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देहाती सेक्स की इस कहानी में पढ़ें कि मुझे गाँव की लड़की ने सेक्स चैट के बाद अपने घर के पास बुलाया. एक सुनसान गली में हम दोनों मिले तो क्या हुआ?
हैलो फ्रेंड्स, मैं आपको एक रॉंग नम्बर वाली लौंडिया की चुदाई की कहानी में बता रहा था कि उसने मुझे अंधेरा होने पर अपने घर की गली में बुलाया. मुझे उसे अंधेरे में डर लग रहा था कि चुत के चक्कर में मैं कहीं किसी गलत जगह में न फंस जाऊं.
अब आगे देहाती सेक्स की कहानी:
फिर मैंने ध्यान दिया कि उस गली में आगे जाने का रास्ता तो है ही नहीं. सामने एक घर था, जिसमें ताला लगा हुआ था. लग रहा था कि उसमें कोई नहीं रहता.
और कुछ समझ पाता कि तब तक वो आ गयी.
मैं बोला- हैलो … वो- इस्स … कुछ भी मत बोलो. उसने दबी आवाज़ में कहा और एकदम करीब आ गई.
मैंने भी देर ना करते हुए उसकी कमर में हाथ लगा कर अपने से चिपका लिया उसके कान में बोला- तो क्या बिना बातचीत के बस डायरेक्ट चुदाई शुरू करनी है?
मैं उसके कान की लौ पर किस करने लगा. उसकी कमर को खींच कर उसकी चुत से अपने लंड के फ़ासले को इतना कम कर दिया कि बस कपड़े ना होते, तो दोनों की बीच कोई दूरी ना रह गयी होती.
अब वो मुझसे खुद को आज़ाद करने की नाकाम कोशिश करते हुए बोली- यहां ज़्यादा देर रुकना ठीक नहीं है. मैं उसके कान को किस करते हुए गर्दन तक पहुंचते हुए बोला- तो कहीं और चलते हैं.
मेरी इस हरकत पर उसने सर पर हाथ रखकर पीछे से मेरे बालों में उंगली घुसाते हुए कहा- हम ज़्यादा देर के लिए नहीं आए हैं … मुझे जल्दी जाना होगा.
उसके ये बोलने तक मेरा एक हाथ उसकी चूची पर पहुंच गया था … लेकिन उसकी बात सुनकर मैं उसको एकदम से छोड़ कर खड़ा हो गया.
वो- क्या हुआ जानू … प्लीज़ समझा करो! अभी तो बस मैंने तुम्हें पास से देखने के लिए बुलाया था. हम फिर मिलेंगे, तब सब कुछ होगा.
ये बोलते हुए वो मेरे गले में हाथ डाल कर मुझसे चिपक गयी थी. बात पूरी करते ही उसने अपने होंठों को मेरे होंठों पर रख दिया.
मैंने भी एक हाथ उसकी कमर में डाला. दूसरे हाथ से उसके सर को पकड़ कर उसके होंठों को चूसने लगा. वो भी बराबर मेरा साथ दे रही थी. हम एक दूसरे के होंठों को बस चूस रहे थे. कभी ऊपर के होंठ, तो कभी नीचे के.
इस तरह होंठ चूसते हुए उसने अचानक से अपनी जीभ निकाल कर मेरे मुँह डाल दी. मैंने भी उसे चूस लिया और अपनी ज़ुबान उसके मुँह में डालने लगा. उसने पूरा मुँह खोल कर मेरी ज़ुबान को अन्दर घुस जाने दिया. फिर अपने होंठों से दबा कर धीरे धीरे मेरे ज़ुबान को बाहर किया.
मेरा लंड तो ऐसे खड़ा होकर फुंफकार रहा था … मानो बस पैंट फाड़ कर बाहर आ जाएगा.
अब मैं उसके होंठों को छोड़ कर उसकी गर्दन पर किस करने लगा. किस क्या यूं समझो कि बस अपने होंठ उसकी गर्दन पर रगड़ रहा था. वो भी मेरे सर पर हाथ रख कर अपनी गर्दन को दूसरी ओर झुकाकर मस्ती में बिना रुकावट के मुझे ऐसा करने दे रही थी.
मैंने एक हाथ से कमर पकड़ी ही थी, दूसरे हाथ से कपड़े के ऊपर से ही उसकी चूचियों को दबाने लगा. अपनी चूचियों पर हाथ पड़ते ही उसने अपने सीने को और उठा दिया. उसकी इस हरकत पर मुझे और जोश आ गया. मैं उसकी गर्दन से मुँह हटाकर उसकी चूचियों पर पहुंच गया और कपड़ों के ऊपर से ही उसकी एक चूची को मुँह में भरने लगा, दांत से काटने लगा.
