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मैं थोड़ा अंजान बन कर अनिल से बोली- देखो जब तुमने कल मेरे साथ जो किया उसके बाद मुझे बहुत सारा खून निकला और मैं इसीलिए डर रही हूँ।
तो उस पर अनिल बोला- मेरी पूजा डार्लिंग.. वो तो पहली बार था इसलिए.. और अब ऐसा कुछ नहीं अब तो सिर्फ़ मज़े करो और क्या।
तो मैंने कहा- क्या सच्ची?
तो उसने हाथ आगे बढ़ा कर ‘प्रोमिस’ किया।
‘अब अगर तुम्हें दर्द हुआ तो तुम जो चाहो वो सज़ा दे सकती हो।’
करीब एक घंटे की अनिल की मिन्नतों के बाद मैंने ‘हाँ’ कहा।
अब अनिल खुश था कि मैंने उसकी बात मान ली और मैं भी खुश थी कि चलो अनिल कह रहा है तो उसके पास कुछ तो ज्ञान होगा ही वरना वो ऐसा थोड़े ही कहता और मैंने यह सोच कर भी ‘हाँ’ बोला क्योंकि अनिल ने एक घंटे में गीता को पटा लिया तो बंदे में कुछ दम तो होगा ही।
अनिल चला गया, मैंने घड़ी में देखा तो अब 12 बज चुके थे पर मुझे अभी भी नींद नहीं आ रही थी, बस मन में अजीब-अजीब से ख्याल आ रहे थे कि कल मेरा क्या होगा? अनिल मेरे साथ क्या-क्या करेगा?
पर अन्दर से मैं थोड़ी खुश भी थी क्योंकि बाथरूम में भले ही अनिल ने मेरे साथ थोड़ी ज़बरदस्ती की थी, लेकिन मुझे अजीब सा आनन्द भी तो मिला था ना।
बस इसीलिए मेरे मन में अजीब से लड्डू भी फूट रहे थे। यही सब सोचते हुए मुझे नींद आ गई और मैं सो गई।
सुबह जब मैं उठी अपना नित्य-कर्म किया और नहा धो कर सीधे 9:30 बजे गीता के घर पर पहुँची। गीता मुझे देखकर एकदम से खुश हो गई और बोली- आख़िरकार मैडम मान ही गईं.. क्या बात है।
तो मैंने भी सिर हिला कर ‘हाँ’ बोला, परमुझे अब तक ना तो अनिल ने और ना ही गीता ने कोई पक्का समय दिया था कि मिलना कितने बजे है।
मैंने गीता से पूछा- जाना कब है? तो वो फिर से जोरों से हँसने लगी। ‘क्यों बहुत जल्दी है तुझे चुदवाने की?’ तो मैंने कहा- देख तू मुझे वक्त बताती है कि मैं जाऊँ?
तो वो बोली- रुक मेरी अम्मा.. अनिल ने मुझे बोला था दस बजे पास वाले जनरल स्टोर पर आकर मुझे वक्त और पता दोनों देगा।
उसकी बात सुनकर मैं बैठ गई क्योंकि अभी तो सिर्फ़ 9.45 ही हुए थे। मैं अभी यही सोच रही थी कि इस निगोड़ी ‘चुल्ल’ सबके लिए क्या-क्या करना पड़ रहा है।
दस बजे और गीता उठी तो साथ में मैं भी उठी पर उसने मुझे मना कर दिया, पर मैं उसकी कहाँ सुनने वाली थी, मैं भी उसके साथ चल दी।
हम दोनों स्टोर पर पहुँचे तो अनिल वहीं खड़ा था। मैं थोड़ा दूर खड़ी रही और गीता कुछ खरीदने के लिए दुकान में अन्दर गई। तभी अनिल ने जेब में से एक पर्ची निकाल कर गीता को पकड़ा दी और चला गया।
गीता और मैं वापस आने लगे, पर रास्ते में ही गीता वो पर्ची पढ़ने लगी तो उस पर मैंने भी गीता पट से तंज कस दिया- अय हाय गीता रानी.. मुझसे ज़्यादा तो तुझे जल्दी लग रही है।
तो गीता बोली- नहीं यार, मैं तो ऐसे ही पढ़ रही थी।
अब मुझे लगा कि चलो उसे बता ही दूँ कि कल मैंने सब कुछ होते हुए देख लिया था।
पर फिर मुझे लगा कि अभी नहीं.. बाद में कहूँगी। सो मैंने कुछ नहीं कहा और हम गीता के घर पहुँच गए।
घर पहुँचते ही सोचा कि एक कार्यक्रम के लिए कुछ तैयार-शैयार भी होना चाहिए। तो मैंने गीता के कमरे में जाकर थोड़ा तैयार हो गई। तब तक 11 बज चुके थे तो मैंने गीता को आवाज़ लगाई। पता नहीं.. कहाँ चली गई थी। तभी वो बाहर से आई।
आह्ह..क्या मस्त लग रही थी।
वह बहुत ही खूबसूरत लग रही थी क्योंकि वो मेरे मुक़ाबले कुछ खास ही तैयार हुई थी।
