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कुमार आलोक हमारे सभी पाठकों का धन्यवाद कि उन्होंने मेरी छोटी सी कहानी को इतना पसन्द किया कि 7 सितम्बर को मेल चैक करने के पश्चात मुझे 90 पत्र मिले, जिनका मैंने छोटे में लेकिन उन सभी पाठकों को धन्यवाद पत्र लिखा।
इसके साथ ही अन्तर्वासना का भी शुक्रगुज़ार हूँ जिसने मेरी कहानी की गलतियों को ठीक करते हुए उसको प्रकाशित किया।
आज आपके सामने मैं अपनी दूसरी कहानी पेश कर रहा हूँ और उम्मीद करता हूँ कि गलती को माफ़ करते हुए मुझे आपका प्यार ज़रूर मिलेगा।
उत्तर प्रदेश में जून का महीना सबसे प्रचंड होता है जिसकी तेज़ गर्मी से सभी परेशान होते हैं और सारे काम तकरीबन रुके हुए होते हैं, लेकिन एक काम होता है जो गर्मी में तेज़ गति से किया जाता है वह है मकान बनवाने का काम।
हमारे एक मित्र हैं जिन्होंने मुझसे ईमेल से सम्बन्ध बनाया और अपना कष्ट बताया कि वह मस्कट में रहते हैं और उनकी पत्नी जिनका नाम श्री है वे इलाहाबाद में हैं, उनको साल में एक माह की छुट्टी मिल पाती है जिसमें भी वह परिवार की दूसरी ज़रूरतों को पूरा करने में निकल जाता है और उनका अपनी पत्नी के साथ समय नहीं मिल पाता है।
वह तो मस्कट में अपनी शारीरिक भूख की पूर्ति हेतु दूसरी महिलाओं के साथ सम्बन्ध बना लेते हैं लेकिन उनकी पत्नी बेबस है, अगर मैं उनको अपनी सेवा दूँ तो उनको तसल्ली होगी।
मैंने उनसे पूछा- क्या आपकी पत्नी इसके लिए राज़ी हैं।
उन्होंने कहा- वह पिछले 3 माह से उनसे इस पर बात कर रहे हैं और वह अब तैयार है।
मैंने पूछा- तो आप मुझे क्या अपेक्षा करते हैं… मैं क्या करूँ?
उन्होंने कहा- जिस ढंग से उनकी पत्नी चाहे, आप उसको अपनी सेवा दे दो।
मैंने कहा- ठीक है आप अपनी पत्नी को बोल दें कि मुझे पत्र लिख कर मुझसे जुड़ें और याहू मैसेंजर पर भी जुड़ जाएं और जब आप भी हों तो साथ में आपकी पत्नी भी याहू मैसेंजर पर मुझसे बात करें।
इस पर उत्कर्ष तैयार हो गया और मुझे बोला- शुक्रवार को शाम को बात होगी और समय तय हो गया। ठीक 7 बजे हम लोग ऑनलाइन आ गए और बात होने लगी। उत्कर्ष ने श्री से मेरे बारे में बोला।
मैंने कहा- आप एक बार कैमरा पर मुझे देखो.. अगर आपको ठीक लगे तो बताना.. मैं आ जाऊँगा और फिर आगे का तय किया जाएगा।
वह इस पर तैयार हो गई।
उसने मुझसे बोला- आप बुधवार की शाम को आ जाना, वह अपना नया मकान बनवा रही है और वहीं पर एक हिस्सा तैयार है जो कि वातानुकूलित है, वहीं पर हम मिलेंगे तो कोई दिक्कत नहीं होगी।
मैं समय से वहाँ पहुँच गया और उनसे सामने से मिला। उस वक़्त वह मजदूरों से सामान लगवा रही थी।
उन्होंने मुझे देखा तो बोलीं- आप जरा इंतज़ार करो।
फिर 15 मिनट बाद खाली होकर आईं और मुझसे मुस्कुरा कर बोलीं- चलें।
