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हैलो दोस्तो, मैं अक्षद 25 साल का हूँ, मेरा कद 5.6 फिट है।
मैं एक कंपनी में जॉब करता हूँ, इसलिए घर से दूर अकेला रहता हूँ। ऑफिस से घर, घर से ऑफिस बस यही साधारण सी ज़िंदगी जीता था, कभी किसी लड़की को घूर के देखना, लाइन मारना, फ्लर्ट करना, यह चीजें मैंने कभी सोची भी नहीं थी।
यह घटना घटे हुए अभी सिर्फ 6 महीने हुए हैं, पहले पहल तो एक घटना ही थी, पर पता ही नहीं चला कि कैसे हमारी दिनचर्या में बदल गई।
मैं एक किराए के कमरे में रहता हूँ, ऊपर छत पर मेरा बाथरूम था। चूंकि यह कमरे से अलग है यानि जरूरत होने पर कमरे से बाहर आना पड़ता है।
नीचे मेरे मकान-मालकिन रहते हैं, मेरा जो कमरा है उसके बाजू में मेरे मकान-मालकिन का कंप्यूटर क्लास चलता है। वो स्टूडेंट्स भी उसी बाथरूम का इस्तेमाल करते थे।
हुआ यूँ, एक दिन मैं जब कमरे में था, सुबह के 8-9 के करीब मैं नींद से उठा और चूँकि मुझे लघुशंका लगी थी, तो मैं सीधे ही जाने के लिए बाहर आया। बाहर आकर मैं सीधे बिना सोचे गुसलखाने का दरवाजा धकेल कर अन्दर घुस गया, तो अन्दर से एक लड़की ज़ोर से चीखी।
दरअसल दरवाजे की कड़ी अन्दर से खराब हो गई थी इसलिए वो कड़ी नहीं लगा पाई।
पर जब तक हम दोनों को कुछ समझ में आता, बहुत कुछ हो चुका था। वो तो अन्दर बैठ कर मूत रही थी, मुझे उसकी चूत के दर्शन हो चुके थे।
गुलाबी सी गोरी-गोरी टांगों के बीच और चूंकि मुझे बहुत ही ज़ोर से पेशाब लगी थी सो मैंने भी दरवाज़े से अन्दर आते-आते अपना लंड पैन्ट से बाहर निकाल लिया था, जिसके दर्शन भी उसने कर लिए थे।
उफ्फ… फिर क्या, वो सब जल्दी समेट कर वहाँ से भाग गई।
यह थी हमारी पहली मुलाकात।
उस दिन से जब भी हम एक-दूसरे के सामने आते, एक अजब सी फीलिंग आती। शरम, हँसी और लालसा एक साथ चेहरे पे सिमट आती थी।
वो लड़की हमारे मकान-मालकिन के पहचान की थी इसलिए उसका उनके घर आना-जाना रहता था और बाद में पता चला कि वो उनके रिश्तेदारी में है और वहीं एक घर छोड़ कर पड़ोस में रहती है।
मेरे मकान-मालकिन अक्सर मुंबई अपनी बेटी के यहाँ जाते रहते हैं। तब एक बार उन्होंने मेरी उस लड़की से पहचान करवाई।
उसका नाम लिपिका था और उन्होंने मुझे बोला कि अगर उन्हें आने में देर होती है तो मकान का किराया लिपिका के पास जमा कर देना।
उन्होंने उनकी क्लास का ध्यान भी लिपिका को रखने के लिए बोला और अगर कुछ मदद की जरूरत लगे तो मुझे लिपिका की मदद करने को कहा।
फिर महीने की 30 तारीख को वो मेरे कमरे पर किराया लेने के लिए आई, मैंने किराया दिया और बोला- सॉरी, उस दिन के लिए मेरा ध्यान नहीं रहा नहीं तो ऐसा नहीं होता।
उसने मेरी बात को काटा और हँसते हुए बोली- कोई बात नहीं… इसमें आपकी क्या ग़लती है जो होना था वो हो गया। दो दिन बाद वो फिर आई और बोली- इस महीने का बिजली का बिल तो आपने दिया ही नहीं। मैंने बोला- मुझे ध्यान नहीं रहा, अभी देता हूँ।
