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अनीता की शादी अनमोल से हुई और सुहागरात को अनमोल की मुँहबोली भाभी उन दोनों को एक साथ कमरे में करके अनीता को बता गई कि अनमोल शर्मीला तो संभोग की पहल अनीता को ही करनी होगी… हुआ भी यही… अनीता ने अनमोल को संभोग के लिए तैयार किया और उसके बाद लगभग आधे घंटे की लिंग-योनि की इस लड़ाई में पति-पत्नी दोनों ही मस्ती में भर उठे।
कुछ देर के लगातार घर्षण ने अनीता को पूरी तरह तृप्त कर दिया, बाकी की रात दोनों एक-दूजे से यों ही नंगे लिपटे सोते रहे। सुबह आठ बजे तक दोनों सोते रहे। जब अनीता के ससुर रामलाल ने आकर द्वार खटकाया तब दोनों ने जल्दी से अपने-अपने कपड़े पहने और अनीता ने आकर कुण्डी खोली।
सामने ससुर रामलाल को खड़े देख उसने जल्दी से सिर पर पल्लू रखा और उसके पैर छुए। ‘सदा सुखी रहो बहू!’ कह कर ससुर रामलाल बाहर चला गया। अनीता ने अपने ससुराल में आकर केवल दो लोगों को ही पाया। एक तो उसका बुद्धू, अनाड़ी पति और दूसरा उसका ससुर रामलाल।
सास, ननद, जेठ, देवर के नाम पर उसने किसी को नहीं देखा। वह अपने अनाड़ी पति के वारे में सोचती तो उसे अपने भाग्य पर बहुत ही क्रोध आता। किन्तु अब हो भी क्या सकता था। फिर वह सब्र कर लेती कि चलो बस औरतों के मामले में ही तो अनमोल शर्मीला है। बाकी न तो पागल है और न ही कम-दिमाग है। वैसे तो हर अच्छे-बुरे का ज्ञान है ही उसे।
वह सोचने लगी कि अगर कल रात वह स्वयं पहल न करती तो सारी रात यों ही तड़पना पड़ता उसे। सुहागरात से ही अनीता के तन-बदन में आग सी लगी हुई थी, हालांकि उसके पति ने उसे संतुष्ट करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी थी। उसने जैसा कहा, बेचारा वैसा ही करता रहा था सारी रात, किन्तु फिर भी अनीता के जिस्म की प्यास पूरी तरह से नहीं बुझ पाई थी।
वह तो चाहती थी कि सुहाग की रात उसका पति उसके जवान व नंगे जिस्म की एक-एक पर्त हटा कर उसकी जवानी का भरपूर आनन्द लेता किन्तु अनमोल ने तो उसे नंगा देखने तक से मना कर दिया था। सुबह जब अनमोल उठा तब से ही उसकी तबियत कुछ ख़राब सी हो रही थी। वह सुबह खेतों में चला तो गया परन्तु अनमने और अलसाए हुए मन से।
दूसरी रात फिर पत्नी ने छेड़ा-खानी शुरू कर दी, वह रात भर उसे अपनी ओर आकर्षित करने के नए-नए उपाय करती रही मगर अनमोल टस से मस न हुआ। हार झक मार कर वह सो गई। तीसरी रात को अनमोल ने कहा- अनीता मुझे परेशान न करो, मेरी तबियत ठीक नहीं है।
अनीता ने अनमोल के बदन को छूकर देखा उसे सचमुच बुखार था। अनीता ने माथे पर पानी की गीली पट्टी रख कर सुबह तक बुखार तो उतार दिया फिर भी वह स्वयं को ठीक महसूस नहीं कर रहा था। अनमोल को डाक्टर को दिखाया गया। डाक्टर ने बताया कि कोई खास बात नहीं है। अधिक परिश्रम करने के कारण उसको कमजोरी आ गई है। तीन दिन के बाद अनमोल का बुखार उतर गया, अनीता के मन में लड्डू फूटने लगे कि आज की रात तो बस अपनी सारी इच्छाएँ पूरी करके ही दम लेगी।
आज तो वह पति के आगे पूरी नंगी होकर पसर जायेगी फिर देखें कैसे वह मना करेगा। रात हुई, अनीता पूरी तैयारी के साथ उसके साथ लेटी थी, धीरे-धीरे उसका हाथ पति की जाँघों तक जा पहुंचा। अनमोल ने एक बार को उसे रोकना भी चाहा किन्तु वह अपनी पर उतर आई। उसने पति के लिंग को कसकर अपनी मुट्ठी में पकड़ लिया और कहने लगी अगर इतनी ही शर्म आती है तो फिर मुझसे शादी ही क्यों की थी, आज मैं तुम्हें वो सारी चीजें दिखाऊँगी जिनसे तुम दूर भागना चाहते हो।