मैं समझ गई कि मैडम आज भी भोग लगाने वाली हैं।
ठीक 11.10 पर हम घर से निकले, रिक्शा किया और हम दोनों गेस्ट-हाउस पहुँच गए। मैंने गीता से कमरा नम्बर पूछा। तो गीता बोली- तू बस देखती जा।
हम अन्दर गए, दूसरी मंज़िल पर 201 नम्बर का कमरा था। गीता ने दरवाजे की घन्टी बजाई।
अनिल ने दरवाजा खोला, खोलते ही अनिल चहका- वाह.. यार तुम दोनों क्या लग रही हो… वेलकम.. वेलकम.. गर्ल्स! हम दोनों अन्दर चली गईं और अनिल ने दरवाजा बंद कर दिया।
अनिल बोला- पहले कुछ पेट पूजा हो जाए। तो हमने भी ‘हाँ’ कहा, क्योंकि वक्त भी खाने का हो चला था।
अनिल ने प्लान भी कुछ ऐसा ही कर रखा था। कुछ पंजाबी और चाइनीज़ के साथ और हमने खाना खाया और खाने के बाद अनिल गीता का हाथ पकड़ कर उठाया और दोनों बाथरूम में चले गए और करीब 5 मिनट बाद अनिल अकेला बाहर निकला।
तो मैंने पूछा- गीता? तो अनिल ने आँख दबाते हुए मुझसे से बोला- उसे वहीं बाथरूम में छोड़ दिया, उसे कुछ दिक्कत है। ‘ठीक है।’
अब असली मेरी कहानी शुरू हो रही है। अनिल ने आते ही मुझे कस कर पकड़ लिया, मेरे होंठ पर अपने होंठ रख दिए, पर मैं क्या करती, मुझे तो कुछ भी मालूम नहीं था।
मुझे तो अनिल ही सब कुछ सिखाएगा बस मैं यह ठान कर आई थी।
अब वो मेरे होंठों को जोरों से चूसने लगा, मुझे थोड़ा दर्द हो रहा था लेकिन मैं अपने सारे देवता मना रही थी कि इसके आगे सब कुछ ठीक हो बस।
अब उसने मेरे दोनों दूध पकड़ लिए और कपड़ों के ऊपर से ही ज़ोर-ज़ोर से मसलने लगा। पर शायद उसे मज़ा नहीं आ रहा था तो उसने मेरी पीठ पर धीरे-धीरे हाथ फेरते-फेरते मेरे कुरते की ज़िप खोल दी।
मुझे थोड़ी शर्म आने लगी तो मैंने अपने दोनों हाथ अपने मुँह पर लगा लिए। मैं शर्म से पानी-पानी हो रही थी, पर तभी अनिल ने मेरे दोनों कंधों से मेरा कुर्ता कमर तक उतार दिया।
फिर क्या था.. अब तो ऊपर सिर्फ़ ब्रा ही बची थी। वो सिर्फ़ मादक नजरों से मेरा जिस्म देख रहा था और बोल रहा था- क्या माल हो यार..!
मैं तो बस उसके सामने बुत बनकर खड़ी थी।
अब उसने धीरे से मेरी ब्रा भी निकाल दी और मेरे दोनों मम्मों को बारी-बारी चूसने लगा।
मुझे पूरे शरीर में अजीब सी गुदगुदी हो रही थी और वो लगातार चूसे जा रहा था।
अब उसने अपना एक हाथ मेरी चड्डी तक पहुँचा दिया और धीरे-धीरे चड्डी के ऊपर से ही हाथ फेरने लगा।
मैं तो पागल सी हो गई कि यह क्या हो रहा है, पर तभी उसने मेरे सारे कपड़े उतार दिए और मुझे अपनी गोद में उठा लिया और बिस्तर पर ले गया।
मुझे बिस्तर पर लिटा कर उसने मेरे दोनों पैरों को फैला कर मुझे थोड़ा आगे घसीटा और मेरी योनि के आगे सर रखकर बैठ गया।
उसने मेरी योनि में ऊपर से नीचे अपनी जीभ फेरना आरम्भ कर दी। मैं तो पागल हो चुकी थी।
अरे यार… यह क्या हो रहा है और मेरी भी कमर ठीक उसी तरह उठी जा रही थी जैसे कल गीता की कमर उठी जा रही थी।
मुझे बहुत ज़्यादा गुदगुदी हो रही थी पर तभी अनिल उठा और अपनी पैंट उतारी और अपना हथियार बाहर निकाला और मेरे मुँह के सामने रख कर मेरे सामने देखने लगा।
अब मैं सोच रही थी अब क्या करूँ, पर मुझे कुछ सूझ नहीं रहा था कि मुँह में लूँ या ना लूँ।
पर तभी मुझे लगा कि चलो एक बार ट्राई करते हैं.. अच्छा लगा तो ठीक है वरना मना कर दूँगी।
मैंने उसका हथियार हाथ में पकड़ा, पर यह क्या… मेरे हाथ कांप रहे थे।
थोड़ा डर लगता है यार और मैंने धीरे से मुँह में डाला.. पर ये क्या मुझे तो उल्टी आने लगी और मैंने बाहर निकाल कर उल्टी करने लगी।
तो अनिल बोला- मज़ा नहीं आया?