मैंने उसे थोड़ी देर बैठने के लिए कहा क्योंकि मुझे पैसे बैग से निकालने थे। वो बिस्तर पर बैठ गई।
मेरे कमरे में बैठने के लिए सिर्फ़ बिस्तर ही था। मैं बिस्तर के नीचे से बैग निकालने लगा। शायद बैग का बेल्ट बिस्तर के पैरों में फंस गया था इसलिए मैंने ज़ोर से बैग खींच कर देखा बैग तो निकल आया, पर चूँकि लिपिका ठीक से बिस्तर पर बैठी नहीं थी, उस झटके से वो मेरे ऊपर आ गिरी।
मैं उसे संभालने के लिए मुड़ा, तो मेरा चेहरा उसके वक्षस्थल पर था। मुझे बहुत अजीब सा आनन्द आया। उसकी चुनरी भी सरक सी गई थी और उसकी छाती की गहराई ठीक से दिख रही थी।
फिर मैंने उठने की कोशिश की, पर अचानक उसे क्या हुआ पता नहीं… वो एकदम से मुझे बांहों में कसने लगी और मेरे चेहरे का चुम्बन लेने लगी।
मैंने खुद को उससे दूर करने की कोशिश की पर वो तो मानने को तैयार ही नहीं थी। अभी मैं कुछ मैं सोच ही पाता कि वो मेरे शर्ट के चार बटन खोल चुकी थी।
उसका इतना मादक बदन और उसकी तड़प देख कर मैं उसकी बाँहों में डूब गया। मैंने हल्के से उसकी चुनरी अलग की और उसको बिस्तर पर लिटाया, उसके पेट और नाभि को चुम्बन किया वो कसमसा उठी।
फिर मैं उसके ऊपर लेट गया, उसकी आँखों में देखा और फिर उसके मदमस्त होंठों का चुम्बन लिया। धीरे से बार-बार चुम्बन किया, फिर ज़ोर से लिया।
तभी उसका मुख खुला और हमारी जीभ एक-दूसरे से लिपट कर प्रेम करने लगीं, एक-दूसरे के होंठों को हम चूसने लगे। मानों यह लम्हा कभी फिर मिले ना मिले।
पर अचानक मैं रुका और उसकी तरफ देख कर बोला- यह ग़लत है… तुम यह क्यों करना चाहती हो?
उसने सिर्फ़ मेरी तरफ देखा और फिर मुझे चूमने लगी। थोड़ा और एक-दूसरे का मुख चुंबन करने के बाद वो बोली- तुम्हें क्या फ़र्क पड़ता हैं, क्या तुम्हें मस्त नहीं लग रहा?
मैंने बोला- मेरा भी यह पहली बार है, मुझे तो सेक्सी ही लगेगा रंडी साली..!
यह सुनकर वो कुछ गुस्सा हुई। मैंने बोला- नाराज़ मत होना मुझे सेक्स के समय गाली देना अच्छा लगता है, मेरी रांड..
इस पर लिपिका बोली- कुत्ते, तुझे इसकी सजा तो ज़रूर मिलेगी।
उसने अचानक से मेरा शर्ट अपने दोनों हाथों से फाड़ दी, उसके बटन भी टूट गए। फिर उसने बिस्तर पर लेटने को कहा और ज़ोर से मेरा बनियान भी फाड़ कर अलग कर दिया और फिर अचानक से अजीब सा मुस्कुरा कर उसने मेरी नाभि के आस-पास चाटना शुरू किया।
उसने मेरी पैन्ट की चैन से जीभ सीधी फिराते हुए मेरे पेट, नाभि, सीने से होकर मेरे होंठों पर एक लंबा चुम्बन लिया, फिर से वो मुझे चाटने लगी।
इस बार कमर से होकर मेरी थोड़ी सी पैन्ट और चड्डी सरका कर मेरे कूल्हों को चाटने लगी। फिर उसने मेरी तरफ देख कर एक कातिल सी मुस्कान फेंकी और अचानक से मेरे कूल्हे के बगल में ज़ोर से अपने दाँत से कट्टू कर लिया।
