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हॉट गर्ल सेक्स स्टोरी में पढ़ें कि कैसे मैं अपने ऑफिस की शादीशुदा लड़की को होटल में चोद रहा था. हम दोनों इस चुदाई का खूब मजा ले रहे थे. आप भी आनन्द लें.
मैंने अपने एक हाथ से उसके एक उरोज को पकड़कर मसलना चालू कर दिया और दूसरे उरोज के कंगूरे को अपने मुंह में भर लिया और चूसने लगा। नताशा की तो एक किलकारी ही कमरे में गूँज उठी। वो तो आह … ऊंह करती हुई फिर से अपने नितम्ब हिलाने लगी थी- आह … प्रेम … तुम सच में कामदेव हो … आह … उईइइइइइ!
अब आगे की हॉट गर्ल सेक्स स्टोरी:
मैंने अब फिर से धक्के लगाने शुरू कर दिए और बीच-बीच में मैंने उसके उरोजों को चूसना और घुंडियों को अपने दांतों से काटना भी जारी रखा। अब तो उसके उरोजों की घुन्डियाँ गुलाबी निम्बोलियों की जगह अंगूर के दाने की तरह हो गई थी।
जैसे ही मैं अपने जीभ से उन्हें चुभलाता या दांतों से काटता तो नताशा की एक मीठी सीत्कार निकलती और वह अपनी चूत का संकोचन करती और अपने नितम्ब उछालकर मेरा लंड अन्दर तक लेने की कोशिश करने लगती।
उसने अपने दोनों पैर मेरी कमर पर कस लिए थे और अब मैं अपने पंजों और कोहनियों के बल हुए धक्के लगाने लगा था। मेरे ऐसा करने से नताशा के नितम्ब हवा में थोड़ा ऊपर उठते और फिर मेरे धक्के के साथ ही धप्प की आवाज के साथ बेड पर गिरते।
मुझे लगता है नताशा के लिए ये पल नितांत अनोखे और नये थे। अचानक नताशा ने जोर से मेरे सिर के बाल पकड़ लिए और फिर एक जोर की किलकारी सी मारते हुए उसने अपने पैरों की जकड़ को और भी ज्यादा कस लिया और उसका शरीर झटके से खाने लगा।
थोड़ी देर बाद उसने अपने पैरों की जकड़ को ढीला करते हुए उन्हें सीधा कर दिया और फिर लम्बी लम्बी साँसें लेने लगी। मुझे लगता है वह एक बार फिर से झड़ गई है।
उसकी चूत से कामरज निकल कर मेरे लंड के चारों ओर लगा गया था और कुछ तो मेरे अण्डों पर भी महसूस सा होने लगा था। मुझे लगता है थोड़ा रस जरूर उसकी गांड तक भी चला गया होगा। मैंने अपने एक हाथ को उसके नितम्बों के नीचे किया और उसकी खाई में फिराने लगा। जैसे ही मेरी शातिर अंगुलियाँ उसकी गांड के छेद से टकराई नताशा के एक मीठी सीत्कार निकल गई और उसने मेरा हाथ पकड़कर परे हटा दिया।
हे भगवान्! जिस प्रकार उसकी चूत लगभग अनचुदी जैसी ही लग रही थी, उसकी गांड तो नितांत कुंवारी ही होगी। काश एक बार उसकी गदराई हुई गांड मारने का मौक़ा मिल जाए तो कसम से मज़ा ही आ जाए। पर अभी मैं उसकी गांड मारने की कोशिश नहीं कर सकता था। पहले एकबार उसकी चूत की तसल्ली हो जाए उसके बाद तो वह मेरा लंड भी चूसेगी और बाद में गांड देने के लिए उसे राजी कर लेने का हुनर तो मुझे बखूबी आता ही है।
अचानक मुझे अपने होंठों पर उसके दांतों से काटने का दर्द सा महसूस हुआ। ओह … अब मुझे ख्याल आया कि मैं गांड के चक्कर में धक्के लगाना ही भूल गया हूँ। अब मैंने फिर से दनादन धक्के लगाने शुरू कर दिए।
मेरा मन तो उसे एक बार डॉगी स्टाइल में करके धक्के लगाने का कर रहा था पर अब मुझे लगने लगा था मेरा शेर-ए-अफगान शहीद होने के कगार पर है।
मैंने 4-5 धक्के जोर-जोर से लगाए तो नताशा की गूं … गूं … की आवाजें आने लगी। मुझे लगा वह इन तेज धक्कों की ताब सहन नहीं कर पा रही है और एक बार फिर से ओर्गास्म की ओर बढ़ने वाली है। लगता है वह उत्तेजना के उच्चत स्तर पर पहुँच गई है उसका शरीर हिचकोले सा खाने लगा है और अब तो उसने अपनी जांघें और भी फैला दी।
ऐसा करने से मेरा लंड किसी पिस्टन की तरह अन्दर बाहर होने लगा था। “आह … प्रेम … आह … रु … क..को … आईईईईईइ …”