मैंने सहमति दी और वे मुझे अपने कमरे में ले आईं और अन्दर से कमरा बंद कर लिया। नया कमरा था, अच्छा बड़ा कमरा था, सब बढ़िया था।
मैंने पूछा- आपने तो इसको पूरा घर की तरह सैट किया है।
इस पर वो बोली- पूरा दिन यहीं लगता है तो इसको ठीक से रखना होता है।
उसने नहाया और मुझसे भी बोला- आप भी नहा लो, फिर आगे बात करते हैं।
मुझे क्या था, मैं गया.. नहाया और बरमूडा पहन कर बाहर आ गया।
श्री बोली- आप मुझे पहले तो मालिश दे दो.. फिर आगे देखते हैं।
जमीन पर कालीन बिछा था, तो मैंने उनको उसी पर लिटा दिया और पीठ की मालिश दी और पैर की मालिश करवाने के बाद वह पलटी और बोली- अब जरा अन्दर की दे दो।
मैं समझा कि वक्ष की मालिश की दरकार होगी। मैंने जैसे ही हाथ लगाया, वो जोर से बोली- अरे नहीं… यहाँ नहीं नीचे..।
तब मैं समझा, फिर मैं सीधे उनके छेद की मालिश पर आ गया। उसका दाना पहले से ही फूला हुआ था और जैसे ही मैंने उसको छुआ वह गनगना गई और उसने तुरंत से अपने पैर पूरे खोल दिए जिससे मैं उसकी बुर को और आराम से खोल सकूँ।
उसके इस तरह खोल देने से मुझे उसकी बुर के अन्दर आराम से तेल डाल कर ऊँगली अन्दर डाल दी और सीधे उसके भगनासे को जा छुआ।
मेरे इस कृत्य ने उसको बिलकुल गीला कर दिया और वह अपना पानी गिरा बैठी। जिसकी वजह से तेल और उसके पानी के मिलने से हल्की सफेदी लिए गाढ़ा पानी बुर से निकलने लगा।
उसको निकल जाने के बाद मैंने सूती कपड़े से पोंछ कर उसकी बुर की मालिश करने लगा। उसकी बुर की खाल को उसने खुद ही पकड़ लिया और खींच कर खोल दिया।
यह मेरे लिए आसान हो गया कि और मैं उसकी पंखुड़ी की मालिश सही ढंग से करने लगा। उसके अन्दर की दीवाल की मालिश करने से उसका सारा बदन मस्त हो गया जिसके कारण वह अपनी पंखुड़ी को छोड़ कर अपने दाने को रगड़ने लगी। उसका बदन रह-रह कर ऐंठता जा रहा था।
अब मैं भी ऊँगली को उसके भगनासे के अन्दर दबाने लगा। जिससे उसका मन अन्दर से ही पागल हो उठा और मेरा हाथ पकड़ कर ही जोर-जोर से बुर के अन्दर-बाहर करवाने लगी।
मैं बोला- अरे थोड़ा रुको तो।
बोली- अभी तुम रुको.. मैं नहीं रुक सकती। आज इतने साल बाद गर्मी निकल रही है… निकल जाने दो।
फिर उसने अपना पानी झड़ जाने दिया मेरी ऊँगली उसकी बुर में नहा गई। अब वह थक कर चूर हो गई थी।
बोली- अब थोड़ा रुक जाओ।
मैं हाथ हटा कर अलग हो गया, वह अपने बिस्तर पर जा कर नंगी ही लेट गई और मुझसे बोली- तुम भी फ्रेश हो लो, फिर मैं बुलाती हूँ।
मैं दूसरे कमरे में चला गया और वहाँ टीवी खोल कर देखने लगा। एक घंटे बाद उसने मुझे बुलाया। जब मैं वहाँ गया तो देखा, उसने कमरे में कुछ सामान रखा था।
उसने बोला- अब तुमको जैसे बन पड़े.. इन सामानों का इस्तेमाल करो।
मैं श्री से बोला- आप क्या चाहती हो.. बताओ?