ऐसा कहते हुए उसने अपने ऊपर पड़ी रजाई एक ओर सरका दी और बोली- इधर देखो मेरी तरफ… बताओ तो सही मैं अब कैसी दिख रही हूँ। अनमोल ने उसकी ओर देखा तो देखता ही रह गया- अनीता, तुम्हारा नंगा बदन इतना गोरा और सुन्दर है ! मैंने तो आज तक किसी का नंगा बदन नहीं देखा।
अपनी आशा के विपरीत पति के वचन सुनकर अनीता की बाछें खिल उठीं, उसने उछल कर पति को अपनी बांहों में भर लिया। अनमोल बोला- अरे, जरा सब्र करो, मुझे भी कपड़े तो उतार लेने दो, आज मैं भी नंगा होकर ही तुम्हारा साथ दूँगा। वह अपने कुरते के बटन खोलता हुआ बोला।
तब तक अनीता ने उसके पायजामे का नाड़ा खोल दिया और उसे नीचे खिसकाने लगी। ‘अरे, अरे, रुको भी भई, जरा तो धीरज रखो। आज भी मैं वही करूँगा जो तुम कहोगी।’ ‘तो फिर जल्दी उतार फेंको सारे कपड़ों को …और आ चढ़ो एक अच्छे पति की तरह मेरे ऊपर !’ कपड़े उतार कर अनमोल अनीता के ऊपर आ गया, उसका लिंग गर्म और तनतनाया हुआ था। अनीता ने लपक कर उसे पकड़ लिया और अपने समूचे नंगे जिस्म पर रगड़ने लगी।
अपने पति को इस हाल में देख वह ख़ुशी से फूली नहीं समा रही थी। उससे अधिक देर तक नहीं रुका गया और उसने पति के लिंग को अपनी दोनों जाँघों के बीच कस कर भींच लिया और पति के ऊपर आकर लिंग को अपने योनि-द्वार पर टिकाकर अपने अन्दर घुसाने का प्रयास करने लगी।
अनीता ने कस कर एक जोरदार झटका दिया कि सारा का सारा लिंग एक ही बार में उसकी योनि के भीतर समा गया। ख़ुशी से उछल पड़ी वह और फिर जोरों से धक्के मार-मार कर किलकारियाँ भरने लगी पर बेचारी की यह ख़ुशी अधिक देर तक नहीं टिक सकी। दो-तीन झटकों में ही अनमोल का लिंग उसका साथ छोड़ बैठा यानि एकदम खल्लास हो गया। अनीता ने दोबारा उसे खड़ा करने की बहुतेरी कोशिश की पर नाकाम रही।
अनमोल ने उसके क्रोध को और भी बढ़ा दिया यह कह कर कि अनीता अब तुम भी सो जाओ, कल सुबह मुझे दो एकड़ खेत जोतना है। अनीता ने झुंझलाकर कहा- दो एकड़ खेत क्या खाक़ जोतोगे… पत्नी की दो इंच की जगह तो जोती नहीं जाती, कब से सूखी पड़ी है। अनीता नाराज होकर सो गई।
सुबह पड़ोस की भाभी ने पूछा- इतनी सुबह देवर जी कहाँ जाते हैं, मैं कई दिनों से देख रही हूँ उन्हें जाते हुए। अनीता बोली- आज कल उन पर खेत जोतने की धुन सवार है इसी लिए सुबह-सुबह घर से निकल पड़ते हैं। भाभी ने व्यंग्य कसा- अरी बहू, तेरा खेत भी जोतता है या यों ही सूखा छोड़ रखा है? इस पर अनीता की आंते-पीतें सुलग उठीं किन्तु मुँह से बोली कुछ नहीं। धीरे-धीरे एक माह बीत चला, अनमोल ने अनीता को छुआ तक नहीं। अनीता खिन्न से रहने लगी।
रामलाल (अनीता का ससुर) अनीता के अन्दर आते बदलाव को कुछ दिनों से देख रहा था। एक दिन जब बेटा खेतों पर गया हुआ था, वह अनीता से पूछ ही बैठा- बहू, तू मुझे कुछ उदास सी दिखाई पड़ती है, बेटा तू खुश तो है न अनमोल के साथ? अनीता कुछ न बोली मगर उसकी आँखों से आंसू टपकने लगे। रामलाल की अनुभवी आँखें तुरंत भांप गईं कि कहीं कुछ गड़बड़ तो जरूर है, वह धीमे से उसके पास आकर बोला- अनमोल और तेरे बीच वो सब कुछ तो ठीक है न, जो पति-पत्नी के बीच होता है। समझ गई न, मैं क्या कहना चाह रहा हूँ?
