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सम्पादक – इमरान मधु को देखकर मैं बहुत खुश हुआ, वो बहुत ही खूबसूरत लग रही थी, उसने सफ़ेद लांचा और कुर्ती पहनी थी… लांचे पर नीले रंग के चमकदार फूल थे… मुझे देखकर दोनों ही बहुत खुश हुए। सलोनी- अरे आ गए आप… चलो अच्छा हुआ।
सलोनी भी क़यामत लग रही थी, उसने नई प्रिंटेड साड़ी पहनी हुई थी।
मुझे नहीं पता कि उसने खुद पहनी या अंकल ने मदद की मगर साड़ी बहुत ही फैशनेबल स्टाइल में बंधी हुई थी, उसका ब्लाउज भी बहुत ही मॉडर्न था, कुल मिलाकर सलोनी क़यामत लग रही थी।
मैं- हाँ यार आज बहुत थक गया हूँ… क्या हुआ, कहीं जा रही हो क्या?
मैंने जानबूझकर थकान के लिए कहा कि वो कहीं जाने को ना कह दे।
सलोनी- अरे नहीं बस वो मेहता जी की बेटी कि शादी है ना, तो उन्हीं के यहाँ आज महिला संगीत है… मैंने सोचा मधु को भी ले जाती हूँ… मैं- ठीक किया… सलोनी- पर अब आपका चाय नाश्ता लगा दूँ क्या? मैं- नहीं यार अभी तो नहीं… पहले तो मैं फ्रेश होऊँगा, कोई बात नहीं, तुम चली जाओ, मैं खुद कर लूँगा। सलोनी- अरे नहीं… कोई बात नहीं, कुछ देर बाद चली जाऊँगी।
तभी नलिनी भाभी भी आवाज देने आ गई। मैं- अरे तुम लोग चले जाओ ना ! मधु- दीदी आप चले जाओ… मैं काम निबटाकर आ जाऊँगी।
मेरी आँखों में चमक आ गई, फिर भी मैंने कहा- अरे नहीं मधु, तू भी चली जा, मैं मैनेज कर लूँगा।
सलोनी- अरे नहीं, ठीक ही तो कह रही है, आप खुद कैसे करोगे? कभी कुछ किया भी है? यह बाद में आ जाएगी। सुन मधु… सही से सब कुछ करके आ जाना।
मैं सोच रहा था कि क्या यार, कितने प्यार से सब समझाकर जा रही है… और वो दोनों चली गई।
अब मैं और मधु दोनों ही घर पर अकेले थे… मैंने मुस्कुराकर मधु की ओर देखा, वो भी मुस्कुरा रही थी।
सलोनी जाते हुए मधु को बहुत प्यार से समझा रही थी, उसके चेहरे पर रहस्यमयी मुस्कान भी थी। मैंने मधु से दरवाजा सही से बंद करने को कहा और फ्रेश होने के लिए बेडरूम में आ गया।
अपनी आदत के अनुसार मैंने अपने सभी कपड़े उतार दिए… जूते ,कोट, पेंट, शर्ट, टाई आदि… मैं अपना अंडरवियर उतार रहा था, तभी मधु ने कमरे में प्रवेश किया।
मधु की छोटी सी बुर के बारे में सोचकर मेरा लण्ड पहले से ही जोश में आ गया था, वैसे भी आज पूरे दिन बेचारा खड़ा रहा था, उसको डिश तो बहुत मिली थीं पर खा नहीं पाया था। मैंने सोच लिया था कि आज इस मधु को तसल्ली के साथ खूब चोदूँगा।
मुझे अब सलोनी की भी कोई परवाह नहीं थी… मुझे पता था कि उसको सब पता तो है ही और वो खुद उसको मस्ती के लिए ही छोड़ कर गई है।
मुझे नंगा देखकर मधु हंसने लगी- हा हा… यह क्या भैया… अंदर जाकर नहीं उतार सकते थे? मैंने अंडरवियर उतारकर एक ओर फेंका और मधु को अपनी बाँहों में कसकर जकड़ लिया।