उसने कहा- एक कप में खाने वाली क्रीम है… दूसरे में चॉकलेट है, मैं चाहती हूँ तुम इसको मेरी बुर में भर कर उसको पी जाओ।
मैं बोला- ठीक है… लेट जाओ।
उसके नीचे लिटा कर, उसकी बुर में क्रीम भर दी और फिर मैं चाटने लगा। जब क्रीम कम हुई तो उसने दुबारा भर दी।
उसका मन मचल रहा था और उसमें वह अपना पानी भी झाड़ रही थी जिससे क्रीम का स्वाद अलग हो रहा था।
जब कुछ क्रीम अन्दर रह गई तो श्री ने अपने हाथ से ही बुर की पंखुड़ी को खींच कर खोल दिया और मैंने जीभ अन्दर तक घुसा कर क्रीम चाट ली।
वह पागल हो गई थी, मुझे अपनी छाती से लगा कर चूमने लगी, बोलने लगी- कितनी प्यास है… आज मुझे ठंडा कर दो..
वो बार-बार यही कह रही थी, फिर वह लेट गई, मैं उसकी बुर को फिर चाटने लगा।
मैंने उसकी बुर को चाट-चाट कर साफ़ कर दिया था। उसका मन खिल चुका था।
एक बार और बोली- क्या एक बार फिर चूत चाट दोगे?
मैं बोला- श्री तुम जो कहो.. मैं वह करूँगा।
तो बोली- अब बुर में चॉकलेट भर दो और चाट दो।
उसने खुद ही अपनी बुर को भरा और लेट गई।
मैं उसकी बुर फिर से चाट गया इस बार उसकी बुर का पानी ज्यादा गिरा और इससे स्वाद भी अलग हो गया।
अभी थोड़ी सी देर ही चूत को चाटा था कि श्री बोली- अब रुका नहीं जा रहा है। जल्दी से अपना लंड डाल कर अपना गरम पानी बुर को दे दो।
अब मैंने जल्दी से अपना लंड उसकी बुर पर रखा मेरा लौड़ा तुरंत अन्दर सटक गया। उसकी बुर पूरी तरह गीली और पानी से भर गई थी।
अभी उसको 3-4 झटके ही दिए थे साथ ही उसका भगनासा भी मेरे लंड से टकरा रहा था। वह इतने में ही उत्तेजित हो गई और ऐंठते हुए पानी गिराने लगी।
बोली- आलोक जल्दी आओ..
मैं जल्दी-जल्दी उसको चोदने लगा और उसकी बुर मेरे वीर्य से भर कर पानी और वीर्य दोनों बुर से बाहर गिरने लगा।
श्री को यह बहुत अच्छा लग रहा था, वह निढाल होकर चित्त हो गई।
मैं भी थक गया था सो वहीं ढेर हो गया।
सुबह कब हुई, पता ही नहीं चला.. देखा तो सूरज की रोशनी.. हमारे ऊपर गिर रही थी।
मैं उठा तो देखा श्री नहा कर तैयार हो कर खड़ी थी।
मुझे जगा कर बोली- आलोक मुझे तुमसे जो मिला.. उसको मैं भूल नहीं सकती। अब काम वाले आने वाले हैं तुम तैयार हो जाओ।
मैंने जल्दी से नहाया और कपड़े पहन कर निकल आया और अपने रास्ते चला गया। उसके पति ने मेरे खाते में पैसे एडवांस में डाल दिए थे।
लेकिन श्री ने मुझे दो हज़ार अलग से दिए और बोली- जैसा मन होगा तो फिर बताऊँगी।
मैं अपने घर आ गया।
आप सब को मेरी कहानी कैसी लगी अवश्य बताएं, मेरा ईमेल है। [email protected]
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