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मेरा नाम दीपक है। मैं अभी दिल्ली की एक कम्पनी में काम करता हूँ। यह घटना दो साल पहले की है, जब मैं अपने कॉलेज के दूसरे साल में पढ़ रहा था। तब मेरी उम्र बीस साल हो गई थी और पढ़ने के लिए झारखण्ड के एक शहर धनबाद गया था। मेरा घर वहाँ नहीं था, इसलिए रहने के लिए किराये पर एक कमरा लिया हुआ था। मेरी मकान मालकिन का नाम रूपा था। उसकी उम्र लगभग चालीस साल होगी। वह भी उसी घर के ऊपर वाली मंजिल पर अकेली ही रहती थी, उसके पति देहरादून में काम करते थे और साल में एक-दो बार ही घर आते थे। उसके दो बेटे थे, एक दिल्ली के किसी कॉलेज में पढ़ता था और दूसरा किसी बोर्डिंग स्कूल में पढ़ता था। रूपा आंटी धनबाद के एक स्कूल में हिन्दी की शिक्षिका थीं। पहली बार जब मैं उससे बार मिला था, तब उसे देखते ही उसका दीवाना हो गया था। उस दिन रूपा आंटी पीले रंग की साड़ी पहने हुए थीं, जिसमें से उनका ब्लाउज साफ़-साफ़ दिख रहा था। मुझे शुरू से ही बड़े चूतड़ों वाली आंटियाँ बहुत पसंद थीं। मैं जब भी किसी मोटी आंटी को देखता हूँ, तो मेरा बहुत मन करता है कि उसे अपनी बाँहों में कस कर भर लूँ और उसके सारे शरीर को चूमता रहूँ। रूपा आंटी को देखकर मुझे वैसा ही लगा। एक दिन सुबह के नौ बज रहे थे और मैं अपनी बाईक लेकर कॉलेज जाने के लिए निकला। मैंने देखा रूपा आंटी भी अपने स्कूल जा रही थीं। मैंने उनसे पूछा- आंटी मैं आपको स्कूल तक छोड़ दूँ? तब उन्होंने कहा- अच्छा हुआ दीपक तुम मिल गए, मुझे स्कूल के लिए देर हो रही थी। इतना कहकर वो मेरे पीछे बैठ गईं। हम दोनों जल्दी ही स्कूल तक पहुँच गए। वह जल्दी से बाईक से उतरकर जाने लगीं। तब मैंने कहा- आंटी..! आप बुरा न माने तो मैं छुट्टी के बाद आपको लेने आऊँ..! उन्होंने पहले तो मना कर दिया, पर मेरे बार बार अनुग्रह करने पर मान गईं। मुझे पता था कि उनका स्कूल दो बजे ख़त्म होता है, इसलिए मैं दो बजे से पहले ही स्कूल पहुँच गया और बाहर आंटी का इंतज़ार करने लगा। लगभग पन्द्रह मिनट बाद छुट्टी की घंटी बजी और कुछ देर बाद आंटी भी आ गईं। मुझे बाहर खड़ा देखकर वह मुस्कुराने लगीं और मेरे पास आने लगीं। उस समय मैं सोच रहा था कि काश…! वो मेरी प्रेमिका होती और आकर मुझसे लिपट जातीं। इतने में वो पास आ गईं और मुझसे कहा- चलो… घर नहीं जाना? मैंने हंसते हुए उन्हें बैठने के लिए कहा और हम घर आ गए। अब मैं रोज़ उन्हें स्कूल तक छोड़ देता और रोज़ घर भी ले आता। इस तरह हम दोनों काफी अच्छे दोस्त बन गए थे। अब वो कभी मार्केट जातीं तो मेरे साथ ही जातीं। घर में कभी बोर होतीं तो मेरे पास बातचीत करने आ जातीं। वो कभी मेरे बारे में पूछतीं और कभी मेरी पढ़ाई के बारे में। अब हम एक-दूसरे से काफी खुल गए थे। एक दिन अचानक वो मुझसे पूछने