मैं थोड़ा सा चिल्लाया, वो बोली- यह थी तेरी सज़ा भड़वे और तू जानना चाहता है ना… कि मैं यह क्यूँ करना चाहती हूँ.. क्योंकि मैंने तय कर लिया था कि जो लड़का सबसे पहले मेरी चूत देखेगा उसी के साथ मैं यह सब करूँगी। चूत में ऊँगली डाल-डाल कर मैं बोर हो गई थी, इसलिए रोज़ जानबूझ कर मूतने ऊपर ही आती थी, कितने किराएदार आए और गए, पर क़िसी को मौका नहीं मिलता।
फिर मैंने जानबूझ कर गुसलखाने की कड़ी ही तोड़ दी, पर उसके बाद भी इंतज़ार करना पड़ा तुम्हारा.. मेरे हरामी।
यह कह कर उसने मेरी पैन्ट पूरी उतार दी, अब मैं उसके सामने सिर्फ़ चड्डी में पड़ा था।
लंड उठने के कारण चड्डी के अन्दर तंबू बन गया था और जो उसने मुझे कूल्हे पर काटा था, उसका दर्द अभी भी हो रहा था। कुतिया साली… वो उस तंबू को देख कर उसे चड्डी के ऊपर से चाटने लगी, इतना चाटा कि चड्डी उसके मुख-रस से गीली हो गई।
वो मेरे बदन को चूसते-चाटते हुए मुझे पूरा मज़ा दे रही थी। हमने फिर से एक-दूसरे की तरफ देखा और फिर से एक गहरा चुम्बन लिया।
इसी के साथ मैं उसे नीचे करके उस पर चढ़ गया, उसका बदन कुत्ते की तरह चाटने लगा। मैंने उसका कुर्ता ऊपर किया और उसकी नाभि को खूब चूमा। साथ ही अपने हाथों को उसके दोनों वक्षों पर रख करके उन्हें मसलता रहा।
फिर मैंने उसके कपड़े उतारने शुरू कर दिए, पहले उसका कुर्ता उतारा, फिर उसकी ब्रा को खोल कर फेंक दिया, फिर उसके कूल्हों को ऊपर करते हुए उसकी सलवार नीचे खींची। उसकी पैन्टी पूरी गीली हो गई थी।
मैंने बोला- मूत देगी क्या यहीं पर साली..! वो बोली- हाँ.. और तू पिएगा और नहाएगा साले…! मैंने उसे जोर से चूमा और बोला- जैसी तेरी मर्ज़ी। मैं उसकी पैन्टी नीचे करके उसकी चूत निहारने लगा।
क्या चूत थी लाल, मस्त और रसभरी..! उस पर तो कोई भी मर जाए।
मैंने अपनी जीभ को उसकी चूत चाटने के काम पर लगा दिया। ‘आहा.. नर्म-गर्म थी।’ उस पर अपनी जीभ घुमाने लगा, अन्दर-बाहर करने लगा, वो ‘आउहह’ करने लगी थी। फिर मैं उसके कूल्हों को चाटने लगा, मस्त थे रसगुल्ले की तरह। उसकी टाँगों का स्वाद भी उठाने लगा, ख़ास करके उसके कूल्हे और चूत के बीच के हिस्से को मैंने अपनी जीभ से गीला कर दिया।
फिर मैं उसकी पीठ को चाटने और चूमने लगा। चूमते-चूमते ही उसे सीधा करके उसकी छाती में अपना मुख लगा कर उसे सुशोभित करने वाले उसके दो उठे हुए पहाड़ों को और उन पर सजे हुए मुकुटों को चूसने लगा।
वो मेरे सर को अपने हाथ से दबाने लगी ताकि दबाव बढ़े। क्या पल था… उसके सुंदर और गोरे-गोरे मम्मों को मैं हाथों और होंठों से मसल रहा था।
हम एक-दूसरे में खो गए थे, एक-दूसरे की बांहों में लिपट कर एक-दूसरे का मज़ा ले रहे थे। हम इतने खो गए थे कि पता ही नहीं चला कब मेरी चड्डी उतर गई थी और हम पूरे नंगे एक-दूसरे के गुप्तांगों का स्वाद लेने लग गए थे।
फिर हम 69 जैसी अवस्था में चले गए और वो मेरा लंड चूसने लगी। आह.. क्या चूस रही थी वो.. बिल्कुल किसी रंडी की तरह..!