वो भी मेरे सर को पकड़ कर दबाने लगी कि मैं और जोर से उसकी चूची को काट लूं.
फिर मैंने अपना हाथ उसकी कमर से हटाया और उसका हाथ पकड़ कर अपने लंड पर रख दिया. उसने हाथ तो नहीं हटाया, पर कोई हरकत भी नहीं कर रही थी.
मैंने फिर से उसका हाथ पकड़ा और उसके हाथ से लंड दबाकर छोड़ दिया. फिर उसके सूट के अन्दर हाथ डाल कर कमर से पीठ तक सहलाने लगा.
अब वो भी मेरे लंड को पैंट के ऊपर से ही सहलाने लगी. बीच बीच लंड को ऐसे पकड़ती, जैसे मोटाई और लंबाई माप रही हो.
मैंने उसके सूट को उठा कर उसकी चूचियों को आज़ाद करना चाहा. वो- नहीं नहीं प्लीज़. उसने मेरा हाथ पकड़ लिया.
मैंने कहा- क्या हुआ? वो- नहीं … बस अभी इतना ही बाक़ी बाद में. मैं- अरे यार इनको ज़रा चूसने तो दो. मैंने उसके दोनों मम्मों को हाथ में पकड़ दबाते हुए बोला.
वो- अभी नहीं जानू. उसके इस इंकार में उसकी रज़ामंदी झलक रही थी.
मैं देर ना करते हुए उसकी कुर्ती को ऊपर उठाने लगा. इस बार उसने भी मेरा साथ दिया. मैंने उसकी कुर्ती को उसके गले तक उठाया तो उसकी चूचियां ब्रा में क़ैद नज़र आईं. काली ब्रा के ऊपर से मैं उसके दोनों मम्मों को ज़ोर ज़ोर से मसलने लगा.
उसके मुँह से ‘अया … आह..’ निकल गयी.
मैंने उसकी ब्रा को थोड़ा ऊपर उठा कर उसकी एक चूची को आज़ाद किया और उसे मुँह में लेकर चूसने लगा.
उसकी चूची में मुँह लगते ही उसका हाथ मेरे सर पर आ गया. वो मेरे बालों में उंगली डाले सर को पकड़ कर मूझे जैसे अपनी चूची पिलाने लगी. उधर वो भी अपने सीने को और ज्यादा उठा कर मेरे मुँह से अपनी चूची को चुसवाने का मजा ले रही थी.
मैं भी उसकी चूची को ज़ोर से पूरा मुँह में भर कर चूस रहा था. उसके निप्पल को दांत से मींज देता, तो वो जोश में आकर वो अपनी चूची मेरे मुँह और अन्दर धकेल देती. इस तरह मैं उसकी एक चूची को चूस रहा था, दूसरी को ब्रा के ऊपर से ही दबा रहा था.
अपने हाथों से ही ब्रा को ऊपर खींच कर उसने दूसरी चूची को भी आज़ाद कर दिया. उसकी दूसरी को उसके आज़ाद करते ही मैं उस पर टूट पड़ा. अब उसको भी उसी तरहा चूसने और काटने लगा. बारी बारी से दोनों चूचियों को चूसते हुए मैंने सलवार के ऊपर से उसकी चुत में हाथ लगा दिया. वो एकदम गीली लग रही थी. उसकी चुत पर हाथ लगते ही वो सिटपिटा गयी और मुझे धक्का देकर खुद को मुझसे आज़ाद कर लिया.
मुझे कुछ समझ नहीं आया, तो मैंने उसकी कमर में हाथ डाल कर उसे अपने पास खींचा और उसकी सलवार में हाथ डाल कर उसकी गीली चुत को मसलते हुए सहलाने लगा.
बेचारी का हाथ जैसे खुद ही मेरे पीठ पर आ गया. उसने मेरी पीठ पर अपने नाख़ून चुभाते हुए मेरी चमड़ी को मुट्ठी में भर लिया … पर तुरंत मेरे हाथ को अपनी चुत से हटाने लगी. वो- छोड़ो प्लीज़ छोड़ो छोड़ो … प्लीज़ मेरी बात मानो.
फिर अचानक बड़ी ताक़त के साथ मेरे हाथ को खींच कर बाहर कर दिया.