लगीं- तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है क्या..? तब मैंने कहा- नहीं, आजकल की कोई लड़की मुझे पसंद आती ही नहीं। “तो फिर कैसी लड़की पसंद है…!” उन्होंने फिर पूछा। मैं कुछ देर चुप रहा और फिर कहा- पता नही। कुछ देर बाद मैंने पूछा- आंटी, आपको अंकल की याद नहीं आती है। तब वो थोड़ी उदास हो गईं, फिर कहने लगीं- नहीं…! फिर मैंने हैरानी से पूछा- क्यों? उन्होंने जवाब दिया- क्योंकि उन्हें मेरी कोई परवाह ही नहीं…. जब भी वे आते हैं तो अपने काम में ही बिजी रहते हैं। जब मैं कुछ कहती हूँ, तो मुझसे झगड़ पड़ते हैं। आजकल तो फोन भी नहीं करते हैं। इतना कहकर वो रोने लगीं। मैं उनके करीब गया और उनके कंधे पर अपना हाथ रखकर उन्हें चुप करने लगा और उनके आंसुओं को पोंछने लगा। कुछ देर बाद वो चुप हो गईं और अपने कमरे में चली गईं। अगले दिन जब मैं उनके कमरे में गया, तब वे टी.वी देख रही थीं। वो मुझे देखते ही बोलीं- आओ बैठो दीपक, मैं चाय बनाकर लाती हूँ। मैंने कहा- नहीं आंटी, आज मैं चाय नहीं पिऊँगा, आज मुझे आपसे कुछ और चाहिए। “हाँ बोलो, क्या चाहिए..!”उन्होंने मुझसे पूछा। मैंने कहा- आंटी, आज आपकी छुट्टी है, क्यों न आज हम कहीं घूमने चलें। उन्होंने मुझसे पूछा- कहाँ जायेंगे…! धनबाद में घूमने की कोई जगह है क्या..! फिर मैंने झट से कहा- चलिए आज कोई फिल्म देख कर आते हैं। उन्होंने साफ मना कर दिया और कहने लगीं- कोई देख लेगा तो क्या सोचेगा और फिर तुम्हारे दोस्तों ने हमे वहाँ देख लिया तो फिर तुम्हारा मजाक नही उड़ाएंगे। “उनकी फ़िक्र आप मत कीजिए, कोई मिलेगा तो कह दूँगा कि आप मेरी आंटी हैं और मैं आपकी फैमिली के साथ यहाँ आया हूँ।” फिर भी वो जाने के लिए मना करने लगीं। लेकिन बहुत देर तक मनाने के बाद मान गईं। जब हम सिनेमा हॉल में पहुँचे, तो देखा आज ज्यादा भीड़ नहीं थी, कुल दस-बारह लोग ही फिल्म देखने आए थे। शायद यह फिल्म बहुत दिनों से लगी हुई थी, इसलिए भीड़ कम थी। हम अपने सीट पर बैठ गए और फिल्म देखने लगे। वो एक कॉमेडी फिल्म थी, जिसके कारण हम हंसे जा रहे थे। जब फिल्म ख़त्म हुई, तब बाहर आकर देखा तो बारिश होने वाली थी। मैंने कहा- आंटी, बहुत तेज़ बारिश होने वाली है, थोड़ी देर रूक जाते हैं। आंटी बोलीं- चलो न..! बारिश के आते-आते हम घर पहुँच जायेंगे। मैंने जल्दी से अपनी बाईक ले आया और हम तेज़ी से घर की ओर जाने लगे, लेकिन तब तक बारिश शुरू हो गई थी और घर तक पहुंचते-पहुंचते हम काफी भीग चुके थे। जब हम घर पहुँचे तब मैंने देखा कि आंटी का पूरा बदन भीगा हुआ था, जिसके कारण उनकी साड़ी उनके शरीर से चिपक गई थी। उन्हें देखने में मैं इतना मग्न हो गया था कि बारिश में कुछ देर खड़ा रहा। आंटी की आवाज़ से मेरा ध्यान टूटा, वो कह रही थीं- दीपक, जल्दी अन्दर जाकर कपड़े बदल लो, मैं चाय बनाकर लाती हूँ। मैंने हाँ में सर