मैंने कसकर उसे अपनी बांहों में कस लिया और फिर अंतिम 3-4 धक्कों के साथ ही मेरा लावा फूटकर पिचकारियों की शक्ल में उसकी चूत को सींचता चला गया। नताशा को भी अंदाज़ा हो गया था तो उसने जोर से अपनी चूत को अन्दर सिकोड़ लिया और मेरा पूरा वीर्य अन्दर लेने की कोशिश करने लगी जैसे अंतिम बूँद तक चूस लेना चाहती हो।
हम दोनों की ही साँसें बहुत तेज हो गई थी। कमरे में हालांकि ए.सी. चल रहा था पर फिर भी हम दोनों को पसीना आ रहा था। मैं नताशा के ऊपर पसर गया और फिर नताशा मेरी कमर और पीठ पर हाथ फिराने लगी थी। “जान … कैसा लगा?” “आह … कुछ मत पूछो मेरे प्रेम आज तुमने मुझे पूर्ण स्त्री बना दिया है।” कहते हुए उसने मेरे सिर को अपने हाथों में पकड़कर मेरे होंठों पर एक चुम्बन ले लिया।
थोड़ी देर बाद मुझे लगने लगा मेरा लंड अब सिकुड़ने लगा है और बाहर आने की फिराक में है। मैं नताशा की चूत से रिसते हुए अपने वीर्य को देखना चाहता था. तो मैं उसके ऊपर से उठने लगा तो नताशा ने मुझे रोक दिया और थोड़ी देर इसी तरह अपने ऊपर लेटे रहने के लिए इशारा किया। मैं भला उसे निराश कैसे कर सकता था मैं चुपचाप उसके ऊपर लेटा रहा और कभी उसके गालों और कभी उसके होंठों पर चुम्बन भी लेता रहा।
5-4 मिनट बाद नताशा ने मुझे अपने ऊपर से हटने का इशारा किया। मैं उसके ऊपर से उठकर उसकी बगल में ही लेट गया।
मेरा अंदाज़ा था अब नताशा उठकर बाथरूम में जायेगी। मेरा मन तो कर रहा था मैं भी उसके साथ ही बाथरूम में चला जाऊं। वह अपनी चूत को धोने से पहले सु सु भी करेगी और उसकी हालत और हुलिया भी जरूर देखेगी। उसकी चूत से कलकल करती हुयी सु-सु की मोटी धार को देखने का नजारा कितना दिलकश होगा आप अंदाज़ा लगा ही सकते हैं।
पर वह तो अपनी आँखें बंद किए वैसे ही लेटी रही। अब मेरी निगाह उसकी चूत पर पड़ी। उसकी चूत के पपोटे सूजकर और भी फूल गए थे और चीरे के बीच की पत्तियाँ तो रक्त संचार बढ़ जाने से किसी रसीले सिन्दूरी आम के छिलकों की तरह मोटी-मोटी सी लगने लगी थी।
काश! एकबार यह अपनी चूत को धोकर आ जाए कसम से इसे पूरा मुंह में भरकर चूस लिया जाए तो मुझे ही नहीं इसे भी जन्नत की सैर का मजा मिल जाए।
थोड़े देर बाद वह करवट के बल हो गई और मेरे सीने से लग गई। मैंने उसकी पीठ पर हाथ फिराना चालू कर दिया।
नताशा ने पहले तो मेरे सीने पर उगे बालों पर हाथ फिराया और फिर हाथ को नीचे करके मेरा मुरझाये लंड को पकड़ लिया। मुझे लगता है उसका मन अभी नहीं भरा है।
उसने मेरे लंड को फिर से मसलना शुरू कर दिया और अपने होंठ मेरे होंठों से लगा दिए। मैंने उसकी कमर को पकड़ कर उसे अपनी खींच कर अपने सीने से चिपका लिया और एक हाथ उसके नितम्बों पर फिराने लगा। उसके गोल-मटोल खरबूजे जैसे नितम्बों का सुखद अहसास पाते ही मेरा अलसाया लंड फिर से कुनमुनाने लगा था।
मेरी अंगुलियाँ उसकी गांड के छेद तक नहीं पहुँच पा रही थी तो मैं थोड़ा सा नीचे सरक गया और उसके एक उरोज को मुंह में भरकर चूसने लगा। नताशा के शरीर में फिर से सनसनाहट सी होने लगी थी। मैं अपना एक हाथ उसके नितम्बों पर फिराने लगा था। अब तो मेरी अंगुलियाँ आराम से उसकी गांड के छेद तक पहुँच सकती थी। अब मैं उसकी गांड के छेद को टटोलने लगा। जैसे ही मेरी अंगुलियाँ उस छेद से टकराई नताशा की एक मीठी सीत्कार सी निकल गई।
इससे पहले कि मेरी अंगुली मुकम्मल तरीके से उसकी गांड का मुआइना करती नताशा बोली- वो … मेरा बैग पकड़ाना प्लीज? “क … क्या हुआ?” “ओहो … प्लीज दो ना जल्दी!”
