वीर्य लगा था और कविता की चूत भी वीर्य से गीली थी तो वो भी वो चाट गई।
इस चुदाई के लिए दोनों ही मेरा धन्यवाद करने लगी, मैंने भी उन्हें गले से लगा लिया और कहा अगली बार मिलेंगे तो चूत और गाण्ड दोनों का मज़ा लूँगा, वो दोनों हँसने लगी।
थोड़ी देर तक हम ऐसे ही बातें करते रहे और सबने थोड़ी देर वहीं आराम किया। अब तक वे दोनों अच्छे से चलने के लिए तैयार भी हो चुकी थीं।
कविता ने जाते-जाते मुझसे कहा- अगली बार हो सके तो एक नई चूत चोदने को मिल सकती है।
मैंने पूछा तो उसने बताया- उसकी छोटी बहन की चूत में भी आग लगी है क्योंकि मैंने छिपकर कई बार उसे ऊँगली करते हुए देखा है। मैं उसे किसी बहाने बुला कर लाऊँगी.. तुम बस अपने लण्ड की मालिश करते रहना।’
मैं भी मुस्कुरा दिया और फिर सब अपने-अपने रास्ते चल दिए।
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