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सम्पादक – इमरान
मेरी कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर यह मेरी सलोनी क्या चाहती है?
अच्छा खासा मजा आ रहा था और भाग कर आ गई !!??
जब तुझको चुदवाना ही नहीं था तो ये सब क्यों कर रही है?
मैं भागता हुआ उसके पीछे आया, वो दूसरी गैलरी में एक साइड में खड़ी हो हाँफ़ रही थी..
बड़ी प्यारी लग रही थी सलोनी… उसने अपने कपड़े अभी भी नहीं पहने थे… कपड़े उसने अपने दाएं हाथ में ले रखे थे… जो उसने अपने धोंकनी की तरह ऊपर नीचे होते सीने से लगा रखे थे।
मेरी ओर उसकी पीठ थी इसीलिए पीछे से उसकी नंगी पीठ और उसके नीचे सफ़ेद उठे हुए नंगे चूतड़ क़यामत लग रहे थे।
एक सार्वजनिक स्थान में वो भी एक नाइट क्लब में सलोनी को ऐसे नंगी खड़ी देख मेरा रोमांच से बुरा हाल था !
मैं अभी आगे बढ़ने ही वाला था कि तभी सलोनी शायद किसी कमरे के दरवाजे के पास खड़ी थी,
मैंने देखा वहां से कोई आवाज आ रही है- अरे बेटा क्या हुआ?
सलोनी ने तुरंत पीछे मुड़कर देखा, मैं जल्दी से पीछे वाली गैलरी के अंदर हो गया, मैं उसको नहीं दिखा।
मैंने आड़ लेते हुए ही उनकी बातें सुनने की कोशिश की..
सलोनी- व्व…वो वो अंकल…
ओह इसका मतलब कोई बुजुर्ग थे, कहीं कोई जानने वाला तो नहीं?
अब मेरा बुरा हाल था कि कहीं कोई जानने वाला ना मिल जाए !
मैंने फिर आगे हो झाँका तो सलोनी कमरे के दरवाजे पर खड़ी थी, उसने अपने आप को समेट रखा था पर थी तो वो पूरी नंगी ही…
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तभी उस आदमी की आवाज हल्की सी सुनाई दी- अरे ऐसे बाहर क्यों खड़ी हो… आओ अंदर आ जाओ !
सलोनी- अरे नहीं अंकल… वो मेरे साथ वाले आने वाले हैं वो तो उन सबने… बड़ी मुश्किल से बचकर आई हूँ… पता नहीं कहाँ चले गए …
उसने एक बार फिर पीछे की ओर चारों तरफ देखा, मैं फिर से पीछे को हो गया, उसको मेरी कोई झलक तक नहीं मिली।
मुझे फिर आवाज आई उस आदमी की- अरे अंदर तो आओ… क्या यहाँ ऐसे नंगी बाहर खड़ी रहोगी? अंदर आकर कपड़े तो पहन लो !
मैंने हिम्मत करके झांक कर देखा… सलोनी दरवाजे पर ही सिमटी हुई खड़ी थी… अब उस आदमी का हाथ मुझे सलोनी की पीठ पर रेंगता हुआ दिखा और अब उसका हाथ सलोनी के चूतड़ों तक सरक गया था।
फिर उसने वहाँ दवाब बनाया, कुछ ही पलों में सलोनी उसके कमरे के अंदर थी।
मैंने सोचा कि क्या उसको यहाँ मजा करने दूँ?
पर समय बहुत हो गया था मैंने खुद को व्यवस्थित किया और उस कमरे की ओर बढ़ गया।
मैंने देखा कि उसने दरवाजा बंद नहीं किया था या फिर सलोनी ने बंद नहीं करने दिया था?