हिला दिया। मैं अपने कमरे में गया और कपड़े बदल करके चुपचाप बैठ गया। कुछ देर बाद आंटी चाय लेकर आईं। वो हल्के रंग की नाईटी पहने हुए थीं और उनके भीगे बाल खुले हुए थे। वो मुझे पागल किए जा रही थी। जैसे ही उन्होंने चाय का कप मुझे दिया, मैंने आंटी से कहा-आंटी, मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूँ। उन्होंने कहा- बोलो, क्या बात है..! फिर एक गहरी साँस लेकर मैंने कह दिया- आंटी, आई लव यू, मैं आपसे बहुत प्यार करता हूँ..! आंटी सकपकाते हुए बोलीं- क्या..! तुम पागल तो नहीं हो गए हो..! “नहीं आंटी, सच में मैं आपसे बहुत प्यार करता हूँ। आपने मुझसे एक बार पूछा था न कि मुझे कैसी लड़की पसंद है, मुझे सिर्फ आप पसंद हो।” फिर उन्होंने कहा- यह कैसे हो सकता है, मैं तो तुमसे बहुत बड़ी हूँ और फिर मेरी शादी बहुत पहले हो चुकी है। मुझमें ऐसा क्या है जिससे तुम इतना प्यार करते हो? फिर मैंने कहा- आंटी मैं जानता हूँ कि आप शादी के बाद भी अकेली महसूस करती हैं, आपको भी एक साथी की ज़रुरत है। “किसी को पता चल गया तो..!”आंटी ने अपना डर जाहिर किया। फिर मैंने कहा- किसी को कुछ भी पता नहीं चलेगा, हम घर के बाहर वैसे ही रहेंगे जैसे पहले थे, बस हम घर के अन्दर ही प्रेमी-प्रेमिका रहेंगे। “फिर भी दीपक, मुझे ये सब गलत लग रहा है, मैं तुमसे प्यार कैसे कर सकती हूँ..!”आंटी ने कहा। फिर मैंने कहा- प्लीज़ आंटी मान जाओ, मैं आपके बिना खुश नहीं रह पाऊँगा और मैं जानता हूँ कि आप भी मेरे बिना खुश नहीं रह पाएंगी। बहुत देर तक मैं उन्हें मनाता रहा, कुछ देर बाद वो बोलीं- दीपक, मुझे सोचने के लिए थोड़ा समय चाहिए। इतना कहकर वो चली गईं। मुझे रात भर नींद नहीं आई, न जाने कल क्या होगा, कहीं वो अपने पति से कह तो नहीं देंगी। अब मेरा दिल थोड़ा-थोड़ा बैचेन होने लगा था। मैं रात भर करवटें बदलता रहा। सुबह लगभग नौ बजे किसी ने दरवाज़ा खटखटाया, जैसे ही मैंने दरवाज़ा खोला तो देखा आंटी बाहर खड़ी हैं, उनकी आँखों को देखकर लग रहा था कि वो भी रात भर नहीं सोई थीं। वो अन्दर आ गईं और जल्दी से दरवाज़ा बंद कर दिया। उसके बाद वो मुझसे लिपट गईं और रोते हुए कहने लगीं- दीपक, मैं भी तुमसे बहुत प्यार करती हूँ, लेकिन दुनिया के डर से मैंने कभी कहा नहीं। मैंने उन्हें कसकर पकड़ लिया और उनके गालों को चूमने लगा। कुछ देर बाद वो शांत हो गईं, तब हम एक-दूसरे से अलग हुए। फिर वो कहने लगीं- दीपक मुझे किस करो न…! इतना सुनते ही मैंने उनके होठों पर अपने होंठ सटा दिए। वो काफी रोमांचित हो उठीं और अपनी जीभ को मेरे मुँह के अन्दर डाल दिया। इस बीच मैंने उनकी नाईटी के बटनों को खोल दिया था। करीब एक मिनट बाद जब हमारा चुम्बन ख़त्म हुआ तब मैंने उनकी नाईटी को उतार दिया। अब वो मेरे सामने पेटीकोट और ब्रा में खड़ी थी। मैं अपने घुटनों पर आ गया