पता नहीं नताशा अब क्या चाहती है। मैंने अपना हाथ बढ़ाकर बेड की साइड टेबल पर रखा उसका बेग उसे पकड़ा दिया। उसने जल्दी से उसे खोला और उसमें से सेनिटाइज्ड टिशु पेपर (नेपकिन) निकाला और थोड़ा उठकर मेरे लंड को उससे रगड़कर साफ़ करने लगी। मुझे पहले तो कुछ समझ ही नहीं आया पर बाद में तो मेरी बांछें ही जैसे खिल गई।
इससे पहले कि मैं कुछ बोलता या करता नताशा ने मेरा लंड अपने मुंह में भर लिया और चूसने लगी।
“ओह … अरे … मुझे इसे धो आने दो प्लीज!” मैं तो उसे रोकने की कोशिश की पर उसने मुझे इशारे से मना कर दिया।
मेरे लिए तो यह किसी ख्वाब की तरह था। कोई हसीन महबूबा जब इस प्रकार लंड चूसे तो उसे कौन बेवकूफ मना करना चाहेगा। सच कहूं तो मैं तो उसकी इस अदा पर दिलो जान से फ़िदा ही हो गया।
थोड़ी देर उसने मेरे लंड को चूसा तो वह फिर से खड़ा हो गया और ठुमके लगाने लगा।
जब उसे लगा कि मेरा लंड पूरा उत्तेजित हो चुका है तो वह मुझे हल्का सा धक्का देते हुए मेरे ऊपर आकर बैठ गई। अब उसने एक हाथ से मेरा लंड पकड़ लिया और दूसरे हाथ से अपने चूत की फांकों को चौड़ा करते हुए मेरे लंड पर अपनी चूत को टिका दिया और फिर एक झटके के साथ उसने अपने नितम्ब नीचे कर दिए।
लंड एक ही झटके में पूरा का पूरा अन्दर दाखिल हो गया। नताशा की चूत तो पहले से ही मेरे वीर्य और उसके कामरज से सराबोर थी तो लंड को पूरा अन्दर तक जाने में भला कोई परेशानी कैसे हो सकती थी।
हालांकि नताशा ने अपने होंठों को कस कर बंद कर रखा था पर इसके बावजूद उसकी एक हल्की सी चीख निकल गई।
वह थोड़ी देर अपने आप को संयत करने की कोशिश करती रही और फिर उसने अपने नितम्बों को ऊपर नीचे करना शुरू कर दिया। मैं अपने लंड को उसकी कसी हुई चूत में अन्दर-बाहर होते देख रहा था।
नताशा की मीठी किलकारियां अपने चरम पर थी। थोड़ी देर उसने धक्के लगाए और फिर वह मेरे ऊपर लेट सी गई। मैंने उसकी पीठ पर अपने हाथ फिराने चालू रखे और बीच-बीच में उसके नितम्बों का जायजा भी लेता जा रहा था। काश एक बार वह अपनी गांड देने के लिए राजी हो जाए तो खुदा कसम बंगलुरु की यह शाम जिन्दगी भर के लिए यादगार बन जाए।
मुझे उसके शरीर का भार सा लगने लगा था तो मैंने उसके सिर को अपने हाथों में पकड़कर थोड़ा ऊपर किया और फिर उसके होंठों को चूमने लगा।
और उसके बाद हम दोनों ने आँखों ही आँखों में इशारा करते हुए पलटी सी मारी और मैं उसके ऊपर आ गया। हमने यह ध्यान जरूर रखा कि मेरा लंड उसकी चूत से बाहर ना निकल जाए।
मेरा लंड उसकी चूत में गहराई तक समाया हुआ था और नताशा भी अपनी चूत का अन्दर से संकोचन भी कर रही थी।
मैंने अब धक्के लगाने के बजाय अपने लंड को उसकी चूत पर घिसना शुरू कर दिया। मैं पहले थोड़ा नीचे की ओर सरकता और फिर अपने लंड को अन्दर ठेलते हुए उसकी चूत पर घिसता। ऐसा करने से उसकी दाने पर भी रगड़ होने लगी थी। ऐसा करने से तो नताशा तो रोमांच और उत्तेजना के उच्चतम शिखर पर पहुँच गई। अब तो उसने जोर-जोर से आह … ऊंह … करना शुरू कर दिया था।