अनीता इस बार भी न बोली, सिर्फ टसुए बहाती रही। रामलाल बोला- चल, अन्दर चल-कर बात करते हैं, तू अगर अपना दुखड़ा मुझसे नहीं कहेगी तो फिर किससे कहेगी। ससुर-बहू बाहर से उठ कर अन्दर कमरे में आ खड़े हुए। रामलाल ने बड़े ही प्यार से अनीता के सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा- बता बेटा, मुझे बता, तुझे क्या दुःख है?
रामलाल का हाथ उसके सिर से फिसलकर उसके कन्धों पर आ गया, वह बोला- देख बहू, मैं तेरा ससुर ही नहीं, तेरे पिता के समान भी हूँ। तुझे दुखी मैं कैसे देख सकता हूँ। ऐसा कहकर रामलाल ने बहू को अपने सीने से लगा लिया, उसका हाथ कन्धों से फिसलकर बहू की पीठ पर आ गया, उसने अनीता की पीठ सहलाते हुए कहा- बहू, सच-सच बता …सुहागरात के बाद तुम पति-पत्नी के बीच दुबारा कोई सम्बन्ध बना? ‘बस एक बार और बना था।’
यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं ! ‘वह कैसा रहा?’ ससुर ने पुन: पूछा। अनीता से अब कतई न रहा गया, वह फूट-फूट कर रो पड़ी, बोली- पिता जी, वो तो बिल्कुल ही नामर्द हैं। रामलाल ने उसे और जोरों से अपने वक्ष से सटाते हुए तसल्ली दी- रोते नहीं बेटी, इस तरह धीरज नहीं खोते। मेरे पास ऐसे-ऐसे नुस्खे हैं जिनसे जनम से नामर्द लोग भी मर्द बन जाते हैं। अगर सौ साल का बूढ़ा भी मेरा एक नुस्खा खा ले तो सारी रात मस्ती से काटेगा।
रामलाल के अब दोनों हाथ बहू की पीठ और उसके नितम्बों को सहलाने लगे थे। रामलाल का अनुभव कब काम आएगा। वह अब हर पैतरा बहू पर आजमाने की पूरी कोशिश में जुटा था। बहू को एक बार भी विरोध न करते देख वह समझ चुका था कि वह आसानी से उस की चड्डी सम्भाल सकता है। बहू के नितम्बों को सहलाने के बाद तो उसका भी तनकर खड़ा हो गया था, इधर अनीता के अन्दर का सैलाव भी उमड़ने लगा, उसके तन-बदन में वासना की हजारों चींटियाँ काटने लगी थीं।
रामलाल का तना हुआ लिंग अनीता की जाँघों से रगड़ खा रहा था जिससे अनीता को बड़ा सुखद अनुभव हो रहा था, किंतु कैसे कहती कि पिता जी, अपना पूरा लिंग खोल कर दिखा दो। वह चाह रही थी कि किसी प्रकार ससुर जी ही पहल करें। वह अपना सारा दुःख-दर्द भूल कर ससुर की बातों और उसके हलके स्पर्श का पूरा आनन्द ले रही थी। रामलाल किसी न किसी बहाने बात करते-करते बहू की छातियों का भी स्पर्श कर लेता था।
अनीता को अब यह सब बर्दाश्त के बाहर होता जा रहा था, जब रामलाल ने भांपा कि अब अनीता उसका बिल्कुल विरोध करने की स्थिति में नहीं है तो बोला- आ बहू, बैठ कर बात करते हैं। तुझे अभी बहुत कुछ समझाना बाकी है। अच्छा एक बात बता, मेरा प्यार से तेरे ऊपर हाथ फिराना कहीं तुझे बुरा तो नहीं लग रहा है?” कहानी जारी रहेगी। [email protected]
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