और उनकी मोटी कमर को अपनी बाँहों में लेकर उनके पेट और नाभि को चूमने लगा। वो आँखें बंद करके सिसकारियाँ भर रही थीं। थोड़ी देर बाद उन्होंने अपनी ब्रा भी खोल दी और अपनी कमर से मेरा हाथ पकड़ कर अपने मम्मों के पास ले गईं और दबाने का इशारा करने लगीं। उनके मम्मे बहुत मुलायम थे, इसलिए मैं धीरे-धीरे उन्हें सहलाने लगा। कुछ देर बाद उन्होंने मेरी कमीज़ खोल दी और मुझे बिस्तर पर लिटा दिया। उसके बाद वो मेरे ऊपर आकर मेरे शरीर को चूमने लगीं। कुछ देर बाद मैं उनके ऊपर चढ़ गया और उनके चूचियों को चूसने लगा। उसके बाद मैं उनके पैरों की तरफ बैठ गया और उनके पैरों को चूमते हुए उनके पेटीकोट को ऊपर उठाने लगा। जब मैंने पेटीकोट को जाँघों से ऊपर उठाया, तब मुझे उनकी काले रंग की पैन्टी दिखने लगी। उनकी गोरी मोटी जांघें मुझे रोमांचित करने लगीं और मैं पागलों की तरह उन्हें चूमने और चाटने लगा। कुछ देर बाद मैंने उनकी पेटीकोट भी उतार दिया और पैन्टी के ऊपर से ही उनकी चूत को चूमने लगा। मुझसे और सहन नहीं हुआ और मैंने उनकी पैन्टी को भी उतार दिया। अब मेरे सामने उनकी खुली चूत थी। जैसे ही मैंने उनकी चूत को छुआ, वो और जोर से सिसकारने लगीं। उनकी चूत की गंध और उसके छोटे-छोटे बाल मुझे मदहोश किए जा रहे थे। मैंने अपने होंठ उनकी चूत पर रख दिए और उसे चाटने लगा। आंटी जोर-जोर से आहें भर रही थी और फुसफुसाकर कह रही थीं- ओह..! दीपक तुमने मुझे वो प्यार दिया है, जिसके लिए मैं जाने कितने सालों से तरसती रही थी। मैंने उन्हें और जोर से अपने आगोश में भींच लिया। फिर उन्होंने कहा- दीपक अब मुझसे रहा नहीं जा रहा है, मुझे चोद दो और मेरी बरसों की प्यास बुझा दो। उसके बाद मैंने अपनी पैन्ट खोली और आंटी को बोला- आंटी एक बार मेरे लण्ड को अपने मुँह में ले लो..! फिर वो मेरे ऊपर आईं और मेरे लण्ड को अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगीं। कुछ ही देर में मेरा लण्ड बहुत कड़ा हो गया। फिर मैं आंटी के ऊपर हो गया और अपना लण्ड उनकी चूत पर रख दिया और धीरे से ठेलने लगा। आंटी कहने लगीं- और जोर से दीपक, चोद दो अपनी आंटी की चूत। मैंने जोर लगाकर धक्का लगाया और मेरा लण्ड उनकी चूत में घुस गया और वो चीखने लगीं- और जोर से जान, और जोर से…! मैंने भी अपनी स्पीड बढ़ा दी थी। इस दौरान वो दो बार झड़ चुकी थीं। कुछ देर बाद मैं झड़ने वाला था तब आंटी बोलीं- अपना शीरा अन्दर ही भर दो..! फिर हम दोनों नंगे एक-दूसरे की बांहों में सो गए। उस दिन हमने कई बार चुदाई की। उसके बाद मेरा जब भी मन करता, मैं उनके पास चला जाता और हम मन भर चुदाई करते। दोस्तों खासकर मेरी प्यारी आंटियों आपको मेरी कहानी कैसी लगी, मुझे जरूर ई-मेल करें मुझे आपके प्यार का इंतज़ार रहेगा। [email protected]
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