मैंने आपको बताया था ना कि मेरा मन तो उसकी चूत को मुंह में भर कर चूसने और उसके दाने को अपने दांतों से काटने का कर रहा था. पर ऐसा करने का नताशा ने मौक़ा ही नहीं दिया था। अब हालत यह थी कि जैसे ही मेरा लंड दाने पर रगड़ खाता उसकी एक हल्की सीत्कार निकल जाती। उसका पूरा शरीर ही जैसे लरजने लगा था और अब तो वह अपने पैर भी पटकने लगी थी। मुझे लगता है वह अपनी उत्तेजना को संभाल नहीं पा रही है। और फिर जैसे अक्सर ऐसा होता है उसकी चूत ने हार मान ली और उसका एक बार फिर से स्खलन हो गया।
“आईईईइ … मैं मर जाऊंगी … प … प्रेम.. आह …” कहते हुए उसने मेरी पीठ पर अपने हाथ कस लिए।
अब मैं भी इतना बेरहम नहीं होना चाहता था। मैंने थोड़ी देर के लिए रगड़पट्टी बन्द कर दी। नताशा लम्बी-लम्बी साँसे लेने लगी थी। थोड़ी देर हम ऐसे ही लेटे रहे। “प्रेम?” “हम्म?” “एक बार तुम मेरे ऊपर आ जाओ ना प्लीज!” “जान मैं ऊपर ही तो हूँ.”
“ओहो … ऐसे नहीं मैं पेट के बल लेट जाती हूँ तुम मेरे ऊपर लेट जाओ.” “ओके” मुझे बड़ी हैरानी और खुशी भी हो रही थी। मुझे लगा मेरी बुलबुल तो शायद पीछे से देने के लिए भी तैयार हो गई है।
मैं उसके ऊपर से हट गया तो नताशा जल्दी से अपने पेट के बल होकर लेट गई और उसने अपने पेट के नीचे एक तकिया लगा लिया। ऐसा करने से उसके नितम्ब और ऊपर उठ गए। हे भगवान्! क्या नमूना है तेरी इस कारीगरी का … पूरा मुजसम्मा बनाकर भेजा है। पतली कमर के नीचे गोल खरबूजों जैसे गोरे रंग के नितम्ब और उनके बीच की गहरी खाई तो ऐसे से लग रही थी जैसे किसी नदी की गहरी घाटी हो।
मुझे तो अपनी किस्मत पर जैसे यकीन ही नहीं हो रहा था। मेरा लंड तो किसी अड़ियल घोड़े की तरह हिनहिनाने ही लगा था।
मैं अपने आप को कैसे रोक पाता। मैंने झुककर उनपर पहले तो एक चुम्बन लिया और फिर उन पर हल्की चपत सी लगाई तो नताशा की एक मीठी किलकारी निकल गई।
अब मैं नताशा के ऊपर लेट गया। मेरा लंड उसके नितम्बों की खाई से जा टकराया। मैंने अपने एक हाथ को नीचे करके उसके एक उरोज को पकड़ लिया और मसलने लगा और दूसरा हाथ नीचे करके उसकी चूत को टटोलकर अपनी अंगुली से उसे सहलाने लगा। मैंने उसके कान की लटकन को भी अपने मुंह में भर लिया और चूमने लगा।
नताशा के लिए तीन तरफ से हुए इस हमले से बचने की अब ज़रा भी गुंजाईश नहीं बची थी। नताशा शांत लेटी हुई लम्बी-लम्बी साँसें लिए जा रही थी। और मेरा लंड तो बार-बार उसके नितम्बों की खाई में अपने मंजिल तलासता हुआ ठोकरें मार रहा था और मेरा दिल जोर जोर से धड़कने सा लगा था।
पर … दोस्तो! मंजिल अभी थोड़ी दूर थी।
“प्रेम … आह …” “हां मेरी जान?” मुझे लगा नताशा अब बोलेगी मेरे पिछले द्वार का भी उद्धार कर डालो।
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