तो मैंने कहा- नहीं।
‘चलो कोई बात नहीं।’
अब वो मेरी दोनों टाँगों के बीच बैठ गया और एक कातिल नज़र से मेरी योनि को देखे जा रहा था.. जैसे खा जाएगा।
अब वो मेरे ऊपर आ गया और मुझे कान में कहा- देखो शुरूआत में थोड़ा दर्द होगा पर बाद में मज़ा भी दूँगा।
यह कह कर वह अपना लिंग मेरे योनि मुख पर रखकर थोड़ा-थोड़ा अन्दर घुसेड़ने की कोशिश करने लगा और दो-तीन धक्कों में आधा लिंग अन्दर चला गया।
मेरी तो साँसें रुकी हुई थीं क्योंकि अभी तक तो दर्द ही हो रहा था।
अब वो अपना पूरा का पूरा हथियार अन्दर ठोक चुका था, वो लंड को आगे-पीछे करने लगा और कुछ ही धक्कों के बाद मुझे थोड़ा दर्द कम हो रहा था और मज़ा भी आने लगा था।
करीब दस मिनट की धकापेल ही हुई होगी कि गीता बाहर आ गई और बोली- हय.. मैं मर जावां.. क्या बात है.. पूजा कैसा चल रहा है।
वो बिस्तर के पास आकर अपने कपड़े उतारने लगी और मैं तो बस सब कुछ सिर्फ देख रही थी कि अब क्या होगा।
तो गीता बोली- अब बस भी करो पूजा.. अब मेरा नम्बर भी लगना है।
वो अश्लील हँसी हँसने लगी और अब अनिल जोरों से धक्के लगाने लगा था।
करीब 15-20 मिनट की पूरी धकापेल के बाद साँस रुक गई शरीर जैसे थम गया और बहुत जोरों से मेरा शरीर अकड़ गया। इसी के साथ मैं स्खलित हो गई और पसीने से लथपथ हो गई, पर अनिल तो अभी भी लगा हुआ था।
मुझे लगने लगा कि वो मुझे छोड़ेगा नहीं.. पर तभी वो भी पसीने-पसीने हो चुका था और अब उसने अपना लिंग मेरी योनि से बाहर खींचा और मेरे पेट के ऊपर उसने अपना सारा माल निकाल दिया।
मुझे फिर से गंदा महसूस हो रहा था, तो मैं उठ कर बाथरूम में चली गई। मैं हाथ-मुँह धोकर बाहर आई तो गीता तो काम में लग चुकी थी वो अनिल का लिंग हाथ में पकड़ कर उसे जगाने की कोशिश कर रही थी।
मैं वहीं बैठ गई और उन दोनों को देखने लगी।
उन दोनों ने मेरे ऊपर कोई ध्यान नहीं दिया और कुछ ही देर में बाद अनिल का लिंग कड़क हो गया और दोनों ने जम कर चुदाई की और फिर मैं भी उनकी इस चुदाई में शामिल हो गई।
हम तीनों ने करीब 4 घंटों में 3 बार चुदाई की और वास्तव में मुझे बहुत मज़ा आया।
दोस्तो, मेरी यह शुरुआत हुई थी और इसके बाद तो मेरी बहुत कहानियाँ बनती गईं !
आपका प्यार मिलने के बाद मैं एक-एक करके सब लिखूँगी।
तो बताइए कैसी लगी मेरी कहानी?
मेरी कहानी पढ़कर आपको जो भी लगा हो प्लीज़ मुझे ज़रूर बताना। [email protected]
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