मेरा मुख उसकी रसीली चूत को चाट रहा था, मानो किसी शराब के मटके से अपनी प्यास बुझा रहा होऊँ।
इस बीच मैंने उससे पूछा- आज तूने अपनी गाण्ड ठीक से धोई थी ना..? वो बोली- हाँ बे.. चोदू साले.. क्यूँ पूछ रहा है? खूब साबुन लगा-लगा कर धोई थी।
यह सुनते ही अगले पल में उसकी गाण्ड का स्वाद ले रहा था। उसकी गाण्ड की गुफा को अपनी जीभ से चाट रहा था।
वो बोली- लगता नहीं कि यह तेरा पहली बार है..!
फिर वो पल आया, जिसके लिए हमने इतनी मेहनत की थी। अब तक मैं उसकी चूत में अपना लंड डाल कर उसे औरत बनाने वाला था। वो मेरी तरफ देख शरमाई, मैं अपना लौड़ा उसकी चूत पर घुमा रहा था।
इतने में उसने मुझे उसके पास पड़ा हुआ मोबाइल दे कर कहा। पहले मेरी कुँवारी चूत की आखरी फोटो तो खींच लो, बाद मैं तो यह दिखने वाली नहीं। मैंने उसकी चूत के होंठ अलग करके उसकी चूत के सील पैक गुलाबीपन का फोटो खींचा और उसे दिखाया। वो हँस पड़ी, फिर मैंने अपना लंड उसकी चूत में घुसेड़ना चालू कर दिया, थोड़ा धक्का दिया, पर वो फिसल कर बाहर आ गया।
फिर से अन्दर डाला ज़ोर का धक्का दिया, वो चिल्ला उठी, उसकी आँखों से आँसू निकल आए, हमारा संगम हो गया था। मैं धीरे-धीरे धक्के दे रहा था। उसको चूम रहा था, मसल रहा था। हम पसीना-पसीना हो गए थे, पर आग अभी बुझी नहीं थी।
फिर मैंने उसे अपने ऊपर बिठाया और लंड उसकी चूत में डाल कर चोदने लगा। वो मज़े लेने लगी, उसकी चूत काफ़ी कसी हुई थी इसलिए मुझे मज़ा आ रहा था।
खाली कमरे में दो जिस्मों के पहले संगम की आवाजें गूँज रही थीं। हमारा पलंग तो ऐसा हिल रहा था, मानो अभी टूट जाएगा।
उसने बोला- मेरा पानी छूटने वाला है। मैंने उसे कहा- थोड़ा रूको, मेरा लंड भी छूटने वाला है।
फिर मैंने उसकी चूत में 5-6 जम कर झटके लगाए, वो चिल्ला उठी, मैंने कहा- छोड़ो अपना पानी..!
उसी समय मेरे भी लंड से वीर्य निकल पड़ा, उसकी चूत भर कर बहने लगी, वो निढाल होकर मेरी छाती पर गिर गई और मुझसे लिपट गई।
मैंने उसे कस कर चूमा, फिर हम दोनों एक-दूसरे के पास लेट गए। वो गुसलखाने में जाने के लिए उठी, तो मैंने कहा- भूल गई क्या?
वो बोली- क्या?
मैंने बोला- तू तो मुझे मूत पिला कर नहलाने वाली थी ना.. अब शर्मा मत यहीं पर मूत दे.. मैं भी तुझे अपना मूत देता हूँ।
फिर एक बार फिर 69 में जाकर एक-दूसरे पर मूतने लगे। हम दोनों पूरी तरह भीग गए, हमारे मुख मूत्र से भर गए थे।
फिर हमने उसी मूत भरे मुख से एक-दूसरे का चुंबन लिया।
एक-दूजे के मूत का स्वाद लिया। यह पढ़ने में तो काफ़ी गंदा लगता है, पर उस पल यह सब करने का जो मज़ा है, वो तभी समझ में आता है। जो भी हो हम दोनों को बड़ा मज़ा आया।
मैंने उसकी तरफ देखा, तो वो हँसने लगी और फिर उसने मेरा एक प्यारा सा मुख चुम्बन लिया।
हम दोनों शाम होने तक ऐसे ही नग्न अवस्था में एक-दूसरे के पास पड़े रहे।
वो जो कुँवारी चूत और लंड के फोटो खींचे थे, उन्हें हम दोनों देख कर मुस्कुरा रहे थे।
उसके आगे भी हम दोनों ने कई बार संभोग किया, हर समागम में एक नई चाहत, नई हवस और नई कहानी थी।
आपको मेरी यह कहानी कैसी लगी, मुझे ज़रूर बतायें। [email protected]
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