मैं- अच्छा इतना ज्यादा इतरा मत… तू आज इतनी सुन्दर लग रही है कि अब तो बस चोदने का ही मन कर रहा है।
मधु- हाय भैया… कितना गंदा बोल रहे हैं आप? मैं- जब गन्दा कर सकते हैं तो बोल क्यों नहीं सकते। मधु- आप और दीदी बिल्कुल एक सा ही बोलते हो, वो भी यही सब कहती हैं। आअह्ह्ह्हा आआआ धीरे से ना…
मैंने उसकी छोटे अमरुद जैसी चूची को कस कर उमेठ दिया था। मैं- हाँ जब अंदर डालूँगा, तब बोलेगी तेज… और अभी धीरे बोल रही है… हा हा मैंने उसकी दोनों चूची को एक साथ मसलते हुए ही कहा।
मधु- ओह दर्द हो रहा है ना भैया… मैं- अरे चिंता मत कर मेरी जान… तेरा सारा दर्द पी जाऊँगा…
कुर्ती के ऊपर से साफ़ पता चल रहा थाकि उसने नीचे कुछ नहीं पहना। लेकिन उसके चूची के निप्पल अभी इतने बड़े नहीं हुए थे कि कुर्ती के ऊपर से दिखते, थोड़े से उभार ही दिखाई देते थे। उसकी चूचियों को सहलाते हुए ही मधु की कोमल सी गुलाबी बुर मेरे दिमाग में छा गई… बहुत प्यारी थी उसकी छोटी सी बुर… जिसमें उसने अभी उंगली तक नहीं डाली थी।
उस दिन मैं कितना खेला था इस बुर के साथ पर चोद नहीं पाया था, खूब चाटा था और मेरा लण्ड तो उसके अंदर तक झांक आया था…
यह सोचकर ही लण्ड का बुरा हाल था और वो मस्ताने की तरह तनकर मधु के लांचे को खोदने में लगा था।
वो तो निशाना सही नहीं था वरना अब तक तो लांचे के साथ ही उसकी बुर में चला जाता। मधु की बुर थी ही ऐसी, अभी तक तो सही से उस पर हल्का हल्का रोआँ भी आना शुरु नहीं हुआ था।
सलोनी के बाद मुझे अगर किसी की चूत पसंद आई थी तो वो मधु की ही थी, बिल्कुल मक्खन की टिक्की की तरह…
उसकी चूत की याद आते ही मैंने मधु को बिस्तर के किनारे पर ही पीछे को लिटा दिया।
मुझे यकीन था कि मधु ने लांचे के अंदर कच्छी भी नहीं पहनी होगी… आखिर वो सलोनी से ही सब सीख रही है… जब सलोनी नहीं पहनती तो इसने भी नहीं पहनी होगी।
मैंने मधु के लांचे को उठाते हुए उसके कोमल पैरों को सहलाया और चूमा।
मधु लरज रही थी… बल खा रही थी… कसमसा रही थी… उसको पूरा मजा आ रहा था…
लेकिन मधु बहुत बेसब्र थी… इस उम्र में ऐसा होता भी है… वो चाहती थी कि एकदम से ही उसकी चूत में लण्ड डाल दूँ, उसको धीरे धीरे वाला प्यार पसंद नहीं आ रहा था…
यह उसकी बेसब्री ही थी जो मेरे द्वारा धीरे धीरे लांचा उठाने से वो तुरंत बोली- ओह भैया… लांचा ख़राब हो जायेगा… इसको उतार देती हूँ…
मुझे हंसी आ गई… मैं- अरे होने दे ख़राब… और आ जायेगा… मधु- अह्ह्हाआआआ पर… दीदी… को पता चल जायेगा। मैं- हा हा… क्या पता चल जायेगा?
मधु- अह्ह्ह हाह्ह्ह अह्ह्ह्ह्हा आआआ यही ना ओह भैया… आप भी नाआआआ… आह्ह्हा और मैंने उसके लांचे को पूरा उठाकर उसके पेट पर रख दिया। कहानी जारी रहेगी।
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