मैं- अरे यार क्या हुआ? वो- नहीं प्लीज़ … अब बस मुझे जाने दो मैं इतनी देर से यहां हूँ … घर में अगर किसी को भनक लग गयी, तो बड़ी मुश्किल खड़ी हो जाएगी. इतना बोल कर वो मुड़ी और छिप कर गली में झांकने लगी.
मैंने पैंट की ज़िप खोली और एकदम टाइट खड़े लंड को बाहर निकाल कर सहलाने लगा.
वो जब मेरी तरफ घूमी, तो मेरे लंड को देख कर उसने आंखें बड़ी कर लीं और उसका ‘आ..ह..’ करके मुँह खुल गया. वो मुँह पर अपना हाथ रख कर मेरे लंड को देखते हुए मेरे पास आकर बोली- ये क्या … प्लीज़ अभी जाने दो.
मैं उसका हाथ पकड़ कर लंड को उसके हाथ में पकड़ाते हुए बोला- थोड़ी देर और रुक जाओ. वो- नहीं प्लीज़ जाने दो.
अब वो मेरे लंड को पकड़ नहीं रही थी और मैं बार बार उसके हाथ में लंड को पकड़ा रहा था.
वो- अब्बू के आने का टाइम हो रहा है … तुम जाओ प्लीज़.
इतना कहने के साथ उसने लंड को हाथ में लेकर सहलाना शुरू कर दिया.
मैंने उसकी गर्दन में हाथ लगाया और करीब करके अपने होंठों को उसके होंठों से मिला दिया. उसने भी मेरे होंठों को चुसक कर कहा- प्लीज़. मैं उसकी गर्दन को नीचे की तरफ झुकाते हुए बोला- एक बार मुँह में लेकर इसको प्यार करो, फिर चली जाना.
उसने कहा- प्लीज़ प्लीज़.
मैं ज़ोर से उसकी गर्दन को ही पकड़ कर खींच कर उसको बैठा दिया. मेरा लंड उसके एकदम मुँह के सामने आ गया था. मैंने पीछे सर में हाथ लगाया और बालों को पकड़ कर लंड हाथ में लेकर उसके मुँह में डालने लगा. उसके होंठों पर लंड को रगड़ने लगा.
वो बोली- प्लीज़. मैंने कहा- बस एक बार! वो- जा… इतना ही उसके मुँह से आवाज़ निकली थी कि लंड के सुपारे से उसका मुँह बंद हो गया.
शायद वो ‘जाने दो..’ बोलना चाहती थी … मगर अब लंड मुँह में घुस गया था सो उसकी आवाज़ कहां से आती.
उसने भी लंड को हाथ से पकड़ लिया और मुँह में भरने की कोशिश करने लगी. मैं देख रहा था कि वो अपना पूरा मुँह खोल कर लंड मुँह में भर रही थी. पर लंड उसके मुँह में सही से आ नहीं रहा था. उसने लगभग आधे से कम ही लंड को मुँह भरा और बाहर निकाल कर ऊपर मेरी तरफ देखकर बोली.
वो- अब जाने दो प्लीज़.
मैंने फिर उसको लंड की तरफ झुका दिया. वो फिर से लंड को मुँह में भरने लगी. इस बार आधा लंड मुँह में भर चुका था. मैंने अपनी पकड़ ढीली कर दी.
मौका पाते ही वो लंड को छोड़ कर खड़ी हुई और मेरे होंठों को ज़ोर से चूमकर बोली- प्लीज़ अब जाने दो.
मैं उसे ऐसे जाने तो नहीं देना चाहता … मगर आगे की सोच कर बोला- ठीक है जाओ … मगर ये आग जो लगाई हो, उसे कब बुझाओगी. वो- मेरे राजा आग तो मुझमें भी लगी है … मगर मैं मजबूर हूँ. मैं- ठीक है … जाओ.
फिर वो मेरे गले से लगी और बोली- पहले तुम जाओ … मैं बाद में जाऊंगी. मैं- क्यों? वो- नहीं … तुम पहले निकल जाओ, तो अच्छा है.
मैं लंड सहलाने लगा.
उसने मेरे लंड को पकड़ कर कहा- इसको अब अन्दर कर लो.
मैंने अपने खड़े लंड को पैंट के अन्दर सैट किया, चैन बंद की और उसको एक किस करके बिना कुछ बोले वहां से निकल गया.