मैंने भागते हुए से ही कमरे में प्रवेश किया और ऐसे प्रदर्शित किया जैसे अभी अभी आया हूँ।
एक बार तसल्ली कर ली कि वो कोई जानने वाला तो नहीं है… वो कोई और ही था… पके हुए बाल… रेशमी गाउन, चेहरे पर चमक… कोई अमीर बुड्ढा था।
वो सलोनी को समझाने के बहाने से उसके नंगे चूतड़ों का पूरा लुत्फ़ उठा रहा था, उसका हाथ लगातार सलोनी के चूतड़ों पर ही घूम रहा था।
मैं- अरे सलोनी तुम यहाँ? मैं तो घबरा गया था… आगे तक निकल गया था…
सलोनी ने मुझे देखा और बिल्कुल ऐसे व्यवहार किया जैसे उसका देह शोषण होते होते रह गया हो… वो भागकर मेरे सीने से लग गई।
अब उन अंकल की कोई हिम्मत नहीं हुई, वो अपने बेड पर जाकर बैठ गए मगर उनकी आँखें सलोनी के बदन पर ही थी।
मैंने सलोनी को थोड़ा सा पीछे किया और उसको कपड़े पहनने को बोला- जान… कपड़े तो पहन लो…
सलोनी अब कुछ नार्मल थी, उसने अपने कपड़ों को अलट-पलट कर देखा… ओह… यह क्या !!! उसके हाथ में केवल टॉप ही था… ना तो ब्रा थी और ना स्कर्ट ! जाने कहाँ गिरा दी थी उसने या फिर वहीं छोड़ आई थी।
उसने मेरी ओर देखा, कुछ समझ नहीं आ रहा था कि ऐसी अवस्था में क्या करें…
वो बार बार अपने उस छोटे से टयूब टॉप को घुमा घुमा कर देख रही थी।
वो टॉप तो ब्रा रहते भी सलोनी की भारी चूचियों को पूरा नहीं छुपा पाता था… तो अब उस बेचारे की क्या मजाल…
पता नहीं इस सारी स्थिति में सलोनी को अच्छा लग रहा था या बुरा पर उसके चेहरे से परेशानी और मायूसी साफ़ झलक रही थी।
मेरा तो नशे और थकान के कारण दिमाग ही काम नहीं कर रहा था।
तभी सलोनी अंकल की तरफ गई…
सलोनी- प्लीज अंकल… कोई कपड़े हैं क्या आपके पास पहनने को.. मेरे कपड़े तो उन लोगों ने फाड़ दिए.. ओह गॉड ! अब मैं घर कैसे जाऊँगी…
और यह क्या अंकल तो पूरे सलोनी के दीवाने हो गए थे- हाँ हाँ क्यों नहीं बेटा.. तू ऐसा कर मेरी शर्ट और पैं पहन जा…
मैं दूसरे मंगवा लूंगा…
कमाल कर दिया था अंकल ने… मेरे दिमाग में तो यह आया ही नहीं कि अपनी ही शर्ट निकाल कर दे दूँ…
अंकल वाकयी बहुत ज़िंदा दिल निकले।
सलोनी ने बेड पर रखी उनकी शर्ट जो सफ़ेद रंग की बहुत चमकदार थी, शायद रेशम के कपड़े की थी और बहुत ही कीमती होगी, फिर सलोनी ने उनकी पैंट देखी, मगर वो तो बहुत चौड़ी थी, यह तो उसकी पतली कमर में रुक ही नहीं सकती थी।
उसने हंसकर उसको बिस्तर पर डाल दिया- ओह अंकल, यह तो मेरे आएगी ही नहीं.. यह तो बहुत बड़ी है…
अंकल- अरे कोशिश तो कर बेटी… इसमें कमर बेल्ट है.. टाइट हो सकती है।
और मेरे सामने ही अंकल पेंट लेकर सलोनी को पहनाने के लिए चले।
सलोनी ने मेरी ओर देखा, मैंने तुरंत अपनी गर्दन वहाँ मेज पर रखी महंगी व्हिस्की की ओर कर ली और अंकल से पूछा- अंकल, क्या दो घूंट पी लूँ, गला सूख रहा है?
अंकल- अरे हाँ बेटा, कैसी बात करते हो… और इसको भी थोड़ी सी पिला दो.. सारी घबराहट दूर हो जाएगी…
मैं मेज के पास जा वहाँ रखी कुर्सी पर बैठ गया और गिलास में व्हिस्की डाल अपना पेग बनाने लगा।
उधर अंकल खुद ही पैंट लेकर सलोनी को पहनाने लगे और सलोनी भी अपने पैर उठा पैंट को पहनने लगी ! ना जाने इन बूढ़ों को सुन्दर लड़की को कपड़े पहनाने में क्या मजा आता था…
मुझे तो सच… केवल उतारने में ही आता था …
देखते हैं अंकल की पैंट सलोनी को फिट आती है या नहीं… या वो कैसे करके इसको फिट करेंगे…
कहानी जारी रहेगी।
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