वो पीछे से दौड़ कर मुझसे लिपट गयी ‘आई लव यू.’ ‘ठीक है … अब जाने तो दो.’ वो मुझे छोड़ कर बोली- ओके बाइ.
मैं भी बाई बोल कर वहां से निकल पड़ा. वहां से थोड़ी दूर जाते ही लंड शांत हो गया. अब काफ़ी अंधेरा हो चुका था. मैं सीधा भाई के ससुराल पहुंचा.
मेरे घर पहुंचते ही भाई के ससुर ने पूछा- कहां चले गए थे … कब से मुनीर फोन कर रहा है … तुम फोन भी नहीं उठा रहे थे.
मैंने मन में सोचा कि शिट मोबाइल तो साइलेंट मोड पर है.
मैंने बात बनाई, जिसमें मैं माहिर हूँ- चचा वो मैं चौराहे पर चाय पीने गया था … वहीं बैठ गया. न्यूज़ पेपर पढ़ने लगा. मेरा मोबाइल साइलेंट पर था, तो फोन का पता ही नहीं चला. चचा- हां फिर भी कितनी रात हो गयी है. हम सोच रहे थे कि कहां चले गए. वो चिंता जताते हुए बोले.
मैं हंस कर बोला- अरे चचा, अभी तो सही से 7 भी नहीं बजा और आप कह रहे हैं कि रात हो गयी.
चचा कुछ बोलते, तभी सासू जी मतलब भाई की सास मेरा जैकेट लेकर आ गईं.
सासू- ठंडी नहीं लग रही क्या? ये लो इसको पहन लो. बेटा ये शहर नहीं, गांव है. यहा अंधेरा होने से पहले लोग अपने घर आ जाते हैं … खास कर आजकल के मौसम में. मैं- ओके ठीक है चाची! चाची- ये क्या … पैर में कितनी मिट्टी लगी हुई है? मैं- ये. … हां वो मैच खेल रहा था तो. … वही है चाची- अरे तो अभी तक हाथ पैर नहीं धोए … जाओ धो लो.
मैं भी चुपचाप नल पर गया, जो कि आंगन में था. मैं हाथ पैर धोने लगा. इधर भाई की साली तौलिया लेकर आई और हाथ में तौलिया लिए खड़ी हो गयी.
साली- भाई आप कहां रह गए थे? मुनीर भाई से मुलाकात हुई? वो आपको ढूंढ रहे थे. मैं- नहीं उससे अभी तक मुलाकात तो नहीं हुई. मैं मैच खेल कर सीधा चौराहे पर निकल गया … और ये तौलिया लेकर क्यों खड़ी हो? साली- वो आप हाथ मुँह नहीं पौंछेगे क्या? मैं- हां तो यहां रख दो और जाओ. लेकर खड़ी क्यों हो? साली- ठीक है!
इतना बोल कर तौलिया रख कर वो चली गयी. मैंने भी फ्रेश होकर तौलिया उठाया और मुँह हाथ पौंछते हुए टीवी वाले कमरे में घुस गया और टीवी देखने लगा.
मुझे महसूस हुआ कि मेरे लंड में थोड़ा दर्द हो रहा था. मैं समझ गया कि इतनी देर तक टाइट रहा था और जींस की वजह से दबा हुआ था, उसी वजह से ये दर्द है.
तब तक मुनीर भी आ गया. उससे भी वही सब सवाल जवाब हुए. फिर खाना खा कर हम लेट गए. इन दिनों गांव में जल्द ही लोग खा पीकर सो जाते हैं … क्योंकि बाहर ठंड होती है.
मैं लेटा था और गुड़िया की यादों में खोया हुआ था. आज के देहाती सेक्स का सीन याद करके लंड फूलता पिचकता रहा. काफ़ी रात हो गयी.
अब सब सो चुके थे, पर मेरी आंखों में नींद कहां थी … बस गुड़िया को चोदने की तरकीब सोच रहा था.
उसकी चुत में लंड देने की लालच में मैं उससे मिल आया था. मगर उसने सिर्फ मेरा लंड चूसा और मुझे जाने के लिए कह दिया.
उसने अगली बार सेक्स करने के लिए कह कर मुझे उत्तेजित कर दिया था. उस रॉंग नम्बर वाली लौंडिया की देहाती सेक्स की कहानी को मैं अगली बार पूरी चुदाई के साथ लिखूंगा. आप सभी को ये सेक्स कहानी में कितना मजा आ रहा है … प्लीज़ मुझे मेल करना न भूलें.
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देहाती सेक्स की कहानी जारी है.
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